राष्ट्रीय सुरक्षा का तात्पर्य 21वीं शताब्दी में केवल सीमा सुरक्षा तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके तीन तत्व हैं विकास, प्रतिरक्षा, और आपदा प्रबंधन। इसके लिए यह आवश्यक है कि पश्चिम के देशों की तरह थल तथा जल दोनों के संसाधनों और सुविधाओं का व्यापक उपयोग मानव विकास के लिए किया जाए। ऐसे में हमें बहुत बारीकी और गंभीरता से भारतीय भौगोलिक अवस्थिति का अध्ययन एवं मूल्यांकन करना चाहिए ताकि रणनीतिक व्यवहारिकता के माध्यम से सारे संसाधनों का उपयुक्त उपयोग भारतीय राष्ट्रीय विकास और सुरक्षा के लिए सुनिश्चित किया जा सके।
भौगोलिक अवस्थित
भारत एक बड़े भौगोलिक विस्तार वाला प्रायद्वीप देश है। यह उत्तर में हिमालय, पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा दक्षिण में हिन्द महासागर से घिरा हुआ है। भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है। उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक इसका विस्तार लगभग 3200 किलोमीटर है तथा पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम में कच्छ तक इसका विस्तार लगभग 2900 किलोमीटर है। भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। कर्क रेखा (23° 30’) देश के लगभग मध्य से होकर गुजरती है। दक्षिण से उत्तर की ओर भारत की मुख्य भूमि का विस्तार 8°4’ तथा 37°6’ उत्तरी अक्षांशों के बीच है। पश्चिम से लेकर पूर्व तक भारत का विस्तार 68°7’ पूर्वी तथा 97°25’ पूर्वी देशांतरों के बीच है। भारतीय समुद्र तट की कुल लंबाई 7516.6 किलोमीटर है।[1] इसमें से भारतीय मुख्य भूमि का तटीय विस्तार 6300 किलोमीटर तथा द्वीप क्षेत्र अंडमान निकोबार एवं लक्षद्वीप का संयुक्त तटीय विस्तार 1216.6 किलोमीटर है। भारतीय अपवर्जित आर्थिक क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 2.02 मिलियन वर्ग किलोमीटर है। भारतीय समुद्र तट पर नौ राज्य तथा चार केंद्र शासित राज्य स्थित है। भारतीय तटीय राज्यों का विस्तार इस प्रकार से है- गुजरात (1600 किलोमीटर), महाराष्ट्र (720 किलोमीटर), गोवा (101 किलोमीटर), कर्नाटक (300 किलोमीटर), केरल (550 किलोमीटर), तमिलनाडु (980 किलोमीटर), आंध्र प्रदेश (970 किलोमीटर), उड़ीसा (484 किलोमीटर) तथा पश्चिम बंगाल (210 किलोमीटर) है। जबकि केंद्र शासित क्षेत्र दमण व दीव, लक्षद्वीप, पांडिचेरी एवं अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह है। भारत के पास कुल 1197 द्वीप है। भारतीय तटीय सीमा पर 11 बड़े 20 मध्यम तथा 144 छोटे आकार के बंदरगाह स्थित है।[2]
भारत में कुल ग्यारह बड़े बंदरगाह है जिनमें से पश्चिमी समुद्री तट पर अरब सागर की तरफ- कांदला, मुंबई, मर्मोगोवा, न्यू मंगलोर, कोच्ची स्थित है जबकि पूर्वी समुद्र तट पर बंगाल की खाड़ी की तरफ- तूतीकोरिन, मद्रास (चेन्नई), विशाखापट्टनम, पारादीप, हल्दिया, पोर्टब्लेयर बंदरगाह स्थित है। इन सभी का नियंत्रण केंद्र सरकार के अधीन है। भारत का 95 प्रतिशत व्यापार इन्हीं बंदरगाहों तथा समुद्री मार्गो से होता है। इसके अतिरिक्त समुद्री जल क्षेत्र में स्थित तेल व प्राकृतिक गैस, खनिज पदार्थ तथा मछली उत्पादन का भारतीय अर्थव्यवस्था एवं विकास के लिए विशेष महत्व है। हिन्द महासागर के बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में अंडमान व निकोबार द्वीप समूह तथा अरब सागर लक्षद्वीप द्वीप स्थित है।
