Author : Sushant Sareen

Published on Feb 29, 2024 Updated 0 Hours ago

वे दिन लद गए हैं जब पाकिस्तान अमेरिका का मित्र राष्‍ट्र हुआ करता था. अब तो पाकिस्तान के सामने यही विकल्प बाकी है कि वह या तो बेहद कष्‍टदायक सुधारों को लागू करना शुरू कर दे या फि‍र तबाही का मंज़र देखने को तैयार हो जाए

आईएमएफ़ अगर पाकिस्तान को आर्थिक पैकेज देता है तो उसके सात मतलब निकलेंगे!

जब से पाकिस्तान अस्तित्व में आया है, तभी से यह मुल्‍क दूसरे लोगों के टुकड़ों पर ही पलता रहा है. पिछले सात दशकों में पाकिस्तान के अभिजात वर्ग को अपने बिलों का भुगतान दूसरे लोगों के ज़रिए कराने की इतनी बुरी आदत हो गई है कि अब वे इसे कमोबेश अपना हक़ मानने लगे हैं कि- हर बार जब भी वे कर्ज अदायगी में डिफॉल्ट करने एवं दिवालिया होने के कगार पर होंगे, तो दुनिया उन्‍हें बचाने आ जाएगी और उन्हें संकट से उबार देगी. आख़िरकार, पाकिस्तान की ख़ासियत (यूएसपी या अनोखी बिक्री पेशकश) यही है कि वह एक ऐसा परमाणु हथियार संपन्‍न मुल्‍क है जहां इस्लामवाद एवं जिहादवाद न सिर्फ़ आस्था का विषय है, बल्कि यह विदेश नीति का एक साधन भी है और इसी के मद्देनज़र यह माना जाता है कि ‘इस मुल्‍क का पतन बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है’. पाकिस्तान के पतन की आशंका से भयभीत होकर ही पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका ने हर बार उस समय पाकिस्तान में नई जान फूंकी है, जब वह बिल्‍कुल डूबने के कगार पर पहुंच जाता था. हालांकि, संकट गहराने पर पाकिस्‍तान इससे उबरने के लिए मिले पैकेज से अपने यहां सुधारों को लागू करने और अपने यहां रहने वाले 21 करोड़ लोगों के जीवन स्तर में बेहतरी सुनिश्चित करने के बजाय बड़े ही उत्‍साह के साथ उस कर्ज़ की राशि को अपनी ‘खर्च योग्‍य आमदनी’ समझता आया है और जब भी इसे लौटाने का वक्‍त आता है तो वह और ज्‍यादा कर्ज़ पाने के लिए फि‍र से अपना हाथ फैला देता है.

हालांकि, मौज़-मस्‍ती का यह दौर संभवत: जल्‍दी ही समाप्‍त होने वाला है. यदि पाकिस्तान और आईएमएफ़ के बीच प्रस्‍तावित आर्थिक नीतियों पर स्टाफ-स्तरीय समझौते की प्रेस विज्ञप्ति पर नजरें दौड़ाई जाएं तो यह पता चलता है कि ‘मुफ्त में भोजन करने’ का दौर अब समाप्‍त हो गया है और पाकिस्तानियों को अपना बिल स्‍वयं ही भरने का सिलसिला शुरू करना होगा. पाकिस्तान को जिन-जिन प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है, उनका उल्‍लेख करने वाले विस्तृत कार्यक्रम को तभी सार्वजनिक किया जाएगा जब आईएमएफ़ का बोर्ड इसे अनुमोदित कर देगा. दरअसल, आईएमएफ़ कार्यक्रम या पैकेज पाकिस्तान को संकट से उबारने के बजाय उस पर अत्यंत कठिन और अप्रिय सुधारों को थोपने के साथ-साथ उसके सामने यह विकल्‍प रखने जा रहा है कि ‘या तो सुधर जाओ अथवा तबाह हो जाओ (करो या मरो).’ इस लेख में आईएमएफ़ के संकट से उबारने वाले (बेलआउट) पैकेज के सात प्रमुख पहलुओं का पड़ताल किया गया है.

