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Published on May 06, 2024 Updated 0 Hours ago

मालदीव के संसदीय चुनाव में राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज़्ज़ू को बंपर जीत मिली है और इसके साथ ही देश की राजनीति में उनकी पकड़ भी मज़बूत हो गई है. ज़ाहिर है कि चुनाव में मोइज़्ज़ू को मिली यह ताक़त न केवल उन्हें भारत विरोधी एजेंडे से दूर हटने के लिए प्रेरित करेगी, बल्कि चीन के साथ रिश्तों को बनाए रखते हुए दिल्ली के साथ मेलजोल बढ़ाने के लिए भी प्रोत्साहित करेगी.

जानिए, मालदीव में हुए संसदीय चुनावों के नतीज़ों का भारत व चीन के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा?

मालदीव में हाल ही में हुए संसदीय चुनाव में राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज़्ज़ू की पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (PNC) ने लगभग दो तिहाई बहुमत के साथ प्रचंड जीत हासिल की है. मालदीव की सत्ता पर काबिज पीपुल्स नेशनल कांग्रेस का अब देश की 93 में से 73 सीटों पर कब्ज़ा है. मोइज़्ज़ू के अभी तक के राजनीतिक कार्यकाल की बात की जाए, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने अब तक की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करते हुए चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया है. मालदीव की संसद में उनकी पार्टी के सदस्यों की संख्या के आधार पर कहा जा सकता है कि विधायिका पर उनकी ज़बरदस्त पकड़ हो चुकी है. अब इस बात की प्रबल संभावना है कि मोइज़्ज़ू भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधारने की दिशा में साहसिक फैसले लेंगे, साथ ही साथ चीन से प्रगाढ़ संबंध स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे. कहा जा सकता है कि अगर वे समझदारी के साथ व्यावहारिक नीतियों को अमल में लाएंगे, तो निश्चित तौर पर भारत के साथ उनकी तनातनी दूर हो सकती है.

 

चुनावी नतीज़ों का मूल्यांकन

मालदीव में मोइज़्ज़ू की पीपुल्स नेशनल कांग्रेस की इस बंपर जीत के पीछे बहुत से कारण हैं. मालदीव के कुछ पत्रकारों के मुताबिक़ इस जीत का पहला कारण यह है कि वर्ष 2014 के बाद से मालदीव में जितने भी संसदीय चुनाव हुए हैं, उनमें देश के मतदाताओं ने राष्ट्रपति पद पर बैठे नेता के हाथों को मज़बूत किया है, ताकि वह बगैर किसी दिक़्क़त के सहजता से सरकार का संचालन कर सके. पत्रकारों के इस तर्क के लिहाज़ से देखा जाए तो इस बार भी संसदीय चुनावों में जनता ने इसी परंपरा को दोहराया है. पीएनसी की जीत का दूसरा कारण जो बताया जा रहा है, वो है चुनाव के दौरान सरकारी संसाधनों का ज़बरदस्त दुरुपयोग किया जाना. ज़ाहिर है कि मोइज़्ज़ू सरकार द्वारा चुनाव के दौरान या फिर चुनाव से ठीक पहले तमाम नई परियोजनाओं का ऐलान और उद्घाटन किया गया था. इतना ही नहीं, सरकार ने राजनीतिक पदों पर तमाम लोगों की नियुक्त करके भी वोटों का जुगाड़ किया. राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद से ही मोइज़्ज़ू ने अपने समर्थकों को ख़ुश के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है. एक तरफ उन्होंने अपने कैबिनेट में 300 से अधिक मंत्रियों को नियुक्त किया है, वहीं सरकारी उपक्रमों में भी तमाम राजनीतिक नियुक्तियों की स्वीकृति दी है, जिनमें से कई लोगों को चुनाव से ठीक पहले भी नियुक्त किया है. मोइज़्ज़ू की पार्टी की रिकॉर्ड जीत के पीछे तीसरा कारण उनके राष्ट्र प्रथम वाले बयानों यानी राष्ट्रवादी विचारों और भारत द्वारा अपने सैनिकों की वापसी के ऐलान को बताया जा रहा है. इससे जनता के बीच संदेश गया कि मोइज़्ज़ू अपने चुनावी वादों और राष्ट्रीय महत्व की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लेकर गंभीर हैं, जिससे मतदाताओं का उन पर भरोसा बढ़ा. आख़िर में एक कारण वोटों की ख़रीद किया जाना था, ज़ाहिर है कि चुनाव में इस रणनीति को हर राजनीतिक पार्टी द्वारा अपनाया जाता है.