बंगाल की खाड़ी
बंगाल की खाड़ी का भौगोलिक विस्तार 5° और 22° उत्तरी अक्षांश तथा 80° और 100° पूर्वी देशांतर के मध्य है। इसका क्षेत्रफल 2,173,000 वर्ग किलोमीटर है। यह विश्व की सबसे बड़ी खाड़ी जल क्षेत्र है। यह भारत के पूर्वी भाग में स्थित है। इससे सटे देश इंडोनेशिया, थाईलैंड, म्यांमार, बांग्लादेश, भारत एवं श्रीलंका है। बंगाल की खाड़ी जल क्षेत्र में गंगा, गोदावरी, ब्रम्हपुत्र, इरावती नदियां आकर मिलती है। भारत थल से घिरे अपने दो पड़ोसी देशों नेपाल व भूटान को कोलकाता स्थित हल्दिया बंदरगाह की सुविधाएं व्यापारी कार्यों के लिए उपलब्ध कराता है।
बंगाल की खाड़ी से ही जुड़ा विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जलमार्ग मलक्का जलडमरूमध्य है जो कि इसे दक्षिण चीन सागर से जोड़ता है। यह समुद्री रास्ता चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान तथा भारत के लिए विशेष आर्थिक महत्व का है । ऐसे में इस जलक्षेत्र तथा जलमार्ग की सुरक्षा वर्तमान विश्व परिदृश्य में आर्थिक गतिविधियों को देखते हुए अत्यंत आवश्यक है। यही कारण है कि भारत ने भी अंडमान निकोबार द्वीपसमूह तथा पूर्वी नौसैनिक कमांड की नौसैनिक शक्ति विस्तार पर जोर दिया है।[3]
अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह
इनका भोगोलिक विस्तार 6° से 14° उत्तरी अक्षांश तथा 92° से 94° पूर्वी देशांतर के मध्य है।[4] ये द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी भाग में स्थित है। इन द्वीपों के पूर्व में स्थित सागर ’अंडमान सागर’ कहलाता है। उत्तर की ओर अंडमान सागर प्रिपैरिस चैनल द्वारा बंगाल की खाड़ी से जुड़ा है तथा दक्षिण में मलक्का जलडमरूमध्य द्वारा दक्षिण चीन सागर से जुड़ा हुआ है। अंडमान सागर का कुल क्षेत्रफल 602000 वर्ग किलोमीटर है। ये द्वीप आर्क आकृति में उत्तर में म्यांमार तथा दक्षिण में सुमात्रा (इंडोनेशिया) तक 620 मील लम्बे समुद्री क्षेत्र में फैले हुए हैं। ये द्वीप 10° जलमार्ग द्वारा दो अलग-अलग द्वीप समूहों से विभाजित है। पहला अंडमान द्वीप समूह एवं दूसरा निकोबार द्वीप समूह। अंडमान द्वीप समूह में पांच बड़े द्वीपों क्रमशः उत्तरी अंडमान, मध्य अंडमान, दक्षिणी छोटा अंडमान, बारातांग तथा राटलैंड द्वीप है। इनको मिलाकर बड़ा अंडमान द्वीप समूह बना है। इसके दक्षिण में छोटा अंडमान द्वीप समूह स्थित है। अंडमान द्वीप समूह 467 किलोमीटर लंबाई में फैला हुआ है। इसका सबसे बड़ा द्वीप ’मध्य अंडमान’ है। इसका क्षेत्रफल 1536 वर्ग किलोमीटर है। सबसे छोटा द्वीप रास 0.8 वर्ग किलोमीटर है।
