Author : Debasish Mallick

Published on Mar 04, 2020 Updated 0 Hours ago

नीतियों के माध्यम से धीरे-धीरे जल परिवहन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसे लोग पसंद भी कर रहे हैं और इस दिशा में निवेश हो भी रहा है.

केंद्रीय बजट में सामुद्रिक इलाकों का महत्व

2020-21 के वित्तीय वर्ष के केंद्रीय बजट में मूलभूत ढांचे के मद में एक लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है. ये धन राष्ट्रीय मूलभूत ढांचा पाइपलाइन से जुड़े प्रोजेक्ट में व्यय किया जाएगा. इसके अंतर्गत, भवन निर्माण, पीने के पानी की सुविधा, स्वच्छ ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, रेलवे, विमानपत्तन, बस टर्मिनल, मेट्रो और हल्के परिवहन, लॉजिस्टिक्स और गोदामों की सुविधाओं का निर्माण किया जाएगा. हालांकि, बजट अनुदान में सामुद्रिक क्षेत्र का कम-ओ-बेश कोई ज़िक्र नही हुआ. जबकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान नीतिगत परिचर्चाओं में इस सेक्टर को लेकर काफ़ी संवाद हुए हैं. केंद्रीय बजट में सामुद्रिक क्षेत्र का ज़िक्र केवल एक बंदरगाह के निजीकरण करने और इसे शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध करने के हवाले से हुआ है. इसके अलावा राष्ट्रीय जल परिवहन-प्रथम के अंतर्गत जल विकास मार्ग को पूरा करने और 890 किलोमीटर लंबे धुबरी-सदिया अंतर्देशीय जल मार्ग संयोजन के संदर्भ में ही सामुद्रिक क्षेत्र का ज़िक्र बजट में किया गया है.

भारत ने छोटे-छोटे बंदरगाहों की स्थापना और इनके संचालन में सफलता हासिल की है. इसके अतिरिक्त जहाज़ निर्माण की आधुनिक सुविधाओं का भी विस्तार किया गया है. हालांकि, ये जहाज निर्माण केंद्र अभी कोई बड़ी सफलता नहीं प्राप्त कर सके हैं

भारत का सामुद्रिक क्षेत्र लंबे समय से मुख्यत: जहाजरानी के मार्गों का माना जाता रहा है. जो भारत की घरेलू और वाह्य व्यापारिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है. इसके अतिरिक्त जहाज़ निर्माण के एक छोटे से सेक्टर (इसमें सरकार के स्वामित्व वाले वो शिपयार्ड शामिल नहीं हैं, जहां सामरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जहाज़ बनाए जाते हैं) और सामान के निर्यात में इस्तेमाल होने वाले बड़े बंदरगाहों और घरेलू स्तर पर सामान की आवाजाही के लिए प्रयुक्त होने वाली छोटी जेटी ही इस क्षेत्र में सम्मिलित की जाती हैं. हालांकि, हाल के वर्षों में भारत ने सामुद्रिक क्षेत्र के आमूलचूल परिवर्तन की दिशा में क़दम बढ़ाए हैं. भारत ने छोटे-छोटे बंदरगाहों की स्थापना और इनके संचालन में सफलता हासिल की है. इसके अतिरिक्त जहाज़ निर्माण की आधुनिक सुविधाओं का भी विस्तार किया गया है. हालांकि, ये जहाज निर्माण केंद्र अभी कोई बड़ी सफलता नहीं प्राप्त कर सके हैं. हाल के वर्षों में तमाम स्तरों पर ये परिचर्चाएं हो रही हैं, जिनके तहत सामुद्रिक क्षेत्र की संभावनाओं को आगे लाने का प्रयास किया जाता रहा है. ताकि लॉजिस्टिक्स की लागत को कम किया जा सके और अर्थव्यवस्था को और प्रतिद्वंदी बनाया जा सके. और इसके माध्यम से निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके. अंतर्देशीय जलमार्गों, तटीय जल परिवहन, बंदरगाहों पर आधारित औद्योगिक विकास और इनसे उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा से अर्थव्यवस्था को होने वाले लाभ की संभावनाओं को आज अधिक मान्यता मिल रही है. ये मानना भी सही है कि एक सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत सामुद्रिक सेक्टर के निर्माण के लिए जहाज़ निर्माण, बंदरगाहों और टर्मिनल व गोदामों की आवश्यकता भी है. जहाज़ निर्माण के सेक्टर में विशेष तौर पर निजी क्षेत्र के शिपयार्ड पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, ताकि उनके बिज़नेस को स्थायित्व मिल सके और उसमें वृद्धि भी हो सके. इन्हीं के आधार पर आधुनिक संसाधनों का विकास किया जा सकता है. इन परिचर्चाओं से ही ये बात भी उभर कर सामने आई है कि एक सामुद्रिक विकास फंड (MDF) बनाने की आवश्यकता है ताकि इस क्षेत्र विशेष की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति इस तरह की जा सके, ताकि वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिद्वंदिता की क़ुव्वत हासिल कर सकें.

