Published on Mar 13, 2019 Updated 0 Hours ago

खाद्य मुद्रास्फीति कम चल रही है इसलिए कृषि पर दबाव है। इंडिया Inc. भी अच्छा नहीं कर रहा।

भारतीय अर्थव्यवस्था: सब कुछ ठीक नहीं है

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सिओल में घोषणा करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियादी चीजें पूरी तरह से मजबूत हैं। सही बात है, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था में कुछ परेशान करने वाले संकेतों की उपेक्षा करना भारत सरकार के लिए इस मौके पर सही कदम नहीं होगा। आज वैश्विक तौर पर अनेक अर्थव्यवस्थाएं दबावों से जूझ रही हैं और भारत भी कुछ खास मामलों में समस्याओं का शिकार हो रहा है। देखने में ऐसा लग सकता है कि भारत 7% की तुलनात्मक रूप से बढ़ी हुई वृद्धि दर के साथ धीमे लेकिन सधे हुए क़दमों से बढ़ रहा है लेकिन अगर अर्थव्यवस्था के कोर की कुछ बुनियादी चीजों को देखें तो तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। चुनाव नज़दीक आने पर, एनडीए सरकार पिछले पांच सालों से निरंतर बनी हुई आर्थिक वृद्धि दर का श्रेय जरूर लेगी लेकिन अगर वे दुबारा सत्ता में आना चाहते हैं तो उनको आने वाली समस्याओं को रोकने के लिए कदम उठाने पड़ेंगे।

वैश्विक तौर पर, अमरीका की अर्थव्यवस्था नीचे आ रही है और सबसे ख़ास बात यह है कि चीन भी अनियंत्रित मंदी के संकेत दिखा रहा है। इस मंदी के प्रभाव से कोई भी अछूता नहीं रहेगा, भारत भी नहीं, क्योंकि विश्व की अर्थव्यवस्था में उसका आकार और महत्व बहुत ज्यादा है। इस समय जर्मनी, इटली और ब्रिटेन भी धीमी जीडीपी वृद्धि दर्शा रहे हैं।

भारत में, कृषि पर दबाव बना हुआ है क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति कम चल रही है। इसके परिणामस्वरूप, किसानों की कमाई पहले से कम हो रही है। जैसा वादा किया गया था उस तरह से कमाई दुगुनी नहीं हुई है। किसान औद्योगिक उत्पादों के लिए मांग पैदा करते हैं और खेती से जुड़ी हुई आबादी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनकी दुपहिया, मोबाइल फ़ोन, कृषि मशीनरी, उपभोक्ता उत्पाद और सोने की मांग औद्योगिक वृद्धि को नया जीवन देने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

भारत में, कृषि पर दबाव बना हुआ है क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति कम चल रही है। किसानों की कमाई पहले से कम हो गयी है।

अर्थव्यवस्था में मांग का कम रहना एक समस्या बना हुआ है, इसलिए सरकार ने मुद्रास्फीति के एक लम्बे समय तक कम बने रहने के आधार पर सही कदम उठाते हुए ब्याज दर को 0.25 घटाते हुए 6.25% कर दिया है। यह बढ़ावा देने का काम करता है जिसकी अर्थव्यवस्था को जरूरत है, ख़ास तौर से निजी निवेश को बढ़ाने के लिए। निजी निवेश का कम स्तर औद्योगिक वृद्धि में मंदी के लिए जिम्मेदार है।

कृषि के अलावा, भारत इनकॉर्पोरेट सेक्टर में भी अच्छा नहीं कर रहा। बिज़नस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार घोषित किए हुए परिणाम अभूतपूर्व रूप से ख़राब रहे हैं। इस साल की तीसरी तिमाही (क्यू3) के लाभ के परिणाम दूसरे देशों की तरह से ही मंदी का पैटर्न दर्शा रहे हैं, जिसमें मार्जिन घट रहे हैं। भारत में, आर्थिक गतिविधियों में कमी, हवाई यातायात में कमी, वाहनों की कम बिक्री, घटा हुआ कैपिटल गुड्स का उत्पादन और औद्योगिक वृद्धि में सामान्य तौर पर कमी साफ़ दिख रही है। हाल में आईआईपी वृद्धि और निर्यात वृद्धि पहले से कम हो चुकी हैं।