अंडमान द्वीप समूह के उत्तरी भाग में स्थित लैंडफाल द्वीप से म्यांमार का कोको द्वीप मात्र 22 समुद्री मील तथा थाईलेंड का फुकेट मात्र 50 समुद्री मील दूर स्थित है। निकोबार द्वीपसमूह के बड़ा निकोबार से दक्षिणी बिंदु- ’इंदिरा पॉइंट’ से इंडोनेशिया का सुमात्रा 90 नॉटिकल मील दूर स्थित है। समुद्री मार्ग से कोलकाता से पोर्ट ब्लेयर 1255 किलोमीटर, चेन्नई से 1890 किलोमीटर तथा विशाखापट्टनम से 1200 किलोमीटर दूर स्थित है। इस द्वीप क्षेत्र से श्रीलंका 1400 किलोमीटर, बांग्लादेश 1367 किलोमीटर, म्यांमार 600 किलोमीटर, थाईलैंड 450 किलोमीटर, मलेशिया 600 किलोमीटर तथा इंडोनेशिया 163 किलोमीटर दूर स्थित है।[5] ये द्वीप भारतीय मुख्य भूमि की अपेक्षा दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से अधिक नजदीक स्थित हैं।
अरब सागर
अरब सागर हिन्द महासागर का एक भाग है जो अरब प्रायद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य स्थित है। यह हिन्द महासागर के उत्तर पश्चिम भाग में स्थित है। जिसका क्षेत्रफल 3862000 वर्ग किलोमीटर है। अरब सागर भारत और यूरोप के बीच लाल सागर व स्वेज नहर से होकर महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग प्रदान करता है। रोमन साम्राज्य के शासन काल के दौरान, इसका नाम एरिथ्रेएन सागर था। प्राचीन वैदिक भारतीयों ने सिंधु सागर कहा है और इसे बहर अल-अरब कहते हैं। पश्चिम में यह हॉर्न ऑफ अफ्रीका और अरब प्रायद्वीप, उत्तर में ईरान और पाकिस्तान, पूर्व में भारत और दक्षिण में हिन्द महासागर के शेष भाग से घिरा हुआ है। अरब सागर अपने रणनीतिक अवस्थिति के कारण दुनिया के सबसे व्यस्ततम जलमार्गों में से एक हो गया है क्योंकि इसी से होकर खाड़ी के देशों का तेल/गैस विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को जाता है। भारत का सबसे महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र मुंबई हाई , अरब सागर में भारतीय तट से लगभग 180 किलोमीटर दूर स्थित है।[6]
लक्षद्वीप
हिन्द महासागर स्थित दक्षिणी अरब सागर में भारत का लक्षद्वीप क्षेत्र स्थित है। लक्षद्वीप भारत की मुख्य भूमि से 185 मील या 300 किलोमीटर दूर गहरे समुंद्र में स्थित है। इसमें कुल 36 द्वीप है जो अरब सागर की 30,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए है। इनका कुल क्षेत्रफल 32 वर्ग किलोमीटर है। इसमें केवल 10 द्वीपों - अंड्रोथ, अभिनी, अगात्ति, बित्रा, चेतलत, कादामत, कालपेनी, कवाराती, किलतन, और मिनीकॉय पर आबादी है। मालदीव द्वीप समूह से मिनीकॉय द्वीप की दूरी महज १४५ किमी है।[7] यहां पर पहले से ही भारतीय राजाओं का नियंत्रण था 1498 में पुर्तगाली यहां आये। उन्होंने यहां पर किले आदि का निर्माण किया। 1908 में यह अंग्रेजों के अधीन हो गया। आज यह भारत का मुख्य पर्यटन स्थल है।
भारतीय सीमा से सटे पड़ोसी देश
भारत की सभी सीमाएं मानव निर्मित है। भारत की 15,106.7 किलोमीटर की स्थलीय सीमा हैं। स्थल से सटे भारत के सात पड़ोसी देश हैं। जिसमें से पाकिस्तान से साथ 3323 किलोमीटर चीन के साथ 3428 किलोमीटर नेपाल के साथ 1751 किलोमीटर भूटान के साथ 699 किलोमीटर म्यांमार से 1643 किलोमीटर और बांग्लादेश के साथ 4096.7 की सीमाएं लगती हैं। अफगानिस्तान की सीमा 106 किलोमीटर पाक अधिकृत कश्मीर[8] से होकर लगती है।
