Published on Jun 10, 2022 Updated 0 Hours ago

IPEF के चार मुख्य स्तंभों की पड़ताल: हिंद प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक संबंध को और मज़बूत बनाना आर्थिक कनेक्टिविटी, आर्थिक लचीलापन, स्वच्छ अर्थव्यवस्था और न्यायोचित अर्थव्यवस्था की चार मुख्य बातों पर आधारित है.

#Indo Pacific Economic Framework यानी हिंद-प्रशांत की आर्थिक रूप-रेखा का आग़ाज़!

24 मई को टोक्यो में चौथे क्वॉड शिखर सम्मेलन से जुड़ी एक और बड़ी उपलब्धि थी हिंद प्रशांत आर्थिक रूप-रेखा की शुरुआत, जिसका ऐलान शिखर सम्मेलन से एक दिन पहले किया गया था. ये क्वॉड से जुड़ा हुआ एक और ढांचा है, जिसके दरवाज़े इस क्षेत्र के अन्य देशों के लिए भी खुल गए हैं. हिंद प्रशांत आर्थिक रूप-रेखा (IPEF), क्वॉड के बुनियादी इरादे से आगे की बात है. ये क्वॉड की तरफ़ से की गई हालिया पहलों को हिंद प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा संबंधी प्रयासों से आगे बढ़कर, बड़े और कार्यकारी स्तर पर ले जाता है.

क्वॉड के हालिया शिखर सम्मेलनों में ये देखा गया था कि उनमें आसियान (ASEAN) देशों को भी लुभाने की कोशिश की गई थी. हर साझा बयान में आसियान को केंद्र में रखने, इसकी एकता और हिंद प्रशांत क्षेत्र में संगठन की अहमियत का बखान किया गया था. सुरक्षा के आयाम से अलग हटकर एक आर्थिक मंच बनाने का मक़सद, आसियान देशों को सहज बनाना था. आसियान देश चीन बनाम अमेरिका के मुक़ाबले में फंसने से हिचकते हैं और क्वॉड को भी ऐसी होड़ का एक हिस्सा मानते हैं. IPEF अपनी शुरुआत के मौक़े पर 13 देशों को साथ लाने में सफल रहा है. इस दौरान आसियान के 10 सदस्यों में से सात देशों ने इस आर्थिक ढांचे को लेकर सलाह मशविरों में शामिल होने पर सहमति जताई. इसके अलावा, क्वॉड के चार देश- भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया  क़ुदरती तौर पर इसका हिस्सा बने. इनके अलावा न्यूज़ीलैंड और दक्षिण कोरिया भी इस आर्थिक ढांचे का हिस्सा बने. ये सभी 13 देश ईस्ट एशिया समिट के सदस्य हैं और भारत और अमेरिका को छोड़ दें तो बाक़ी के 11 देश, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) का भी हिस्सा हैं.

जो बाइडेन ने IPEF के विचार का ऐलान  अक्टूबर 2021 में हुए ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन में ही किया था. अमेरिका के लिए IPEF उसकी एशिया को धुरी बनाने और नई हिंद प्रशांत रणनीति का ही हिस्सा है. हालांकि, अभी ये एक अधूरा दस्तावेज़ और योजना है.

ये क्वॉड प्लस की एक दिलचस्प पहल है. सामरिक नज़रिए से देखें तो एक और क्षेत्रीय आर्थिक समूह उभरा है, जिसके सदस्य अन्य समूहों के भी सदस्य हैं.

IPEF कई मायनों में अनूठा है. हालांकि, अभी कोई आर्थिक संस्था बनने के बजाय, सलाह मशविरे के स्तर पर ही है. जो बाइडेन ने IPEF के विचार का ऐलान  अक्टूबर 2021 में हुए ईस्ट एशिया शिखर सम्मेलन में ही किया था. अमेरिका के लिए IPEF उसकी एशिया को धुरी बनाने और नई हिंद प्रशांत रणनीति का ही हिस्सा है. हालांकि, अभी ये एक अधूरा दस्तावेज़ और योजना है. बाइडेन ने आसियान के नेताओं से IPEF के बारे में उस वक़्त संक्षेप में बात की थी, जब उनमें से आठ नेता, मई 2022 में अमेरिका-आसियान विशेष सम्मेलन के लिए जुटे थे. हालांकि, बाइडेन ने IPEF का ऐलान उस वक़्त नहीं किया. आसियान के तीन सबसे कम विकसित देश- कंबोडिया, लाओस और म्यांमार को IPEF में शामिल होने का न्यौता नहीं दिया गया.

