Author : Premesha Saha

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 30, 2023 Updated 0 Hours ago

बातचीत के बावजूद दक्षिणी चीन सागर में दक्षिण-पूर्व एशिया के दावेदार देशों और चीन के बीच तनाव में बढ़ोतरी हो रही है.

दक्षिण-पूर्व एशिया: भरोसेमंद समुद्री किरदार के रूप में तेज़ी से उभरता और जगह बनाता भारत

भारतीय नौसेना ने सिंगापुर की नौसेना के साथ मिलकर संयुक्त रूप से पहले एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशंस (ASEAN)-इंडिया मेरिटाइम एक्सरसाइज़ (समुद्री सैन्य अभ्यास) (AIME) की मेज़बानी की. 2 से 8 मई 2023 के बीच आयोजित इस अभ्यास का मक़सद भारत-आसियान रक्षा सहयोग को और मज़बूत करना था. इस अभ्यास का मक़सद “आसियान देशों और भारतीय नौसेना के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ावा देना और विश्वास, दोस्ती एवं भरोसे को मज़बूत” करना है. ये अभ्यास दो चरणों में आयोजित हुआ: ‘हार्बर फेज़’ सिंगापुर के चांगी नेवल बेस पर 2-4 मई के बीच आयोजित हुआ. इस दौरान “भाग लेने वाली नौसेनाओं के बीच कई तरह की प्रोफ़ेशनल और सामाजिक आदान-प्रदान हुआ जिनमें क्रॉस डेक विज़िट; सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट एक्सचेंज (SMEE) एंड प्लानिंग मीटिंग; सर्च एंड रेस्क्यू; मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान” शामिल हैं. अभ्यास का ‘सी फेज़‘ दक्षिणी चीन सागर में 7-8 मई 2023 के बीच आयोजित हुआ. सिंगापुर की नौसेना की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है कि अभ्यास का समुद्री चरण “फिलिपींस के ट्रांज़िट रूट में अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में’ आयोजित हुआ. अभ्यास के समुद्री चरण से उम्मीद की जाती है कि “भाग लेने वाले देशों की नौसेना को समुद्री क्षेत्र में तालमेल और अभियान चलाने में नज़दीकी संपर्क विकसित करने में अवसर मुहैया कराएगा.” अभ्यास के इस चरण में जहाज़ों ने अलग-अलग तरह की ड्रिल की जिनमें हेलीकॉप्टर क्रॉस-डेक लैंडिंग के साथ-साथ समुद्री सुरक्षा, संचार और गाइड करने का अभ्यास शामिल हैं. समुद्री सुरक्षा अभ्यास के हिस्से के रूप में भाग लेने वाले जहाज़ों ने चल रहे जहाज़ों का पता लगाया और सिंगापुर के इंफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर (IFC) में मौजूद आसियान के सदस्य देशों के लाइज़न (संपर्क) अधिकारियों से हासिल अलर्ट के ज़रिए संकेत भेजा. इसके साथ-साथ कोड फॉर अनप्लान्ड एनकाउंटर्स एंट सी (CUES) यानी बिना किसी योजना के समुद्र में मुक़ाबले के लिए कोड का अभ्यास भी था जो कि विश्वास को बढ़ाने और समुद्र में किसी भी तरह के हादसे और चूक को कम करने के लिए एक भरोसा बढ़ाने का उपाय है. भारत और आसियान के सदस्य देशों के नौ जहाज़, छह एयरक्राफ्ट और 1,800 से ज़्यादा नौसैनिक इस अभ्यास में शामिल थे. 

इस अभ्यास का मक़सद “आसियान देशों और भारतीय नौसेना के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ावा देना और विश्वास, दोस्ती एवं भरोसे को मज़बूत” करना है.