भारत के प्रत्येक सीमाओं की अपनी खुद की समस्याएं हैं जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
-
भारत-बांग्लादेश सीमा
रेडक्लिफ रेखा भारत और पाकिस्तान व भारत और बांग्लादेश को अलग करती है। मूलतः भारत और पाकिस्तान के बीच की इस रेडक्लिफ रेखा का निर्धारण सर सायरिल रेडक्लिफ द्वारा वर्ष 1947 में किया गया था। इस रेखा के निर्धारण के समय बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था और पाकिस्तान का ही हिस्सा था। बाद में पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्र होने के बाद रेडक्लिफ रेखा भारत और बांग्लादेश के बीच की भी सीमा रेखा बन गयी। दोनों देशों की सीमाएं भारत के पश्चिम बंगाल में 2216.7 किलोमीटर आसाम के साथ 263 किलोमीटर मेघालय के साथ 443 किलोमीटर त्रिपुरा के साथ 856 किलोमीटर और मिजोरम के साथ 318 किलोमीटर की सीमा लगती है।
भारत और बांग्लादेश के बीच सामुद्रिक सीमा विवाद सामुद्रिक सीमा के निर्धारण और न्यू मूर द्वीप को लेकर है। समुद्री सीमा निर्धारण को लेकर संयुक्त राष्ट्र के ट्रिब्यूनल परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने 7 जुलाई 2014 में स्पष्ट फैसला बांग्लादेश के पक्ष में दिया। जिसके द्वारा बांग्लादेश को बंगाल की खाड़ी में 19467 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कुल विवादित क्षेत्र 25602 वर्ग किलोमीटर में से प्राप्त हुआ। भारत ने इस फैसले का पूरा सम्मान किया।[9] इन दोनों देशों की सीमाएं ज्यादातर समतल जंगली और पहाड़ी इलाके हैं। शायद ही कहीं कोई बड़ी बाधा हो। भारत और बांग्लादेश की सीमा पर प्रमुख चुनौती अवैध रूप से घुसपैठ की है , घुसपैठिये बांग्लादेश से भारतीय राज्यों में आते हैं। इसके अलावा हथियारों ,मानव और नशीले पदार्थों की तस्करी भी होती है।
-
भारत-नेपाल सीमा
1950 से ही भारत नेपाल सीमा साझा करता है। भारत और नेपाल के बीच लगभग 54 विवादित क्षेत्र हैं जो 60000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं जिसमें से कालपानी (37840 हेक्टेयर), सुस्ता (14860 हेक्टेयर), मेची (1600 हेक्टेयर), तनकपुर (222 हेक्टेयर), और पशुपतिनाथ प्रमुख है।
भारत और नेपाल के बीच खुली एवं असुरक्षित सीमा होने के कारण उन विद्रोहियों, आतंकवादियों और अपराधियों के भाग निकलने में आसानी होती है. जो राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं।
-
भारत-भूटान सीमा
भारत और भूटान 669 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। सिर्फ भारत भूटान की सीमा जहां चीन के साथ लगती है उस त्रिकोणीय जंक्शन को छोड़कर बाकी सभी जगहों पर सीमा का निर्धारण कर लिया गया है। भारत और भूटान के बीच सीमा के निर्धारण की प्रक्रिया 1961 से शुरू हुआ जो 2006 तक पूरा हुआ। नेपाल की तरह भूटान के साथ भी भारत की सीमा एक खुली सीमा है।
