Author : Seema Sirohi

Published on Jul 11, 2018 Updated 0 Hours ago

भारत अमेरिका के रिश्ते पारंपरिक तौर पर काफी ज्यादा ध्यान चाहते हैं ताकि अलग अलग क्षेत्रों में एक तेज़ बढ़ोतरी का दौर आ सके, चूँकि यहाँ कई सालों से रिश्तों में भरोसे की कमी और असहमति रही है।

भारत- अमेरिका: ट्रंप का असर

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टीम ने उनके काम करने के अंदाज़ को अपारंपरिक बताया है, ये वो भली भाँती जानते हैं कि जिसे वो ये समझा रहे हैं उन्हें भी असलियत पता है और वो इस अपारंपरिक थ्योरी पर विश्वास नहीं कर रहे फिर भी द्विपक्षीय रिश्तों के हित में साथ काम करते रहेंगे।

कम संख्या वाले ट्रम्प प्रशासन से भारतीय अधिकारीयों ने बड़ी शान्ति के साथ समझौता कर लिया है जहाँ बहुत काम लोगों को ये पता है कि टॉप लेवल पर क्या चल रहा है। जिन्हें जानकारी है वो उन लोगों की कोई ब्रीफिंग नहीं करते जिन्हें दुसरे देशों के साथ संबंधों पर रोज़मर्रा काम करना होता ही।

भारत और अमेरिका के बीच होने वाले 2+2 डायलॉग का अचानक रद्द होना अमेरिकी और भारतीय अधिकारीयों को बराबरी से हैरान कर गया।

विदेश मंत्री माइक पोम्पेओ की उत्तर कोरिया में मौजूदगी अनिवार्य समझी गयी। उत्तर कोरिया और अमेरिका फिलहाल जिस कार्य में जुटे हुए हैं उसके लिए विदेश मंत्री का योंग्यंग में होना ठीक उसी समय ज़रूरी था जब भारत के साथ 2+2 डायलॉग होना था।

कई लोगों का ये कयास है कि हो सकता है उत्तर कोरिया अपने वादे से अभी ही मुकर रहा हो लीक हुई ख़ुफ़िया रिपोर्ट्स क आधार पर ये शक है कि योंगब्योन परमाणु ठिकाने पर उत्तर कोरिया अपना परमाणु ढांचा और मज़बूत कर रहा है। कहा जा रहा है की उत्तर कोरिया ने अपनी परमाणु ईंधन का उत्पाद बढ़ा दिया है।

कुछ दूसरी रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा जा रहा है कि अमेरिका हो सकता है कोरियाई युद्ध के शहीद अमेरिकी सैनिकों की अस्थियों का इंतज़ार कर रहा हो। उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन ने ये वादा किया था कि वो सैनिकों की अस्थियाँ लौटा देंगे। पेंटागन ने उत्तर और दक्षिण कोरिया की सीमा पर 100 ताबूत भेज दिए हैं।

सिर्फ ये ऐलान किया गया कि पोम्पेओ सिंगापुर शिखर सम्मलेन के दौरान ट्रम्प और किम के बीच हुई बातचीत को आगे बढाने और कार्यान्वित करने योंग्यांग जा रहे हैं, आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में और कोई वजह साफ़ नहीं की गयी। उसके बाद वो जापान, वियतनाम, अबू धाबी और आखिर में NATO सम्मलेन के लिए ब्रसेल्स जायेंगे।

ये है ट्रम्प का अंदाज़। कोई कार्यशैली नहीं, जब जैसी ज़रुरत हो उस मुताबिक फैसले। वो सबसे फायदेमंद, सबसे चमकदार चीज़ को हासिल करना चाहते हैं और बाकियों को भूल जाते हैं.. कुछ लोगों का कहना है कि अभी भारत में जो उनकी दिलचस्पी कम होती नज़र आ रही है वो इसलिए कि उन्हें व्यापार के मुद्दे पर वैसी डील नहीं मिली जैसी उम्मीद थी। इसलिए वो आजकल वो भारत को ऊंचे शुल्क दर पर भला बुरा कह रहे हैं।

