Published on Jan 03, 2019 Updated 0 Hours ago

इस मनीषी के विचार शी जिनपिंग के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं।

कन्फ्यूशियस का उनकी जन्मभूमि पर वैचारिक पुनर्जन्म

ऐसा लग रहा है कि मानो एशिया अपनी परम्पराओं की तलाश में है। भारत अपनी संस्कृति से जुड़ रहा है। 2015 में , संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित कर इस प्राचीन भारतीय पद्धति को विशेष तौर पर प्रोत्साहन दिया। करीब दो साल के भीतर ही योग पूरे विश्व में तेजी से इस हद तक फैल गया कि 2017 में हज़ारों लोग इसके लिए टाइम्स स्क्वेयर पर जमा हुए। एक संन्यासी जिसे एफएमसीजी क्षेत्र की कोई जानकारी न थी, उसके द्वारा स्थापित एक छोटी सी कम्पनी ने बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए कड़ी चुनौती पेश कर दी है। उसकी कम्पनी की खासियत 5000 साल पुरानी प्राकृतिक उपचार पद्धति आयुर्वेद है।

हमारे पड़ोसी देश चीन में कन्फ्यूशियस की परम्पराओं को पुनर्जीवित किया जा रहा है। चीन के महान चिंतकों में से एक — कन्फ्यूशियस के विचारों को उनकी जन्मभूमि में प्रोत्साहन दिया जा रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बदौलत चीन उनके विचारों को नए सिरे से खंगालता प्रतीत हो रहा है। 

एशिया में, जहां किसी व्यक्ति के दुनिया छोड़ देने के लम्बे अर्से बाद उसका कद उसके स्मारक और प्रतिमाएं तय करते हैं, वहां कन्फ्यूशियस की विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा का अनावरण दो महीने पहले शांदोंग प्रांत स्थित उनके गृहनगर कूफू में किया गया। चीन के इस मनीषी के विचारों का उसके पूरे इतिहास में प्रशासन पर गहरा प्रभाव रहा है। चीन के इतिहास के विभिन्न चरणों के दौरान इम्प्रियल सर्विस परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में उनकी शिक्षाएं प्रतिध्वनित होती रही हैं, जो देश के युवाओं के लिए प्रशासनिक वरीयता क्रम में तरक्की का मार्ग प्रशस्त करती हैं। इस विचारक का मानना था कि परिवार और सरकार दोनों स्थानों पर नैतिकता से कार्य करने से सामाजिक सौहार्द उत्पन्न होगा और शासकों का यह कर्तव्य है कि वे नैतिक आचरण का अनुसरण और प्रसार करें, वैसे ही जैसे बच्चों का दायित्व है कि वे माता-पिता का सम्मान करें और उनकी परम्पराओं का पालन करें, बच्चों के धर्मनिष्ठ आचरण को संहिताबद्ध करना, जो पूरे एशिया में पारिवारिक संबंधों को निरंतर परिभाषित करता रहा। उनकी शिक्षाओं को सूक्ति संग्रह में संरक्षित रखा गया है, यह पुस्तक अब कन्फ्यूशियस और उनके शिष्यों के बीच संरचित वार्तालाप के रूप में है।

हालांकि, 19वीं सदी के आरंभ में राजशाही के पतन के साथ ही कन्फ्यूशियस के विचार भी नापसंद किए जाने लगे। चीन में साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन मे फोर्थ मूवमेंट और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) का बीज बोने वाले 1919 के छात्र सांस्कृतिक आंदोलन का लक्ष्य चीनी समाज की परम्परागत बुराइयों का उन्मूलन करना था। आंदोलनकारियों ने पितृसत्ता के अंत का आह्वान करते हुए कन्फ्यूशियस के विचारों की आलोचना की।

चीन के आधुनिक संस्थापक माओ त्सेतुंग ने “महिलाओं की पराधीनता” के लिए कन्फ्यूशियस की निंदा की। उन्होंने इस मनीषी पर रूढ़िवादी विचारधारा का प्रचार करने का आरोप लगाया, जो महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने से रोकती है और पैर बांधने की जघन्य पद्धति को प्रोत्साहन देती है, जिसमें लड़की के विकास को रोकने के लिए उसके पैरों को बांध दिया जाता है।

