Author : Girish Luthra

Published on Jan 19, 2022 Updated 0 Hours ago

हिंद-प्रशांत के लिए 2021 बेहद परिवर्तनकारी साल साबित हुआ. बीते साल इस इलाक़े के और यहां से बाहर के कई देशों ने नीतिगत ढांचों के स्तर पर कई बड़े पहल किए. 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र: समंदर से जुड़े मसले और महासागर संबंधित प्रशासन व्यवस्था

ये लेख गवर्नेंस प्रॉपोज़िशन ऑफ़ 2022 सीरीज़ का हिस्सा है.


हाल के समय में सुरक्षा के अलावा आर्थिक, सियासी, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दायरों में भी महासागरों की अहमियत देखी जाने लगी है. हालिया दौर में लोगों का ध्यान महादेशों से हटकर महासागरों पर टिकने लगा है. दरअसल, महासागरों के अलग-अलग इलाक़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और राजनीतिक शक्ति के नए केंद्र बनकर उभरने लगे हैं. समुद्र से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में हिंद-प्रशांत का इलाक़ा लोगों की दिलचस्पी और आकर्षण का एक अहम केंद्र बनकर उभरा है. यहां देशों के बीच तालमेल भी दिखता है और तीखा टकराव भी. 

ज़ोर-ज़बरदस्ती वाली रणनीतियां और दादागीरी के ख़िलाफ़ पैंतरे, एक बार फिर से अहम हो चुके हैं. कुछ ताक़तों की हरकतों के चलते फ़ौजी संतुलन से जुड़ी चर्चाएं दोबारा ज़ोर पकड़ चुकी हैं.  

हिंद-प्रशांत के लिए 2021 बेहद परिवर्तनकारी साल साबित हुआ. बीते साल इस इलाक़े के और यहां से बाहर के कई देशों ने नीतिगत ढांचों के स्तर पर कई बड़े पहल किए. साथ ही अनेक देशों और क्षेत्रीय समूहों ने विभिन्न मसलों पर अपना अलग-अलग रुख़ और तेवर भी सामने रखा. आने वाले दशकों में इस क्षेत्र की अहमियत बुलंदी पर होगी. इस बात से हर कोई वाक़िफ़ है. इस इलाक़े में महाशक्तियों के बीच की रस्साकशी और प्रतिस्पर्धा दिनों दिन रफ़्तार पकड़ती जा रही है. महामारी से प्रभावित दुनिया में नए-नए पैंतरे और रुख़ उभरकर सामने आ रहे हैं. नतीजतन इस इलाक़े में कई औपचारिक और अनौपचारिक साझीदारियों और व्यवस्थाओं की शुरुआत हो चुकी है. मौजूदा और उभरते हुए ख़तरों के आकलन और अलग-अलग हितों के आधार पर भू-राजनीति के क्षेत्र में कई बड़ी घटनाएं घटित हो चुकी हैं. चुनौतियों और अवसरों ने कई नई पहलों को जन्म दिया है. ज़ोर-ज़बरदस्ती वाली रणनीतियां और दादागीरी के ख़िलाफ़ पैंतरे, एक बार फिर से अहम हो चुके हैं. कुछ ताक़तों की हरकतों के चलते फ़ौजी संतुलन से जुड़ी चर्चाएं दोबारा ज़ोर पकड़ चुकी हैं.  

चीन ने महामारी से बुरी तरह प्रभावित इलाक़ों में अपनी पैठ बनाने की कोशिशें में भी रफ़्तार भर दी है. रूस ने भी इस क्षेत्र में ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभाने का अपना इरादा ज़ाहिर किया है.

