Published on Feb 20, 2019 Updated 0 Hours ago

हाल में जारी अमेरिकी मिसाइल रक्षा समीक्षा के मायने भारत के लिए क्या है — इस पर एक नजर।

भारत-प्रशांत क्षेत्र: मिसाइल रक्षा साझेदारी में भारत की जगह कहां होगी?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल हीमें मिसाइल रक्षा समीक्षा 2019 (एमडीआर) का ऐलान किया जिसमें अमेरिका के समक्ष तेजी से उभरते खतरों और इनसे निपटने के लिए उसके उपायों और क्षमताओं की रूपरेखा पेश की गयी है जो देश के भूभाग, विदेशी अड्डों एवं दुनिया भर में अमेरिकी मित्र देशों और साझेदारों की रक्षा के लिए जरूरी हैं। ट्रंप प्रशासन द्वारा जारी रणनीतिक दस्तावेजों में सबसे नया यही दस्तावेज है जिसमें इस बात पर टिप्पणी की गयी है कि भारत और व्यापक भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए इसके क्या मायने हैं।

मिसाइल रक्षा समीक्षा में भारत-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति पर भी खास तौर पर चर्चा है जिसमें उत्तर कोरिया, ईरान, रूस और चीन का उल्लेख खतरे के तौर पर किया गया है। इसके अलावा कुछ देशों की मिसाइल रक्षा और उपग्रह-विरोधी (ASAT) उपलब्धियों की भी चर्चा है जो अमेरिका पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। साथ ही इसमें जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और भारत जैसे अमेरिकी मित्रों और साझेदारों के साथ अमेरिका के काम करने के महत्व को भी दर्शाया गया है।

समान विचारधारा वाले देशों के बारे में भी इसमें विस्तार से टिप्पणी है। जापान और दक्षिण कोरिया दोनो अपने अपने मिसाइल रक्षा कवच विकसित करने के लिए अमेरिका के साथ पहले से ही मिलकर काम कर रहे हैं और अमेरिकी सिस्टम्स के साथ इनका तकनीकी तालमेल भी लगातार बेहतर हो रहा है। आस्ट्रेलिया भी अमेरिका और जापान के साथ त्रिपक्षीय समझौते के तहत क्षेत्रीय मिसाइल सहयोग को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ऐसे में भारत-प्रशांत क्षेत्र में विकसित होती मिसाइल रक्षा साझेदारी में भारत का स्थान कहां है?

भारत इस प्रक्रिया से अनजान नहीं है। यह पिछले दो दशक से अपने पड़ोसी इलाके में बढ़ते मिसाइल खतरों से निपटने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन-पाकिस्तान के बीच बढ़ते सहयोग ने भारत को इस बात के लिए मजबूर किया है कि वो कुछ खास सीमित मिसाइल रक्षा क्षमताओं को विकसित करे। 1990 के दशक की शुरूआत में लघु और मध्यम दूरी की एम-9 और एम-11 बैलिस्टिक मिसाइल के चीन से पाकिस्तान पहुंच जाने के कारण भारत को मिसाइल रक्षा के विकल्प तलाशने की जरूरत महसूस हुई। भारत ने चीन की लंबी दूरी की मिसाइलों की खेपों के साथ तो जीना सीख लिया है लेकिन पाकिस्तान के मामले में भारत को ज्यादा तेजी से अपने सुरक्षा इंतजाम करने की महसूस हुई जो हमेशा से ही भारत का ऐसा प्रमुख विरोधी रहा है जिसके रवैये का अनुमान लगाना मुश्किल है।

भारत के मिसाइल रक्षा विकल्पों में घरेलू स्तर पर विकसित मिसाइल रक्षा तकनीक के साथ साथ विदेश से खरीदे गये मिसाइल भी शामिल हैं। इस समय मिसाइल रक्षा के मामले में भारत की नीति में बड़ा बदलाव आया है। भारत ने अमेरिका के 1980 के स्टार वार्स मिसाइल रक्षा कार्यक्रम की मुखर आलोचना की है। मिसाइल खतरे की बदलती परिस्थितियों और अमेरिका के प्रति रणनीतिक बदलाव ने भारत को नीति बदलने के लिए प्रेरित किया है।

इस तथ्य को स्वीकार करते हुए ही मिसाइल रक्षा समीक्षा में “दक्षिण एशिया में उन्नत एवं विविध रेंज वाले बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल क्षमताओं” का विशिष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है। समीक्षा में ये भी टिप्पणी है कि भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक हितों की साझेदारी को देखें तो ये दोनों देशों के बीच सहयोग के लिए बेहतर संभावनाओं के द्वार खुले हुए हैं और ऐसी स्थिति में “भारत के स्वाभाविक रूप से एक बड़े रक्षा सहयोगी और हमारे भारत-प्रशांत रणनीति के मुख्य किरदार के रूप में उभरने की प्रबल संभावना है।”

यहां निश्चित तौर पर इस बात के संकेत मौजूद हैं कि भारत इस क्षेत्र में अमेरिकी गठबंधनों और साझेदारियों के साथ कैसा सलूक करता है इसे अमेरिका काफी तवज्जो दे रहा है। यहां एक उदाहरण की बात करें तो अमेरिका ने सिर्फ कुछ महीने पहले ही भारत को “स्ट्रेटेजिक ट्रेड अथॉराइजेशन — 1 (STA-1)” का दर्जा दिया है जो एशिया में इसके पहले केवल जापान और दक्षिण कोरिया को दिया गया था। भले ही मिसाइल रक्षा क्षेत्र में भारत की दिलचस्पी बढ़ रही है लेकिन वह अमेरिका के साथ साझेदारी करने में सक्षम होगा या नहीं, यह एक खुला सवाल है।

दिलचस्प बात ये है कि ये फैसला उस वक्त आया है जब भारत ने करीब 5 अरब डॉलर में रूसी वायु रक्षा प्रणाली एस-400 खरीदने का फैसला लिया है। भारत का एस-400 प्रणाली खरीदने का फैसला इस बात का संकेत है कि उसके पड़ोस में किस स्तर के मिसाइल खतरे मौजूद हैं, लेकिन इसका मतलब ये भी है कि भारत बीएमडी प्रणाली के लिए अमेरिका का रूख करेगा या नहीं इसे लेकर भी अभी स्पष्टता नहीं है। एक अमेरिकी और रूसी रक्षा प्रणाली को आपस में तालमेल स्थापित में जटिलता आ सकती है, भले ही कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि भारत के समक्ष मौजूद अलग अलग तरह के खतरों को देखें तो भिन्न-भिन्न राडार और इनक्रिप्शन प्रणाली को शामिल करना एक तर्कसंगत विकल्प होगा।

दूसरी समस्या ये है कि भारत का डीआरडीओ पहले से ही अपना द्विस्तरीय बीएमडी प्रणाली विकसित कर रहा है। इसके अलावा भारत निचली श्रेणी की अमेरिकी नार्वेइयाई NASAMS-2 प्रणाली और साथ ही भारत-इजरायल MRSAM भी खरीद रहा है जो बराक-8 नौसेना प्रणाली का जमीनी प्रतिरूप है। इन सारी परिस्थितियों के मद्देनजर, भारत के बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा ढांचे के अंतर्गत अमेरिका के साथ भावी सहयोग की संभावना मौजूद है या नहीं ये देखना अभी बाकी है।


ये टिप्पणी मूल रूप से The Diplomat में प्रकाशित हुई थी।

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