मंसूबे पूरे नहीं हुए

ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान को यह कतई नहीं पता था कि जब वह आईएमएफ़ का दरवाज़ा खटखटाएगा तो उस पर किन-किन मुश्किलों का पहाड़ टूटने वाला है. दरअसल, इमरान खान सरकार ने आईएमएफ़ का दरवाज़ा न खटखटाने की भरसक कोशिश की थी. वैसे तो जब इमरान खान ने पदभार संभाला था तभी यह स्पष्ट हो गया था कि पाकिस्तान को भुगतान संतुलन (बीओपी) के मोर्चे पर भारी घाटे को पूरा करना पड़ेगा और अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) से कर्ज़ के लिए गुज़ारिश करनी होगी, लेकिन इसके बावजूद अनुभवहीनता के साथ-साथ पूरी तरह से नाकारा एवं अनभिज्ञ ‘खानिस्ता’ (भक्तों और दरबारियों के पाकिस्तानी समकक्ष) बेवजह इतराते रहे. उनका इरादा ‘मित्र’ देशों से सहायता प्राप्त करके बीओपी घाटे को पूरा करना था. यह माना जाता था कि यदि पाकिस्तान अपने दोस्तों से पर्याप्त धनराशि प्राप्त करने में कामयाब रहा, तो वह आईएमएफ़ के साथ अपने मनमाफि‍क सौदेबाजी कर सकेगा और वैसी स्थिति में उस पर बेहद कड़ी शर्तें थोपना संभव नहीं हो पाएगा.

यदि पाकिस्तान अपने दोस्तों से पर्याप्त धनराशि प्राप्त करने में कामयाब रहा, तो वह आईएमएफ़ के साथ अपने मनमाफि‍क सौदेबाजी कर सकेगा और वैसी स्थिति में उस पर बेहद कड़ी शर्तें थोपना संभव नहीं हो पाएगा.

ज़ाहिर है, एक ऐसा देश जहां चार्टर्ड अकाउंटेंट और एमबीए भी अर्थशास्त्री होने का दावा करते हों और यहां तक कि वकील भी बड़े आत्मविश्वास के साथ आईएमएफ़ के बारे में इस तरह से बातें करते हों मानो कि यह कोई वाणिज्यिक बैंक है, वहां इस तरह के ग़लत अनुमान लगाया जाना एकदम लाज़िमी है. इसका नतीजा यह हुआ कि वैसे तो पाकिस्तान को अपने ‘मित्रों’ से ऋण के रूप में लगभग 9 अरब डॉलर मिल गए (चीन ने लगभग 4 अरब डॉलर, सऊदी अरब ने 3 अरब डॉलर और यूएई ने 2 अरब डॉलर दिए), लेकिन इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मामूली राहत ही मिल पाई. इससे ऐसी कोई भी गंभीर ढाँचागत समस्या दूर नहीं हो पाई जिनके चलते पाकिस्तान को अस्‍सी के दशक के बाद से लेकर अब तक एक दर्जन से भी अधिक बार आईएमएफ़ का दरवाजा खटखटाने के लिए विवश होना पड़ा है.