महामारी के कारण रणनीति में बदलाव

अमेरिका के एक साल पुराने बाइडेन प्रशासन ने प्राथमिक तौर पर चीन और पूर्वी हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर लगातार अपना ध्यान टिकाए रखा है. हालांकि पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन के मुक़ाबले मौजूदा अमेरिकी प्रशासन का रुख़ थोड़ा अलग है. बाइडेन के नेतृत्व वाला अमेरिका वक़्त के तक़ाज़े के हिसाब से इस इलाक़े में पहले से ज़्यादा सक्रियता से काम कर रहा है. वर्चुअल तौर पर क्वॉड का पहला शिखर सम्मेलन मार्च 2021 में आयोजित किया गया था. इसके बाद सितंबर 2021 में क्वॉड के शीर्ष नेताओं की आमने-सामने बैठकर बातचीत हुई. इन क़वायदों से ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच की भागीदारी को औपचारिक स्वरूप देने में मदद मिली. सितंबर 2021 में एक और सुरक्षा गठजोड़ ऑकस (AUKUS) वजूद में आया. अपेक्षाकृत ढीले-ढाले स्वरूप वाले इस जमावड़े में ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका शामिल हैं. दूसरी ओर चीन ने इस इलाक़े में अपना प्रभाव और रसूख़ जमाने की क़वायद को और तेज़ कर दिया. चीन की इन कोशिशों का मकसद अमेरिकी रणनीतियों और कार्रवाइयों की काट करना और मौजूदा विवादों और तनावों में अपना आक्रामक रुख़ बरकरार रखना है. चीन ने महामारी से बुरी तरह प्रभावित इलाक़ों में अपनी पैठ बनाने की कोशिशें में भी रफ़्तार भर दी है. रूस ने भी इस क्षेत्र में ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभाने का अपना इरादा ज़ाहिर किया है. मार्च 2021 में यूरोपीय संघ (EU) ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अपनी पहली और बेहद व्यापक रणनीति का खुलासा किया. EU ने पिछले साल सितंबर में साझा तौर पर इस रणनीति के अंतिम स्वरूप को स्वीकार कर लिया. EU ने इसमें अपनी हिंद-प्रशांत रणनीतियों और नज़रियों का खुलासा कर चुके देशों और समूहों के साथ भागीदारियों को और गहरा करने की योजना को रेखांकित किया है. 

सौ बात की एक बात ये है कि महामारी के चलते बार-बार आ रही बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद इस इलाक़े की रणनीतियां, जुड़ाव और कार्यक्रम अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ते रहे. 

यूनाइडेट किंगडम ने  2021 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर ‘झुकाव’ की अपनी योजना सामने रखी. इसके साथ ही उसने अपनी एकीकृत समीक्षा- “ग्लोबल ब्रिटेन इन ए कॉम्पिटिटिव एज” का भी खुलासा कर दिया. जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने भी अनेक दायरों में अपनी पहलों को तेज़ किया है. आसियान ने आसियान की अगुवाई वाले तौर-तरीक़ों पर ज़ोर दिया है. इसके अलावा पश्चिमी एशिया, अफ़ग़ानिस्तान और मध्य पूर्व में भी बड़े भारी बदलाव देखने को मिले हैं. एक नए ‘पश्चिम एशियाई क्वॉड‘ का भी एलान किया गया है. दुनिया में छोटे-छोटे समूहों के गठन (minilateralism) का चलन बढ़ता जा रहा है. हाल के ये तमाम घटनाक्रम कुछ हद तक इस बदलते रुझानों से भी प्रभावित हुए हैं. 2021 में हिंद-प्रशांत को केंद्र में रखकर की गई नई पहलों और व्यवस्थाओं की सूची लंबी और बेहद थकाऊ होगी. सौ बात की एक बात ये है कि महामारी के चलते बार-बार आ रही बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद इस इलाक़े की रणनीतियां, जुड़ाव और कार्यक्रम अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ते रहे. जी20 और ब्रिक्स सम्मेलन और COP26 वार्ताओं के दौरान भी ये इलाक़ा तमाम चर्चाओं के केंद्र में बना रहा. 

ज़्यादातर देशों की हिंद-प्रशांत रणनीतियां पहले से अधिक व्यापक और नपी-तुली शक़्ल ले चुकी हैं. इन रणनीतियों का उभार धीरे-धीरे, क्रमबद्ध तरीक़े से हुआ है. हालांकि इन प्रयासों में समुद्रतट से जुड़े दायरे अब भी सबसे अहम बने हुए हैं. कई देशों ने इस इलाक़े से जुड़ी रणनीतियों को और ठोस रूप देने के लिए विशेष विभाग और इकाइयां तक गठित कर दी हैं. इन क़वायदों में भी समंदर से जुड़े घटकों पर ख़ास ज़ोर दिया गया है. समुद्री रास्तों को सुरक्षित और मुक्त बनाए रखने को लेकर आम सहमति का स्तर बढ़ता गया है. इसी तरह ब्लू इकॉनोमी, सामुद्रिक बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी को प्राथमिकता देने  को लेकर भी देशों के बीच मोटे तौर पर रज़ामंदी दिखाई देती है. इसके अलावा वैश्विक मूल्य श्रृंखला को मज़बूत बनाने और दुनिया के व्यापक हितों के लिए सामुद्रिक भागीदारियों का भरपूर इस्तेमाल करने को लेकर भी दुनिया के तमाम देश मोटे तौर पर सहमत नज़र आ रहे हैं. अगस्त 2021 में भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने समुद्री सुरक्षा से जुड़े बयान को सर्वसम्मति से मंज़ूरी दे दी. इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इतिहास में ये अब तक का पहला प्रस्ताव है.

