Published on Dec 18, 2021 Updated 0 Hours ago

क्या भारत के सामरिक तेल भंडारों को बनाए रखना वाजिब है?

भारत के सामरिक तेल भंडार: लागत और फ़ायदे

ये लेख हमारी कॉम्प्रिहेंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया ऐंड द वर्ल्ड का ही एक भाग है.


पृष्ठभूमि

23 नवंबर 2021 को अमेरिका के प्रशासन ने अपने अमेरिका के ऊर्जा विभाग द्वारा संचालित सामरिक तेल भंडारों (SPR) से 5 करोड़ बैरल तेल खुले बाज़ार में जारी करने की इजाज़त दी. 5 करोड़ बैरल तेल की, अमेरिका में तीन दिन में खपत हो जाती है. वहीं, ये दुनिया भर में हर दिन होने वाली तेल की खपत के लगभग आधे के बराबर है. दुनिया भर में कच्चे तेल के दाम आज उस ऊंचाई पर पहुंच गए हैं, जितने पिछले सात साल में कभी नहीं थे. इसी वजह से अमेरिका को अपने सामरिक तेल भंडार से कच्चा तेल खुले बाज़ार में उतारने का फ़ैसला करना पड़ा. अमेरिका के ऊर्जा विभाग के मंत्री के शब्दों में कहें तो, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के आदेश पर सामरिक तेल भंडारों से तेल निकालने का फ़ैसला उनकी उसी प्रतिबद्धता का सबूत है कि वो अपने पास मौजूद पूरी ताक़त लगाकर, पेट्रोल डीज़ल के दाम कम करेंगे, और कामकाजी लोगों को महंगे होते तेल से राहत देंगे, जिससे अमेरिका की आर्थिक रिकवरी जारी रहे. अमेरिका द्वारा अपने सामरिक तेल भंडारों से तेल निकालने के इस फ़ैसले से तालमेल बिठाते हुए चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन ने भी अपने अपने सामरिक तेल भंडारों से कच्चा तेल खुले बाज़ार में उतारा है. इन देशों के बीच आपसी तालमेल से सामरिक तेल भंडारों से बाज़ार में उतारे गए तेल में भारत की हिस्सेदारी पचास लाख बैरल थी, जो अमेरिका द्वारा जारी किए गए कच्चे तेल का दसवां हिस्सा भर है. भारत द्वारा अपने सामरिक भंडारों से बाज़ार में उतारे गए तेल की ये मामूली तादाद कच्चे तेल दाम पर कोई असर डालने की क्षमता नहीं रखती है. क्योंकि, दुनिया में हर दिन 10 करोड़ बैरल तेल की खपत होती है.

भारत द्वारा अपने सामरिक भंडारों से बाज़ार में उतारे गए तेल की ये मामूली तादाद कच्चे तेल दाम पर कोई असर डालने की क्षमता नहीं रखती है. क्योंकि, दुनिया में हर दिन 10 करोड़ बैरल तेल की खपत होती है.

इन देशों द्वारा अपने अपने सामरिक भंडारों से तेल जारी करने से तेल के दाम कम करने का मक़सद पूरा नहीं हुआ, क्योंकि तेल भंडारों से तेल बाज़ार में उतारने के एलान के बाद कच्चे तेल के दाम में एक डॉलर प्रति बैरल का इज़ाफ़ा हुआ. लेकिन, जब 26 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट मिलने की ख़बर सामने आई, तो इससे कच्चे तेल के दाम पर वो असर पड़ा, जो बाइडेन प्रशासन द्वारा सामरिक तेल भंडार खोलने से भी नहीं हुआ था. कोविड-19 के नए वैरिएंट के ख़ौफ़ से कच्चे तेल के दाम में लगभग दस प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. इसका मतलब ये है कि आर्थिक विकास बढ़ने के साथ-साथ कच्चे तेल की मांग बढ़ने की जो उम्मीद लगाई जा रही थी, उस पर महामारी के चलते लॉकडाउन लगने के डर ने पानी फेर दिया. ज़ाहिर है कि कच्चे तेल के दाम में उतार चढ़ाव पर ये सभी कारण ज़्यादा असर डालते हैं. तेल के सामरिक भंडार खोलने से कच्चे तेल के दाम पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता. सामरिक तेल भंडारों से तेल निकालने का फ़ैसला बेअसर होने से इन भंडारों की लागत और इनसे होने वाले फ़ायदों को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं.

