क्वांटम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में पिछले दिनों एक बड़ी तरक्की के तहत अमेरिका की नेशनल एनर्जी टेक्नोलॉजी लेबोरेटरी (NETL) और यूनिवर्सिटी ऑफ केंटकी ने एक एल्गोरिदम की कल्पना की जो उम्मीद जगाता है कि कार्बन कैप्चर की तकनीक को काफी आगे ले जाएगा. ऐसा होने पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी. ये एल्गोरिदम मौजूदा क्वांटम कंप्यूटर पर चल सकता है और इसलिए दूसरे रिसर्च करने वाले इसे व्यापक तौर पर अपना सकेंगे. वैसे तो क्वांटम कंप्यूटिंग की तकनीक के लिए अभी भी शुरुआती दिन हैं लेकिन इस तरह के व्यावहारिक प्रयोग निश्चित रूप से इस क्षेत्र में और ज्यादा रिसर्च एवं निवेश के लिए लगातार जरूरत को प्रोत्साहित करेंगे.
ग्लोबल वार्मिंग और कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी
ग्लोबल वार्मिंग लंबे समय से मानवता के लिए एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल की वजह से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का ज्यादा स्तर है जो कम होने का नाम नहीं ले रहा है. औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर के मुकाबले वातावरण में CO2 में लगभग 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन) के मुताबिक CO2 का सतह पर औसत 2021 में 415.7 पार्ट्स पर मिलियन (ppm) से 2.13 ppm बढ़कर 2022 में 417.06 ppm हो गया जो पिछले दशक के रुझान के अनुसार है. उत्सर्जन का ये अभूतपूर्व स्तर धरती पर जीवन के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है.
क्वांटम कंप्यूटिंग की तकनीक के लिए अभी भी शुरुआती दिन हैं लेकिन इस तरह के व्यावहारिक प्रयोग निश्चित रूप से इस क्षेत्र में और ज्यादा रिसर्च एवं निवेश के लिए लगातार जरूरत को प्रोत्साहित करेंगे.
ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों में से एक है वायुमंडलीय कार्बन कैप्चर का उपयोग. इसमें विशेष मिश्रण (कंपाउंड), आम तौर पर अमोनिया (NH3) से हासिल ऑर्गेनिक कंपाउंड, का इस्तेमाल CO2 से रासायनिक तौर पर जोड़ने के लिए किया जाता है, इस तरह इसे वायुमंडल से हटा दिया जाता है. लेकिन मौजूदा तरीके के साथ दिक्कत है कि ये खर्चीला होने के साथ-साथ असरदार भी नहीं है. इसलिए इस तरीके का इस्तेमाल फिलहाल आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं लगता है. यही कारण है कि वैज्ञानिक अभी भी ज्यादा प्रभावशाली कार्बन कैप्चर रिएक्शन की तलाश में लगे हुए हैं.
इसका एक प्रमुख पहलू है इन रासायनिक प्रतिक्रियाओं को कंप्यूटर से सिमुलेट करना, जिसके लिए क्वांटम स्केल पर उनके मॉलिक्यूलर इंटरेक्शन के विश्लेषण की जरूरत होती है. हालांकि ये करना मुश्किल काम है क्योंकि इस तरह का कैलकुलेशन करना पारंपरिक (क्लासिकल) कंप्यूटर की क्षमता से आगे की बात है, यहां तक कि आसान कंपाउंड के मामले में भी. यहीं पर क्वांटम कंप्यूटिंग की जरूरत होती है.
कार्बन कैप्चर के लिए क्वांटम कंप्यूटिंग का महत्व
क्वांटम कंप्यूटर हाल के समय में एक रोमांचक तकनीकी विकास है. ये परंपरागत कंप्यूटर के मुकाबले कई गुना ज्यादा तेज है जिसकी वजह से ये अलग-अलग तरह के क्षेत्रों में कई तरह के प्रयोग के लिए सही है. लेकिन क्वांटम कंप्यूटर अभी भी विकास के शुरुआती चरण में है और यहां तक कि सबसे आधुनिक मशीनें भी कुछ सौ क्यूबिट्स (क्वांटम बिट) तक सीमित हैं. साथ ही रैंडम फ्लकचुएशन या नॉइज- क्यूबिट्स में पड़ी जानकारी का नुकसान- की समस्या भी है. क्वांटम कंप्यूटर को व्यावहारिक तौर पर लागू करने में ये प्रमुख रुकावटों में से एक है. इसका नतीजा ये होता है कि इन नॉइजी इंटरमीडिएट-स्केल क्वांटम कंप्यूटर (NISQ) के द्वारा जटिल कैलकुलेशन करने में ज्यादा समय लगता है. यहां तक कि सबसे सरल ऑर्गेनिक कंपाउंड अमोनिया के साथ CO2 का सबसे बुनियादी रिएक्शन भी इन NISQ के लिए बहुत मुश्किल बन जाता है.
