Author : Sudhansu Nayak

Expert Speak Terra Nova
Published on Mar 28, 2023 Updated 0 Hours ago

अब वक़्त आ गया है जब भारत को अपने अभिनव दृष्टिकोण, तकनीकी बुद्धिमत्ता और इंजीनियरिंग क्षमताओं का उपयोग अपनी अंतरिक्ष यात्रा को सुरक्षित करने के लिए करना चाहिए. 

भारत का अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा जाल: अहमियत और पर्पल रिवोल्यूशन की ज़रूरत

 

प्रस्तावना

देखते ही देखते साइबर सुरक्षा ने बेहद दुस्साहजनक अंदाज में पारंपरिक युद्ध के क्षेत्रों भूमि, वायु, समुद्र और हाल ही में, अंतरिक्ष तक में ख़ुद को स्थापित कर लिया है. इस एल-ए-एस-एस-सी वाई के पंच युद्ध थिएटर अर्थात क्षेत्र, में लगने वाली सेंध भारत की क्षेत्रीय अखंडता, रणनीतिक स्वायत्तता और उसके निरंतर विकास को चुनौती दे सकती है. अंतरिक्ष प्रणालियों में होने वाली कोई भी घुसपैठ, आकस्मिक हमला, अंतरिक्ष प्रणालियों में अक्षमता पैदा करते हुए उसे अस्थायी या स्थायी रूप से पंगु बना सकता है. ऐसे में इन प्रणालियों पर तेजी से निर्भर भोजन, पानी, संचार, बांध, रक्षा, ऊर्जा, वित्तीय, स्वास्थ्य देखभाल, परमाणु, परिवहन और अन्य महत्वपूर्ण नेटवर्क को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंचने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. प्रौद्योगिकी, तकनीकों और रणनीति के अबाध प्रसार ने कॉमन स्पेसक्राफ्ट बस आर्किटेक्चर्स अर्थात सामान्य अंतरिक्ष यान बस संरचना पर होने वाले हमले के तरीकों में भी घुसपैठ कर ली है. इसकी वज़ह से हमलावर अब एयर-गैप्ड सिस्टम को आसानी से बाइपास अर्थात उसमें घुसपैठ करने लगे है.एयर-गैप सिस्टम अर्थात ऐसी सुरक्षा प्रणाली जिसमें किसी कंप्यूटर अथवा नेटवर्क को बाहरी नेटवर्क/हमले से सुरक्षित रखने के लिए की गई सुरक्षा व्यवस्था होती है. इसके अलावा प्रौद्योगिकियों, तकनीकों तथा रणनीति के विकास की वज़ह से ही रिमोट प्रॉक्सिमिटी ऑपरेशन्स अर्थात दूरस्थ निकटता संचालन और ऑन-ऑर्बिट डॉकिंग हमले भी अधिक परिपक्व हो गए हैं. इसी वज़ह से अब सप्लाय चेन अर्थात आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़े सॉफ्टवेयर/हार्डवेयर में घुसपैठ, या अंतरिक्ष प्रणालियों के प्रीविलेजेस् अर्थात विशेषाधिकारों को बढ़ाने का काम भी आसानी से किया जा सकता है.

प्रौद्योगिकी, तकनीकों और रणनीति के अबाध प्रसार ने कॉमन स्पेसक्राफ्ट बस आर्किटेक्चर्स अर्थात सामान्य अंतरिक्ष यान बस संरचना पर होने वाले हमले के तरीकों में भी घुसपैठ कर ली है. इसकी वज़ह से हमलावर अब एयर-गैप्ड सिस्टम को आसानी से बाइपास अर्थात उसमें घुसपैठ करने लगे है.

रूस, अमेरिका (यूएस), चीन, ईरान, उत्तर कोरिया और इज़राइल ने अपनी सैन्य अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा क्षमताओं को लचीला बनाए रखा है, जबकि जापान, फ्रांस, दक्षिण कोरिया और यूनाइटेड किंगडम (यूके) ऐसा करने में तेजी दिखा रहे है. इतना ही नहीं चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सामरिक समर्थन बल ने तो अपनी अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध क्षमताओं को केंद्रीकृत कर लिया है.