भारत के प्रस्ताव को कई देशों का समर्थन

भारत ने पांच प्रमुख क्षेत्रों में आपसी समझदारी और सहयोग का ढांचा तैयार करने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया है. ये क्षेत्र हैं- व्यापार, विवाद, प्राकृतिक आपदाएं, पर्यावरण और कनेक्टिविटी. समुद्री सुरक्षा के दायरे में निरंतर मज़बूती का रुझान जारी है. इस कड़ी में पारंपरिक और ग़ैर-पारंपरिक जोख़िमों पर भी नए सिरे से ज़ोर दिया जाने लगा है. द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समुद्री अभ्यासों की संख्या और दायरे भी बढ़ गए हैं. सहकारी पहलों में सूचना साझा करने, सामुद्रिक दायरों (पानी के अंदर समेत) के बारे में जागरूकता बढ़ाने, क्षमता निर्माण और क़ाबिलियत बढ़ाने से जुड़ी तमाम क़वायदें प्रमुखता से बरकरार रही हैं. अंतरराष्ट्रीय सामुद्रिक क़ानून ख़ासतौर से UNCLOS का पालन करने की ज़रूरत पर कई देशों ने ज़ोर दिया है. बहरहाल, अनेक भागीदारियों और ख़ास मकसदों से उठाए गए क़दमों के बावजूद समुद्र से जुड़ा पूरा वातावरण चुनौतियों और अनिश्चितताओं से भरा रहा है. इस सिलसिले में ख़ासतौर से पूर्वी चीन सागर, दक्षिण चीन सागर और बाब-अल-मंडेब की खाड़ी के उदाहरण लिए जा सकते हैं. 

सात प्रमुख स्तंभों पर आधारित भारत की हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल (IPOI) की गूंज दूर तक सुनाई दी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ अहम किरदारों जैसे ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ़्रांस, वियतनाम और फिलीपींस ने इसका समर्थन किया है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में 2021 में हुए घटनाक्रमों में भू-सामरिक और भू-आर्थिक हितों का दबदबा रहा. सुरक्षा, आर्थिक, विकास, पर्यावरण, संसाधनों की मज़बूती और इकोलॉजी के दायरों में महासागरीय प्रशासन की अहमियत को कई मंचों से बार-बार दोहराया गया है. इस संदर्भ  में ख़ासतौर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र का हवाला दिया जाता रहा है. दरअसल दुनिया के कुछ देश महासागरों में और उनके इर्द गिर्द अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने की क़वायद में निरंतर जुटे हुए हैं. यूरोपीय संघ की हिंद-प्रशांत रणनीति में बताए गए सात प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में महासागरीय प्रशासन का भी ज़िक्र किया गया है. सात प्रमुख स्तंभों पर आधारित भारत की हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल (IPOI) की गूंज दूर तक सुनाई दी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ अहम किरदारों जैसे ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ़्रांस, वियतनाम और फिलीपींस ने इसका समर्थन किया है. इसके तहत महासागरीय प्रशासन को मज़बूत बनाने के लिए नई क़वायदों की बजाए मौजूदा संस्थाओं और ढांचों पर ही ज़ोर लगाने की बात कही गई है. हालांकि इस बात को भी स्वाकार किया गया है कि महासागरीय प्रशासन से जुड़े एजेंडे को आगे बढ़ाने में मौजूदा ढांचों और संस्थाओं की भूमिका में कई तरह की ख़ामियां रही हैं.  भारतीय महासागर आयोग महासागरीय और समुद्री मुद्दों पर एक व्यापक ढांचा सामने रखने की कसरत कर चुका है. हालांकि इसकी पहलें और कार्यक्रम मोटे तौर पर पश्चिमी हिंद महासागर तक ही सीमित रहे हैं. इसी तरह दूसरे संस्थान और ढांचों के तहत भी धीरे-धीरे महासागरीय प्रशासन से जुड़ी चुनौतियों का निपटारा करने की कोशिशें की जाती रही हैं. इस तरह की चुनौतियां लगातार परिवर्तनशील रही हैं. 