देरी की कीमत चुकानी पड़ी

अन्य सभी विकल्पों के व्‍यर्थ साबित होने के बाद पाकिस्तान को अंततः आईएमएफ़ ही वापस जाने के लिए विवश होना पड़ा. लेकिन नौ माह की देरी के बावजूद न तो पाकिस्तान बेहतर ढ़ंग से सौदेबाज़ी करने में सक्षम हो पाया और न ही वे कड़ी शर्तें बदल पाईं जिन पर आईएमएफ़ विशेष जोर देता रहा था. अंतत: यही हुआ कि अर्थव्यवस्था के निरंतर कमजोर पड़ने (आंशिक तौर पर सरकार के अनिर्णय की वजह से अनिश्चितता के कारण) के मद्देनज़र पाकिस्तान आईएमएफ़ के पैकेज को स्‍वीकार करने के लिए इतना बेताब हो गया कि उसने न केवल वित्तीय सेक्‍टर की समस्‍त शीर्ष पदस्‍थ हस्तियों जैसे कि वित्त मंत्री, केंद्रीय बैंक के गवर्नर और राजस्व प्रमुख को बदल दिया, बल्कि उसने वित्त सचिव (एक ऐसे व्यक्ति जिन्‍होंने कुछ सख्‍त रुख दिखाया था और उन कड़ी शर्तों पर विरोध जताया था जिन्‍हें आईएमएफ़ थोपना चाहता था) को भी वार्ताओं से दूर रहने के लिए कह दिया. अत: पाकिस्तान को एक तरह से आईएमएफ़ समझौते पर दस्‍तखत करने के लिए विवश होना पड़ रहा है.

आईएमएफ़ पैकेज के लिए पाकिस्तान की बेताबी इस तथ्य से भी स्पष्ट होती है कि विस्तारित निधि सुविधा (ईएफएफ) कार्यक्रम केवल 6 अरब डॉलर का ही है जो 39 महीनों में मिलेगा. पाकिस्तान एक समय इससे लगभग दोगुनी राशि के बारे में बात कर रहा था.

आईएमएफ़ पैकेज के लिए पाकिस्तान की बेताबी इस तथ्य से भी स्पष्ट होती है कि राष्ट्रीय निधि सुविधा (ईएफएफ) कार्यक्रम केवल 6 अरब डॉलर का ही है जो 39 महीनों में मिलेगा. पाकिस्तान एक समय इससे लगभग दोगुनी राशि के बारे में बात कर रहा था. हालांकि, पाकिस्तान के आईएमएफ़ कोटा और पहले से अनुबंधित ऋणों को देखते हुए वर्तमान पैकेज का लगभग आधा हिस्‍सा पिछले आईएमएफ़ ऋणों के पुनर्भुगतान में ही चला जाएगा. इससे अधिक हासिल करना हमेशा से ही कठिन प्रतीत हो रहा था क्‍योंकि अमेरिका से पाकिस्तान को अब उतना व्‍यापक समर्थन नहीं मिल रहा है, जैसा कि अतीत में मिला करता था . यह भी स्‍पष्‍ट है कि 6 अरब डॉलर की पूरी राशि तुरंत नहीं दी जाएगी, बल्कि इसे किस्‍तों में दिया जाएगा. यह देखते हुए कि अगले वित्त वर्ष में पाकिस्तान को ऋण अदायगी में सालाना तकरीबन 10-11 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की कमी का सामना करना पड़ सकता है और उसे अगले 7 वर्षों में 30 अरब डॉलर से भी अधिक राशि का पुनर्भुगतान करना होगा, आईएमएफ़ की किस्‍तें निश्चित रूप से पर्याप्त नहीं हैं. बेशक पाकिस्तान को यह उम्मीद है कि आईएमएफ़ पैकेज से विश्व बैंक और एडीबी जैसे अन्य बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों से भी सहायता के लिए दरवाजे खुल जाएंगे, और इसके साथ ही उसके लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों से भी पैसा उधार लेना संभव हो जाएगा. इसे संभवत: आशा की किरण के रूप में देखा जा रहा है, अन्यथा तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर काले बादल मंडरा ही रहे हैं.

हालांकि, इसके बदले में पाकिस्तान को बेहद कड़ी शर्तें माननी होंगी जिनमें से ज्‍यादातर शर्तें शुरुआत में ही भारी-भरकम बोझ डालने से जुड़ी हुई हैं. वैसे तो पाकिस्तान ने चरणबद्ध तरीके से शर्तों पर अमल के लिए बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन आईएमएफ़ ने किसी भी प्रकार की ढिलाई देने से साफ इनकार कर दिया और पूर्व प्रतिबद्धता पूरी करने पर विशेष जोर दिया है.

