Author : Mihir Bhonsale

Published on Oct 13, 2017 Updated 0 Hours ago

2018 में भारत-भूटान संबंधों को 50 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। अब, इन संबंधों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यक्त किए गए विज़न — 'भारत टू भूटान' (बी2बी) के आधार पर आगे बढ़ाना जारी रखना चाहिए।

कैसे होगा साकार मोदी का ‘भारत टू भूटान’ विज़न

भारत के विदेश सचिव, एस. जयशंकर 2 अक्टूबर से अपनी चार दिन की महत्वपूर्ण भूटान यात्रा गए थे। भारत और चीन, दोनों मुल्कों को सीमा पर एक-दूसरे के मुकाबले में ला खड़ा करने वाले उनके  इतिहास के अब तक सबसे लम्बे गतिरोध — डोकलाम संकट के बाद से यह किसी वरिष्ठ भारतीय अधिकारी की पहली भूटान यात्रा थी।  जयशंकर ने अपनी इस यात्रा के दौरान भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक, प्रधानमंत्री त्शेरिंग तोब्गे और विदेश मंत्री दामचो दोर्जी के साथ-साथ अन्य गणमान्य व्यक्तियों से भी मुलाकात की। किसी भी अन्य भारत-भूटान शिखर सम्मेलन की ही तरह विदेश सचिव की इस यात्रा ने भी भारत के इस हिमालयी पड़ोसी के विकास के लिए उसकी प्रतिबद्धता को ही रेखांकित किया।

भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, विदेश सचिव की यात्रा के दौरान भूटान की 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत भारत की सहायता से वर्तमान में जारी परियोजनाओं के कार्यान्वयन और 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए उसकी प्राथमिकताओं के बारे में विचार विमर्श किया गया। विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि इस दौरान आपसी हित के अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ व्यापार और आर्थिक संबंधों, पनबिजली सहयोग तथा जनता के बीच आपसी मेल-जोल के बारे में चर्चा हुई।


किसी भी अन्य भारत-भूटान शिखर सम्मेलन की ही तरह विदेश सचिव की यात्रा ने भी भारत के इस हिमालयी पड़ोसी के विकास के लिए उसकी प्रतिबद्धता को ही रेखांकित किया।


2018 में भारत-भूटान संबंधों को 50 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। अब, इन संबंधों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यक्त किए गए विज़न — ‘भारत टू भूटान’ (बी2बी) के आधार पर आगे बढ़ाना जारी रखना चाहिए। 2014 में अपनी भूटान यात्रा के दौरान श्री मोदी ने कहा था, “भारत को भूटान के लिए और भूटान को भारत के लिए आवाज उठानी चाहिए।” विदेश सचिव की यात्रा को खासतौर पर चीन द्वारा अपनी ताकत का प्रदर्शन करने और भारत के अधिकार क्षेत्र दक्षिण एशिया में दाखिल होने को देखते हुए आवश्यक रूप से दोनों देशों की पारस्परिक जरूरत के रूप में देखा जाना चाहिए।

चीन पर नज़र

उत्तरी पड़ोसी चीन, भूटान के साथ अपने संबंधों को औपचारिक स्वरूप प्रदान करना चाहता है। चीन ही इकलौता देश है, जिसके साथ भूटान के अब तक औपचारिक संबंध नहीं हैं। चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे के बाद ही भूटान के भारत के साथ औपचारिक संबंध स्थापित हुए। भूटान, भारत द्वारा सिक्किम को साथ मिलाए जाने से भी चिंतित था, लेकिन खुद को ज्यादा संकट में महसूस नहीं कर रहा था, क्योंकि तब तक वह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन चुका था और उसने अपने विदेशी संबंध बनाने शुरू कर दिए थे।।

दो विशाल पड़ोसियों के मुकाबले में खड़ा भूटान अपने पड़ोसियों से खतरे के प्रति संवेदनशील है। हाल की घटनाओं, विशेषकर डोकलाम गतिरोध ने, भारत की सामरिक महत्वांक्षाओं को भी भूटान की नजरों में ला दिया। बेशक, भूटान सीमा पर बने गतिरोध को समाप्त करना चाहता था, क्योंकि इससे भूटान-चीन सीमा वार्ता पर असर पड़ सकता था और सीमा विवाद के हल में विलम्ब हो सकता था।


