Author : Ekta Jain

Published on Jan 24, 2022 Updated 0 Hours ago

जबकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ज़्यादातर देश अपने टीकाकरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो भारत इस क्षेत्र में दूसरे मुल्कों के साथ मिलकर सभी देशों को वैक्सीन मुहैया कराई जा सके इसके लिए पहल कर सकता है. 

इंडो-पैसिफ़िक: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कोरोना वैक्सीन को लेकर एक-समान हिस्सेदारी

साल 2021 समाप्त हो चुका है और कई लोगों को आशंका थी कि कोरोना महामारी दुनिया के अधिकांश हिस्सों में तबाही के संकेत देगी लेकिन वायरस का विस्तार कम हुआ है और ज़्यादातर मुल्कों में लोग कोरोना वायरस के साथ “ज़िंदगी जीना” सीख चुके हैं. भारत में भी त्योहारों को लेकर अधिकारियों को आशंका थी कि देश में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी होगी. लगभग इसी समय, दक्षिण अफ्रीका में स्वास्थ्य एजेंसियों ने एक नए स्ट्रेन, ओमिक्रॉन वेरिएंट का पता लगाया, जो अब दुनिया के ज़्यादातर देशों में फैल चुका है और कोरोना की अगली लहर पैदा कर रहा है. महामारी के दौरान, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने तमाम देशों से एक मंच पर आने और कोरोना से एक साथ लड़ने की अपील की थी और इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र इस परिकल्पना की एक मिसाल बन सकता है. इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र के मुल्कों के बीच ऐसा सहयोग भारत को इस भू-राजनीतिक क्षेत्र में नेतृत्व की भूमिका में ला सकता है.

महामारी को रोकने के लिए, क्वॉड नेताओं ने कोरोना से पैदा होने वाले आपात हालात का सामना करने के लिए एक दूसरे के साथ मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई है. क्वॉड द्वारा विश्व स्तर पर 1 बिलियन से अधिक टीके दान किए जाने की योजना है. 25 सितंबर 2021 तक इंडो-पैसिफ़िक के देशों को कुल 79 मिलियन टीके दान किए गए थे

क्वॉड – भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) जैसे समान विचारधारा वाले लोकतंत्रों का एक समूह – इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में सबसे अहम समूहों में से एक माना जाता है. क्वॉड की स्थापना 2004 में हुई जब भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने हिंद महासागर में आई ख़तरनाक सुनामी के दौरान राहत कार्यों को लेकर आपस में समन्वय दिखाया था. हालांकि, इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र को भारत इस भौगोलिक क्षेत्र के भीतर आने वाले सभी मुल्कों को एक साथ देखता है. तब से लेकर अब तक शुरुआती सहयोग मुख्य रूप से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, सुरक्षा और व्यापार पर केंद्रित रहा है लेकिन इस सहयोग में स्वास्थ्य को हाल ही में शामिल किया गया है. महामारी को रोकने के लिए, क्वॉड नेताओं ने कोरोना से पैदा होने वाले आपात हालात का सामना करने के लिए एक दूसरे के साथ मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता दोहराई है. क्वॉड द्वारा विश्व स्तर पर 1 बिलियन से अधिक टीके दान किए जाने की योजना है. 25 सितंबर 2021 तक इंडो-पैसिफ़िक के देशों को कुल 79 मिलियन टीके दान किए गए थे. अन्य संबंधित क्षेत्रों जैसे कि टीकों के निर्माण और सप्लाई चेन प्रबंधन को भी इंडो-पैसिफ़िक देशों के बीच घनिष्ठ सहयोग के लिए जाना जाता है.

क्वॉड लीडर्स को इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र के लिए अपने हेल्थकेयर विस्तार में वैक्सीन की हिस्सेदारी – दोनों इंटर और इंट्रा नेशन – के लिए भी शामिल करने की ज़रूरत है. हाल के आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया के कम आय वाले देशों में, कुल आबादी के केवल 4.2 प्रतिशत लोगों को ही पूरी तरह से वैक्सीन लगाया गया है. जबकि मध्यम और उच्च आय वाले देशों के लिए जनसंख्या टीकाकरण अनुपात क्रमशः 35 प्रतिशत और 70 प्रतिशत था. इस अंतर का एक कारण निम्न-मध्यम आय वाले देशों में जहां क्लीनिकल ट्रायल्स किए गए थे, वहां बताया गया है कि वैक्सीन के इस्तेमाल और उसे ‘अधिकृत करने में देरी’ हुई थी.