वैसे तो पाकिस्तान ने चरणबद्ध तरीके से शर्तों पर अमल के लिए बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन आईएमएफ़ ने किसी भी प्रकार की ढिलाई देने से साफ इनकार कर दिया और पूर्व प्रतिबद्धता पूरी करने पर विशेष जोर दिया है.

हर डॉलर से पहले पूर्व प्रतिबद्धता’ पूरी करो

आईएमएफ़ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस समझौते के लिए आईएमएफ़ बोर्ड की मंजूरी आवश्‍यक है जो ‘पूर्व प्रतिबद्धताओं पर समय पर अमल और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों की वित्तीय प्रतिबद्धताओं की पुष्टि’ पर आमादा है. ‘अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों की वित्तीय प्रतिबद्धताओं की पुष्टि’ का मतलब यही है कि पाकिस्तान को न केवल अवधि आगे बढ़ाने (रोलओवर) एवं पुनर्निर्धारण, बल्कि संभवत: यहां तक कि ऋण अदायगी के स्‍थगन के लिए भी अपने ‘दोस्तों’ के पास वापस जाना होगा. यह शर्त संभवतः इस अमेरिकी जिद से जुड़ी हुई है कि आईएमएफ़ फंड का उपयोग चीन से मिले ऋणों का पुनर्भुगतान करने में कतई नहीं किया जाए. नई प्रतिबद्धताओं से भी यह जुड़ी हुई है क्योंकि ऋण अदायगी में विदेशी मुद्रा की कमी की पूर्ति‍ केवल आईएमएफ़ और विश्‍व बैंक से मिले ऋणों से ही नहीं की जाएगी. ‘पूर्व प्रतिबद्धताओं पर समय पर अमल’ और भी अधिक दुष्‍कर होने जा रहा है क्योंकि इसमें न केवल अत्‍यंत कष्‍टदायक आर्थिक समायोजन शामिल हैं, बल्कि इसका एक राजनीतिक आयाम भी है जो पाकिस्तान में भारी उथल-पुथल ला सकता है.

पूर्व प्रतिबद्धताओं, जिनमें से ज्‍यादातर को अगले वित्त वर्ष के बजट में शामिल करना होगा, में सब्सिडी एवं छूटों में कमी करना, राजस्व बढ़ाना और ख़र्चों में कटौती करना शामिल होंगे. बड़े पैमाने पर राजकोषीय समायोजन अत्‍यंत चुनौतीपूर्ण है. पाकिस्तानी प्रेस की रिपोर्टों के अनुसार, सरकार को तकरीबन 30-35 प्रतिशत अधिक राजस्व का संग्रह करना होगा. इसका मतलब लगभग 1.5 ट्रिलियन (लाख करोड़) रुपये है यानी वर्ष 2018-19 में 3.95 ट्रिलियन रुपये का राजस्व संग्रह है. ऐसे समय में जब विकास दर के घटकर 3 प्रतिशत से भी कम हो जाने की आशंका है और मुद्रास्फ़ीति के बढ़कर दहाई अंकों में प‍हुंच जाने की संभावना है, कर दरों में वृद्धि के जरिए राजस्व को एक तिहाई बढ़ाना, कर छूटों एवं रियायतों (निर्यातकों को मिलने वाली रियायतों सहित) तथा सब्सिडी को हटाना और सरकारी व्यय में कटौती करना एक ‘असंभव मिशन’ साबित होने जा रहा है.

