Author : Samir Saran

Published on Jul 22, 2020 Updated 0 Hours ago

ऑक्सफ़ोर्ड पॉलिटिकल रिव्यू ने ORF के अध्यक्ष समीर सरन का इंटरव्यू किया था. ये भारत सरकार द्वारा पूरे देश में लागू किए गए लॉकडाउन की पृष्ठभूमि में किया गया था. इस इंटरव्यू में OPR ने समीर सरन के साथ भारत की क्षमताओं और चुनौतियों और कोविड-19 की वैश्विक महामारी से लड़ने में भारत की संभावित भूमिका जैसे विषयों पर भी बात की.

स्वास्थ्य नीति राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा है जिसके लिए सभी साझीदारों को संवाद बढ़ाने की ज़रूरत

Oxford Political Review: सख़्त लॉकडाउन से वायरस के प्रकोप को फैलने से रोकन की मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति प्रदर्शित होती है. लेकिन, क्या भारत इस महामारी और इससे निपटने के कारण उत्पन्न व्यापक आर्थिक उठापटक से निपट पाने के लिए तैयार है?

Samir Saran: सच तो ये है कि इस क़िस्म की भयंकर और व्यापक महामारी से निपटने में बहुत कम देश ही तैयार हैं. इस दृष्टि से देखें, तो भारत कई मामलों में इस महामारी से निपटने में अन्य देशों के मुक़ाबले में बेहतर स्थिति में है. क्योंकि, यहां की सरकार के पास संक्रामक बीमारियों और क़ुदरती आपदाओं से लड़ने का कई दशकों का अनुभव है. लेकिन, भारत के सामने इस बात की चुनौती भी है कि वो अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियों की विरासत से निपटने के साथ साथ इस महामारी से कैसे निपटे. अगर भारत नए कोरोना वायरस के संक्रमण को व्यापक स्तर पर फैलने से नहीं रोक पाता है, तो इसकी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी. इसी कारण से भारत में सख़्त लॉकडाउन लगाने का निर्णय किया गया.

इसके मुक़ाबले, लॉकडाउन के कारण उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों से निपट पाना भारत के लिए अधिक मुश्किल होगा. भारत अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की मदद से भारी मात्रा में जीवन और रोज़ी रोज़गार की क्षति होने से तो रोक लेगा. लेकिन, इस महामारी से भारत का असंगठित क्षेत्र बहुत बुरी तरह से प्रभावित होगा. अभी ये देखना बाक़ी है कि भारत इस अवसर का लाभ उठा कर अपनी तमाम प्रशासनिक और संस्थागत कमियों को दूर कर पाएगा अथवा नहीं. इन बाढाओं के कारण ही, भारत का असंगठित क्षेत्र पिछले सात दशकों से तमाम मुश्किलों का सामना कर रहा है. आज डिजिटलीकरण के रूप में भारत के पास एक ऐसा साझीदार है, जिसे एक शक्तिशाली नीतिगत व्यवस्था के तौर पर इस्तेमाल करके भारत की पेचीदा अर्थव्यवस्था की पहेलियों को सुलझाया जा सकता है.

अब जबकि हम लॉकडाउन के नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं. तो ये स्पष्ट है कि भारत की सरकार अपनी जनता की ज़िंदगी और उसके स्वास्थ्य का अर्थव्यवस्था की बेहतरी से संतुलन बैठाने का प्रयास कर रही है. इस बात की उम्मीद की जा रही है कि कृषि और निर्माण क्षेत्र जैसे कई सेक्टर में गतिविधियां फिर से शुरू हो जाएंगी. हालांकि अभी इनके पूर्ण क्षमता के साथ काम करने की संभावना कम ही है. और इन क्षेत्रों में भी काम काज सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ामों के साथ ही शुरू किया जाएगा. भारत में ‘स्मार्ट लॉकडाउन’ लागू करने की ये कोशिश, भारत और अन्य देशों के लिए काफ़ी उपयोगी है. ख़ास तौर से तब और जब हमें ये पता है कि इस महामारी से पूरी तरह उबर पाने में हमें काफ़ी वक़्त लग सकता है.

OPR: हाल ही में अपने एक लेख में आपने इस महामारी के संदर्भ में इन्फोडेमिक का ज़िक्र किया था कि किस तरह से सूचना और सूचना के नेटवर्कों ने कोविड-19 को लेकर संवाद को प्रभावित किया था. इस संदर्भ में आप विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे वैश्विक संगठनों की प्रतिक्रिया को किस दृष्टि से देखते हैं?