सामुद्रिक प्रशासन को प्राथमिकता

बहरहाल अब इस बात की समझ बढ़ती जा रही है कि समुद्र और महासागरीय प्रशासन समुद्र तटवर्ती और तटीय क्षेत्रों के प्रशासन से बिल्कुल अलग है. ग़ौरतलब है कि समुद्र तटवर्ती और तटीय इलाक़े राष्ट्रीय सरकारों के संप्रभु क्षेत्राधिकारों की ज़द में होते हैं. ऐसे में बाक़ी समंदर और महासागरों के प्रशासन के लिए उन्नत और प्रगतिशील ढांचों और दूरदर्शी नेतृत्व की दरकार होगी. महासागरीय प्रशासन की नई संरचना आपसी समझ और तालमेल पर टिकी होनी चाहिए. इसके लिए प्रासंगिक क़ानूनों और मान्यताओं की एक जैसी या साझा व्याख्या किया जाना ज़रूरी है. हिंद-प्रशांत के लिए ऐसे ही ढांचे स्थापित किए जाने की दरकार है. विभिन्न निकायों और संस्थाओं के बीच आम सहमति बनाना और तालमेल में सुधार करना इसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी होनी चाहिए. अगर मौजूदा उप-क्षेत्रीय संस्थाओं और ढांचों को ही महासागरीय प्रशासन का मुख्य अंग मानकर आगे बढ़ा जाता है तो भी आपसी संवाद और संपर्कों के लिए उनके बीच एक सुचारू तंत्र की ज़रूरत बनी रहेगी. 

हाल के अनुभवों से साफ़ है कि अप्रत्याशित घटनाक्रमों और हरकतों के चलते लगने वाले झटकों से पैदा होने वाली बाधाओं का दौर बदस्तूर जारी रहेगा. इस पृष्ठभूमि में महासागरीय प्रशासन को प्राथमिकता देने की बेहद-ज़रूरी क़वायद को अंजाम देने के लिए ख़ास तरह के प्रयास करने होंगे.

2021 में हिंद-प्रशांत में सामने आए रुझानों के इस साल भी जारी रहने के आसार हैं. इस इलाक़े का माहौल कमोबेश तनावपूर्ण और अनिश्चित ही बना रहेगा. इस क्षेत्र को लेकर तमाम ताक़तों के समुद्र तटवर्ती रुझानों में बढ़ोतरी होगी. हालांकि, कुछ देशों के लिए इससे महादेशीय और समुद्रतटवर्ती रणनीतियों के मुनासिब घालमेल वाली व्यवस्था ही सामने आएगी. इस क्षेत्र के लिए सुरक्षा और आर्थिक दायरों में नई भागीदारियां उभरकर सामने आ सकती हैं. मौजूदा गठजोड़ों और भागीदारियों के तहत भी नई पहलों की शुरुआत का एलान हो सकता है. माकूल संकेतों के साथ प्रतिस्पर्धी पक्षों के बीच सुरक्षा भागीदारी में तेज़ी आ सकती है. वैचारिक, तकनीकी, सामाजिक और यहां तक कि खेल जैसे घरेलू दायरों तक प्रतिस्पर्धा के विस्तार से मौजूदा दरारें और गहरी होती जाएंगी. ऐसे में अलग-अलग किरदारों की हिंद-प्रशांत रणनीतियों पर अमल की परख भी हो जाएगी. इस सिलसिले में  ख़ासतौर से उनके असर और कामयाबी की पड़ताल होगी. हालांकि, हाल के अनुभवों से साफ़ है कि अप्रत्याशित घटनाक्रमों और हरकतों के चलते लगने वाले झटकों से पैदा होने वाली बाधाओं का दौर बदस्तूर जारी रहेगा. इस पृष्ठभूमि में महासागरीय प्रशासन को प्राथमिकता देने की बेहद-ज़रूरी क़वायद को अंजाम देने के लिए ख़ास तरह के प्रयास करने होंगे. सहयोग के उचित और समावेशी ढांचों के साथ महासागरीय प्रशासन पर नए सिरे से ज़ोर दिया जाना अपने-आप में स्थिरता को बढ़ाने की दिशा में मज़बूत पहल साबित हो सकती है. इससे इस इलाक़े और इसके आगे भी सुरक्षा, बचाव, विकास और बेहतरी सुनिश्चित की जा सकती है. 

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