लोग बेहद महंगे कर्ज के लिए तैयार रहें

इतना ही नहीं, आईएमएफ़ ‘बाजार निर्धारित विनिमय दर’ पर विशेष जोर दे रहा है. यह बहुत स्पष्ट नहीं है कि इसका मतलब मुद्रा को पूरी तरह बाजार के भरोसे छोड़ देना है या स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्‍तान (एसबीपी) द्वारा मुद्रा बाजार में कम से कम हस्तक्षेप करना है. इन दोनों में चाहे जो भी स्थिति हो, बाजार यही संभावना व्‍यक्‍त कर रहा है कि अगले कुछ महीनों में रुपये का लगभग 15-20 प्रतिशत अवमूल्‍यन होगा. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आईएमएफ़ संभवत: एसबीपी द्वारा ‘धनात्मक शुद्ध विदेशी मुद्रा भंडार’ को बनाए रखने पर विशेष जोर जा रहा है. इसका अर्थ यही है कि एसबीपी को डॉलर खरीद कर विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाना होगा, जिससे डॉलर महंगा हो जाएगा. इसके अलावा, एसबीपी द्वारा घोषित नीतिगत दर (पॉलिसी रेट) के 1.50-2.00 प्रतिशत और बढ़ जाने की संभावना है. यह देखते हुए कि पिछले कुछ महीनों में ब्याज दर लगभग 6 प्रतिशत से बढ़कर 11 प्रतिशत से अधिक हो गई है, ऐसे में 2 प्रतिशत की और वृद्धि होने से ब्‍याज दर बढ़कर 13 प्रतिशत से भी अधिक हो जाएगी. वैसी स्थिति में ऋण ब्‍याज दर या उधारी दर बढ़कर लगभग 15-16 प्रतिशत हो जाएगी, जिससे कारोबार करने की लागत बहुत अधिक हो जाएगी, निकट भविष्‍य में निवेश का प्रवाह अटक जाएगा और अर्थव्यवस्था सिकुड़ जाएगी जिससे बेरोज़गारी एवं गरीबी भी काफी बढ़ जाएगी.

शुल्‍क दरें बढ़ जाएंगी

बात यहीं तक सीमित नहीं है. ऊर्जा क्षेत्र को बुरी तरह त्रस्‍त कर देने के साथ-साथ सरकारी खज़ाने की हालत खस्‍ता कर देने वाले ‘सर्कुलर ऋण’ की समस्या से निजात पाने के लिए ऊर्जा और गैस की दरों में काफी वृद्धि (20-25 प्रतिशत) करनी होगी. आईएमएफ़ के अनुसार, ‘ऊर्जा क्षेत्रों और सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों में लागत-वसूली के लिए एक व्यापक योजना बनाने से अर्ध-राजकोषीय घाटे को खत्म करने या कम करने में मदद करेगी जो पहले से ही कम सरकारी संसाधनों को और घटा देता है.’ जैसा कि देखा जा रहा है, बिजली एवं गैस दरें बढ़ जाने से मध्यम वर्ग के लोगों के बजट को तगड़ा झटका लगा है, ऐसे में इन दरों में और वृद्धि हो जाने पर उनकी माली हालत और खराब हो जाएगी. आईएमएफ़ सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (यूनिट) में सुधार करने पर भी अड़ा हुआ है. लंबे समय से पाकिस्तान में एक के बाद एक सभी सरकारें या तो इन इकाइयों का पुनरुत्‍थान करने या उन्हें बेचने का वादा करती रही हैं, लेकिन इन दोनों में से कुछ भी नहीं हुआ है. एक बार फिर सार्वजनिक क्षेत्र की विशालकाय कंपनियों जैसे कि पाकिस्तान स्टील मिल्स, पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस और पाकिस्तान रेलवे को आत्मनिर्भर बनाने या उन्हें बेचने का दबाव बनाया गया है. पाकिस्तान सरकार ऐसे लगभग तीन दर्जन सरकारी उद्यमों की एक सूची जारी करती रही है जिनका निजीकरण किया जाएगा. हालांकि, यह काफी कठिन कार्य प्रतीत हो रहा है.

लंबे समय से पाकिस्तान में एक के बाद एक सभी सरकारें या तो इन इकाइयों का पुनरुत्‍थान करने या उन्हें बेचने का वादा करती रही हैं, लेकिन इन दोनों में से कुछ भी नहीं हुआ है.