संभावित साइबर हमला करने की क्षमता रखने वालों में गुप्त सरकारी संस्थाओं के अलावा आतंकवादी संगठन, अराजक अथवा विध्वंसक तत्व, राजनीतिक अपराधी, जिज्ञासु कंप्यूटर हैकर, वाणिज्य प्रतियोगी, किसी संस्थान में मौजूद धूर्त अथवा बेईमान अंदरूनी सूत्र, असंतुष्ट कर्मचारी, विश्वसनीय लेकिन लापरवाही व्यापार भागीदार अथवा शरारती अंतरिक्ष यात्री शामिल हो सकते हैं. इनमें से अधिकांश के पास एसमेट्रिक अर्थात विषम हमले करने की क्षमता होती है और ये सभीक्रेडिबल डिटरेंसअर्थात 'विश्वसनीय प्रतिरोध' की प्राकृतिक गतिशीलता से इम्यून अर्थात प्रतिरक्षित रहते हैं. इतना ही नहीं ये सभीम्युच्युअली एश्योर्ड डिस्ट्रक्शनअर्थात 'पारस्परिक रूप से सुनिश्चित विनाश' की नाजुक धारणा से भी मुक्त होते है. अब इन चुनौतियां का मुकाबला करने की कोशिशें की जा रही है. उदाहरण के लिए, एयरोस्पेस कॉपोर्रेशन का एसपीएआरटीए अर्थात स्पार्टा (स्पेस अटैक रिसर्च एंड टैक्टिक एनालिसिस), जो एमआईटीआरई एटीटीएंडसीके प्रतिकूल रणनीति और तकनीकों का एक  एक्सटेंशन अर्थात विस्तार है. स्पार्टा, एक साइबर थ्रेट-ओरिएन्टेड अर्थात ख़तरा-उन्मुख दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए रीकानिसन्स अर्थात टोही और अटैक रिसोर्स डेवलपमेंट अर्थात हमले-संसाधन विकास से जुड़े साइबर हमले से जुड़े जोख़िम के सभी चरणों को कवर करता है. इसमें कमज़ोर प्रणालियों तक प्रारंभिक पहुंच और हमले का निष्पादन, मौजूदा साइबर-सुरक्षा से बचाव, अन्य प्रणालियों में लैटरल मूवमेंट अर्थात पार्श्व संचालन, महत्वपूर्ण डेटा की निकासी जैसे और/या अन्य प्रभाव शामिल है. ऐसे में यहअंतरिक्ष प्रणालियों पर होने वाले हमले को, हमले के प्रारंभिक चरण के विकास (आपूर्ति श्रृंखला संस्थाओं की डिजाइन, आपूर्ति, ख़रीद, संयोजन, एकीकरण, और पूर्ण प्रणाली परीक्षण), ज़मीनी नियंत्रण (लॉन्च, पेलोड नियंत्रण, मिशन नियंत्रण, अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन) और स्पेस सेगमेंट (प्लेटफॉर्म, पेलोड, फॉर्मेशन और उपयोगकर्ता) के दौरान ही ख़त्म करने का काम करता है.

भारत की अंतरिक्ष और साइबर सुरक्षा: हालिया ट्रेल मार्कर्स अर्थात पगचिह्न और ख़ामियां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 सितंबर 2018 को डिफेंस साइबर एजेंसी (डीसीए) और डिफेंस स्पेस एजेंसी अर्थात रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (डीएसए) के गठन को स्वीकृति प्रदान कर दी है. डीसीए पूर्णत: क्रियाशील है. दूसरी ओर डीएसए का भूमि, वायु, समुद्र और साइबर थिएटर अर्थात युद्ध क्षेत्र के साथ एकीकरण का कार्य प्रगति पथ पर है. राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को एल-ए-एस-एस-सीवाई के पंच युद्ध क्षेत्र के साथ एकीकृत करने का काम लंबे समय से अटका पड़ा है. इस एकीकरण के चलते एकीकृत युद्ध सिद्धांत स्पष्ट हो सकेगा. इस एकीकृत युद्ध सिद्धांत की वज़ह से भारत में एक पर्पल क्षमता (जो आक्रमण (लाल) और रक्षा (नीला) को जोड़ती है) का निर्माण होगा. इस पर्पल क्षमता में अंतर्निहित तेजी, सटीकता और प्रभावशीलता की विशेषताएं भी इसके चलते भारत को हासिल हो जाएंगी.

