Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 24, 2019 Updated 0 Hours ago

ट्रंप का अनर्गल बयान जिस लायक है उसे उसी लिहाज से नजरअंदाज करते हुए नई दिल्ली को अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

यदि अमेरिका भारत के साथ रिश्ते बेहतर करना चाहता है, तो फिर कश्मीर मसले पर टांग न अड़ाए

जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर को लेकर भारत की परंपरागत नीति के उलट बयान दिया तो मानों भूचाल सा आ गया. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रंप ने अनपेक्षित और उससे भी कहीं अधिक नाटकीय रूप से यह दावा किया कि भारत ने उनसे कश्मीर मामले में मध्यस्थता की पेशकश की. उनके इस बयान से भारत में राजनीतिक हलचल होनी स्वाभाविक थी. उनका यह बयान सुर्खियां बन गया. जापान के ओसाका में आयोजित जी20 देशों के सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी बातचीत का हवाला देते हुए ट्रंप ने बड़े विचित्र ढंग अपनी बात रखी.

मोदी ने कहा — क्या आप मध्यस्थ बनना चाहेंगे

उन्होंने कहा, ‘दो सप्ताह पहले मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ था और हमने इस विषय पर चर्चा की और इस दौरान उन्होंने कहा कि क्या आप मध्यस्थ बनना चाहेंगे? मैंने पूछा कि कहां? उन्होंने जवाब दिया कश्मीर में. चूंकि यह मसला इतने वर्षों से उलझा हुआ है तो मुझे लगता है कि वे इसे सुलझाना चाहते हैं और आप (इमरान) भी इसका समाधान होते देखना चाहते हैं. अगर इसमें मैं कुछ मदद कर सकता हूं तो ऐसा करते हुए मुझे बेहद खुशी होगी.’

कश्मीर मसले पर मध्यस्थ बनने का मोह

भारत में तमाम लोगों के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था. ऐसा इसलिए, क्योंकि यह अमेरिका की दशकों पुरानी उस नीति के उलट है जिसमें वह कश्मीर को एक द्विपक्षीय मुद्दा मानता आया है कि यह मसला भारत और पाकिस्तान को आपस में सुलझाना चाहिए. उसका यह रवैया भारतीय भावनाओं के अनुरूप ही रहा. हालांकि बराक ओबामा सहित तमाम अमेरिकी राष्ट्रपति कश्मीर मसले पर मध्यस्थ बनने का मोह रोक नहीं पाए और यदाकदा ऐसी पेशकश करते रहे.

बराक ओबामा सहित तमाम अमेरिकी राष्ट्रपति कश्मीर मसले पर मध्यस्थ बनने का मोह रोक नहीं पाए और यदाकदा ऐसी पेशकश करते रहे.

ट्रंप की जुमलेबाजी

हालांकि अब वाशिंगटन को भलीभांति समझ में आ गया है कि अगर वह भारत के साथ अपने रिश्ते बेहतर और परिपक्व करना चाहता है तो फिर कश्मीर के मसले में टांग न ही अड़ाए तो बेहतर होगा. फिर भी आखिर ट्रंप को ऐसा कहने के लिए किसने उकसाया होगा, इस पर भारत में अटकलों का बाजार गर्म है. ट्रंप की इस हालिया जुमलेबाजी की तह में जाने के लिए तमाम परतें उघाड़ी जा सकती है, लेकिन हकीकत यही है कि यह अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है कि अहम भू-राजनीतिक मसलों पर टिप्पणी करते हुए ट्रंप की क्या मनोदशा रहती है? अगर ट्रंप के विचारों से तालमेल बैठाने में खुद उनके विदेश विभाग को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है तो समझा जा सकता है कि भारत के सामने यह कितनी बड़ी चुनौती है?

ट्रंप के विचारों से तालमेल बैठाने में खुद उनके विदेश विभाग को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है तो समझा जा सकता है कि भारत के सामने यह कितनी बड़ी चुनौती है?

द्विपक्षीय स्तर पर होगी वार्ता

चूंकि यह मसला राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील था तो भारतीय पक्ष ने भी त्वरित और कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की. भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्वीट किया, ‘हमने अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणी देखी कि यदि भारत और पाकिस्तान अनुरोध करते हैं तो वह कश्मीर पर मध्यस्थता के लिए तैयार हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति से ऐसा कोई निवेदन नहीं किया है. भारत का हमेशा से यही रुख रहा है कि पाकिस्तान के साथ सभी किस्म के मुद्दों पर केवल द्विपक्षीय स्तर पर चर्चा की जाएगी. पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की सक्रियता से पहले जरूरी होगा कि वह अपने यहां आतंकी ढांचा खत्म करें. शिमला समझौते और लाहौर घोषणापत्र में वे सभी बिंदु हैं जिनके आधार पर सभी मुद्दे द्विपक्षीय स्तर पर सुलझाए जा सकते हैं.’

पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की सक्रियता से पहले जरूरी होगा कि वह अपने यहां आतंकी ढांचा खत्म करें. शिमला समझौते और लाहौर घोषणापत्र में वे सभी बिंदु हैं जिनके आधार पर सभी मुद्दे द्विपक्षीय स्तर पर सुलझाए जा सकते हैं.’

ट्रंप के बयान पर भारत की प्रतिक्रिया

ट्रंप के बयान पर भारत की प्रतिक्रिया बहुत विस्तृत नहीं थी, लेकिन इसने यह जरूर स्पष्ट किया कि इस मसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति झूठ बोल रहे थे. इसके बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राज्यसभा में आश्वस्त किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया. नई दिल्ली की ओर से औपचारिक विरोध जताने के बाद अमेरिकी विदेश विभाग ने भी नुकसान की कुछ भरपाई की कोशिश के तहत यह रेखांकित किया कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है और अगर दोनों देश बातचीत के लिए साथ आते हैं तो अमेरिका इसका स्वागत करता है. उसने यह भी कहा कि आंतकवाद के खिलाफ पाकिस्तान ‘निरंतर और स्थायी’ कदम उठा रहा है जो भारत के साथ सार्थक वार्ता में अहम है.

कश्मीर एक संवेदनशील मुद्दा

कश्मीर एक संवेदनशील मुद्दा है और भारतीयों की अपने मित्र देशों से यह अपेक्षा सही है कि वे भारत के मूलभूत हितों के प्रति संवेदनशीलता दिखाएं, मगर ट्रंप जैसे अक्खड़ नेता से यह अपेक्षा बेमानी लगती है. वह बहुत ही अस्थिर मिजाज वाले राष्ट्रपति हैं और उनका रवैया भी गैरपरंपरागत है. अमेरिका के कुछ करीबी देशों के प्रति उनके विषवमन ने अमेरिकी कूटनीतिज्ञों के समक्ष चुनौती बढ़ा दी है. ऐसे में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के बजाय नई दिल्ली को कुछ प्रतीक्षा कर यह देखना चाहिए कि कश्मीर को लेकर ट्रंप के रवैये में आगे क्या रुझान देखने को मिलता है? अगर वह कश्मीर पर ऐसे ही हावभाव दिखाते हैं तो भारत को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी, लेकिन अगर वह इस मसले पर आगे कुछ नहीं बोलते हैं तो फिर इसे कोई मुद्दा न मानते हुए इस पर ऊर्जा व्यर्थ करने का कोई अर्थ नहीं है. ध्यान रहे कि व्हाइट हाउस की ओर से ट्रंप-इमरान के संयुक्त बयान में कश्मीर का कोई उल्लेख नहीं किया गया.

ध्यान रहे कि व्हाइट हाउस की ओर से ट्रंप-इमरान के संयुक्त बयान में कश्मीर का कोई उल्लेख नहीं किया गया.

अमेरिका को भूल सुधार की दरकार

ट्रंप के बयान पर भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया दमदार और दूसरे पक्ष को साधने की कवायद भी सराहनीय रही. अमेरिका को संदेश मिल गया होगा कि उसे भूल सुधार की दरकार है. वह यही करने में जुटा है. भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय एजेंडे में कई और मुद्दे सुलझाए जाने बाकी हैं. इनमें ईरान के साथ व्यापार, रूस के साथ एस 400 की खरीद से लेकर 5जी तक पर पेंच फंसे हुए हैं. वांछित परिणाम हासिल करने की दिशा में परस्पर सहमति के स्तर पर पहुंचने के लिए दोनों देशों को सार्थक संवाद की दरकार है. वास्तव में हमारे लिए अफगानिस्तान में बनते हालात गहन चिंता का विषय होने चाहिए, विशेषकर यह देखते हुए कि ट्रंप ने किस तरह अफगानिस्तान से निकलने में पाकिस्तान से मदद मांगी है.

कश्मीर मुद्दे की गूंज कमजोर पड़ी

वैश्विक स्तर पर कश्मीर मुद्दे की गूंज वक्त के साथ कुछ कमजोर पड़ी है, लेकिन भारतीय राजनीति के कुछ हलकों में इसकी व्यापक संवेदनशीलता को देखते हुए यह मुद्दा वापस वैश्विक एजेंडे में आ सकता है. अतीत में जब भारत वैश्विक शक्ति अनुक्रम में अपेक्षाकृत निचले पायदान पर था तब भी वह तमाम बड़ी शक्तियों को कश्मीर मामले में दखल देने से रोकने में सफल रहा था. उसकी तुलना में आज जब हम पांच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हैं तब कश्मीर के मुद्दे और बेहतर तरीके से संभालने में सक्षम हैं. ट्रंप का अनर्गल बयान जिस लायक है उसे उसी लिहाज से नजरअंदाज करते हुए नई दिल्ली को अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.


यह लेख मूलरूप से दैनिक जागरण मे प्रकाशित हो चुका है.

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