 मोइज़्ज़ू की पार्टी की रिकॉर्ड जीत के पीछे तीसरा कारण उनके राष्ट्र प्रथम वाले बयानों यानी राष्ट्रवादी विचारों और भारत द्वारा अपने सैनिकों की वापसी के ऐलान को बताया जा रहा है. इससे जनता के बीच संदेश गया कि मोइज़्ज़ू अपने चुनावी वादों और राष्ट्रीय महत्व की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को लेकर गंभीर हैं

इसके अलावा, शायद दो राजनीतिक रणनीतियों ने भी मोइज़्ज़ू की जीत में अहम भूमिका निभाई है. पहली रणनीति थी, पीएनसी के भीतर गुटबाज़ी को और बढ़ने से रोकना, ख़ास तौर पर पार्टी में यामीन के कट्टर समर्थकों और मोइज़्ज़ू के समर्थकों को बीच गुटबाज़ी पर लगाम लगाना. इसके लिए सत्तारूढ़ पीएनसी ने अपने कुछ कट्टर समर्थक नेताओं को निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. दूसरी रणनीति थी, बड़े राजनीतिक दलों से अलगाव के मद्देनज़र पीएनसी द्वारा छोटे राजनीतिक दलों के लिए अनुकूल चुनावी माहौल बनाना. यानी पीएनसी ने मालदीव डेवलपमेंट अलायंस (MDA), मालदीव नेशनल पार्टी (MNP) और जम्हूरी पार्टी (JP) के बड़े नेताओं की सीटों पर अपने प्रत्याशियों को नहीं उतारा. इसके साथ ही, राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू ने इन छोटे राजनीतिक दलों को कुछ ही सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए भी राज़ी किया.

 

उपरोक्त कारणों और रणनीतियों के माध्यम से मोइज़्ज़ू को PPM-PNC के वोट बैंक के अलावा जेपी, एमएनपी और एमडीए जैसे दलों के स्विंग मतदाताओं यानी जो तय नहीं कर पाते है कि किस पार्टी को वोट देना है, का समर्थन प्राप्त करने में मदद मिली. (तालिका 2 देखें). इससे मोइज़्ज़ू की पार्टी को 66 वोटों का प्रचंड बहुमत मिला. इसके साथ ही, चुनाव में जीत हासिल करने वाले 11 निर्दलीय सांसदों में से सात सांसद, जिन्हें मोइज़्ज़ू की पार्टी ने समर्थन दिया था, वे फिर से उनकी पार्टी में शामिल हो गए. इतना ही नहीं, एमडीए (2 सांसद), जेपी (1 सांसद) और एमएनपी (1 सांसद) के समर्थन के बाद संसद में उनकी पार्टी और उनके समर्थक सांसदों की कुल संख्या 77 तक पहुंच गई है. यही वजह है कि मोइज़्जू और उनकी पीएनसी पार्टी को संसद में ज़बरदस्त मज़बूती मिली है.

तालिका 1. संसद में राजनीतिक दलों के कुल सांसद और उनके द्वारा चुनाव में उतारे गए प्रत्याशियों की संख्या

राजनीतिक दल

जीतने वाले सांसद

चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी

पीएनसी

66 (+7 निर्दलीय)

90

एमडीपी

12

89

निर्दलीय

11 (-7)

130

एमडीए

2

4

जेपी

1

10

एमएनपी

1

2

डेमोक्रेट्स

0

39

एपी

0

4

स्रोत: चुनाव आयोग



तालिका 2. राजनीतिक दल की सदस्यता और वोट

राजनीतिक दल

 सदस्यता

मजलिस चुनाव के लिए कुल वोट

राष्ट्रपति चुनाव के प्राथमिक दौर के दौरान कुल वोट

एमडीपी

51,919

64,650

86, 161

पीपीएम

35,987

-

-

पीएनसी

28,236

101,120

101, 635

जेपी

18,186

3,141

5,460

एपी

8,746

2,538

-

एमडीए

8,516

4,071

एमएनपी

7,807

1,060

1,907

डेमोक्रेट्स

4,404

4,635

15,839

निर्दलीय

-

29,175

स्रोत: चुनाव आयोग

 

