Author : Sukrit Kumar

Published on Aug 06, 2018 Updated 0 Hours ago
चीन का श्रीलंका में बढ़ता कर्ज़ का जाल

सामरिक तौर पर बेहद अहम माने जा रहे हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर पिछले महीने श्रीलंका और चीन के बीच एक समझौते ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। करीब डेढ़ सौ करोड़ की लागत से बने हंबनटोटा बंदरगाह दुनिया के सबसे व्यस्ततम बंदरगाहों में से एक है। इस बंदरगाह को चीन की सरकारी संस्था चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग ने बनाया था। इसमें 85 फ़ीसदी हिस्सेदारी चीन के एक्सिम बैंक की थी। इस समझौते के मुताबिक चीन की एक सरकारी कंपनी को हम्बनटोटा बंदरगाह 99 साल के पट्टे पर दिया गया है। इसके साथ ही पास में ही क़रीब 15,000 एकड़ जगह एक इंडस्ट्रियल ज़ोन के लिए जगह दी गई है।

हम्बनटोटा बंदरगाह हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी के तौर पर देखा जा रहा है। ये चीन की विवादित ‘वन बेल्ट, वन रोड इनिशिएटिव’ जिसे न्यू सिल्क रूट भी कहा जाता है, में भी फिट बैठता है, जिसके तहत चीन व्यापार बढ़ाने के लिए दुनिया के कई देशों में रेल, सड़क और समुद्री मार्ग बनाएगा।

चीन श्रीलंका में आधारभूत संरचनाओं और विकास पर अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है, लेकिन अधिकांश स्थानीय नागरिकों को लगता है कि देश को चीन के हाथों बेचा जा रहा है। जो लोग यहां रह रहे हैं, उन्हें अपनी ज़मीनें खोने का डर सताने लगा है, जिसकी वजह से विरोध प्रदर्शन भी होने लगे हैं। प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि “हम विकास के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन जो वो कर रहे हैं, उससे हमें फायदा नहीं होने वाला.”

क़र्ज़ का जाल

श्रीलंका पर चीन का क़रीब 8 अरब डॉलर का क़र्ज़ है। उस पर कुल 64 अरब डॉलर का क़र्ज़ है और सरकार के राजस्व का 95 प्रतिशत क़र्ज़ अदायगी में जाता है। हम्बांटोटा से महज 30 किलोमीटर दूर एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जहां से हर सप्ताह केवल पांच उड़ानें जाती हैं। आम तौर पर एशियाई बंदरगाह चहल पहल भरे होते हैं लेकिन श्रीलंका का हम्बांटोटा बंदरगाह पर सन्नाटा पसरा हुआ है। इसे लगभग एक अरब डॉलर की लागत से चीन ने बनाया है। यह निवेश श्रीलंका को क़र्ज़ के रूप में दिया गया है। लेकिन पोर्ट चल नहीं पा रहा, क़र्ज़ अदायगी में समस्याएं खड़ी हो गई हैं।इसलिए एक समझौता हुआ जिसमें इसके बदले चीनी कंपनी को शेयर देने पर सहमति बनी है।

निवेश से नहीं हो रहा लाभ

श्रीलंकाई विदेश मंत्री रवि करुणानायके का कहना है कि यह फ़ायदे का सौदा नहीं है क्योंकि इससे रिटर्न नहीं आ रहा। हम्बांटोटा को इसलिए बनाया गया था ताकि

एशिया के अहम कंटेनर टर्मिनलों में से एक कोलंबो पोर्ट का भार कम हो। मध्यपूर्व से होने वाले तेल आयात के रूट में श्रीलंका एक अहम पड़ाव है, इसीलिए चीन की यहां निवेश करने में रुचि है। चूंकि हम्बांटोटा के पास कोई औद्योगिक क्षेत्र नहीं है, इसलिए यहां आर्थिक गतिविधि भी लगभग ठप है।