भारतीय सामरिक तेल भंडार लिमिटेड

भारत के सामरिक तेल भंडारों का प्रबंधन सरकारी कंपनी इंडियन स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व लिमिटेड (ISPRL) करती है. इसकी स्थापना 2004 में इंडियन ऑयल के संपूर्ण मालिकाना हक़ वाली सहयोगी कंपनी के रूप में की गई थी. वर्ष 2006 में इस कंपनी को ऑयल इंडस्ट्री डेवेलपमेंट बोर्ड (OIDB) के हवाले कर दिया गया था. पहले चरण में, ISPRL ने क़रीब 53.3 लाख टन (MT) के तेल भंडार देश के तीन ठिकानों- 1). विशाखापत्तनम (13.3 लाख टन), 2). मैंगलुरू (15 लाख टन), और 3). पादुर (25 लाख टन) पर स्थापित किए गए थे. इन सभी भंडारों में कच्चे तेल का भंडारण किया गया था. इतने कच्चे तेल से भारत की नौ दिनों की तेल की ज़रूरत पूरी की जा सकती है. जुलाई 2021 में सरकार ने दो और कारोबारी सह सामरिक सुविधाओं की स्थापना का फ़ैसला किया, जिनकी क्षमता 65 लाख टन भूमिगत भंडारों की होगी. सामरिक तेल भंडारों के दूसरे चरण के तहत इन भंडारों को चांदीखोल (40 लाख टन) और पादुर (25 लाख टन) में सरकारी और निजी क्षेत्र की साझेदारी (PPP) में स्थापित किया जाना है. जब कच्चे तेल के भंडारण का दूसरा चरण पूरा हो जाएगा, तो देश में 12 दिनों का अतिरिक्त कच्चा तेल उपलब्ध होगा.

जब कच्चे तेल के भंडारण का दूसरा चरण पूरा हो जाएगा, तो देश में 12 दिनों का अतिरिक्त कच्चा तेल उपलब्ध होगा.

सामरिक तेल भंडारों के निर्माण (पहले चरण) में शुरुआती तौर पर, सितंबर 2005 की क़ीमतों के हिसाब से 23.97 अरब रुपयों की लागत आने का अनुमान लगाया गया था. हालांकि बाद में संशोधित लागत 40.98 अरब रुपए आई. इस रक़म का ज़्यादातर हिस्सा OIDB के पास मौजूद पूंजी से लिया गया. वहीं विशाखापत्तनम में 3 लाख टन भंडारण की क्षमता बनाने की लागत का ख़र्च हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPCL) ने उठाया था. इन तेल भंडारों को चलाने और रख-रखाव का ख़र्च भारत सरकार उठाती है. वर्ष 2019-20 में ISPRL ने एक अरब रुपए का शुद्ध घाटा दर्ज किया था.