इस समस्या का एक संभावित निदान है क्वांटम और क्लासिकल (परंपरागत) कंप्यूटर को मिला देना ताकि क्वांटम एल्गोरिदम में नॉइज की समस्या से छुटकारा पाया जा सके. इस दृष्टिकोण की वजह से वेरिएशनल क्वांटम आइजनसोल्वर (VQE) पद्धति का निर्माण हुआ है जिसका इस्तेमाल NETL और यूनिवर्सिटी ऑफ केंटकी में किया जाता है. VQE किसी क्वांटम सिस्टम में ऊर्जा के अनुमान के लिए क्वांटम कंप्यूटर का इस्तेमाल करता है, वहीं कैलकुलेशन में सुधार लाने के लिए क्लासिकल कंप्यूटर का इस्तेमाल करता है. मुश्किल समस्याओं जैसे कि हाइड्रोजन एटम चेन की बाइंडिंग एनर्जी और वॉटर मॉलिक्यूल की एनर्जी को तलाशने के लिए इसका इस्तेमाल सफलतापूर्वक किया जा चुका है.
क्वांटम कंप्यूटर अभी भी विकास के शुरुआती चरण में है और यहां तक कि सबसे आधुनिक मशीनें भी कुछ सौ क्यूबिट्स (क्वांटम बिट) तक सीमित हैं. साथ ही रैंडम फ्लकचुएशन या नॉइज- क्यूबिट्स में पड़ी जानकारी का नुकसान- की समस्या भी है.
लेकिन क्वांटम कंप्यूटिंग की तकनीक में तेजी से आगे बढ़ने के साथ इन दोनों समस्याओं का समाधान इस दशक के दूसरे हिस्से तक होने की उम्मीद की जाती है. क्वांटम कंप्यूटिंग के प्रयोग के लिए CO2 कैप्चर रिसर्च को सबसे आसानी से किया जाने वाला उपाय माना जाता है और एल्गोरिदम को लागू करने की ऐसी तकनीक महज कुछ साल बाद इस्तेमाल में आने वाली है. इसका संभवत: बड़ा असर हो सकता है क्योंकि ये अनुमान लगाया जाता है कि इससे जलवायु परिवर्तन की तकनीकों को विकसित करने में मदद मिल सकती है जो 2035 तक हर साल करीब 7 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सक्षम होगी. NETL-केंटकी की टीम अब अपने एल्गोरिदम को लागू करने के लिए IBM क्वांटम के साथ सहयोग कर रही है.
भारत, ग्लोबल वॉर्मिंग और क्वांटम कंप्यूटिंग
भारत ने सौर और पवन ऊर्जा जैसे रिन्यूएबल एनर्जी के स्रोतों में निवेश करके हाल के वर्षों में अपना कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कोशिश की हैं. लेकिन इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन के मामले में भारत तीसरे पायदान पर है और 2022 में 2.3 अरब टन CO2 के उत्सर्जन का अनुमान है. ये अनुमान भी है कि लगभग 6 प्रतिशत के साथ भारत के द्वारा उत्सर्जन में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी होगी.
भारत ने हाल के समय में क्वांटम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बहुत बड़ा निवेश किया है. केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के लिए 8,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है ताकि वैज्ञानिक और औद्योगिक रिसर्च का काम हो सके. राष्ट्रीय क्वांटम मिशन का लक्ष्य अगले आठ वर्षों के भीतर 50-100 फिजिकल क्यूबिट्स के साथ इंटरमीडिएट-स्केल का क्वांटम कंप्यूटर विकसित करना है. लेकिन अगर भारत अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK) और चीन जैसे देशों की बराबरी करना चाहता है तो उसे काफी लंबा रास्ता तय करना होगा क्योंकि इन देशों ने क्वांटम टेक्नोलॉजी के मामले में पहले ही काफी काम कर लिया है.
