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सोशल मीडिया रूसी सूचना संघर्ष के प्रचार का ज़रिया बन गया है और यह ग़लत सूचनाओं का बड़ा अंबार बन गया है। यह राजनीतिक प्रतिष्ठान और व्यापक समाज में विश्वास की कमी को साफ़-साफ़ दिखाता है।
2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव कई वजहों से ऐतिहासिक रहा। तब उद्योगपति रहे डॉनल्ड ट्रंप की अपरंपरागत जीत के अलावा ये एक ऐसा चुनाव था जिसमें हैकिंग के आरोप लगे, ‘फ़ेक न्यूज़’ का टर्म पहली बार रोज़मर्रा के शब्दकोश में आया और अभूतपूर्व रूप से इन सबके पीछे रूस के शामिल होने की ख़बर आई, शीत युद्ध के बाद से ऐसा कभी नहीं देखा गया था।
सूचना के ज़रूरत से ज़्यादा बोझ वाले समय में सूचना युद्ध का घातक ख़तरा तेज़ी से बढ़ रहा है। रशिया टुडे (RT) ने ख़ुद को रूस के प्रीमियम इंग्लिश भाषा न्यूज़ चैनल के रूप में ब्रांड किया है जो पश्चिमी और बाक़ी अंग्रेज़ी भाषी दुनिया को रूसी परिप्रेक्ष्य में पेश करने का मुख्य आउटलेट भी है।
मॉस्को ने लंबे समय से ये महसूस किया है कि पश्चिमी आधिपत्य वाले न्यूज़ मीडिया के पूर्वाग्रह के बीच रूसी दृष्टिकोण कहीं गुम सा हो गया है। पश्चिमी आधिपत्य वाला न्यूज़ मीडिया अमेरिकी रिवायत को निभाते हुए रूस को नकारात्मक तरीक़े से पेश करता है।
चुनावों के बाद की पड़ताल ने दिखाया कि रशिया टुडे ने तब राष्ट्रपति के उम्मीदवार रहे डॉनल्ड ट्रंप को काफ़ी मदद पहुंचाया था। रशिया टुडे के एडिटर ने एक ही वीडियो में 27 बार डॉनल्ड ट्रंप का नाम लिया जो एक रिकॉर्ड है । विशेषज्ञों के मुताबिक़ यह वीडियो रूसी सूचनाओं और संघर्ष को दिखाता है। रूस के कुछ जानकारों के मुताबिक़, रशिया टुडे अकेला हथियार नहीं है जिसका इस्तेमाल रूसी सरकार सूचना के इस युद्ध में अपने फायदे के लिए करती है।
कहानी 2016 से पहले शुरू होती है। कई लोग सोच रहे होंगे कि रूस का मक़सद क्या है? आख़िर क्रेम्लिन क्या पाने की कोशिश कर रहा है? ज़ोर इस बात पर है कि मॉस्को ‘वेस्ट’ को एक समान लक्ष्य पर लाने की कोशिश कर रहा है। कई लोग जो रूस के प्रति ट्रंप की आत्मीयता और ट्रंप के प्रति रूस के लगाव दोनों को देख कर अभी भी हैरान हैं, वो एक बड़ी पिक्चर को मिस कर रहे हैं।
रूस के विश्लेषक कहते हैं कि मक़सद डॉनल्ड ट्रंप की जीत को लेकर बहुत कम था और यहां तक कि हिलेरी क्लिंटन को सत्ता से दूर रखने का भी बहुत ही कम मक़सद था। लेकिन मक़सद ग़लत सूचना और सूचना के संघर्ष की प्रक्रिया का जश्न मनाने का था, जो कि अब अंग्रेज़ी शब्दकोश में ‘फ़ेक न्यूज़’ के तौर पर लोकप्रिय है।
बात 2007 की है जब म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ़्रेंस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ‘वेस्टर्न वर्ल्ड ऑर्डर’ की कड़ी निंदा की और अमेरिका पर वैश्विक सुरक्षा को खोखला करने का आरोप लगाया। रूसी मीडिया ने उनके भाषण को ‘प्रतीकात्मक या दूरदर्शी’ बताया। सालों से रूस का अपना स्वतंत्र विदेश नीति दृष्टिकोण रहा है और वह उस स्वतंत्रता को नहीं खोना चाहेगा। मॉस्को का तब के सोवियत राष्ट्रों के साथ मतभेद है और यह अपनी मर्ज़ी से काम करता है। उदाहरण के लिए 2007 में एस्टोनिया पर किया गया साइबर हमला। इसने एस्टोनिया के यूएस- ट्रान्साटलांटिक (अटलांटिक पार का) संबंधों के एकीकरण को कम कर दिया। 2008 में पड़ोसी मुल्क़ से असहमति बढ़ने पर रूस के टैंक जॉर्जिया में गरजे। 2014 में रूस और यूक्रेन क्रीमिया को लेकर एक-दूसरे के विरोध में आ गए और रूस ने क्रीमिया पर क़ब्ज़ा करने का फ़ैसला लेने से पहले अपने ऊपर लगने वाले भारी-भरकम प्रतिबंधों को लेकर दूसरी बार नहीं सोचा।