जापान, IPEF का एक मज़बूत स्तंभ है. कई विचारों की मदद से इस पहल को एक आकार देने से लेकर आसियान देशों को इसमें शामिल होने के लिए राज़ी करने तक, जापान ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. IPEF का एजेंडा उन्हीं मुद्दों का विस्तार है, जिन पर अमेरिका और जापान पहले से काम कर रहे हैं. जैसे कि आपूर्ति श्रृंखलाएं और मूलभूत ढांचे का विकास. दोनों देश सेमीकंडक्टर की आपूर्ति श्रृंखला की चुनौतियों से निपटने के लिए कच्चे माल से लेकर उत्पादन के के लिए ज़रूरी तकनीकी संसाधन तक मुहैया करा सकते हैं. जापान, हिंद प्रशांत ‘क्षेत्र में टिकाऊ और समावेशी विकास’ को तरज़ीह देता है.

>अमेरिका, IPEF को हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपने आर्थिक नेतृत्व के विस्तार के तौर पर देखता है, जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था को फ़ायदा होगा. उम्मीद की जा रही है कि IPEF के ज़रिए मुक़ाबले के कड़े मानक तय होंगे न कि किसी एक देश का प्रभुत्व क़ायम होगा.

इस आर्थिक रूप-रेखा में न्यूज़ीलैंड और दक्षिण कोरिया को भी शामिल करना महत्वपूर्ण है. क्योंकि ये दोनों देश हिंद प्रशांत क्षेत्र के अहम लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं. दोनों CPTPP और RCEP के भी सदस्य हैं, और IPEF संबंधी व्यापक सलाह मशविरे में उन्हें शामिल किए जाने की ज़रूरत भी है. फिजी का IPEF का हिस्सा बनने का फ़ैसला स्वागत योग्य है. इससे इस आर्थिक ढांचे के व्यापक प्रशांत क्षेत्र में विस्तार की संभावना पैदा होती है. हालांकि ताइवान को IPEF में शामिल होने का न्यौता नहीं दिया गया. जबकि ताइवान,  APEC का सदस्य है, और चीन की तरह उसने भी CPTPP की सदस्यता के लिए अर्ज़ी दी है. भले ही अमेरिका चाहता हो कि इस आर्थिक रूप-रेखा से और देश भी जुड़ें. मगर, चीन को नाराज़ करने के डर से अन्य देश इससे दूरी बनाए हुए हैं.

IPEF के पहलू

अमेरिका, IPEF को हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपने आर्थिक नेतृत्व के विस्तार के तौर पर देखता है, जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था को फ़ायदा होगा. उम्मीद की जा रही है कि IPEF के ज़रिए मुक़ाबले के कड़े मानक तय होंगे न कि किसी एक देश का प्रभुत्व क़ायम होगा. लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं पर ज़ोर के ज़रिए इस क्षेत्र को अचानक महंगाई की मार और बाधा से बचाने की कोशिश होगी. IPEF में बाज़ार तक पहुंच के ऑफ़र नहीं हैं. क्योंकि इसके लिए अमेरिका को अपनी संसद से मंज़ूरी लेनी होगी और बाइडेन प्रशासन इसका जोखिम लेने का इच्छुक नहीं है. अमेरिका का मानना है कि आर्थिक संपर्क बढ़ाने के पुराने मॉडलों में नाज़ुक आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा, भ्रष्टाचार और टैक्स की चोरी से निपटने की व्यवस्थाएं नहीं थीं. ऐसे में IPEF के ज़रिए एक ऐसा ढांचा पेश किया गया है, जिससे ‘कामगारों, उद्यमियों और ग्राहकों’ को फ़ायदा होगा.

आर्थिक संबंध बढ़ाने के लिए IPEF के तहत चार प्रमुख स्तंभों पर ध्यान केंद्रित करने का प्रस्ताव है. आर्थिक कनेक्टिविटी के लिए, डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए आला दर्ज़े के नियमों के साथ व्यापार की समीक्षा की जाएगी; डेटा के प्रवाह और उसे स्थानीय स्तर पर सहेजने के मानक तय किए जाएंगे; डिजिटल अर्थव्यवस्था से पैदा हुए अवसरों का लाभ उठाने और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों को मदद देने के साथ साथ, उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अनैतिक इस्तेमाल से सुरक्षा देने की बातें इसका प्रमुख लक्ष्य हैं. श्रमिक बाज़ार, पर्यावरण के मानक और कॉरपोरेट जवाबदेही के सख़्त मानक जैसी कुछ बाते हैं, जिन्हें अमेरिका ने IPEF के ज़रिए हासिल करने का लक्ष्य रखा है.