सामरिक तेल भंडारों की शुरुआत और इसके समर्थन में तर्क

1970 के दशक के आख़िरी वर्षों में कच्चे तेल के दाम में नाटकीय रूप से इज़ाफ़ा हुआ था. इसके बाद विकसित देशों ने अपनी ऊर्जा नीति को नए सिरे से परिभाषित किया था. पहले जहां प्रचुर उपलब्धता का प्रबंधन किया जा रहा था, वहीं अब ज़ोर क़िल्लत के वक़्त प्रबंधन पर दिया गया. वर्ष 1974 फ्रांस को छोड़कर पश्चिमी यूरोप के अन्य देशों और अमेरिका ने मिलकर अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की स्थापना करने का फ़ैसला किया, जिससे कि वो ओपेक द्वारा उठाए जाने वाले क़दमों का मुक़ाबला कर सकें. फ्रांस और अमेरिका बाद में इस एजेंसी में शामिल हुए. हालांकि, तेल संकट से निपटने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की अगुवाई करने वाले हेनरी किसिंजर ने IEA को लेकर लंबी चौड़ी योजनाएं बनाई हुई थीं. लेकिन आख़िर में ये एजेंसी कच्चा तेल साझा करके किसी क़िल्लत के वक़्त सहयोग का एक ज़रिया ही बन सकी. इसके लिए सदस्य देशों के बीच तेल के आदान-प्रदान का एक समझौता हुआ. इस समझौते के तहत आपूर्ति के जोखिमों से निपटने के लिए सामरिक तेल भंडार बनाना ज़रूरी है. IEA के सभी तेल आयातक सदस्यों के लिए कम से कम 90 दिनों के आयात के बराबर तेल के भंडार बनाकर रखना ज़रूरी है. IEA के विकसित देशों ने ही चीन और भारत को भी सामरिक तेल भंडार बनाने के लिए प्रेरित किया ताकि तेल के दाम अचानक बढ़ने का किसी क़िल्लत से फौरी तौर पर निपटा जा सके. कच्चे तेल के दाम में आम तौर पर तभी बढ़ोत्तरी होती है, जब आगे चलकर मांग बढ़ने या आपूर्ति घटने का अंदेशा होता है. सामरिक तेल भंडारों से तेल खुले बाज़ार में उतारने के पीछे तर्क यही दिया गया है कि इससे फ़ौरी तौर पर तेल के बढ़ते दाम से राहत मिल सकती है. लेकिन, उससे भी अहम बात ये है कि दाम बढ़ने से आपूर्ति का जो संकट पैदा हुआ है, उसे सामरिक तेल भंडारों से पूरा करने की कोशिश की गई है.

अहम बात ये है कि दाम बढ़ने से आपूर्ति का जो संकट पैदा हुआ है, उसे सामरिक तेल भंडारों से पूरा करने की कोशिश की गई है.

दिक़्कत क्या है?

वैसे तो सामरिक तेल भंडारों को नीति निर्माताओं ने ये कहकर प्रोत्साहन दिया था कि ये किसी देश को आपूर्ति के झटकों से बचाएगा. लेकिन, इन सवालों का जवाब किसी ने नहीं दिया है कि जितना ख़र्च इन भंडारों को बनाए रखने में आता है, क्या उसकी तुलना में फ़ायदा भी होता है, ख़ास तौर से विकासशील देशों को? सैद्धांतिक रूप से देखें, तो अमीर देशों द्वारा दुनिया भर के लोगों को सस्ता तेल उपलब्ध कराने के मक़सद से अपने सामरिक भंडारों से तेल जारी करने और कच्चे तेलों की क़ीमतों को प्रभावित करने की कोशिश ठीक लगती है. सामरिक तेल भंडारों से तेल जारी होने के बाद, अगर कच्चे तेल के दाम में कमी आती है, तो किसी भी देश को इसका फ़ायदा उठाने से वंचित नहीं रखा जा सकता है. ऐसे में ग़रीब देशों के लिए, औद्योगिक देशों द्वारा अपने सामरिक भंडारों से तेल जारी होने के बहाने से मुफ़्त में ही कुछ फ़ायदा मिल जाएगा. लेकिन, औद्योगिक देशों ने भारत और चीन पर भी अपने अपने सामरिक भंडारों से तेल निकालने का दबाव डाला, ताकि उनके हिस्से का कुछ बोझ उठा सकें. भारत और चीन दोनों ही दुनिया के बड़े आयातक देशों में से हैं. ज़्यादातर अध्ययनों का ये अनुमान है कि कच्चे तेल का भंडारण करने में आने वाली लागत, कच्चे तेल के दाम से कहीं ज़्यादा है. इस लागत को कम करने के लिए सामरिक तेल भंडारों में जमा तेल की नीलामी या व्यापार करने का सुझाव दिया जाता है.