16 जनवरी 2021 से भारतीयों को कोविशील्ड का टीका देने में पांच महीने लग गए. एक स्वदेशी कोरोना वैक्सीन- कोवैक्सीन के लिए रोल-आउट, और भारत में स्वीकृत दूसरे टीकाकरण के लिए देश में अनुमोदन और उपयोग के लिए एक समान समयरेखा थी. 

अमीर देशों की संकीर्ण मानसिकता

भारत के लिए, ऑक्सफोर्ड एस्ट्रा-जेनेका कोविशील्ड दूसरे और तीसरे चरण का क्लीनिकल परीक्षण शुरू करने वाला पहला वैक्सीन था. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया द्वारा स्थानीय रूप से निर्मित, इस वैक्सीन का परीक्षण केवल अगस्त 2020 से शुरू हो पाया. यानी जैविक वायरल सामग्री को पहली बार 2020 मई में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त होने के तीन महीने बाद इसका परीक्षण किया गया. 16 जनवरी 2021 से भारतीयों को कोविशील्ड का टीका देने में पांच महीने लग गए. एक स्वदेशी कोरोना वैक्सीन- कोवैक्सीन के लिए रोल-आउट, और भारत में स्वीकृत दूसरे टीकाकरण के लिए देश में अनुमोदन और उपयोग के लिए एक समान समयरेखा थी. कोविशील्ड, जिसे घरेलू स्तर पर तैयार किया गया था उन्हें उच्च या मध्यम आय वाले राष्ट्र को देने के हिसाब से प्राथमिकता के आधार पर तैयार किया गया था. वैक्सीन विकसित होने से पहले ही देश टीकों को आरक्षित करने के तरीके खोज रहे थे. यहां तक कि कई देशों के बीच द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौते पहले से ही मौजूद थे. वैसे देश जो मध्यम या उच्च आय वाले थे उन्होंने कई निर्माताओं/कंपनियों से वैक्सीन सीधे ख़रीदने का सहारा लिया.

कोवैक्स (कोविड 19 वैक्सीन ग्लोबल एक्सेस) की स्थापना विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर देश में वैक्सीन की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए की गई थी. हालांकि, यह उस उद्देश्य को प्राप्त करने में नाकाम साबित हो रहा है जिसके लिए इसे स्थापित किया गया था, जबकि वैक्सीन की समान पहुंच की बात आती है तो निम्न या निम्न-से-मध्यम आय वाले देश की पहुंच वैक्सीन तक नहीं हो पाई है. वैक्सीन कंपनियों द्वारा मानव परीक्षण शुरू करने से पहले ही उच्च आय वाले देशों ने मई 2020 की शुरुआत में ही वैक्सीन की ख़ुराक ख़रीद ली थी. कोवैक्स को अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए, एक तरह से उन देशों से वैक्सीन वापस लेना होगा जिन्होंने इसकी ख़रीद पहले से ही कर ली थी. अब जबकि ओमिक्रॉन दुनिया भर में फैल रहा है तो ऐसा होने की कोई संभावना नहीं दिखती है.

जब भारत ने अमेरिका को वैक्सीन की एक मिलियन डोज़ भेजने की ज़िम्मेदारी ली, तब अमेरिका कोरोना की तीसरी लहर की मार झेल रहा था. भारत सरकार के इस फैसले का घेरलू स्तर पर राजनीतिक पार्टियों ने घोर आलोचना की थी क्योंकि इसी के कुछ महीनों बाद देश कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ गया.