दूसरा स्तंभ आर्थिक लचीलेपन का है, जिसके लिए मुख्य रूप से ऐसी आपूर्ति श्रृंखलाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जिन पर किसी तरह के खलल और अचानक आने वाली महंगाई का असर न पड़े. पहले ही चेतावनी देने की व्यवस्था की स्थापना करना, अहम खनिजों का निर्धारण और इलेक्ट्रिक गाड़ियों और सेमीकंडक्टर जैसे सेक्टर में आपूर्ति सुनिश्चित करने और विविधता लाने जैसे लक्ष्य रखे गए हैं. दूरगामी अवधि में, IPEF ने क्षमताओं को एकजुट करने, अहम तकनीकों के सेक्टर में संकट के समय में भी काम कर सकने वाली लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओ के निर्माण जैसे लक्ष्य भी निर्धारित किए हैं. इस मामले में भारत और यूरोपीय संघ और, अमेरिका-यूरोपीय संघ की व्यापार और तकनीकी परिषदें ऐसे मंचों पर उपयोगी सूचनाएं साझा करने में मदद कर सकते हैं. इन सूचनाओं को IPEF में शामिल किया जा सकता है, ताकि व्यापार, भरोसेमंद तकनीक और सुरक्षा के गठजोड़ से पैदा होने वाली चुनौती का मुक़ाबला किया जा सके.

IPEF के तीसरे स्तंभ यानी स्वच्छ अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने के लिए सदस्य देशों को नवीनीकरण योग्य ऊर्जा, कार्बन उत्सर्जन कम करने और हरित ईंधन के ढांचे के विकास की प्रतिबद्धता जतानी होगी, जिससे आर्थिक विकास में योगदान मिलेगा. इस स्तंभ के ज़रिए हरित ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश हासिल करके, कुशलता के ऊंचे मानक तय करने और मीथेन के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लक्ष्य हासिल किए जा सकेंगे.

IPEF का चौथा मुख्य स्तंभ न्यायोचित अर्थव्यवस्था है, जो एक समान अधिकारों वाली व्यवस्था का लक्ष्य लेकर चलने वाला है. इसके तहत मनी लॉन्‍डरिंग, भ्रष्टाचार और कर चोरी रोकने के असरदार उपाय करने का प्रस्ताव है. इसके तहत टैक्स के बारे में जानकारी के बेहतर लेन देन, संयुक्त राष्ट्र के मानकों के तहत भ्रष्टाचार को अपराध बनाने और भ्रष्टाचार की गुंजाइश वाली जगहों पर लाभकारी मालिकाना हक़ वाले सुझाव दिए जाने का प्रस्ताव है. क्वॉड ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में आला दर्ज़े के मूलभूत ढांचे के विकास के लिए 50 अरब डॉलर के फंड का ऐलान  किया है. इस फंड और बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) और G7 देशों की मदद से इस क्षेत्र में मूलभूत ढांचे की कमियां दूर की जा सकेंगी. जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया का मूलभूत ढांचे के विकास का प्रस्ताव और जापान- यूरोपीय संघ और भारत- यूरोपीय संघ कनेक्टिविटी साझेदारियां भी इस कोशिश के साथ जोड़ी जा सकती हैं, ताकि एक ही क्षेत्र में ये सारी कोशिशें एक दूसरे का दोहराव न बनें. 

अगर अमेरिका ऊंचे मानकों वाला कोई ढांचा खड़ा करने की कोशिश कर रहा है, तो उसका ये प्रयास बहुत कामयाब नहीं होगा. क्योंकि, तब साझीदार देश उसके बाज़ार में पैठ की सुविधा भी मांगेंगे. IPEF के साझीदार सिर्फ़ अमेरिका की प्राथमिकताओं के हिसाब से चलने वाले नहीं हैं. अमेरिका इसके लिए, विश्व व्यापार संगठन के तालमेल बढ़ाने वाले समझौते का समर्थन कर सकता है. अमेरिका को चाहिए कि वो विश्व व्यापार संगठन में विवादों के निपटारे की व्यवस्था में बार-बार रोड़े अटकाने से भी पीछे हटे.

भारत और IPEF

भारत ने हिंद प्रशांत आर्थिक ढांचे का सदस्य बनने के लिए हिचकते हुए क़दम उठाए हैं. 21 मई को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि ये अमेरिका की पहल है और भारत इस पर विचार कर रहा है. लेकिन, 23 मई को जब IPEF के आग़ाज़ का ऐलान  किया गया, तो वहां मौजूद क्वॉड के तीन नेताओं में प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल थे.