सामुद्रिक क्षेत्र के विकास के कार्यक्रम

समुद्री क्षेत्र के विकास के लिए भारत सरकार ने कई नई योजनाएं आरंभ की हैं. इनमें सागरमाला परियोजना और अंतर्देशीय जल परिवहन के नए मार्गों का विकास और वृद्धि शामिल हैं. जहां सागारमाला परियोजना का लक्ष्य बंदरगाहों पर आधारित विकास का मॉडल बनाना है. वहीं, अंतर्देशीय परिवहन के जलमार्गों के विकास से घरेलू सामान ढुलाई के परिवहन को जलमार्ग पर अधिक आधारित बनाने का प्रयास किया जा रहा है. ताकि ये अंतरराष्ट्रीय कार्गो परिवहन के फीडर के तौर पर भी विकसित हो सके. इन दोनों ही योजनाओं से अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण निवेश बढ़ने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. और इनसे विकास को भी नई रफ़्तार मिल सकेगी.

सागरमाला योजना का लक्ष्य निर्यात में प्रतिद्वंदिता के विकास को प्राप्त करना है. इसके लिए आवाजाही के ख़र्च को घटाने का प्रयास किया जा रहा है. इसकी परिकल्पना है कि बंदरगाह पर आधारित विकास का एक नया मॉडल विकसित किया जाए. जिसमें पुराने बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और क्षमता विस्तार, एवं नए बंदरगाहों का विकास सम्मिलित है. इसके अतिरिक्त पुराने बंदरगाहों के विकास की बाधाएं दूर करना और नए ग्रीनफील्ड बंदरगाहों का निर्माण भी किया जाना है. इस परियोजना के अंतर्गत, अंदरूनी औद्योगिक क्षेत्रों और बंदरगाहों के बीच कनेक्टिविटी को परिवहन के विभिन्न माध्यमों से बढ़ाना, बंदरगाह से जुड़ा हुआ औद्योगिक विकास, बंदरगाह के क़रीब औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार और तटीय आर्थिक क्षेत्रों का विस्तार, तटीय सामुदायिक विकास, तटीय समुदायों का स्किल डेवेलपमेंट और रोज़गार के अवसर प्रदान करने की गतिविधियों को बढ़ावा देना और तटीय जहाज़रानी एवं अंतर्देशीय जल परिवहन का विकास शामिल है.

अंतर्देशीय जल परिवहन

इस समय भारत के कुल परिवहन में जलमार्गों की भागीदारी मात्र छह प्रतिशत है. जो विकसित देशों और कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले बेहद कम अनुपात है.  2016 का नेशनल वाटरवेज़ एक्ट ने 111 नदियों, खाड़ियों, नदी के मुहानों (जिनकी कुल लंबाई क़रीब 15 हज़ार किलोमीटर है), को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है. इसके अंतर्गत व्यापक स्तर पर वाणिज्यिक जल परिवहन और नौवहन व्यवस्था के विकास का लक्ष्य रखा गया है. इन जलमार्गों को डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से जोड़ा जाएगा, ताकि इनका बेहतर इस्तेमाल हो सके. अंतर्देशीय जल परिवहन मार्गों से तटीय नौपरिवहन के विकास को रफ़्तार मिल सकती है. क्योंकि ये पीछे और आगे दोनों तरफ़ से यातायात को संवर्धित कर सकेंगे. अंतर्देशीय जलमार्गों का ये नेटवर्क अंतरराष्ट्रीय जल परिवहन के फीडर का काम कर के व्यापार के विस्तार में भी योगदान दे सकता है.

सागरमाला के अंतर्गत बंदरगाहों के आधुनिकीकरण, उनके बीच संपर्क स्थापित करे, बंदरगाहों के नेतृत्व में औद्योगिकीकरण, तटीय जल परिवहन मार्गों के विकास को अनुमति दी गई है. जिन प्रोजेक्ट को बनाने की फिलहाल पहचान कर ली गई है, उनकी लागत का अनुमान 6.01 लाख करोड़ रुपए लगाया गया है

विकास कार्यक्रमों के तहत प्रस्तावित निवेश

योजना के अनुरूप, अंतर्देशीय जल मार्गों के नेटवर्क को विकसित करने के लिए क़रीब 22 हज़ार 763 करोड़ रुपए की पूंजी लगने का अनुमान है. इसके साथ साथ, नावें और जहाज़ बनाने और उनके लिए टर्मिनल, जेटी, गोदाम, निर्माण और मकम्मत के लिए यार्ड के निर्माण में कितना ख़र्च आएगा, इसका अनुमान फिलहाल उपलब्ध नहीं है.

