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सरकार द्वारा औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए उठाए जाने वाले सकारात्मक क़दमों में कोई भी ढिलाई बेहद घातक साबित हो सकती है
कोविड-19 की रोकथाम के लिए मार्च महीने से पूरे देश में लगाया गया लॉकडाउन, औद्योगिक उत्पादन के लिए बेहद घातक साबित हुआ है. जो आशंका के अनुरूप ही है. जुलाई महीने में इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) के फौरी अनुमान और इस्तेमाल पर आधारित सूचकांक इस बात की पुष्टि करते हैं कि देश में औद्योगिक उत्पादन की स्थिति बेहद मुश्किल दौर में है.
औद्योगिक उत्पादन का सामान्य सूचकांक जुलाई महीने में भी इस क्षेत्र में नकारात्मक वृद्धि दर यानी माइनस 10.4 प्रतिशत को दिखा रहा है (टेबल-1) वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले चार महीनों के दौरान ये सूचकांक लगातार गिरावट दिखाता रहा है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़, इस वित्तीय वर्ष के पहले चार महीनों के दौरान देश में औद्योगिक उत्पादन में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट आई है. अगर हम व्यवहारिक रूप से अपेक्षा करें, तो अनुमान ये है कि अगले पांच महीनों में औद्योगिक उत्पादन की विकास की दर में सुधार आएगा और ये इस वित्तीय वर्ष की आख़िरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च 2021 के दौरान नकारात्मक से शून्य के स्तर यानी उत्पादन के पूर्व स्तर को प्राप्त कर सकेगा.
अगर हम व्यवहारिक रूप से अपेक्षा करें, तो अनुमान ये है कि अगले पांच महीनों में औद्योगिक उत्पादन की विकास की दर में सुधार आएगा और ये इस वित्तीय वर्ष की आख़िरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च 2021 के दौरान नकारात्मक से शून्य के स्तर यानी उत्पादन के पूर्व स्तर को प्राप्त कर सकेगा.
लेकिन, तब भी अगर हम वार्षिक वृद्धि दर को पैमाना बनाएं तो देश के औद्योगिक उत्पादन में दोहरे अंकों में गिरावट आएगी. जो शायद पंद्रह से बीस प्रतिशत की क्षति होगी. इसके बाद, औद्योगिक उत्पादन को एक सम्मानजनक वृद्धि दर के स्तर तक पहुंचाने में कई साल लगने की संभावना है. अगर, इस दिशा में रिकवरी की रफ़्तार धीमी रहती है या फिर और भी बुरी स्थिति देखने को मिलती है, यानी ये नेगेटिव ग्रोथ और ख़राब दर से होती है, तो औद्योगिक उत्पादन और ख़ासतौर से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर बहुत मुश्किल में होगा. वैसे हालात में एक स्थायी तौर पर सकारात्मक वृद्धि दर को हासिल कर पाने में हमें कई बरस लग जाने की आशंका है.
इस साल मई से जुलाई के दौरान, भारत में सिर्फ़ एक मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ऐसा है, जहां हमें लगातार पॉजिटिव ग्रोथ देखने को मिल रही है. और वो है फार्मास्यूटिकल्स. ये अपेक्षा के अनुरूप ही है. वहीं जुलाई 2020 के दौरान केवल तंबाकू के क्षेत्र में ही सकारात्मक वृद्धि दर (6.1 प्रतिशत) देखने को मिली है. निर्माण के बाक़ी सभी प्रमुख क्षेत्रों के उत्पादन में कमी देखी जा रही है. वेटेज इंडेक्स के हिसाब से, देश के दस सबसे बड़े निर्माण क्षेत्रों में वृद्धि की हिस्सेदारी क़रीब 63 प्रतिशत है. और, जुलाई महीने में इनमें से ज़्यादातर में हमें दोहरे अंकों में नकारात्मक वृद्धि देखने को मिली है.
इस साल मई से जुलाई के दौरान, भारत में सिर्फ़ एक मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ऐसा है, जहां हमें लगातार पॉजिटिव ग्रोथ देखने को मिल रही है. और वो है फार्मास्यूटिकल्स. ये अपेक्षा के अनुरूप ही है.
दिक़्क़त ये है कि फार्मास्यूटिकल सेक्टर के उत्पादन का कुल IIP में हिस्सा पांच प्रतिशत है और तंबाकू का तो महज़ 0.8 फ़ीसद है. ऐसे में ये उम्मीद लगाना कि केवल इन दो सेक्टर्स में वृद्धि से हमारे देश का कुल औद्योगिक उत्पादन बढ़ जाएगा, ठीक उसी तरह होगा कि केवल 6 लोग मिलकर बाक़ी के 94 लोगों के हिस्से का वज़न उठा लेंगे. अगर, देश में कुल उत्पादन में सुधार लाना है, तो बहुत से अन्य सेक्टर्स में नई जान डालने के लिए जितनी जल्दी संभव हो, उपाय करने होंगे.