भारत की साइबर सुरक्षा स्थिति में सुधार के लिए भारत सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं. सतर्क रचनात्मक हस्तक्षेप की वजह से भारत, संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक 2020, में वैश्विक स्तर पर 10वीं रैंक पर पहुंच गया है.

इस वक़्त दुनिया में तेल और गैस, दूरसंचार, बिजली, आपदा प्रबंधन, विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स्, डिलीवरी सर्विसेस अर्थात वितरण सेवाएं, सार्वजनिक परिवहन, ई-कामर्स, बीमा, कानून प्रवर्तन, रक्षा कार्यक्षेत्र और उनकी आपूर्ति श्रृंखला जैसे क्षेत्र, वैश्विक स्थिति, नेविगेशन अर्थात दिक्चालन और टाइमिंग पर निर्भर करते है. दुनिया भर में, केवल चार ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) है: अमेरिका का जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम), रूस का जीएलओएनएएसएस, चीन का बीईआईडीओयू अर्थात बीडौ नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम और यूरोप का गैलीलियो नेविगेशन सिस्टम इसमें शामिल है. इस वक़्त भारत भी टाइम सिन्क्रोनाइजेशन अर्थात समय तुल्याकलन को सुव्यवस्थित करने, विदेशी जीएनएसएस पर अपनी निर्भरता को घटाने और राष्ट्रीय सुरक्षा में इज़ाफ़ा करने की दृष्टि से भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के तहत नैवआईसी (एनएवीआईसी) (भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन) को विकसित कर रहा है. यह भारतीय भूभाग पर 10 मीटर से कम और हिंद महासागर पर 20 मीटर से कम की एब्सलूट अर्थात संपूर्ण सटीकता के साथ सही स्थिति महज नैनो सेकंड में मुहैया करवाने में सक्षम है.

भारत की साइबर सुरक्षा स्थिति में सुधार के लिए भारत सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं. सतर्क रचनात्मक हस्तक्षेप की वजह से भारत, संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक 2020, में वैश्विक स्तर पर 10वीं रैंक पर पहुंच गया है.

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक दोनों मिलकर भारतीय साइबर सुरक्षा संरचना और नीतियों को एकीकृत करने का प्रयास कर रहे है. इसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक राष्ट्रीय मसौदा साइबर सुरक्षा रणनीति भी तैयार की गई है, जो प्रधानमंत्री कार्यालय के पास विचाराधीन है. लेकिन इसमें स्पेस अर्थात अंतरिक्ष से जुड़े तत्वों का अभाव दिखाई देता है.  दिलचस्प बात यह है कि डेटा सिक्योरिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने 2020 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति का मसौदा तैयार किया था. इसमें परमाणु संयंत्रों और अंतरिक्ष एजेंसियों सहित भारत के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्रों को लक्षित किए जाने की अर्थात उन पर हमले किए जाने का उल्लेख तो किया था, लेकिन अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा को लेकर इसमें कुछ नहीं कहा गया था.

इस स्थिति को बदलना ज़रूरी है. राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति के एक अभिन्न अंग के रूप में, युद्ध के पांच क्षेत्रों एल-ए -एस-एस-सीवाई को महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के साथ एकीकृत करना ज़रूरी हो गया है. सुरक्षा और सैन्य कार्य के साथ ही संचार व्यवस्था भी महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अवसंरचना पर निर्भर है. भारत की ‘‘क्रिटिकल इंर्फोमेशन इंफ्रास्ट्रक्चर’’ अर्थात ‘‘महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना’’ की परिभाषा में ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा’’ को ‘‘दुर्बल करने वाला’’ प्रभाव डालने वाली ‘‘इनकैपेसिटेशन’’  अर्थात ‘‘अक्षमता’’ भी शामिल है. इसके बावजूद राष्ट्रीय महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र याकंप्यूटर ईमर्जन्सी रिस्पॉन्स टीम-इंडिया के तहत अंतरिक्ष और इसके संचालन को अहमियत नहीं दी गई है.