चीन की प्रतिक्रिया 

ऐसी ख़बरे हैं कि जिस वक़्त वियतनाम के विशेष आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन या EEE) में युद्ध अभ्यास चल रहा था, उस समय चीन के एक रिसर्च जहाज़ के साथ कई रक्षक जहाज़ वियतनाम के समुद्र की ओर जा रहे थे. लगता है कि चीन के इन रक्षक जहाज़ों ने अपना रास्ता बदल लिया था और जहां युद्ध अभ्यास चल रहा था, उस क्षेत्र की ओर जा रहे थे. म्यूशु (दक्षिणी चीन सागर) में गोर्डियन नॉट सेंटर प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट लीड रे पॉवेल के मुताबिक़ “सोमवार को सुबह के समय चीन के तीन जहाज़ों के एक अलग ग्रुप ने ज़मोरा रीफ (सूबी रीफ) को छोड़ा और पाया गया कि वो उस क्षेत्र की ओर जा रहे थे जहां साझा युद्ध अभ्यास चल रहा था.” चीन और वियतनाम के बीच संघर्ष और तनाव पहले से जारी है और चीन ने वियतनाम के EEZ के भीतर मछली पकड़ने और दूसरी गतिविधियों पर पाबंदी लगा रखी है. ऐसी कुछ घटनाएं हैं जहां चीन के रिसर्च जहाज़ अपने कोस्ट गार्ड के जहाज़ों और लगभग दर्जन भर अन्य जहाज़ों, जिनमें रक्षक जहाज़ और मछली पकड़ने वाले जहाज़ शामिल हैं, के साथ मिलकर वित्सोवपेट्रो के गैस ब्लॉक 04-03 में घुस गए हैं. वित्सोवपेट्रो रूस की कंपनी ज़रुबेझनेफ्त और पेट्रोवियतनाम के बीच एक ज्वाइंट वेंचर है. इसी तरह की घटनाएं मलेशिया, फिलिपींस और इंडोनेशिया के साथ भी हो चुकी हैं. आचार संहिता (कोड ऑफ कंडक्ट या COC) को लेकर आसियान और चीन के बीच चल रही चर्चा और बातचीत के बावजूद दक्षिणी चीन सागर में दक्षिण-पूर्व एशिया के दावेदार देशों और चीन के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है. 

दक्षिण-पूर्व एशिया के देश इस विवाद में बाहरी किरदारों को शामिल करने के बारे में झिझक रहे थे क्योंकि आसियान में शामिल कुछ देशों का चीन के साथ मज़बूत आर्थिक संबंध रहा है और अभी भी है. इस बात को लेकर भी चिंताएं थीं कि बाहरी पक्षों की कार्रवाई से संघर्ष में और बढ़ोतरी होगी और COC को लेकर बातचीत रुक जाएगी. लेकिन समय के साथ चीन की बढ़ती ज़िद एवं विस्तारवादी रवैये और विवादित समुद्र में बढ़ती झड़प की वजह से बाहरी किरदारों की सक्रिय भूमिका की सराहना होने के साथ-साथ मांग भी की जा रही है. ऐसे में भारत के लिए भी ये सही मौक़ा लगता है कि वो चीन को ये संदेश दे कि दक्षिणी चीन सागर में उसकी हरकतें मंज़ूर नहीं है और उससे उम्मीद की जाती है कि वो अंतर्राष्ट्रीय क़ानून का पालन करे. दक्षिणी चीन सागर में शांति, स्थिरता और सुरक्षा, स्वतंत्र और नियम आधारित इंडो-पैसिफिक में योगदान देगी. 

आचार संहिता को लेकर आसियान और चीन के बीच चल रही चर्चा और बातचीत के बावजूद दक्षिणी चीन सागर में दक्षिण-पूर्व एशिया के दावेदार देशों और चीन के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है.

आसियान न केवल भारत की एक्ट ईस्ट नीति का बल्कि स्वतंत्र, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक के भारतीय दृष्टिकोण का भी एक महत्वपूर्ण स्तंभ है. भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में लंबे समय से सिंगापुर, इंडोनेशिया, थाईलैंड समेत कुछ अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय नौसैनिक युद्ध अभ्यास में लगा हुआ है लेकिन ये पहला मौक़ा है जब भारत ने एक साथ फिलिपींस, सिंगापुर, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम की नौसेना के साथ समुद्री युद्ध अभ्यास किया है. ये बताता है कि इस बात को लेकर समझ बढ़ रही है कि दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ सिर्फ़ मज़बूत द्विपक्षीय संबंध पर्याप्त नहीं है बल्कि भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया और व्यापक इंडो-पैसिफिक में अपना असर छोड़ने के लिए एक समूह के तौर पर आसियान के साथ ज़्यादा सक्रिय ढंग से भागीदारी की ज़रूरत है. इंडो-पैसिफिक में किसी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संरचना के नहीं होने को देखते हुए आसियान और आसियान के नेतृत्व वाले संगठन जैसे कि ईस्ट एशिया समिट (EAS) इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय सुरक्षा और शांति में बाधा डालने वाले मुद्दों और चिंताओं के बारे में चर्चा करने के लिए बेहद ज़रूरी मंच मुहैया कराते हैं. इस संदर्भ में आसियान की मुख्य भूमिका को सुनिश्चित करना ज़्यादातर देशों और समूहों जैसे कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपियन यूनियन (EU), दक्षिण कोरिया और भारत की इंडो-पैसिफिक नीतियों का प्राथमिक सिद्धांत है. 