ये साफ है कि क्वांटम कंप्यूटिंग टेक्नोलॉजी में निवेश करने से भारत को बेशुमार फायदे मिलेंगे. इस बात से क्वांटम कंप्यूटिंग टेक्नोलॉजी के लिए और अधिक प्रेरणा मिलती है कि इससे कार्बन उत्सर्जन जबरदस्त ढंग से कम करने में मदद मिल सकती है. वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले देशों में से एक भारत के लिए इस पर ध्यान देना अच्छा होगा. इसके अलावा अगर बात क्वांटम केमिस्ट्री में दूसरे कैलकुलेशन की आती है तो इस तकनीक के संभावित तौर पर दूरगामी परिणाम होंगे. NETL/केंटकी टीम के द्वारा विकसित किए जा रहे एल्गोरिदम का इस्तेमाल रसायन, जीव विज्ञान और मेडिसिन में दूसरी रासायनिक प्रतिक्रियाओं में भी किया जा सकता है.
भारत ने हाल के समय में क्वांटम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बहुत बड़ा निवेश किया है. केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के लिए 8,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है ताकि वैज्ञानिक और औद्योगिक रिसर्च का काम हो सके.
अमेरिका में IBM ने क्वांटम कंप्यूटिंग में रिसर्च करने के मामले में अगुवाई की है और ये दुनिया भर की यूनिवर्सिटी के साथ सहयोग कर रही है. उदाहरण के लिए, IBM ने हाल ही में जापान में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन के दौरान 1,00,000 क्यूबिट क्वांटम-सेंट्रिक सुपर कंप्यूटर विकसित करने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के साथ 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर की पहल का ऐलान किया है. इसने नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के साथ तीन साल के सहयोग का ऐलान भी किया है जो रिसर्च करने वालों को क्लाउड पर IBM के क्वांटम कम्प्यूटर तक पहुंच मुहैया कराएगा. UK में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रेस्पॉन्सिबल टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (RTI) ने पिछले दिनों क्वांटम कंप्यूटिंग एंड सिमुलेशन हब (QCS) और अर्न्स्ट एंड यंग के साथ रिसर्च को लेकर सहयोग का एलान किया है. QCS 17 यूनिवर्सिटी का एक समूह है जिसको व्यापक स्तर पर व्यावसायिक और सरकारी संगठनों का समर्थन हासिल है. भारत सरकार को देश के प्रमुख संस्थानों जैसे कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISC) के साथ मिलकर इनमें से कुछ संगठनों और यूनिवर्सिटी के साथ इस तरह का सहयोग शुरू करना चाहिए.
प्राइवेट सेक्टर के लिए भी इस तकनीक में निवेश करना फायदेमंद होगा. क्वांटम कंप्यूटर, जो परंपरागत कंप्यूटर की तुलना में बहुत ज्यादा फास्ट होते हैं, ज्यादा जटिल और मुश्किल व्यावसायिक समस्याओं का निपटारा कर सकते हैं. “कॉन्सटेंट डेप्थ” क्वांटम सर्किट परंपरागत कंप्यूटर के मुकाबले ज्यादा शक्तिशाली साबित हुए हैं. जटिल लॉजिस्टिक समस्याओं को हल करने की उनकी क्षमता कई तरह के उद्योगों को अपनी लागत कम करने के उपायों में काफी मदद करेगी. यही वजह है कि वोडाफोन और एग्जॉन मोबिल जैसी कंपनियों ने क्वांटम कंप्यूटिंग टेक्नोलॉजी से जुड़ी रिसर्च में निवेश के लिए हाल के दिनों में IBM के साथ साझेदारी का ऐलान किया है. भारत के प्राइवेट सेक्टर को भी तुरंत इस दिशा में चलने की जरूरत है क्योंकि इस क्षेत्र में उसकी मौजूदगी काफी कम है और सरकार को इसके लिए प्राइवेट सेक्टर को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है.
प्रतीक त्रिपाठी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में प्रोबेशनरी रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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