100 से अधिक स्टार्ट-अप, 22 समझौता ज्ञापनों और पांच अधिकार-पत्र के साथ अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार हो रहा है. इस क्षेत्र में जैसे-जैसे नए लोग अथवा इकाइयां आएंगी, वैसे-वैसे इस क्षेत्र पर होने वाले हमले का ख़तरा भी बढ़ रहा है.

ऐसे में विभिन्न विशेषज्ञता, रिस्क अर्थात जोख़िम पोर्टफोलियो और इंर्फोमेशन सिक्यूरिटी अटैक-सरफेसेस् अर्थात सूचना सुरक्षा हमले-सतहों में शामिल पक्षों के बीच व्यापक तौर पर गहन सहयोग देखा जाएगा. इसकी वज़ह से दुश्मन अथवा विरोधात्मक आपूर्ति-श्रृंखला में मैलवेयर इंजेक्शन अर्थात हमला, मलिशस सिस्टम अर्थात दुर्भावनापूर्ण प्रणाली को ध्वस्त करने अथवा बिगाड़ने और अनधिकृत पहचान की आड़ लेने के अलावा विरोधियों की प्रणाली की गोपनीयता में षडयंत्रात्मक घुसपैठ कर उसका उल्लंघन या हेरफेर करने, उसकी अखंडता अथवा उपलब्धता को प्रभावित करने के लिए होने वाले प्रयासों में इज़ाफ़ा देखा जा सकता है. अत: अब वक़्त आ गया है, जब भारत को अपनी अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

भारत की तत्काल किए जाने वाले कार्य अर्थात अर्जंट काम की टू-डू सूची

भारत के अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा जाल को पुख़्ता करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे. सरकार को इस मामले में चौकस चौतरफा लचीलापन और तेजतर्रार तकनीकी-कूटनीतिक सक्रियता दिखानी होगी. ऐसे में ऐसे कौन से पांच कदम हो सकते है, जिन्हें भारत सरकार को तत्काल उठाना चाहिए?

सबसे पहले नंबर पर भारत को अपनी व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति का 1.0 संस्करण जारी कर देना चाहिए. इस नीति को राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति के माध्यम से व्यापक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसंरचना स्तर के साइबर सुरक्षा घेरे में शामिल कर लेना चाहिए. ऐसा होने के बाद अंतत: इसे राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में शामिल किया जा सकता है.

दूसरे नंबर पर आता है, पर्पल रिवोल्यूशन को पुख़्ता अथवा दृढ़ किया जाना. एकीकृत पर्पल रिवोल्यूशन पाने के लिए साइबर सुरक्षा रेड-टीमिंग (आक्रमण) और ब्लू-टीमिंग (रक्षा) के बीच संयुक्त अभ्यास अथवा परीक्षण ज़रूरी है.

रक्षा और गृह मंत्रालय को एक कठोर कार्यक्रम और पाठ्यक्रम स्थापित करना चाहिए. इस कार्यक्रम और पाठ्यक्रम में निम्नलिखित चार घटकों को शामिल किया जाना चाहिए: (ए) साइबर डिफेंस (रेड टीम), (बी) साइबर आक्रमण (ब्लू टीम), (सी) साइबर संचालन और सेवाएं तथा (डी) साइबर रिसर्च.

तीसरे नंबर पर भारत को एक संपूर्ण राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. कॉपोर्रेट सामाजिक उत्तरदायित्व नीति की तरह, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारियों और सूचना सुरक्षा शोधकर्ताओं को अपनी उत्पादकता की दो प्रतिशत राशि, राष्ट्रीय महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा के लिए आवंटित करनी होगी.