आसियान की मुख्य भूमिका 

लंबे समय तक आसियान एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ रहा है और उसने सफलतापूर्वक उन मुद्दों को सुलझाया है जिन्होंने अतीत में दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र को परेशान किया है. उदाहरण के लिए, 70 के दशक में कंबोडिया और वियतनाम के बीच संघर्ष. मौजूदा समय में आसियान की इस क्षमता पर बहुत बड़ा सवालिया निशान है. साथ ही कुछ मुद्दों जैसे कि दक्षिणी चीन सागर विवाद को लेकर आसियान के सदस्य देशों के बीच एकजुटता में कमी आई है जबकि ये अब एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं रह गया है बल्कि उसका पूरी दुनिया पर असर है और समुद्री क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा में रुकावट डाल रहा है. दक्षिणी चीन सागर के विवाद को सिर्फ़ दक्षिण-पूर्व एशिया के सुरक्षा परिदृश्य पर ही असर डालते हुए नहीं देखा जा रहा है बल्कि व्यापक तौर पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर भी. इसे देखते हुए स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की सोच को बढ़ावा देने वाले अधिकतर देश और ज़्यादा कोशिश कर रहे हैं और दक्षिणी चीन सागर पर दावा करने वाले देशों की मदद के लिए क़दम उठा रहे हैं ताकि वो विवादित समुद्र में ज़िद्दी चीन से निपट सकें. इसलिए दक्षिणी चीन सागर में आसियान देशों की नौसेना को शामिल करके समुद्री सैन्य अभ्यास करना ये संकेत देता है कि भारत भी दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने और दक्षिणी चीन सागर में चीन की घुसपैठ से निपटने में ख़ुद को एक भरोसेमंद किरदार एवं विश्वसनीय साझेदार के तौर पर पेश करने का लक्ष्य तैयार कर रहा है. 

भारत के द्वारा ये अभ्यास आसियान देशों की नौसेना के क्षमता-निर्माण में मदद करेगा और समुद्री क्षेत्र में दोनों के बीच सहयोग को और मज़बूत करेगा.

भारत के द्वारा ये अभ्यास आसियान देशों की नौसेना के क्षमता-निर्माण में मदद करेगा और समुद्री क्षेत्र में दोनों के बीच सहयोग को और मज़बूत करेगा.इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव और आसियान आउटलुक ऑन दी इंडो-पैसिफिक (इंडो-पैसिफिक को लेकर आसियान का दृष्टिकोण), जो समुद्री सहयोग को इंडो-पैसिफिक में समान विचार वाले देशों के साथ सहयोग के प्राथमिक क्षेत्रों में से एक मानने पर ज़ोर देता है, भारत और आसियान- दोनों के लिए पर्याप्त आधार और अवसर मुहैया कराते हैं कि वो आसियान देशों के लिए तालमेल और समर्थन को मज़बूत करने के लिए साथ काम करें. ऐसा होने पर बग़ल में चीन की बढ़ती मौजूदगी से निपटने में उनकी समुद्री रक्षा और सुरक्षा क्षमता को सुधारने में मदद मिलेगी. 

लेकिन निकट भविष्य में देखने वाली चीज ये है कि क्या आसियान देश दक्षिणी चीन सागर में जिन पक्षों और देशों का कुछ भी दांव पर लगा हुआ है, उनके द्वारा चीन पर पूरी दुनिया का दबाव बनाने के लिए EAS जैसे मंचों पर ये मुद्दा उठाने की हालत में संबंधित पक्षों और देशों की सराहना करेंगे या नहीं. ऐसा होने पर एक असरदार और बाध्यकारी कोड ऑफ कंडक्ट (COC), जो सभी पक्षों को स्वीकार हो और जो अंतर्राष्ट्रीय क़ानून का पालन करता है, पर जल्द-से-जल्द दस्तख़त का रास्ता तैयार होगा.


प्रेमेशा साहा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं. 

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