हालांकि, कोवैक्स के टीकों के उचित आवंटन का तंत्र उन देशों में वैक्सीन पहुंच को प्राथमिकता देने की वकालत करता है जहां कोरोना महामारी का ख़तरा ज़्यादा गंभीर है लेकिन हर मुल्क, एक या ज़्यादा तरीक़ों से, इसके जोख़िम में है, या फिर कोरोना का ख़तरा उनपर भी मंडरा रहा है. यहां तक कि जब भारत ने अमेरिका को वैक्सीन की एक मिलियन डोज़ भेजने की ज़िम्मेदारी ली, तब अमेरिका कोरोना की तीसरी लहर की मार झेल रहा था. भारत सरकार के इस फैसले का घेरलू स्तर पर राजनीतिक पार्टियों ने घोर आलोचना की थी क्योंकि इसी के कुछ महीनों बाद देश कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ गया. डेल्टा वेरिएंट ने भारत में कोरोना मामलों में बढ़ोत्तरी से लेकर, अस्पताल में भर्ती होने और रोज़ाना होने वाली मौत में भारी बढ़ोतरी देखी थी. तब भारत सरकार की इस सहयोगात्मक रवैये की भारी आलोचना की गई – जिन पर कोरोना का ख़तरा बहुत ज़्यादा था – कि अपने नागरिकों को पहले टीका लगाने का विकल्प चुना जाना ज़रूरी था. इस संदर्भ में वैक्सीन हिस्सेदारी की दिशा में काम करने के प्रयास को धक्का लगता है. यह मामला तब हुआ है जब दुनिया भर के अन्य देशों में महामारी की दूसरी, तीसरी या चौथी लहर का क़हर था. तब अमेरिका जैसे उच्च आय वाले देशों ने भारत को वैक्सीन निर्माण के लिए कच्चे माल के निर्यात को रोक दिया था, क्योंकि उन्होंने डेल्टा वेरिएंट के ख़िलाफ़ ख़ुद को तैयार करने को प्राथमिकता दी थी.

कोवैक्स की रूपरेखा पर्याप्त नहीं है, और इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र सभी देशों को वैक्सीन मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी उठा सकता है. भारत में टीकाकरण की कुल संख्या प्रभावशाली है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अन्य सभी से अधिक है. जबकि इस मोर्चे पर अन्य देशों के लिए सीखने के लिए बहुत कुछ अभी बाकी है.

विश्व बैंक के मुताबिक, इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र आधा दर्जन से अधिक देशों का समूह है, जिन्हें निम्न-आय और निम्न-मध्यम आय के रूप में वर्गीकृत किया गया है. ये निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देश भी इस क्षेत्र में ज़्यादा जनसंख्या के लिए ज़िम्मेदार हैं. एक जनवरी 2022 तक, सिंगापुर में इंडो-पैसिफ़िक में टीकाकरण की दर सबसे अधिक थी.

चित्र 1 : 5 जनवरी 2022 तक कोरोना का टीकाकरण करने वाली आबादी का अनुपात प्रतिशत

 Indo Pacific Equal Sharing Of Corona Vaccine In The Indo Pacific Region

स्रोत : ऑवरवर्ल्डइनडेटा.ओरजी (Ourworldindata.org)


कई प्रमाण इस बात की पुष्टि करते हैं कि वैक्सीन कवरेज़ देश के आय वर्गीकरण के मुताबिक अलग-अलग होते हैं. उच्च, मध्यम और निम्न आय वाले देशों के लिए, क्रमशः 58.49, 11.95, और 1.26 डोज़ /100 जनसंख्या के मुताबिक़ है. उच्च आय वाले देशों में टीकाकरण नीतियां अधिक मज़बूत होती हैं, जबकि कम आय वाले देशों में कमज़ोर और सीमित नीतियां देखी जाती हैं. इन नीतियों को टीकाकरण की कोशिश में मध्यस्थता करने को लेकर भी पाया गया है. कोवैक्स की रूपरेखा पर्याप्त नहीं है, और इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र सभी देशों को वैक्सीन मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी उठा सकता है. भारत में टीकाकरण की कुल संख्या प्रभावशाली है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अन्य सभी से अधिक है. जबकि इस मोर्चे पर अन्य देशों के लिए सीखने के लिए बहुत कुछ अभी बाकी है. हालांकि, चिंता इस बात को लेकर है कि आबादी के एक बड़े हिस्से का अभी भी टीकाकरण नहीं हुआ है, और कोरोना वैक्सीन को लेकर शहरी और ग्रामीण इलाकों में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखी जाती हैं. इंडो-पैसिफिक के जिन देशों में टीकाकरण की दर काफी ज़्यादा है, उन्हें अन्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए मौजूदा प्रयासों का समर्थन करने की ज़रूरत दिखती है, जिससे कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित लक्ष्य, जिसके तहत जुलाई 2022 तक 70 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण किया जाना है, उसे प्राप्त किया जा सके.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.