भारत के विद्रोही समूह जैसे कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड भूटान के दक्षिणी भागों में शिविर स्थापित किए हैं और खुली सीमा का लाभ उठाते हुए यह लड़ाके बम विस्फोट, हत्याएं और जबरन वसूली करके भूटान में जाकर छिप जाते हैं। भूटान सरकार के साथ ऑपरेशन आल क्लियर के दौरान इस समस्या का प्रभावशाली ढंग से नियंत्रण कर लिया गया। लेकिन अभी भी सीमावर्ती इलाकों में जबरन वसूली और हत्याएं इन विद्रोह समूह द्वारा जारी है। बड़े पैमाने पर तस्करी भी की जाती है जिनमें चीन द्वारा निर्मित वस्तुएं भूटानी कैनबीस, शराब और वन उत्पाद भारत में तस्करी की प्रमुख समस्या है। जबकि पशुधन, किराने की वस्तुएं और फलों की भारत से भूटान में तस्करी की जाती है।
-
भारत-म्यांमार सीमा
भारत और म्यांमार 1643 किलोमीटर की लंबी सीमा साझा करते है। सीमा का निर्धारण 1967 में ही कर लिया गया। सीमा के प्रभावी प्रबंधन के लिए भारत- म्यांमार के बीच कई चुनौतियां हैं। हालांकि सीमा ठीक से निर्धारित है लेकिन कुछ जगहों पर विवादित है। दुर्गम क्षेत्र होने की वजह से भारत और म्यांमार के सीमावर्ती इलाकों का विकास नहीं हो पाया है। सख्त निगरानी रखने के लिए बाड़ या सीमा चौकी या सड़कों के रूप में कोई अवरोध नहीं है।
अंतर आदिवासी झड़पों, विद्रोह और पारगमन जातीय संबंधों की वजह से सीमावर्ती इलाकों की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विद्रोही समूह इस असुरक्षित सीमा का लाभ उठाते हैं। दोनों देशों के नृजातीय समूहों के बीच गहरे पारिवारिक संबंध हैं जैसे नागा, कूकी और चिन आदि। यही नृजातीय समूह इन विद्रोहियों की मदद करते हैं जिसकी वजह से कई विद्रोही समूह जैसे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड यूनाइटेड नेशन लिबरेशन फ्रंट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और अन्य ने म्यांमार में अपना अड्डा बना लिया है। दोनों देशों की सीमा गोल्डन ट्राइएंगल के किनारे पर स्थित है जो भारतीय क्षेत्र में गैर प्रतिबंधित वस्तुएं जैसे हेरोइन और नशीले पदार्थ, हथियार, गोला-बारूद, कीमती पत्थरों, चीन निर्मित वस्तुओं की तस्करी इन्हीं इलाकों से होती है। दोनों देशों के आदिवासी समुदायों को बिना किसी पासपोर्ट या वीजा के सीमा में 40 किलोमीटर तक यात्रा करने की अनुमति देने के प्रावधान ने क्षेत्र में बढ़ती मानव तस्करी को और भी बढ़ा दिया है।
-
भारत-पाकिस्तान सीमा
भारत और पाकिस्तान से कुल 3323 किलोमीटर की लंबी सीमा लगती है। भारत-पाकिस्तान के बीच लगने वाली सीमा को प्रमुख रुप से तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
पहली अंतरराष्ट्रीय सीमा जिसे रेडक्लिफ लाइन भी कहा जाता है यह 2308 किलोमीटर लम्बी है जो गुजरात से लेकर जम्मू और कश्मीर तक फैली है। दूसरी नियंत्रण रेखा लाइन ऑफ कंट्रोल सीज फायर लाइन है यह भारत और पाकिस्तान के बीच 1948 और 1971 के युद्ध के बाद अस्तित्व में आई . यह रेखा 776 किलोमीटर लंबी है जो राजौरी, पुंछ, बारामुला, कुपवाडा, कारगिल, लेह (के कुछ हिस्से) और जम्मू (के कुछ हिस्सों) तक फैली है। और तीसरी वास्तविक ग्राउंड पोजीशन लाइन (एजीपीएल) है यह 110 किलोमीटर लम्बी है। यह एनजे 9842 के उत्तर में इंदिरा कैनाल तक फैला हुआ है।