जैसा कि प्रबीर डे ने एक पेपर में लिखा है कि, ऐसे कई मसले हैं जिन्हें लेकर भारत और अमेरिका के नज़रिए में फ़र्क़ है. भारत के लिए ऊंचे मानक हमेशा ही एक परेशानी की बात रहे हैं. इसी वजह से भारत ने कभी भी ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) को गंभीरता से नहीं लिया. डिजिटल प्रशासन भी शायद भारत की मौजूदा स्थिति के लिहाज़ से विरोधाभासी है. डेटा के अंतरराष्ट्रीय प्रवाह, डेटा को स्थानीय स्तर पर, ख़ास तौर से वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में संरक्षित करने और इलेक्ट्रॉनिक तरीक़े से विकसित किए जाने वाले डिजिटल उत्पादों पर सीमा शुल्क जैसे मुद्दों पर भारत और अमेरिका के नज़रिए में ख़ासे मतभेद हैं. अमेरिका के संघीय और राज्यों के क़ानून अक्सर उन नियमों के विरोधाभासी होते हैं, जिन्हें भारत तरज़ीह देता है. भारत और विकसित देशों के बीच कई मतभेद हैं, ख़ास तौर से जब बात श्रमिक मानकों,  सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए सीमा के आर-पार सब्सिडी और ऐसी संस्थाओं की भूमिका को लेकर दोनों के बीच नज़रिए का बहुत बड़ा फ़र्क़ है. IPEF में विकसित और विकासशील, दोनों ही देश शामिल हैं. ऐसे में इस तरह के विरोधाभास आसानी से ख़त्म होने वाले नहीं हैं.

अमेरिका ने अपने हित साधने के लिए एक उलझा हुआ जाल बुन लिया है और उसके साझीदार देशों के इसे सुलझाने के चक्कर में ख़ुद के फंस जाने का डर बना हुआ है.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि आख़िर भारत ने IPEF में शामिल होने का फ़ैसला क्यों किया? इसके पीछे ज़्यादातर वही सामरिक कारण हैं, जो 2012 में भारत के व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (RCEP) में शामिल होने की वजह बने थे. क्वॉड शिखर सम्मेलन के दौरान अगर भारत IPEF का सदस्य नहीं बनता, तो वो उस मौक़े पर ख़ुद को पूरी तरह से अलग-थलग कर लेता. जबकि इस पहल को हिंद प्रशांत क्षेत्र में व्यापक समर्थन मिल रहा है. ऐसे में भारत के लिए हाशिए पर पड़े रहना फ़ायदेमंद नहीं होता, क्योंकि सरकार ने व्यापार और जलवायु संबंधी मसलों पर अपना रुख़ बहुत बदला है, जिससे वो एक सकारात्मक साझीदार के तौर पर उभर सके. ये पहली बार है, जब भारत, हिंद प्रशांत क्षेत्र की किसी बहुपक्षीय आर्थिक व्यवस्था का हिस्सा बना है. इससे भारत का सकारात्मक नज़रिया ही सामने आता है. अब ये वार्ताकारों की ज़िम्मेदारी होगी कि वो इस आर्थिक ढांचे से भारत के लिए अधिकतम लाभ निकाल सकें.

चीन, IPEF को अमेरिका की उसी कोशिश का एक हिस्सा मानता है, जिसकी मदद से अमेरिका ख़ुद को चीन की अर्थव्यवस्था से अलग कर सके. चीन इसे आसियान की एकता को कमज़ोर करने की भी एक पहल के तौर पर देखता है, जिससे अमेरिका, आसियान देशों को अपनी हिंद प्रशांत रणनीति का हिस्सा बना सके. चीन को विश्वास है कि IPEF, आसियान देशों को उसकी अर्थव्यवस्था से अलग करने में कामयाब नहीं हो पाएगा, क्योंकि चीन और आसियान देशों के बीच गहरे आर्थिक संबंध हैं.

अमेरिका, IPEF को एक ऐसे भरोसेमंदर ढांचे के तौर पर देखने को तरज़ीह देता है, जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसके आर्थिक संबंधों में नई जान डाल सके. IPEF से उम्मीदें तो जगती हैं. लेकिन, अगर इसके ज़रिए अमेरिका अपने आर्थिक और सामरिक हितों को साधना चाहता है, तो इसके लिए IPEF को अच्छे से आगे बढ़ाना होगा. इसके लिए IPEF को सबके लिए फ़ायदेमंद साबित होने वाला भरोसेमंद विकल्प बनना होगा या फिर उसे अन्य क्षेत्रीय पहलों को मज़बूत बनाने में सहयोगी भूमिका निभानी होगी, जिससे कि अमेरिका के दोस्त और साझीदार देश IPEF को इस क्षेत्र के लिए एक उपयोगी और विश्वसनीय वादे के तौर पर देख सकें. अमेरिका ने अपने हित साधने के लिए एक उलझा हुआ जाल बुन लिया है और उसके साझीदार देशों के इसे सुलझाने के चक्कर में ख़ुद के फंस जाने का डर बना हुआ है.

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