भारत ने अपने सामरिक तेल भंडारों में जमा तेल बेचने की शुरुआत जुलाई 2021 में उस वक़्त की थी, जब चीन द्वारा अपने सामरिक भंडार के तेल की नीलामी का फ़ैसला लेने की ख़बर आई थी. भारत का लक्ष्य ये था कि वो अपने सामरिक भंडार में जमा कच्चे तेल को बेच कर राजस्व कमा ले और तेल के शेयरों को बेचने और लाइसेंसिंग की क्षमता से कुछ आमदनी कर ले. इसके पीछे तर्क ये था कि कच्चे तेल को सस्ती दरों पर ख़रीदा जाए और उसे तब बेचा जाए जब घरेलू बाज़ार में दाम ज़्यादा बढ़ने लगें. उदाहरण के लिए चीन के सामरिक तेल भंडार के लिए अप्रैल- मई 2020 में तेल ख़रीदा गया था. उस समय कच्चे तेल का भाव 40 डॉलर के आस पास था. वहीं, जब 24 सितंबर 2021 को इस भंडार की नीलामी की गई, तो तेल के दाम 65 से 70 डॉलर के आस-पास थे. इससे चीन के सामरिक भंडार से तेल ख़रीदने वालों की तेल को साफ़ करने में आने वाली लागत बच गई और इससे सरकारी ख़ज़ाने को भी फ़ायदा हुआ. भारत में ISPRL ने अपने भंडारों को संयुक्त अरब अमीरात की कंपनी ADNOC (अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी) को पट्टे पर दिया है. दोनों देशों की सरकारों के बीच हुए समझौते के तहत, संयुक्त अरब अरात की कंपनी साढ़े सात लाख टन कच्चा तेल, ISPRL के भंडारों में रख सकती है. ISPRL अब अपनी 30 प्रतिशत और भंडारण क्षमता को अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को पट्टे बन देने की योजना बना रही है. इन भंडारों को पट्टे पर लेने वाले, भारत से तेल का निर्यात भी कर सकेंगे.

ये अनुमान है कि कच्चे तेल का भंडारण करने में आने वाली लागत, कच्चे तेल के दाम से कहीं ज़्यादा है. इस लागत को कम करने के लिए सामरिक तेल भंडारों में जमा तेल की नीलामी या व्यापार करने का सुझाव दिया जाता है.

कुल मिलाकर देखें तो, सामरिक तेल भंडार एक तरह से भविष्य में तेल के दाम अचानक बढ़ने या आपूर्ति घटने से बचने का बीमा हैं. इस बीमा के लिए जो प्रीमियम देना पड़ता है, वो इन भंडारों के रख-रखाव का ख़र्च है. मुद्दा ये है कि इतना ज़्यादा प्रीमियम भरना उचित है क्या? तेल की सामरिक अहमियत अब काफ़ी कम हो गई है. इसकी एक बड़ी वजह है कि तेल के संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, और इनसे होने वाले कार्बन उत्सर्जन के चलते, दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन के प्रति नकारात्मक माहौल बना है. तेल की आपूर्ति में अचानक कमी आने से लगने वाले झटके अब बहुत दुर्लभ हो गए हैं और ये क़िल्लत लंबे समय तक चलती भी नहीं है. सामरिक भंडारों से तेल निकाल कर, कच्चे तेल के दाम पर असर डालने के दावे में कोई ख़ास दम नही है. ये बात हाल ही में सामरिक तेल भंडारों से तेल निकाले जाने की मिसाल से साबीत होती है. हो सकता है कि मौजूदा हालात में सामरिक भंडारों के रख-रखाव की भारी लागत वाजिब हो. क्योंकि आज भी तेल ही दुनिया भर में ऊर्जा के अन्य तमाम स्रोतों पर भारी पड़ता है. इसमें नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के स्रोत (जिसमें नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के उपकरणों का निर्माण और परिवहन भी) शामिल हैं. हो सकता है कि भविष्य में तेल की आपूर्ति के झटकों से निपटने की तैयारी के लिए बनाए गए सामरिक तेल भंडारों के रख-रखाव के ख़र्च की नए सिरे से समीक्षा करनी पड़े.

Source: BP statistical review 2021 for oil price, EIA, Energy Information & Administration, USA for US SPR capacity
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Authors

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

Lydia Powell

Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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