इस्तेमाल के आधार पर किए जाने वाले वर्गीकरण की दृष्टि से औद्योगिक उत्पादन में मासिक वृद्धि के आंकड़े बेहद मुश्किल हालात वाली तस्वीर पेश करते हैं. (Figure-1)
केवल उपभोक्ता अस्थायी वर्ग में ही जून 2020 से कोई सकारात्मक वृद्धि दर देखने को मिल रही है. लेकिन, इस सेगमेंट में भी जून की 14.3 प्रतिशत वृद्धि दर के मुक़ाबले जुलाई में ग्रोथ रेट केवल 6.7 प्रतिशत रही है. औद्योगिक उत्पादन के जिन सेक्टर पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ा है, वो हैं कंज़्यूमर ड्यूरेबल और कैपिटल गुड्स सेक्टर (यानी अधिकतर भारी औद्योगिक सामान) में. हम बस यही अपेक्षा कर सकते हैं कि प्राथमिक और मध्यम दर्जे के उत्पादों के सेक्टर में गिरावट की ये दर धीमी हो जाएगी. लेकिन, इनकी विकास दर को पॉज़िटिव होने में अभी और वक़्त लगने की आशंका है.
औद्योगिक क्षेत्र के लिए ये दौर बेहद मुश्किल है. और ऐसे हालात में जो सबसे आम मांग उठती है, वो है कॉरपोरेट टैक्स में रियायतों की. लेकिन, इस बार सरकार अगर वो रियायत दे भी देगी, तो उसका कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होने वाला है. यहां ध्यान देने वाली सबसे अहम बात ये है कि औद्योगिक उत्पादन में गिरावट की शुरुआत मार्च महीने से ही हो गई थी. जिसका मतलब है कि भारत के औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में गिरावट का दौर तो लॉकडाउन से पहले ही शुरू हो चुका था. महामारी के कारण ये मुश्किल कई गुना और बढ़ गई. आने वाले समय में रोज़गार के मामले में भी इसके विपरीत प्रभाव दिखने का डर है.
ऐसे में औद्योगिक उत्पादन को सुस्ती के इस दौर से निकालने का एक तरीक़ा ये हो सकता है कि सरकार इनपुट टैक्स में रियायतें दे. कुछ समय के लिए या तो इनपुट टैक्स को पूरी तरह ख़त्म कर दिया जाए, या फिर उसमें भारी कमी कर दी जाए (कुछ लोगों के मुताबिक़ अगले एक साल के लिए) तो, औद्योगिक उत्पादन सुधारने की दिशा में एक शुरुआत हो सकती है. लेकिन, यहां ये बात भी साफ है कि सरकार अभी सभी सेक्टरों को इनपुट सब्सिडी देने की हालत में ही नहीं है. ऐसे में इस रियायत की शुरुआत, सूचकांक में अधिक वज़न रखने वाले पांच निर्माण क्षेत्रों-धातु, तेल, केमिकल, प्रोसेस्ड फूड और ऑटोमोबाइल सेक्टर को रियायत देने से शुरुआत की जा सकती है. फिलहाल फार्मा सेक्टर को ये रियायत देने की ज़रूरत नहीं लगती. जब ये लाभ पाने वाले सेक्टरों में विकास दर के सुधरने की शुरुआत हो जाए, तो इन सेक्टरों को रियायत का लाभ देना बंद करके अन्य क्षेत्रों को मदद दी जा सकती है, जैसे कि मशीनरी और कल-पुर्ज़े, टेक्सटाइल और बिजली के यंत्र इनमें से कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं.
औद्योगिक उत्पादन को सुस्ती के इस दौर से निकालने का एक तरीक़ा ये हो सकता है कि सरकार इनपुट टैक्स में रियायतें दे. कुछ समय के लिए या तो इनपुट टैक्स को पूरी तरह ख़त्म कर दिया जाए, या फिर उसमें भारी कमी कर दी जाए (कुछ लोगों के मुताबिक़ अगले एक साल के लिए) तो, औद्योगिक उत्पादन सुधारने की दिशा में एक शुरुआत हो सकती है.
बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में पूरे देश में बड़े पैमाने पर सरकार के निवेश का एक विकल्प औद्योगिक उत्पादन की मांग बढ़ाने का एक अच्छा विकल्प है. इससे लोगों को तुरंत आमदनी हो सकेगी. ग्राहकों के हाथ में ख़रीदारी के लिए पैसे होंगे. जिससे मांग को पुनर्जीवित किया जा सकेगा. और इससे अन्य क्षेत्रों का औद्योगिक उत्पादन बढ़ाया जा सकेगा. इस दिशा में प्रोएक्टिव क़दम उठाने से औद्योगिक रिकवरी को पर्याप्त रूप से रफ़्तार दी जा सकती है.
इस मामले में अगर सकारात्मक क़दम उठाने में सरकार ज़रा भी ढिलाई बरतती है, तो ये देश में उद्योगों के लिए घातक साबित हो सकता है. और अर्थव्यवस्था के अलग अलग क्षेत्र में भयंकर असंतुलन पैदा होने का डर है. आज औद्योगिक क्षेत्र को मदद की सख़्त दरकार है.
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Abhijit was Senior Fellow with ORFs Economy and Growth Programme. His main areas of research include macroeconomics and public policy with core research areas in ...
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