अमेरिकी अधिकारी शौक़िया मनोवैज्ञानिक के तौर पर कयास लगा रहे हैं। एक अधिकारी का अंदाज़ा है कि अगर ट्रम्प को ये लगता है कि किसी देश से उन्हें अच्छा जवाब मिल रहा है ख़ास तौर पर व्यापार के मुद्दों पर, तो उन्हें लगेगा कि उसके फायदे प्रत्यक्ष तौर पर हो रही डील से कहीं ज्यादा हैं। उन्हें लगेगा कि उन्हें एक दोस्त मिल गया है एक दुसरे अधिकारी के मुताबिक भारत की तरफ व्यापार मुद्दों पर जवाब कुछ इस प्रकार था “हम ये नहीं कर सकते, वो नहीं कर सकते” शायद इसलिए ट्रम्प मायूस हो गए।

भारतीय अधिकारी चाहते हैं की ट्रम्प का ध्यान उन पर न जाए, ख़ामोशी से ट्रम्प के रेडार से दूर रहना ज्यादा सुरक्षित है, क्यूंकि पिछले साल उनहोंने प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक चमकता दमकता सम्मलेन आयोजित किया था। जिन लोगों की पहुँच ट्रम्प तक है, या ट्रम्प का ध्यान जिन पर है उनके साथ उन्होंने जितनी मुमकिन हो सके उतनी ख़ामोशी से काम किया।

लेकिन समस्या है कि भारत अमेरिका के रिश्ते पारंपरिक तौर पर काफी ज्यादा ध्यान चाहते हैं ताकि अलग अलग क्षेत्रों में एक तेज़ बढ़ोतरी का दौर आ सके, चूँकि यहाँ कई सालों से रिश्तों में भरोसे की कमी और असहमति रही है।

हालांकि विदेश, रक्षा और कॉमर्स मंत्रियों की मीटिंग होती रही है जिस से दोनों देशों के सम्बन्ध में गति बनी रही लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री ने बीच बीच में जो दखल दिया है उसी वजह से हालत बेहतर हुए हैं। 2005 की परमाणु डील मनमोहन सिंह और जॉर्ज बुश के दूरंदेशी के बगैर मुमकिन नहीं होती।

दुर्भाग्य से ट्रम्प ने भारत पर जब भी कोई हस्तक्षेप किया है वो नकारात्मक ही रहा है। इस से प्रधानमंत्री के भक्त और उनके छवि को मैनेज करने वाले खासे नाराज़ हुए हैं, भले ही प्रधानमंत्री खुद बड़ी तस्वीर पर नज़र रखे हुए हों। वो 2+2 डायलॉग के रद्द होने को अपमान के तौर पर देख रहे हैं।

क्या मीटिंग का टलना ये संकेत है कि अमेरिकी विदेश नीति में भारत की क्या जगह है? अगर हम हकीकत को मानें तो वो ये है कि भारत अमेरिका के लिए न ही कभी समस्या रहा है न ही सहयोगी, इसलिए भारत की अहमियत हमेशा दुसरे दर्जे की ही रही है। भले ही अफसर और इमेज मैनेजर भारत की अहमियत को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते रहे हैं।

किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति की अमेरिका की वजह से नींद आज तक ख़राब नहीं हुई है। पाकिस्तान और चीन ने कई बार भारत से ज्यादा अहमियत हासिल की है क्यूंकि अमेरिका के शीत युद्ध काल के लक्ष्य हासिल करने के लिए कई अमेरिकी प्रशासन ने उन्हें ज़रूरी माना।

इस के बावजूद साल 2000 के बाद से भारत और अमेरिका के रिश्तों का ग्राफ ऊपर की ही तरफ गया है, ख़ास तौर पर बुश प्रशासन के दौर में चाइना भी इस सामरिक गणित में एक खिलाडी बन गया था। और ये सम्बन्ध ट्रम्प के बावजूद और उनके बाद भी बने रहेंगे, क्यूंकि भारत के अमीर और ताक़तवर लोगों की अगली पीढ़ी अमेरिकन ड्रीम का हिस्सा हैं और फिर अमेरिका को भी चीन को संतुलन में रखना है।

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