संवैधानिक स्वतंत्रता खतरे में

राजनीतिक स्तर पर आईएमएफ़ ने ऐसे राजकोषीय समायोजन करने को कहा है जो न केवल केंद्र-प्रांत संबंधों पर, बल्कि नागरिक-सैन्य संबंधों पर भी व्‍यापक असर डाल सकते हैं. बजट में सुनिश्चित की जाने वाली पूर्व कार्रवाइयों या कार्यों में से एक यह है कि प्राथमिक घाटा वास्‍तव में जीडीपी का 0.6 प्रतिशत ही होना चाहि‍ए. वर्तमान में प्राथमिक घाटा 2 प्रतिशत से भी अधिक है. यह देखते हुए कि ऋण अदायगी बोझ को अलग कर देने के बाद ही प्राथमिक घाटे की गणना की जाती है, इसका मतलब यही है कि राजकोषीय समायोजन या तो रक्षा बजट या विकास व्यय से, अथवा सरकार चलाने में होने वाले खर्च से या अंतत: वित्त आयोग के पंचाट के तहत प्रांतों को किए जाने वाले हस्तांतरण से करना होगा. आईएमएफ़ ने संकेत दिया है कि ‘आवश्यक विकास खर्च’ को संरक्षित करना है, समाज कल्याण एवं प्रत्यक्ष आय सब्सिडी योजनाओं जैसे कि बेनजीर आय सहायता कार्यक्रम का स्‍तर या दायरा बढ़ाया जाना है और इसके साथ ही लक्षित सब्सिडी में बेहतरी सुनिश्चित करना है. इसका अर्थ यही है कि कटौती सामान्य सरकारी खर्च या रक्षा अथवा प्रांतों से जुड़े ख़र्चों में करनी होगी.

सरकारी खर्च में कम से कम तब तक कोई भी बड़ी कटौती संभव नहीं है जब तक कि पाकिस्‍तान में संघीय सरकार उन मंत्रालयों और विभागों को समाप्त नहीं कर देती है जिन्‍हें पहले ही प्रांतों को सौंपा जा चुका है. इसके बिना लागत या खर्च में केवल मामूली कटौती ही संभव है. रक्षा खर्च ही दरअसल बजट का एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन पाकिस्तान की राजनीति में सेना के बोलबाला को देखते हुए सैन्‍य बजट में कटौती करना एक दुष्‍कर कार्य होगा. यही नहीं, इस तरह की दलीलें भी दी जाएंगी कि सेना भी देश के बाकी हिस्सों की तरह बलिदान करती है. ऐसे में प्रांतों को दिए जाने वाले धन में व्‍यापक कटौती करने की मांग की जाएगी. यह संवैधानिक रूप से संभव नहीं है. हालांकि, एक खास बात यह भी है कि पाकिस्तान में संविधान को शायद ही कोई पावन एवं अटल दस्तावेज माना जाता है जो इसकी बार-बार अनदेखी किए जाने से स्‍पष्‍ट हो जाता है. उधर, प्रांतों को मिलने वाले संसाधनों में कटौती का प्रतिकूल असर संघीय राजनीति पर पड़ेगा. आईएमएफ़ पिछले कुछ समय से इस ओर ध्‍यान दिलाता रहा है कि मौजूदा समय में पाकिस्तान में लागू राजकोषीय संघवाद कोई लाभप्रद या व्यवहार्य व्यवस्था नहीं है. अपनी प्रेस विज्ञप्ति में आईएमएफ़ ने यह बात रेखांकित की है और कहा है कि प्रांतों को न केवल ‘संघीय सरकार के राजकोषीय उद्देश्यों के साथ अपने राजकोषीय उद्देश्यों’ में सामंजस्‍य स्‍थापित करना होगा, बल्कि इसके साथ ही ‘प्रस्‍तावित राष्ट्रीय वित्तीय आयोग के संदर्भ में वर्तमान व्यवस्थाओं में पुनर्संतुलन के लिए विभिन्‍न विकल्पों की तलाश’ करने के काम में प्रांतीय सरकारों को भी संघीय सरकार द्वारा शामिल करना होगा. यह संभवत: पाकिस्तान की संवैधानिक व्‍यवस्‍था में अब तक का सर्वाधिक सीधा हस्तक्षेप या दखल है.