60 के दशक में, सांस्कृतिक क्रांति के चरम के दौरान माओ के रेड गार्डों ने पुरानी प्रथाओं, पुरानी संस्कृति, पुरानी आदतों और पुराने विचारों (‘फोर ओल्ड्स’ के नाम से प्रसिद्ध) के खिलाफ जंग छेड़ दी। बीजिंग से भेजी गई रेड गार्ड्स की एक टीम ने नवम्बर 1966 में शांदोंग में कन्फ्यूशियस के समाधि स्थल पर धावा बोला और उसे तहस नहस कर दिया गया।

प्रोजेक्ट पुनर्वास

2004 में, चीन सरकार के आउटरीच प्रोजेक्ट कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य इसकी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देना था।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट विश्व का “सबसे बड़ा सॉफ्ट पॉवर और सार्वजनिक कूटनीति कार्यक्रम” है और पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर में 1,000 से ज्यादा कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट खुल चुके हैं।

2012 में शी के कम्युनिस्ट पार्टी का कर्णधार बनने के बाद से उन्होंने चीन के प्राचीन गौरव को बहाल करने के लिए ‘बड़े पैमाने पर कायाकल्प’ का संकल्प ले रखा है। 2012 की पार्टी कांग्रेस में शामिल किए गए ‘सद्भाव’ और ‘गम्भीरता’ के नारे कन्फ्यूशियस के चिंतन से लिए गए थे।

एक साल बाद, शी ने कन्फ्यूशियस के गृह नगर कूफू शहर में स्थित रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ कन्फ्यूशियनिज्म और कन्फ्यूशियस के उत्तराधिकारियों के ऐतिहासिक आवास कोंग परिवार की हवेली का दौरा किया। उन्होंने कन्फ्यूशियसवाद के लिए नई और सकारात्मक भूमिकाओं का आह्वान किया।

द इकोनॉमिस्ट ने फरवरी 2014 में खबर दी कि शी ने पार्टी के कुलीन वर्ग का “सामूहिक अध्ययन” सत्र बुलाया और कन्फ्यूशियस के मूल्यों पर बल दिया। महीनों बाद, शी कन्फ्यूशियस के जन्मदिन की पार्टी में हिस्सा लेने वाले पहले पार्टी प्रमुख बनें। इत्तेफाक से, चीन का नेता बनने के बाद से शी ने एक बार भी हुनान प्रान्त के शाओशान में स्थित माओ के जन्म स्थल का दौरा नहीं किया है।

उनका ‘शी जिनपिंग चिंतन’ माओ और मार्क्स जैसी दमदार हस्तियों की शिक्षाओं का उल्लेख करता है, लेकिन वह उपयोग प्राचीन कन्फ्यूशियसवाद का करता है। शी आत्मसमर्पण और स्थायित्व पर बल देते हुए कन्फ्यूशियस के ज्ञान की ओर ध्यान आ​कृष्ट करते हैं। शी देश में संभवत: यह प्रचारित करना चाहते हैं कि वह 5,000 साल पुरानी सभ्यता के संरक्षक हैं।

शी का भ्रष्टाचार विरोधी अभियान कुछ हद तक सार्वजनिक पद पर ईमानदारी बरतने के कन्फ्यूशियस के सिद्धांत से प्रेरित है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी शायद कन्फ्यूशियस के विचारों को अपने ही देश में उपजे होने के कारण लाभदायक मानती है और देश में परिवर्तन की तेज रफ्तार के कारण उससे बाहर छूट गए लोगों के बीच प्राचीन मूल्यों के लिए ललक उत्पन्न करके वह इनसे फायदा उठाने की इच्छुक है।