बांग्लादेश सीमा की तरह भारत-पाकिस्तान की सीमा पर भी कोई भौगोलिक अवरोध नहीं है। सीमाएं विभिन्न क्षेत्रों से जैसे नागपुर जैसे रेगिस्तान, दलदल, मैदान, बर्फ से ढके इलाके , घरों और कृषि क्षेत्रों से होकर गुज़रती है।
भारत-पाकिस्तान के बीच समुद्री सीमा के निर्धारण और सर क्रीक क्षेत्र (96 किलोमीटर लंबा नदी का मुहाना) को लेकर विवाद है। इसके अलावा भारत-पाकिस्तान सीमा पर कई अवैध गतिविधियां भी होती रहती हैं जिसमें से आतंकवादी घुसपैठ, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के अलावा हिरोइन और मनी लॉन्ड्रिंग प्रमुख है।
-
भारत-चीन सीमा
भारत और चीन 3488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। पूरी सीमा विवादित है। दोनों देशों के बीच की सीमा रेखा को मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है। भारत और चीन के बीच कभी भी कोई सीमा नहीं थी लेकिन चीन ने जब से तिब्बत पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया है तभी से भारत-तिब्बत सीमा बदलकर भारत-चीन सीमा में परिवर्तित हो गयी । 1954 से चीन ने भारत के कश्मीर में अक्साई चिन, उत्तराखंड में बारा होति, संछला तथा लापथल और संपूर्ण अरुणाचल प्रदेश जैसे कई बड़े इलाकों पर दावा करना शुरू कर दिया। 1957 में चीन ने अक्साई चीन पर कब्जा कर लिया और यहां सड़क का निर्माण भी कर लिया। 1962 के युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच जो सीमा अस्तित्व में आए उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा या लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में भारत-चीन सीमा पर तीन प्रमुख क्षेत्र हैं जिनके माध्यम से व्यापार होता है यह हैं लिपुलेख, शिपकीला और नाथूला।
भारतीय सीमा से सटे सीमावर्ती देश
पड़ोसी देश |
सीमा रेखा की लंबाई(किमी. में) |
सीमा से लगे भारतीय राज्यों की संख्या |
सीमा से लगे भारतीय राज्यों के नाम |
बांग्लादेश |
4096.7 |
5 |
पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम |
चीन |
3488 |
5 |
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश |
पाकिस्तान |
3323 |
4 |
जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, गुजरात |
नेपाल |
1751 |
5 |
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, बिहार |
म्यांमार |
1643 |
4 |
अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम |
भूटान |
699 |
4 |
सिक्किम , पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश |
अफगानिस्तान |
106 |
1 |
जम्मू एवं कश्मीर
(पाक अधिकृत कश्मीर)
|
Source : Puspita Das, "India’s Border Management", Institute Of Defence and Strategic Studies, New Delhi, April 2010, Page number 44.