लेकिन पाकिस्तान की राजनीति में सेना के बोलबाला को देखते हुए सैन्‍य बजट में कटौती करना एक दुष्कर कार्य होगा. यही नहीं, इस तरह की दलीलें भी दी जाएंगी कि सेना भी देश के बाकी हिस्सों की तरह बलिदान करती है.

आतंकवाद को बढ़ावा देने की कीमत चुकानी पड़ेगी

और आखिर में, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान द्वारा ‘काले धन को वैध करने (मनी लॉन्ड्रिंग) पर लगाम लगाने और आतंकवादियों को धन या पैसा मिलने की समस्‍या से निपटने के लिए निरंतर प्रयास’ करने को ढाँचागत सुधार एजेंडे के प्राथमिकता वाले एक अहम कार्य के रूप में सूचीबद्ध किया है. एएमएल/सीएफटी का संदर्भ या उल्‍लेख यह दर्शाता है कि पाकिस्तान को संभवत: पहली बार आतंकवाद के मुद्दे पर उसके विभिन्‍न कदमों अथवा कार्यकलापों के लिए जवाबदेह ठहराया जा रहा है. यह ‘प्राथमिकता वाला क्षेत्र’ पाकिस्तान की एफएटीएफ (वित्तीय कार्रवाई कार्य बल) संबंधी प्रतिबद्धताओं से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. वैसे तो यही संभावना जताई जा रही है कि पाकिस्तान को ‘काली सूची’ में नहीं डाला जाएगा, लेकिन उसे अभी कुछ और समय तक एफएटीएफ की ‘ग्रे-लिस्ट (संदिग्धों की सूची)’ में रखा जाएगा. दरअसल, यह एक ऐसी तलवार होगी जो दशकों से दंड मुक्ति या माफी के साथ धड़ल्‍ले से चल रही जिहाद फ़ैक्टरी को बंद करने के लिए पाकिस्तान को विवश करने के लिए उसके सिर पर सदैव लटकती रहेगी.

इससे साफ जाहिर है कि आईएमएफ़ द्वारा पाकिस्तान पर शिकंजा कसा जा रहा है. अतीत में भले ही कार्यक्रमों या पैकेजों से पहले एवं उस दौरान ढेर सारी रियायतें दी जाती थीं और पाकिस्तान द्वारा शर्तों का उल्लंघन किए जाने पर भी उसे माफ कर दिया जाता था, लेकिन इस बार तो आईएमएफ़ महज एक डॉलर देने से पहले भी पाकिस्तान को अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए विवश कर रहा है. वस्तुतः पाकिस्तान को कोई रियायत नहीं दी गई है, जिसे पहली बार पूरी तरह से निचोड़ा जा रहा है. वैसे तो इस तरह का अत्‍यंत सख्‍त रुख अपनाने का मुख्‍य उद्देश्‍य यह है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के तौर-तरीकों को दुरुस्‍त किया जाए, लेकिन इसके साथ ही यह इस क्षेत्र के बदलते रणनीतिक एवं सामरिक परिदृश्य को भी दर्शाता है. वे दिन बहुत पहले ही लद गए हैं जब पाकिस्तान अमेरिका का सबसे सहयोगी मित्र राष्‍ट्र हुआ करता था. अब तो पाकिस्तान के सामने यही नितांत विकल्प है: वह या तो बेहद कष्‍टदायक सुधारों को लागू करना शुरू कर दे या फि‍र तबाही का मंजर देखना शुरू कर दे.

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