इसके अलावा, मालदीव की संसद में 12 सांसदों वाली मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी), जो कि प्रमुख विपक्षी दल भी है और कुछ संसदीय समितियों में हिस्सेदारी निभाने के लिए योग्य भी है, लेकिन उसे अलग-थलग कर दिया जाएगा. ज़ाहिर है कि एमडीपी अपने यूज़अल वोटर बेस यानी सामान्य मतदाता आधार से ज़्यादा वोट हासिल करने में नाक़ाम रही है. इतना ही नहीं, एमडीपी को राष्ट्रपति चुनाव के प्राथमिक दौर में जितने मत हासिल हुए थे, उनकी संख्या में बढ़ोतरी की जगह ज़बरदस्त कमी दर्ज़ की गई है. (तालिका 2) इसके अलावा, एमडीपी अपने पारंपरिक गढ़ अड्डू में भी एक सीट नहीं जीत पाई है. ऐसा महसूस होता है कि एमडीपी के नेताओं से जनता की नाराज़गी, भ्रष्टाचार के मामलों और मोइज़्ज़ू के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद संसद पर नियंत्रण का उसे चुनावों के दौरान ज़बरदस्त ख़ामियाजा उठाना पड़ा है.

 

मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी की सहयोगी पार्टियों को भी चुनावों में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है. गठबंधन में एमडीपी की सहयोगी अधलथ पार्टी (AP) लगातार दूसरी बार संसद में एक भी सीट जीतने में नाक़ाम रही है. एमडीपी और पीपीएम-पीएनसी से अलग होकर बनी डेमोक्रेट और पीपुल्स नेशनल फ्रंट जैसे दलों को भी चुनाव में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई, जबकि इन दोनों दलों का नेतृत्व दो पूर्व राष्ट्रपतियों द्वारा किया जा रहा है. संसदीय चुनावों के दौरान डेमोक्रेट पार्टी को केवल लगभग अपने वोट बेस के बराबर ही वोट मिले हैं, बल्कि राष्ट्रपति चुनाव के प्राथमिक दौर में मिले मतों से तुलना की जाए, तो उसे मिले वोटों की संख्या कम हुई है. (तालिका 2) इससे साफ पता चलता है कि देश की राजनीति में डेमोक्रेट पार्टी का कोई वजूद नहीं है. इसके अलावा, पीएनएफ एवं यामीन गुट द्वारा जिन 35 निर्दलीय प्रत्याशियों का समर्थन किया गया था, उनमें से एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया. कुल मिलाकर देखा जाए तो मालदीव में विपक्ष, ख़ास तौर पर प्रमुख विपक्षी पार्टियों की इस चुनाव में कमर टूट चुकी है और संसद हो या सरकार दोनों ही जगह वे हाशिए पर दिखाई दे रही हैं.

 

मोइज़्ज़ू की जीत के रणनीतिक मायने

बीते दिनों मालदीव ने भारत के प्रति जो कड़ा रुख अपनाया और अनर्गल बातों को तूल दिया, उसके पीछे, कहीं कहीं राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू की अपने देश में राष्ट्रवादी भावनाओं को उकसाने और देशवासियों का समर्थन हासिल करने की रणनीति थी. अब संसदीय चुनावों में जब मोइज़्ज़ू को भारी बहुमत मिला है, तो निश्चित तौर पर देश की राजनीति पर उनकी धाक बढ़ी है और वे पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित हो गए हैं. यानी अब मालदीव में घरेलू हालात ऐसे बन चुके हैं कि मोइज़्ज़ू को भारत के विरुद्ध ज़हर उगलने की ज़रूरत नहीं है, साथ ही वे नई दिल्ली के साथ मेलजोल बढ़ाने की कोशिशों को आगे बढ़ा सकते हैं. जहां तक चीन का सवाल है तो उसके साथ मालदीव के संबंधों में कोई परिवर्तन नहीं आया है. मोइज़्ज़ू की पार्टी के चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ प्रगाढ़ संबंध क़ायम हैं और वो मालदीव को अपना निकटतम सहयोग मानती है. इसके अतिरिक्त, चीन की मालदीव में व्यापक मौज़ूदगी है और वह मालदीव में भारत के ख़िलाफ़ माहौल बना रहा है, साथ ही मालदीव पर भारत को बाहर करने का दबाव बनाने में जुटा है.