निर्यात वृद्धि में भी बाधाएं झेलने की संभावना है क्योंकि डब्लूटीओ की हाल की रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय व्यापार सिकुड़ रहा है; खास तौर पर अमरीका और चीन के बीच व्यापारिक मतभेदों के कारण। भारत से अमरीका को फार्मास्यूटिकल निर्यात में भी समस्याओं का सामना करने की संभावना है क्योंकि वह भारत के ऊपर अनेक व्यापारिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है। वित्तीय वर्ष 18 के तीसरी तिमाही (क्यू3) की तुलना में कॉर्पोरेट सेक्टर में 2338 कंपनियों का सामूहिक लाभ 28% सालाना कम हो गया है। 2005 कंपनियों का सामूहिक लाभ (गैस और नॉन-बैंकिंग कंपनी हटा कर) 39.7% घट कर 47,500 करोड़ हो गया है, यह पिछले तीन सालों का सबसे ख़राब प्रदर्शन है। अनेक प्रसिद्ध नाम ज्यादा खर्चा और कम राजस्व के कारण घाटे का सामना कर रहे हैं जैसे टाटा मोटर, वोडाफ़ोन, आइडिया, पुंज एल लोयड और अदानी पॉवर।

अंतरिम बजट में सरकार ने किसानों के लिए सालाना ₹6,000 वार्षिक मूल नगद आय का प्रस्ताव रखा है। यह भले ही छोटी सी राशि हो, गांव में लोग इसका स्वागत करेंगे क्योंकि किसान ‘धन के भ्रम’ से जूझते हैं। हाथ में पकड़ी हुई नगद राशि उनको अमीर महसूस कराती है और उनकी सामान की मांग को बढ़ाती है।

सौभाग्य से, सेवा क्षेत्र फल-फूल रहा है और आईटी उद्योग को 6.7% का शुद्ध लाभ हुआ है। वैश्विक रूप से भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार में दूसरे देश की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। रुपए के अवमूल्यन ने उनके मार्जिन कम कर दिए हैं।

बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर बाधाओं का सामना कर रहा है, हालांकि वहां सुधार हो रहा है और बैंकों को पिछली तिमाही में ₹900 करोड़ का फायदा हुआ लेकिन अनेक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने घाटे का प्रदर्शन किया है। चीन की मंदी के कारण, कमोडिटी के मूल्य में गिरावट रही है क्योंकि धातुओं और अन्य कच्चे माल की मांग में कमी आयी है। इसलिए हो सकता है कि हमारा धातु और खनन उद्योग बेहतर न कर पाएं। क्रूड ऑयल की कीमतों में वृद्धि भारत के वर्तमान लेखा घाटे के लिए एक खतरा है क्योंकि तेल का आयात महंगा होने के कारण वह बढ़ सकता है।

वित्तीय क्षेत्र में, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) द्वारा सरकार को अतिरिक्त पूँजी के ₹28,000 करोड़ देना एक स्वागत योग्य बढ़ावा देने वाला कदम है जिससे अर्थव्यवस्था में मैक्रोइकॉनोमिक स्थिरता आएगी। यह पूंजी वित्तीय घाटे के जीडीपी के 3.4% लक्ष्य के अन्तराल को कम करने की कोशिश करेगी। इससे सरकार किसी और तरीके से नहीं निबट सकती, खास तौर से जब बड़े जीएसटी संग्रह की कम संभावना हो। वित्तीय घाटे के लक्ष्यों को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है और भारत को अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी द्वारा अच्छी रेटिंग बनाए रखने में मदद करेगा। यह भारत को अंतरराष्ट्रीय पूँजी बाजार से पूँजी उठाने में मदद करेगा ताकि भारत और चीन के बीच के ढ़ाँचागत फर्क को पाटा जा सके। कमजोर ढ़ाँचागत स्थिति हमको तीसरी दुनिया का देश बनाती है।

विदेशी निवेशक नए सौदे करने से पहले चुनावों के परिणामों की प्रतीक्षा करेंगे और उन पर नज़र रखेंगे। एफडीआई का प्रवाह पहले ही कम हो चुका है क्योंकि कुछ एफडीआई पर रोक लग चुकी है। मई 2019 के चुनाव परिणामों के रूप में स्थिर सरकार महत्वपूर्ण है और नयी सरकार द्वारा सुधारवादी नीतियों का वादा निवेशकों को अपना मन बनाने में मदद करेगा।

सरकार के बढ़ते हुए खर्चों ने हाल के समय में अर्थव्यवस्था को गतिमान रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। चुनावों के कारण सरकार के खर्चों में भारी वृद्धि हो सकती है जो आगे चलकर मांग को और बढ़ा सकती है।

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