भारत की समुद्री सीमा पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यानमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया के साथ लगती है। भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमा से जुड़े समझौते भी किये हैं जिनमें से इंडोनेशिया के साथ 1974 और 1977 में, मालदीव के साथ 1976 में, म्यांमार के साथ 1987 में, श्रीलंका के साथ 1974 में, थाईलैंड के साथ 1978 और 1993 में द्विपक्षीय समझौते किए हैं। इसके अलावा श्रीलंका और मालदीव के साथ 1976 मे, इंडोनेशिया और थाईलैंड के साथ 1978 में तथा म्यांमार और थाईलैंड के साथ 1993 में त्रिपक्षीय समझौते किये हैं।[10] वर्तमान में भारत का केवल पाकिस्तान से ’सर क्रीक’ क्षेत्र का समुद्री सीमा विवाद है जिसे वार्ता के माध्यम से तय करने का प्रयास जारी है।
भारत के कई निर्जन द्वीपों का आतंकवादी समूहों और आपराधिक गिरोहों द्वारा हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए ट्रांजिट बिंदु के रूप में दुरुपयोग किया जा रहा है। लश्कर-ए-तैयबा लक्षद्वीप के निर्जन द्वीप का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कर रहा है। इसके अलावा मलक्का जलडमरूमध्य में चोरी के मामलों में कई गुना इजाफा हुआ है। भारत से सामुद्रिक पड़ोसी देशों में आंतरिक और अस्थिरता भी द्वीप क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए बहुत गंभीर चुनौती हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया से बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासियों को देखा जा रहा है।
हिन्द महासागर महान शक्तियों के लिए प्रतिस्पर्धा का केंद्र बना हुआ है। पिछले वर्षों में चीन हिन्द महासागर में काफी सक्रिय रहा है चीन ने म्यांमार के हैंग्यी में नौसैनिक अड्डा बनाया और अंडमान और निकोबार द्विप समूह के नजदीक कोको द्विप पर लिसनिंग पोस्ट को स्थापित किया है। इसके अलावा चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हंबनटोटा, बांग्लादेश के चिटगांव मे विभिन्न प्रकार की नौसैनिक सुविधाएं और अड्डे बनाए हैं जो प्रतिकूल समय में भारत के विरुद्ध चीन द्वारा उपयोग किया जा सकता है।[11]
निष्कर्ष एवं सुझाव
बदलेते वैश्विक परिदृश्य में किसी भी देश की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा, संरक्षण, संवर्धन एवं विकास है। वर्तमान विश्व परिदृश्य में हिंद महासागर एवं दक्षिण एशिया का विशेष आर्थिक, राजनीतिक एवं रणनीतिक महत्व है। हिंद महासागर में सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र खाड़ी तथा अरब सागर जल क्षेत्र हैं। इन दोनों जल क्षेत्रों से भारत का पश्चिमी तट जुड़ा हुआ है। तथा पाकिस्तान का भारत के साथ संबंध स्वतंत्रता के पश्चात से लेकर आज तक सामान्य न रहकर तनावपूर्ण ही रहा है। दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी में चीन अपना आर्थिक एवं रणनीतिक (नौसैनिक) प्रभाव तेजी से बढ़ा रहा है। बंगाल की खाड़ी से सटे सभी देश सीधे तौर से चीन के साथ अपने संबंधों को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में भारतीय भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भारतीय नीति निर्धारकों के सामने निम्नलिखित रणनीतिक व्यवहारिकता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि आगे के वर्षों में भारत अपने राष्ट्रीय हितों के लिए पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।
- भारत दक्षिण एशिया तथा हिंद महासागर दोनों के केंद्र में भौगोलिक रूप से स्थित होने के कारण इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि वह छोटे एवं कमजोर देशों को विभिन्न प्रकार से आर्थिक एवं नौसैनिक सहायता प्रदान करें। इसी को कई लेखकों के द्वारा ’नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’[12] की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है। ऐसे में हमें इस बात के लिए सचेत एवं प्रतिबद्ध रहने की आवश्यकता है कि इस पूरे क्षेत्र की शांति, स्थिरता एवं सुरक्षा के प्रति आगे के वर्षों में और अधिक सक्रिय एवं सजग रहना होगा ।