 चीन की मालदीव में व्यापक मौज़ूदगी है और वह मालदीव में भारत के ख़िलाफ़ माहौल बना रहा है, साथ ही मालदीव पर भारत को बाहर करने का दबाव बनाने में जुटा है.

पिछले पांच महीनों के दरम्यान चीन ने मालदीव में अपनी काफ़ी पैठ बना ली है और उसका दख़ल भी बहुत बढ़ गया है. राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू ने जनवरी 2024 में चीन के साथ 20 से ज़्यादा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. इनमें ब्लू इकोनॉमी, डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था, मानव संसाधन, आपदा नियंत्रण, मछली पालन, कृषि, पर्यटन, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने से जुड़े समझौते शामिल थे. वर्तमान में चीन तेज़ गति के साथ छोटी-छोटी साझेदारियां विकसित कर रहा है और लघु सामुदायिक विकास परियोजनाओं में निवेश कर रहा है. देखा जाए तो चीन की ये गतिविधियां पूर्व के यामीन शासन के ठीक उलट हैं. चीन ने मालदीव को एंबुलेंस, नागरिक वाहन, प्रयोगशाला में उपयोग किए जाने वाले उपकरण और 1,500 टन बोतलबंद पानी देने का या तो वादा किया है, या फिर इनका उपहार दिया है. इसके अलावा चीन द्वारा मालदीव में डिसैलिनेशन प्लांट्स यानी समद्र के खारे पानी को पीने योग्य जल में बदलने वाले संयंत्र लगाए जा रहे हैं, अत्याधुनिक मछली प्रसंस्करण संयंत्रों और बिजली उत्पादन के लिए पावर प्लांट्स का निर्माण किया जा रहा है. इसके साथ ही चीन द्वारा मालदीव में स्मार्ट यूटिलिटी सेवाएं यानी बिजली, पानी, गैस आदि से जुड़ी बुनियादी सेवाएं भी शुरू की जा रही हैं. चीन की ओर से मालदीव में हर क्षेत्र में हाथ-पैर मारे जा रहे हैं. जैसे कि रास माले द्वीप और इसकी आवास इकाइयों का विकास किया जा रहा है, वेलाना हवाई अड्डे का विस्तार और माले में सड़कों का पुनर्विकास किया जा रहा है, साथ ही तीन साल के लिए सिनामाले ब्रिज का मुफ्त में रखरखाव भी किया जा रहा है. चीन के ये सभी क़दम मालदीव में उसकी व्यापक मौज़ूदगी के इरादों को पूरा करने का काम करेंगे. इसके अलावा चीन और मालदीव व्यापक रणनीतिक साझेदारी एवं रक्षा समझौते के ज़रिए अपने रक्षा संबंधों को भी सशक्त करने में जुटे हैं. इसके अतिरिक्त, मालदीव की सरकार ने चीन की वैश्विक सुरक्षा पहल, ग्लोबल सिविलाइजेशन पहल और वैश्विक विकास पहल में भागीदारी करने एवं चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) प्रोजेक्ट्स में तेज़ी लाने पर भी सहमति जताई है.

 