हंबनटोटा बंदरगाह के पीछे चीन की रणनीति

चीन की यह नीति रही है कि वह हिंद महासागर में भारत के प्रसार को रोकने के लिए ‘मोतियो की माला की नीति’ (स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स) अपना रहा है। वह भारत के पड़ोसी देशों में नौसैनिक बेस बना रहा है। इसी महत्वाकांक्षी योजना के तहत म्यांमार के सितवे बंदरगाह, बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह, श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह, मालदीव के मराओ द्वीपीय बंदरगाह एवं पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को अपने सामरिक हितों के अनुकूल विकसित कर रहा है।

क्षेत्र के शांति एवं सुरक्षा पर सवाल

हिंद महासागर के तटीय देशों पर अपनी पैठ मजबूत करने के लिए चीन अपने मंसूबों में कामयाब होते दिख रहा है फिर चाहे वह पड़ोसी पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह पर उसकी उपस्थिति हो जो चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे में भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है या जिबूती में उससे पहले सैन्य अड्डे की हो या फिर श्रीलंका के हंबनटोटा की, चीन अपने कदम आगे बढ़ाते जा रहा है।

हिंद महासागर क्षेत्र के वे देश जो अपने विकास और आर्थिक सहायता के लिए चीन पर भरोसा कर रहे हैं वह खुद ही मुसीबत में फंसते दिख रहे हैं क्योंकि

चीन इन छोटे एवं गरीब देशों को भारी-भरकम ऋण की सुविधा देता है और जब यह देश उसका ऋण चुकाने में असमर्थ होते हैं तो इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों और आर्थिक एवं सामरिक रूप से महत्वपूर्ण सैनिक अड्डों एवं बंदरगाहों को चीन अपने राष्ट्रीय हित के अनुरूप उसका उपयोग करता है।

वर्तमान भारत सरकार ने हिंद महासागर क्षेत्र को अपने विदेश नीति में प्राथमिकता दी है क्योंकि यह पूरा क्षेत्र भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से चीन हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सामरिक गतिविधियों को जिस तरह से बढ़ा रहा है उससे भारत की राष्ट्रीय हित निश्चित रूप से प्रभावित होगी। इसके साथ ही साथ चीन जिस तरह से इन देशों के साथ अपने गतिविधियों को बढ़ा रहा है उससे भविष्य में उसकी मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

आगे की राह

श्रीलंका में रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर हंबनटोटा में अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे का परिचालन भारत करेगा। यह हवाई अड्डा घाटे में है, पर हंबनटोटा बंदरगाह का पट्टा चीन के पास है इसलिये ये भारत के सामरिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।

श्रीलंका के नागर विमानन मंत्री निमल श्रीपाल डी सिल्वा ने संसद में कहा कि घाटे में चल रहे मट्टाला राजपक्षे अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को भारत दोनों देशों के बीच एक संयुक्त उपक्रम के रूप में चलाएगा। साझा उपक्रम में भारत बड़ा भागीदार होगा। यह हवाईअड्डा राजधानी कोलंबो से 241 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है। इसे 21 करोड़ डॉलर की लागत से बनाया गया है। इसे विश्व का सबसे खाली हवाईअड्डा कहा जाता है।

भारत द्वारा त्रिकोंमाली बंदरगाह को विकसित करने को लेकर भी दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है। श्रीलंका के क्षेत्रीय विकास मंत्री सरत फोनसेका ने ‘रायसीना डायलॉग 2017’ में कहा कि त्रिकोंमाली दक्षिण एशिया में सबसे गहरा बंदरगाह है जिसे विकसित करने के उद्देश्य से विभिन्न मुद्दों को अंतिम रुप दिया जा रहा है।

भारत इस क्षेत्र का आर्थिक, रणनीतिक और सैनिक दृष्टि से मजबूत एवं भरोसेमंद देश होने के नाते क्षेत्र की शांति और सुरक्षा की जिम्मेदारी इसी पर है इसलिए हिंद महासागर के तटीय देशों के साथ मिलकर सामूहिक सुरक्षा ढांचे का निर्माण करना चाहिए।

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