रूस ने भी 2017 चुनावों के दौरान नीदरलैंड में फ़ेक न्यूज़ की समान रणनीति का इस्तेमाल किया था। 2016 की शुरुआत में ही क्रेम्लिन को डच और यूरोपीय संघ के संबंधों में टकराव का अहसास हो गया था। धारणा यह थी कि यूरोपीय संघ के प्रति बढ़ती नाराज़गी के साथ ‘नेग्ज़िट’ (डच का यूरोपीय संघ से बाहर होना) की मांग ज़ोर पकड़ रही थी। नीदरलैंड ने अपने आंतरिक मामलों में ब्रुसेल्स के दख़ल का विरोध किया। क्रेमलिन के वफ़ादार समर्थक इस आक्रोश का हिस्सा बनने के लिए हॉलैंड में अति दक्षिणवादी और अति वामपंथी लोगों से जुड़ गए।
यूक्रेन के आसमान में उड़ते वक़्त मार गिराया गया मलेशियाई एयरलाइंस विमान MH17 हादसा, रूस को यूरोपीय संघ के लिए डच नफ़रत का हथियार बनाने में एक बड़ा फ़ैक्टर था। ‘नेग्ज़िट’ का मतलब यूरोपीय संघ और रूस के संभावित सहयोगी की क्षमता का कमज़ोर होना होगा।
कहा जा सकता है कि इस समय सूचना संघर्ष चरम पर है।
रशिया टुडे अमेरिका और दुनिया के दूसरे अंग्रेज़ी भाषी देशों को वैकल्पिक दृष्टिकोण मुहैया कराना चाहता है। 2016 के अमेरिकी चुनाव पर आते हैं, रूस ने ग़लत सूचनाओं के ज़रिए धीरे-धीरे अपने कैंपेन को बढ़ाया। फ़ेक सोशल मीडिया अकाउंट ब्लैकटिविस्ट — चुनावों की दौड़ में नस्ली तनाव को भड़काने के लिए ब्लैक और एक्टिविस्ट शब्दों के संयोजन से बनाया गया शब्द। ऐतिहासिक रूप से, 1960 के दशक में नागरिक अधिकार आंदोलन के दौरान पूर्व सोवियत संघ भी KGB (कोमितेत गोसुदर्स्त्वेन्नोय बेज़ोप्स्नोस्ति, रूसी शब्द) के गुप्त माध्यमों के ज़रिए अफ़्रीकी अमेरिकी समुदाय के असंतोष का हिस्सा बना।।
सोशल मीडिया रूसी सूचना संघर्ष के प्रचार का ज़रिया बन गया है और यह ग़लत सूचनाओं का बड़ा अंबार बन गया है। यह राजनीतिक प्रतिष्ठान और व्यापक समाज में विश्वास की कमी को साफ़-साफ़ दिखाता है।
डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद कंज़र्वेटिव पॉलिटिकल ऐक्शन कमेटी (CPAC) में रूस के झंडे बांटे गए और ट्रंप की ताज़पोशी के बाद अगस्त 2017 में रूस को सूची में जोड़ते हुए CAATSA के प्रतिबंधों को लागू किया गया है।
2018 में फ़रवरी से अक्टूबर तक रूस के साइबर हमले और चुनावों में हस्तक्षेप के अपराध संबंधित चार मामले सामने आए। रूस के एक विश्लेषक ने सोशल मीडिया के क़ायदों की तुलना कार के उस दौर से की जब न तो विन्ड सक्रीन होते थे और न सीट बेल्ट। विश्लेषक का मतलब ये है कि चालक को सावधानी और क़ायदों के साथ गाड़ी चलाने की ज़रूरत है, यह प्रक्रिया अब भी चल ही रही है। 2016 के चुनावों में रूस ने जो किया और लुका-छिपी के जिस तरीक़े से रूस आगे बढ़ा, उसकी प्रबलता को कई लोगों ने वाकई में परेशान करने वाला बताया।
इसी तरह, यूक्रेन में अविश्वास चरम पर है और यहां के लोग चुनावी प्रक्रिया की स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया में यक़ीन नहीं रखते। इस बीच रूस में, पुतिन पिछले दो दशकों से सत्ता में हैं और वो राजकीय सत्ता को छोड़ने के कोई संकेत नहीं देते हैं।
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Akshobh Giridharadas was a Visiting Fellow based out of Washington DC. A journalist by profession Akshobh Giridharadas was based out of Singapore as a reporter ...
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