चौथे नंबर पर भारत को अपने अंतरिक्ष बजट आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.04 प्रतिशत से बढ़ाकर जीडीपी का कम से कम 0.5 प्रतिशत धन इसके लिए आवंटित करना होगा. 2023-24 के केंद्रीय बजट में अंतरिक्ष विभाग को केवल 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आवंटन किया गया है. यह आवंटन सकल घरेलू उत्पाद का महज 0.04 प्रतिशत हिस्सा होता है. ज़्यादा पूंजी के आवंटन से आत्मनिर्भर केंद्रीय वित्त पोषित अनुसंधान और विकास केंद्रों के निर्माण को बढ़ावा मिलेगा. इसके साथ ही इंर्फोमेशन शेयरिंग एंड एनलिसिस सेंटर-स्पेस अर्थात सूचना साझाकरण और विश्लेषण केंद्र-अंतरिक्ष (आईएसएसी-स्पेस) में वृद्धि होने के साथ प्रभावशाली राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष मानकों के निर्माण में इज़ाफ़ा हो सकेगा.

भारत को अपने अंतरिक्ष बजट आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.04 प्रतिशत से बढ़ाकर जीडीपी का कम से कम 0.5 प्रतिशत धन इसके लिए आवंटित करना होगा. 2023-24 के केंद्रीय बजट में अंतरिक्ष विभाग को केवल 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आवंटन किया गया है.

और अंतत: पांचवे नंबर पर भारत को अपनी अंतरिक्ष आपूर्ति-श्रृंखला के लचीलेपन और सुरक्षा को क्वॉड के अंतरिक्ष से संबंधित एप्लीकेशन्स और प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकृत करना पड़ेगा. क्वाड देशों के बीच एक अंतर-सरकारी सहयोग व्यवस्था में शामिल होने के चलते भारत की एक केंद्रीय भारतीय अंतरिक्ष रिजिल्यन्स एजेंसी को अपने आपूर्तिकर्ताओं तथा आपूर्तिकर्ताओं के आपूर्तिकर्ताओं के साथ प्रत्येक उप-घटक का विश्लेषण और मानचित्रण कर लेना चाहिए. इसमें उनकी आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े जोख़िम और अटैक-सरफेस अर्थात हमले-सतहों की डिजाइन स्तर पर, डिजाइन अर्थात व्यवस्था, बिल्ड अर्थात निर्माण, डिलीवरी अर्थात वितरण और रखरखाव के साथ आपसी निगरानी के लिए समय-समय पर संयुक्त निगरानी और इन्सिडन्ट रिस्पॉन्स एक्सरसाइजेस् अर्थात आकस्मिक प्रतिक्रिया अभ्यास का आयोजन भी शामिल होना चाहिए.

निष्कर्ष

एल-ए-एस-एस-सीवाई के पंच क्षेत्रीय युद्ध क्षेत्र में तेज, सटीक और प्रभावी पर्पल हस्तक्षेप आवश्यक होता है. अस्पष्ट धुरी पर तेजी से विकसित हो रहे विरोधियों के हमला किए जाने की स्थिति में ख़ुद को इस हमले के प्रति सटीकता के साथ अनुकूलित करने, हमले का जवाब देने और पुन: अपनी स्थिति बहाल अथवा हासिल करने के मामले में भारतीय अंतरिक्ष साइबर सुरक्षा जाल इस वक़्त पर्पल रिवोल्यूशन कन्वर्जन्स अर्थात समाभिरूपता के एक महत्वपूर्ण बिंदु पर खड़ा दिखाई दे रहा है. पर्पल रिवोल्यूशन की वज़ह से भारतीय विदेश नीति की रणनीतिक और सामरिक गति तेज होगी. ऐसे में भारत के लिए हो सकने वाले  ख़तरों को बेअसर करने के लिए आंतरिक महत्वपूर्ण समूह का निर्माण होगा, जो विश्वसनीय डिटरन्स अर्थात निवारण हासिल करने में सहायक साबित होगा. यह पूरे देश के नवोन्मेषी दृष्टिकोण, तकनीकी बुद्धिमत्ता और इंजीनियरिंग क्षमताओं को एकीकृत करने का महत्वपूर्ण वक़्त है. ऐसा होने पर ही भारत की अंतरिक्ष यात्रा को सुरक्षित करने में प्रत्येक इकाई का विचार और अनुसंधान लागू किया जा सकेगा.

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