- आर्थिक, तकनीकी एवं सैनिक विकास की दृष्टिकोण से भारत अब हिंद महासागर क्षेत्र में एक क्षेत्रीय शक्ति बन गया है। हिंद महासागर क्षेत्रीय देशों में भारत को अपनी सामुद्रिक राजनय प्रयत्नों को और अधिक बढ़ाने की जरूरत है ताकि इन देशों में चीन अपनी गतिविधियों को और अधिक न बढ़ा सके।
- भारत को और नौसैनिक क्षमता विकास के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रमों को निर्धारित समय में पूरा करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। अंडमान और निकोबार कमांड को जहां तक हो सके शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण रूप से विकसित करना चाहिए। परमाणु पनडुब्बियों तथा विमान वाहक पोत निर्माण एवं संबंधित योजनाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि 2030 तक भारतीय नौसेना वास्तविक परमाणु शक्ति युक्त त्रिविमीय नौसैनिक शक्ति में बदल सके।
- बदले विश्व व्यवस्था में भारत को सभी देशों के साथ अपने संबंधों को सहयोग, साझेदारी और विशेष साझेदारी, रणनीतिक साझेदारी तथा वार्ताओं के माध्यम से मजबूत करने की आवश्यकता है।
उपरोक्त सभी बिंदुओं पर भारत सरकार विभिन्न योजनाओं एवं नीतियों के माध्यम से कार्यरत है। गति कुछ कारणों से धीमी है। आगे के वर्षों में गंभीरतापूर्वक गति को बढ़ाने तथा सही दिशा में रखने की आवश्यकता है ताकि भारतीय भौगोलिक अवस्थिति से प्राप्त प्राकृतिक लाभों को रणनीतिक व्यवहारिकता में बदला जा सके तथा इसका लाभ भारतीय जनमानस को मजबूत राष्ट्रीय सुरक्षा के माध्यम से उपलब्ध हो सके।
नोट एवं सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
[1] India at a Glance, “National portal of India”, Government of India.
[2] Hari Saran and Harsh Kumar Sinha, "Hind Mahasagar Chunoutiya avam Vikalp" (New Delhi: Pratyush Publication, 2012) P. 21.
[3] Mohammad Humayun Kabir, Amamah Ahmad, "The Bay of Bengal: Next theatre for strategic power play in Asia", CIRR XXI, Issue 72. 2015.
[4] Santa Kaul, Andaman and Nicobar Islands: India’s Untapped Strategic Assets (New Delhi: Pentagon Press), P. 18.
[5] Lakhera M. M., Strategic Importance of the Andaman Nicobar Islands, in Impediments of National Security, ed. Gautam Sen, ( Pune: University Press, 2006), P. 3.
[6] Map Of Arabian Sea - Arabian Sea Map, World Seas, Arabian Sea Location, World Atlas, November 17, 2015.
[7] R. Tandon, India and The Indian Ocean, in Maritime India, ed. K. K. Nayyar (New Delhi: Rupa Co, 2005), P. 51.
[8] Anil Kamboj, "Creation of Pakistan Occupied Kashmir and Present Scenario", World Focus, July 2017.
नोटः-अगस्त 1947 में भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, उस समय जम्मू कश्मीर राज्य का संपूर्ण क्षेत्र 222,236 वर्ग किलोमीटर था। तब से संघर्ष और हमले के कारण पाकिस्तान के पास लगभग 78114 वर्ग किलोमीटर और चीन के पास 42 685 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले क्षेत्र में से 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अवैध रूप से चीन को सौंप दिया है। लगभग 101437 मीटर क्षेत्र ही अब भारत में है।
[9] Haroom Habib, “Bangladesh wins maritime dispute with India”, The Hindu, May 23, 2016.
[10] Hari Saran, "India’s Maritime Interests in the Changing World", Defense and Security Alert, Volume 4, Issue 3, December 2012, P. 86.
[11] Raja Mohan, Samundra Manthan: Sino-Indian Rivalry in the Indo-Pacific, (New Delhi: Pentagon Press, 2013), P. 125.
[12] Abhay Kumar Singh, India as a Net Security Provider in The Indian Ocean Region: The Strategic Approach of a Responsible Stakeholder, in Maritime Governance and South Asia: Trade, Security and Sustainable Development in the Indian Ocean, ed. Jivanta Schottli (Singapore: World Scientific Publishing Company Pte. Limited, 2018), P. 63.