सागरमाला के अंतर्गत बंदरगाहों के आधुनिकीकरण, उनके बीच संपर्क स्थापित करे, बंदरगाहों के नेतृत्व में औद्योगिकीकरण, तटीय जल परिवहन मार्गों के विकास को अनुमति दी गई है. जिन प्रोजेक्ट को बनाने की फिलहाल पहचान कर ली गई है, उनकी लागत का अनुमान 6.01 लाख करोड़ रुपए लगाया गया है. इन सभी प्रोजेक्ट को 2015 से 2035 के दौरान विकसित किया जाना है. इनमें से 121 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं. इनकी लागत क़रीब 30 हज़ार करोड़ रुपए आई है. जबकि क़रीब 3 लाख करोड़ रुपए की लागत वाले 200 प्रोजेक्ट पूरे होने के अलग-अलग चरणों में पहुंच चुके हैं. संबंधित सरकारी विभाग और प्राधिकरण इन्हें पूरा करने की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं. इन प्रोजेक्ट को मुख्य तौर पर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच भागीदारी के माध्यम से पूरा किया जा रहा है. पूंजी के सहयोग के लिए सागरमाला विकास कंपनी बोर्ड की स्थापना करके इसे रजिस्टर किया गया है. इसके माध्यम से किसी ख़ास प्रोजेक्ट को लागू करने वाली संबंधित एजेंसियां स्पेशल पर्पज़ व्हीकल्स (SPV) का इस्तेमाल करके पूंजी जुटा सकती हैं.

इस परियोजना के तहत 236 प्रोजेक्ट बंदरगाहों के नवीनीकरण के ही हैं, जिनमें एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का व्यय होगा. इसके साथ-साथ 235 प्रोजेक्ट संपर्क स्थापित करने वाले हैं, जिनमें दो लाख करोड़ रुपए का व्यय किया जाएगा. इसके अतिरिक्त 35 प्रोजेक्ट बंदरगाहों से संबंधित औद्योगिकीकरण के हैं. इनमें भी दो लाख करोड़ रुपए ख़र्च किए जाएंगे. सभी बारह प्रमुख बंदरगाहों के विकास के मास्टर प्लान तय किए जा चुके हैं. इनमें बंदरगाहों की क्षमता के विकास के 92 प्रोजेक्ट हैं. जिनके लिए अगले बीस वर्षों में 50 हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च किए जाएंगे. इनके पूरा होने पर बंदरगाहों की क्षमता में 71.2 करोड़ टन प्रति वर्ष (MTPA) की वृद्धि होने का अनुमान है. इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र के वधावन और ओडिशा के पारादीप आउटर हार्बर पर दो नए बंदरगाह बनाए जाएंगे.

इससे अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होगा?

सागरमाला परियोजना एक व्यापक प्रोजेक्ट है, ताकि बंदरगाहों पर आधारित औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके. मौजूदा बंदरगाहों की कार्यक्षमता बेहतर करने और उनका विस्तार करने के साथ-साथ नए ग्रीनफील्ड बंदरगाह स्थापित करने और सागरमाला परियोजना के तहत बंदरगाहों के बीच संपर्क बेहतर करने की जो परिकल्पना की गई है, वो मूलभूत ढांचे के विस्तार के बेहद महत्वपूर्ण क़दम हैं, जो अर्थव्यवस्था की बढ़ती हुई मांग को पूरा करेंगे. बंदरगाह आधारित औद्योगिक विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 14 ग्रीनफील्ड औद्योगिक क्षेत्र और विशेष आर्थिक क्षेत्रों को अनुमति दी गई है. ये पूरे देश में बराबर से फैले हुए हैं. और ये अपने नज़दीकी बंदरगाहों से जुड़े हुए भी हैं. इसके अतिरिक्त पुराने बंदरगाहों की क्षमता का विकास भी किया जा रहा है. क़रीब दो लाख करोड़ रुपए के निवेश से 30 औद्योगिक और समुद्री क्षेत्रों के विकास को भी सागरमाला परियोजना के तहत अनुमति दी गई है.