दूसरी तरफ, मालदीव की नई सरकार भारत के ख़िलाफ़ अलग रुख अपना रही है और भारत पर अपनी निर्भरता को कम कर रही है, साथ ही ऐसे हालात पैदा कर रही है, जिससे भारत रणनीतिक निवेशों से पीछे हट जाए. उदाहरण के तौर पर चाइना हार्बरिंग इंजीनियरिंग कंपनी ने उथुरु थिला फाल्हू (UTF) में 200 हेक्टेयर भूमि को दोबारा से हासिल करने, एक एग्रीकल्चर इंडस्ट्रियल पार्क का निर्माण करने और इसे ड्रोन जैसी आधुनिक टेक्नोलॉजी से सुसज्जित करने के लिए मालदीव के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. चीन द्वारा जिस परियोजना के लिए एमओयू किया गया है, वो उसी क्षेत्र में स्थित है, जहां भारत द्वारा वित्त पोषित यूटीएफ कोस्टगार्ड हार्बर है. ज़ाहिर है कि ऐसा करने से चीन को भारतीय परियोजना पर अपनी पैनी नज़र रखने में मदद मिल सकती है. इसके अतिरिक्त, चीन मालदीव के कधधू एयरपोर्ट को भी विकसित करेगा. इस हवाई अड्डे पर कथित तौर पर भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी तैनात है और ज़ल्द इसकी जगह पर वहां पर सिविलियन विशेषज्ञों को नियुक्त किया जाएगा. मालदीव सरकार द्वारा गुलहिफाल्हू बंदरगाह को थिलाफुशी में स्थानांतरित करने का भी प्रस्ताव किया गया है. साथ ही थिलाफुशी पोर्ट को निजी निवेशकों के लिए खोला जा रहा है. भारतीय एक्ज़िम बैंक ने गुलहिफाल्हू के पुनर्निर्माण का वित्त पोषण किया है और कहा है कि केवल भारतीय कंपनियां ही इस बंदरगाह का विकास कर सकती हैं, बावज़ूद इसके, मालदीव सरकार द्वारा ऐसा क़दम उठाया जा रहा है. राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू ने हाल ही में यह भी कहा था कि मालदीव में भारतीय नागरिक विशेषज्ञ एक समझौते के आधार पर उनके देश में हैं और उनकी तैनाती अस्थायी तौर पर ही की जाएगी. इसके अतिरिक्त, मालदीव रक्षा, खाद्य आयात, स्वास्थ्य बीमा, दवा और पर्यटन के क्षेत्रों में भारत पर अपनी निर्भरता को कम से कम करने की भी कोशिश कर रहा है.

 

हाल के संसदीय चुनावों में राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू को जिस प्रकार से प्रचंड जीत हासिल हुई है, उससे लगता है कि वे अपनी इस विदेश नीति को पूरी ताक़त के साथ आगे बढ़ाएंगे. चीन द्वारा पहले संसद में राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू के मज़बूत नहीं होने की बात कही जाती थी और यामीन से दूरी बनाने के लिए कहा जाता था, लेकिन चुनावों में मिली ज़बरदस्त जीत ने चीन की सारी शिकायतों और आशंकाओं को दूर कर दिया है. चीन द्वारा जिस प्रकार से चुनावों में मोइज़्ज़ू को मिली जीत पर ख़ुशी जताई गई है, वो अगले पांच वर्षों के लिए मालदीव के साथ संबंधों का विस्तार करने की चीन की मंशा को ज़ाहिर करता है. संसद में मोइज़्ज़ू सरकार को प्रचंड बहुमत मिलने के साथ ही कई प्रकार की आशंकाएं भी घर कर गई हैं. जैसे कि इस बात का ख़तरा तेज़ हो गया है कि चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते को लेकर विधेयक को बिना ज़्यादा जांच-पड़ताल और बहस के पास किया जा सकता है. इसके अलावा, देश में चल रही परियोजनाओं (भारतीय परियोजनाओं सहित) को मनमर्जी के मुताबिक़ रद्द करने से जुड़े विधेयक और मालदीव के द्वीपों को दूसरे देशों के कब्ज़े में देने जैसे क़ानूनों को भी पारित किया जा सकता है. यह सब मालदीव में यामीन शासन के दौरान भी देखने को मिला था. इसके अलावा, मालदीव की सरकार ने अविकसित द्वीपों पर रिसॉर्ट विकास परियोजनाओं को फिर से शुरू करने का भी निर्णय लिया है, ये परियोजनाएं वर्ष 2019 से लटकी हुई हैं. उल्लेखनीय है कि इसमें से कुछ परियोजनाओं के लिए चीन द्वारा निवेश किया गया है और यह पूर्व में मालदीव के लिए सुरक्षा चिंताओं की वजह बन चुकी हैं. इन सभी घटनाक्रमों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मालदीव में भारत को चीन से तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू की चीन के साथ नज़दीकी बढ़ती जा रही है.

 

क्या ऐसी स्थिति हमेशा बनी रहेगी?