दो विशाल पड़ोसियों के मुकाबले में खड़ा भूटान अपने पड़ोसियों से खतरे के प्रति संवेदनशील है। हाल की घटनाओं, विशेषकर डोकलाम गतिरोध ने, भारत की सामरिक महत्वांक्षाओं को भी भूटान की नजरों में ला दिया। 


लम्बे खिंचे डोकलाम संकट के दौरान भी भारत में भूटान के राजनयिक के एकमात्र बयान के सिवाए, भूटान सरकार ने हैरतंगेज रूप से चुप्पी साधे रखी। भूटानी राजनयिक ने चीन को उनके क्षेत्र में सड़क बनाने का दोषी ठहराया। जहां एक ओर भूटान ने सार्वजनिक तौर पर परेशान करने वाली चुप्पी साध रखी थी, वहीं भूटान सरकार, भारत सरकार के साथ गहन वार्ता कर रही थी और उसे आशा थी कि भारत की सहायता से ये मसले हल हो जाएंगे। भूटान के सामाजिक संगठन दो पड़ोसी देशों की भूराजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण अपनी संप्रभुता को खतरे को लेकर चिंतित थे।

ऐसी संभावना है कि भारत के विदेश सचिव की यात्रा से भूटान इस बात को लेकर आश्वस्त और सहमत हो गया होगा कि भारत और भूटान के सामरिक हित आपस में गुंथे हुए हैं।भारतीय उपमहाद्वीप में चीन के प्रभाव के बढ़ते दायरे ने भूटान को केवल आघात से बचाव करने वाल देश ही बना कर रख छोड़ा है।  भारत द्वारा नेपाल सहित बहुत से देशों की नियमित मदद किए जाने के बावजूद, पड़ोसी देशों ने चीन को भारत के खिलाफ एक कार्ड के रूप में ही इस्तेमाल किया है। भूटान एकमात्र ऐसा देश है, जिसने कभी भारत के साथ ऐसा नहीं किया है और भारत भी यह सुनिश्चित करना चाहता है कि भूटान ऐसा कभी न कर सके। भारत की भूटान नीति पर काफी हद तक यही आधार रहा है और यही कथित तौर पर भूटान की यात्रा पर आए विदेश सचिव का एजेंडा भी था।

सत्ता विरोधी लहर

भूटान में अगले साल के आरंभ में चुनाव होने जा रहे हैं। और मौजूदा त्शेरिंग सरकार सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही है। भूटान में 2008 में लोकतंत्र की स्थापना के बाद से सजग सामाजिक संगठनों के एक वर्ग का उदय हुआ है, जो सरकार की नीतियों की कटु आलोचना कर रहा है।

सरकार को देश के कारोबारी हितों को नजरंदाज कर अंतर्राष्ट्रीय समझौते करने की वजह से आलोचना का सामना करना पड़ा है। इस इस बात का ज्वलंत उदाहरण भूटान सरकार द्वारा बीबीआईएन मोटर व्हीकल अग्रीमेंट (एमवीए) पर हस्ताक्षर किया जाना है।, जिस फैसले को बाद में हितधारकों, विशेषकर देश की ट्रकर्स और टैक्सी असोसिएशन्स के विरोध के कारण नेशनल काउंसिल ने पलट दिया। संसद में अनुमोदन नहीं हो पाने की वजह से भूटान बाद में एमवीए से अलग हो गया।

निर्माण में देरी के कारण वर्तमान में जारी पनबिजली परियोजनाओं की लागत में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है और संकोश या कुरी गोंगरी जैसी विशाल परियोजनाओं के बारे में व्याप्त अनिश्चितता के कारण पनबिजली उत्पादन के लक्ष्यों में व्यापक कमी आई है। 2014 में 2020 तक 10,000 मेगावॉट उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसे अब घटाकर  2021 तक 5000 मेगावॉट उत्पादन कर दिया गया है।भारत द्वारा जीएसटी लागू किए जाने के परिणामस्वरूप भूटान के कारोबारियों केा नुकसान पहुंचा है। भूटान, भारत से पहले ही कह चुका है कि वह कारोबारियों को हुए नुकसान की भरपाई करे।

भारत को भूटान के सुरक्षा, आर्थिक स्थायित्व और निर्बाध विकास संबंधी हितों का ध्यान रखना होगा, जिनकी अपेक्षा भूटान अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसियों से करता है। विदेश सचिव की यात्रा के दौरान इन सभी मामलों पर गौर किया गया होगा, ताकि प्रधानमंत्री मोदी का विज़न ‘भारत टू भूटान’ को साकार किया जा सके।

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