अंतर्देशीय जलमार्गों के नेटवर्क का प्रयोग करने से सामान की ढुलाई का ख़र्च परिवहन के मौजूदा माध्यमों के मुक़ाबले काफ़ी कम होने की संभावना है. इससे अर्थव्यवस्था में और प्रतिद्वंदिता आएगी

भारत के अंदर्देशीय जलमार्गों के बीच सीधी कनेक्टिविटी का अभाव है. इसके लिए परिवहन के विभिन्न साधनों के बीच संपर्क के नेटवर्क की आवश्यकता होती है. जिसमें जल परिवहन के साथ-साथ सड़कों, पुलों और अंडरग्राउंड सड़कों का विकास करना होता है. इसका अर्थ ये है कि मूलभूत ढांचे के विकास के कई संबंधित क्षेत्रों में निवेश की आवश्यकता होती है. जिसके अंतर्गत बंदरगाहों, टर्मिनल, नदी किनारे की जेटी, गोदाम, नौका निर्माण की कार्यशालाएं, मरम्मत के यार्ड और इनसे जुड़े हुए उद्योगों की स्थापना करनी होती. इनमें से कई बंदरगाहों को ऐसी जगहों पर बनाने की योजना है, जहां पर परिवहन के अन्य माध्यम भी उपलब्ध हैं. जिनसे रेल, सड़क और जल मार्गों को आपस में जोड़ा जा सकेगा. उदाहरण के तौर पर वाराणसी का मल्टीमोड हब को ही लें. अगर पूरी तरह विकसित किए जा सके, तो अंतर्देशीय जलमार्ग एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जो बुनियादी ढांचे के विकास के कई प्रोजेक्ट को आपस में जोड़ेगी. इस कार्यक्रम को लागू करने से पूरे देश में बराबरी से निवेश के अवसर भी खुलेंगे. अंतर्देशीय जलमार्गों के नेटवर्क का प्रयोग करने से सामान की ढुलाई का ख़र्च परिवहन के मौजूदा माध्यमों के मुक़ाबले काफ़ी कम होने की संभावना है. इससे अर्थव्यवस्था में और प्रतिद्वंदिता आएगी. इससे घरेलू बाज़ार का और विस्तार भी होगा. दूर-दराज के क्षेत्रों का विकास होगा. उत्तर-पूर्व के राज्यों में सामान की ढुलाई इसी अंदरूनी नेटवर्क के ज़रिए की जा सकेगी. इस अंतर्देशीय जल परिवहन की योजना को लागू करने और संचालन से अर्थव्यवस्था में और गहराई से आपसी संपर्क स्थापित किया जा सकेगा. निवेश और जुड़ाव के इस बहुआयामी विकास से चौतरफ़ा विकास के द्वार खुलेंगे.

निष्कर्ष

भारत का सामुद्रिक क्षेत्र, अपनी संभावनाओं के अनुरूप भारत के विकास में योगदान देने में सक्षम नहीं हो सका है. ये सेक्टर छोटा और अर्थव्यवस्था में मामूली उपलब्धि वाला बना हुआ है. इसकी गतिविधियां महज़ कुछ जहाजरानी कंपनियों, बड़े बंदरगाहों और सरकार के स्वामित्व वाले शिपयार्ड तक सीमित हैं. जिनके माध्यम से सीमित और तय आवश्यकताएं ही पूर्ण की जाती हैं. ऐसे में अंतर्देशीय जल परिवहन, जो कभी एक महत्वपूर्ण गतिविधि हुआ करती थी, ख़ासतौर से नदी क्षेत्रों में, वो अब केवल माल ढुलाई तक सीमित रह गई है.

पिछले पांच वर्षों में जलीय सेक्टर पर फिर से फ़ोकस किया जा रहा है. इसमें सरकार के साथ-साथ कारोबारी परिचर्चाएं भी शामिल हो रही हैं. नीतियों के माध्यम से धीरे-धीरे जल परिवहन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसे लोग पसंद भी कर रहे हैं और इस दिशा में निवेश हो भी रहा है. साथ ही निवेश की नई योजनाएं भी बन रही हैं. इनमें से अधिकतर निवेश मूलभूत ढांचे के विकास में ख़र्च किया जा रहा है. इससे विकेंद्रीकृत विकास को बढ़ावा मिल सकेगा. इनमें से किसी भी योजना का केंद्रीय बजट में ज़िक्र नहीं किया गया. चूंकि हम जल परिवहन के क्षेत्र में काफ़ी लाभ की संभावनाएं देखते हैं, ऐसे में अच्छा होता कि जलीय परिवहन की योजनाओं को प्राथमिकता दी जाती. ताकि अधिकतम संपर्क वाले प्रोजेक्ट को इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के साथ जोड़ा जा सकता.

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