हालांकि, ऐसा नहीं है कि राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू और उनकी सरकार चीन के समर्थन वाली नीतियों को आंख मूंदकर अपनाएंगे और अगले पांच सालों तक बगैर कि अड़चन के अपनी सरकार को सुरक्षित तरीक़े से चला लेंगे.

 

कहने का मतलब यह है कि संसद में प्रचंड बहुमत मिलना इस बात की गारंटी नहीं है कि सरकार को किसी रुकावट का सामना नहीं करना पड़ेगा. ज़ाहिर है कि मालदीव में सत्तारूढ़ पार्टी की तरह ही विपक्ष भी अपनी ताक़त बढ़ाने और संसद में सत्तारूढ़ दल की एकजुटता को तोड़ने के लिए हाल ही पास किए गए दलबदल विरोधी क़ानून के लूफोल्स यानी ख़ामियों का फायदा उठाएगा. पांच सालों के कार्यकाल के दौरान मालदीव की संसद में सांसदों से वोट की ख़रीद-फरोख़्त में तेज़ी सकती है. इसके अलावा, ऐसा भी हो सकता है कि एपी, एमडीपी, डेमोक्रेट और पीएनएफ जैसे तमाम विपक्षी दल राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू की नकेल कसने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिला लें. हालांकि, इन दलों के पास कोई विधायी और शासन करने की ताक़त नहीं है, बावज़ूद इसके, वे अपने समर्थकों को लामबंद करके सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलनों को हवा दे सकते हैं और विदेश नीति समेत तमाम मोर्चों पर सरकार को घेरने के लिए अपने समर्थकों की ताक़त का इस्तेमाल कर सकते हैं.

 मालदीव की संसद में पीएनसी को मिला बहुमत भारतीय हितों के लिहाज़ से अच्छा नहीं माना जा सकता है, क्योंकि इन परिस्थितियों में कहीं न कहीं भारत को नुक़सान हो सकता है.

मालदीव की संसद में पीएनसी को मिला बहुमत भारतीय हितों के लिहाज़ से अच्छा नहीं माना जा सकता है, क्योंकि इन परिस्थितियों में कहीं कहीं भारत को नुक़सान हो सकता है. ज़ाहिर है कि संसद में विपक्ष की नुमाइंदगी कमज़ोर है, ऐसे में मोइज़्ज़ू सरकार भारत द्वारा संचालित परियोजनाओं को मनमाने तरीक़े से रद्द कर सकती है, साथ ही भारतीय स्वास्थ्य बीमा योजनाओं और भारत से आने वाली दवाओं, खाद्यान्न आयात और पर्यटन गतिविधियों पर भी चोट पहुंचा सकती है, भले ही इससे उसे आर्थिक नुक़सान क्यों उठाना पड़े. लेकिन यह भी तय है कि जिस प्रकार से मालदीव की भारत से भौगोलिक निकटता है, वहां की आर्थिक तरक़्क़ी और तमाम परियोजनाओं के विकास में भारत द्वारा मदद की जा रही है, उन पर वहां के चुनावी नीतज़ों का कोई असर नहीं पड़ा है. यानी कि राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू अगर भारत को लेकर अपनी विचारधारा और व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से प्रेरित होने के बजाए व्यावहारिक और समझदारी भरा नज़रिया अपनाते हैं, तो निश्चित तौर पर वे मालदीव के हितों को आगे बढ़ाने के लिए भारत की मौज़ूदगी का फायदा उठा सकते हैं. अभी तक भारत के प्रति जिस प्रकार का रवैया मोइज़्ज़ू द्वारा अपनाया गया है, उसके साफ लगता है कि वे भारत को अलग-थलग करके कूटनीतिक जोड़-तोड़ के विकल्पों के दरवाज़े बंद करने का जोख़िम नहीं उठाना चाहेंगे. ज़ाहिर है कि ऐसी परिस्थितियों में इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि राष्ट्रपति मोइज़्ज़ू एक तरफ चीन के साथ अपने रिश्तों को मज़बूत करते रहेंगे और दूसरी तरफ, विभिन्न क्षेत्रों में भारत के साथ भी संबंधों को बरक़रार रखने के लिए कार्य करेंगे.


आदित्य गोदारा शिवमूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

आंकड़ों को एकत्र करने में मदद करने के लिए लेखक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिसर्च इंटर्न अंबिका पांडेय को धन्यवाद देना चाहते हैं.

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