नई विचारधारा

पिछले कुछ वर्षों से, देश भर में अनेक ऐसे निजी शिक्षण संस्थान खोले गए हैं, जो कन्फ्यूशियस की शिक्षाओं के प्रति समर्पित हैं। ये शिक्षण संस्थान अभिभावकों की अपने बच्चों को परम्परागत शिक्षा देने की इच्छा के कारण खोले गए हैं। केंद्र सरकार द्वारा समर्थित ये स्कूल, बच्चों को धर्मपरायणता और निष्ठा की सीख देते हैं। छोटी उम्र में ही बच्चे कन्फ्यूशियस की शिक्षाआं को याद करना शुरु कर देते है, छह साल की उम्र में (जब सरकारी स्कूली शिक्षा शुरु होती है), वे इस महान मनीषी के ज्ञान को सुनाना शुरु कर देते हैं। उच्च मध्यम वर्ग के अभिभावकों द्वारा कन्फ्यूशियस की शिक्षाएं बच्चों के मन में बैठाने की इच्छा जाहिर किए जाने के साथ ही ‘प्रैप’ स्कूलों की मांग बढ़ती जा रही है।

चीन के व्यवहारिक शासक महज पूर्वी एशिया के मिनी ड्रैगन्स के पदचिन्हों का अनुसरण कर रहे हैं। 18 वीं सदी के जापान में कुलीन वर्ग आधुनिक बनने और पश्चिम की बराबरी करने को बेकरार था। तब कन्फ्यूशियस के विचारों को दृढ़ता के साथ पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि सरकार औद्योगिकरण को परिवार और देश के प्रति परम्परागत जापानी सम्मान के संरक्षण के साथ जोड़ना चाहती थी। शिक्षा मंत्रालय ने 1904 और 1945 के बीच जापानी स्कूलों में नीति शास्त्र की पाठ्यपुस्तकें जारी कीं और छात्रों को ज्ञान, वफादारी, बहादुरी और रिश्तेदारी के विषयों से अवगत कराया। इसके पीछे अव्यक्त लक्ष्य स्वाध्याय, राष्ट्र और नागरिक लोकचार की भावनाओं को शामिल करना था। इसमें प्रत्येक नागरिक के अच्छा इंसान बनने और सीखने तथा लगातार अपने ज्ञान को उन्नत बनाने पर विशेष रूप से बल दिया गया।

1965 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्त होकर स्वतंत्र देश बनने वाला सिंगापुर, नाउम्मीदी भरे देश से परिवर्तित होकर सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाला दूसरा देश बन गया। 1970 के दशक में एक महत्वाकांक्षी औद्योगिकीकरण कार्यक्रम के कारण, सिंगापुर के नागरिकों के जीवन का स्तर बढ़ गया, साथ ही अपराध, मादक पदार्थों का दुरुपयोग, दुराचरण भी बढ़ गया। आगे चलकर सरकार ने “पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव से उसी के समान प्रभावशाली तरीके से निपटने” के लिए कन्फ्यूशियस के नीति शास्त्र को नैतिक शिक्षा के घटक के तौर पर शामिल किया। सिंगापुर के ली कुआन यू ने कन्फ्यूशियस के आदर्शों का उपयोग आधुनिकीकरण और राजनीतिक स्थायित्व सुनिश्चित करने के साधनों के तौर पर किया।

परिवार और सरकार के प्रति सम्मान पर बल देने जैसे कन्फ्यूशियस के मूल्यों का इस्तेमाल सिंगापुर सरकार ने पाश्चात्य समाज की बु​राइयों के खतरों से बचने के प्रयास के तौर पर किया। पाश्चात्य राजनीतिक उदारवाद और अनुशासन के अभाव का मुकाबला करने के लिए कन्फ्यूशियसवाद का आधुनिक सांचे में ढालने का प्रयास किया गया।

चीन में कन्फ्यूशियस के गृहनगर कूफू में उनकी विशाल प्रतिमा लगाई गई है साथ ही वहीं पर चीन का प्रथम शिक्षक संग्रहालय भी बनने जा रहा है। चीन की ओर से मिल रहा संदेश बिल्कुल साफ है। माओ की छवि पूरे चीन में हर जगह मौजूद है, लेकिन कन्फ्यूशियस उसका नया सितारा है।


कल्पित मानकिकर एक प्रमुख भारतीय समाचारपत्र में समाचार संपादक थे। वर्तमान में वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में चाइनीज स्टडीज़ का अध्ययन कर रहे हैं।

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