Samir Saran: ये एक दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि इस महामारी के शुरुआती हफ़्तों में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका के कारण ही दुनिया में इस वायरस को लेकर ग़लत सूचनाओं की भरमार हुई. शुरुआत में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यात्रा पर पाबंदियां न लगाने की सलाह दी थी. और कोविड-19 को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने में भी संगठन ने देर की थी. इसी वजह से कई देशों ने इस महामारी से निपटने के लिए देर से क़दम उठाए. क्योंकि उनके पास इस बारे में पूरी जानकारी का अभाव था. सूचना की ये कमी दुनिया भर के हज़ारों लोगों के लिए जानलेवा साबित हुई. विश्व स्वास्थ्य संगठन एक सलाहकार संगठन के तौर पर असफल रहा. क्योंकि ये सही समय पर दुनिया को इस महामारी के प्रति चेतावनी देने में नाकाम रहा. साथ ही साथ एक वैश्विक स्वास्थ्य संगठन की तकनीकी भूमिका निभा पाने में भी डब्ल्यूएचओ असफल रहा क्योंकि ये लगातार इस वायरस के प्रकोप के कारण, इसकी उत्पत्ति और इसकी संक्रामकता को लेकर चीन के मूल्यांकन को ही बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता रहा.

विश्व स्वास्थ्य संगठन एक सलाहकार संगठन के तौर पर असफल रहा. क्योंकि ये सही समय पर दुनिया को इस महामारी के प्रति चेतावनी देने में नाकाम रहा. साथ ही साथ एक वैश्विक स्वास्थ्य संगठन की तकनीकी भूमिका निभा पाने में भी डब्ल्यूएचओ असफल रहा

जबकि, इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी की रोकथाम में असफल रहने पर कई देशों को नाम लेकर दोषी ठहराया है. इसमें चीन भी शामिल है. लेकिन, इस बार संगठन ने चीन के व्याख्यान को ही बढ़ावा देकर अपनी विश्वसनीयता को गंवा दिया है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में अब डब्ल्यूएचओ का वैश्विक नेतृत्व ख़तरे में है. ये संगठन महत्वपूर्ण है और जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 देशों के वर्चुअल शिखर सम्मेलन में कहा भी कि आज विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार की भी ज़रूरत है औऱ इसे मज़बूत बनाए जाने की भी आवश्यकता है.

OPR: जिस तरह इस मसले पर अमेरिका और चीन एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं, उसमें भारत ख़ुद को किस भूमिका में देखता है? वैश्विक महत्वाकांक्षा रखने वाली एक उभरती हुई शक्ति के तौर पर क्या भारत के लिए ऐसे विवादों से ख़ुद को दुर रखना सही फ़ैसला है, जिसके वैश्विक प्रभाव पड़ने तय हैं? आपको क्या लगता है कि ये सही समय नहीं है कि अब भारत को भी इस बारे में अपनी राय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रखनी चाहिए कि इस महामारी को लेकर जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए अथवा नहीं?

Samir Saran: अमेरिका और चीन, दोनों ही देशों के उलट भारत हर वैश्विक चुनौती को केवल दो दृष्टियों से देखने के लिए बाध्य नहीं है. इस बात की संभावना कम ही है कि भारत इस विवाद में पड़ेगा कि इस वायरस को किस नाम से पुकारा जाना चाहिए. हालांकि, इस विषय में अमेरिका और चीन के बीच तुलना करना सही नहीं है. चीन ने तथ्यों को छुपाया. उनके इरादे ईमानदार नहीं थे. और इसके लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.

इस बात से इतर, भारत को ख़ुद को इस परिचर्चा से अलग नहीं रखना चाहिए. अब सवाल शब्दों के भंवर जाल का नहीं है. बल्कि असल चुनौती, वैश्विक संगठनों ख़ास तौर से संयुक्त राष्ट्र और इससे जुड़े अन्य संगठनों में चीन के बढ़ते दबदबे की है. और सवाल इस बात का है कि क्या चीन का प्रभुत्व बढ़ने के कारण इन संगठनों की निष्पक्षता, स्वतंत्रता और ईमानदारी पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है.

इन घटनाओं से भारत के लिए सबसे बड़ा सबक़ ये है कि इसे आने वाले दशक में वैश्विक संगठनों के प्रति अपने रवैये को नए सिरे से निर्धारित करने की आवश्कयता है. भारत को चाहिए कि वो इन संगठनों में अपनी पहुंच को और व्यापक बनाए. और ऐसे देशों के साथ  गठबंधन करे, जिससे उसके अपने हितों को बढ़ावा मिले और साथ ही साथ जो ताक़तें अपने हितों के लिए इन संगठनों को तोड़ मरोड़ रही हैं, उन्हें रोका जा सके. इसके लिए भारत को अपने वित्तीय और कूटनीतिक संसाधनों का इस्तेमाल करना होगा. और अब तक भारत इन दोनों का इस्तेमाल कर पाने में या तो असफल रहा है या फिर वो ऐसा करना नहीं चाहता.

OPR: कोविड-19 की महामारी के कारण भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को किस हद तक परिवर्तित कर सकता है? और विश्व स्तर पर अपनी भूमिका में किस तरह का बदलाव ला सकता है? क्षेत्रीय स्तर पर भारत ने जिस तरह मालदीव की मदद की, उसकी तारीफ़ हो रही है. लेकिन, जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के ट्वीट के बाद भारत ने हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के निर्यात पर लगे प्रतिबंध हटाए, उसे भारत के अमेरिकी दबाव में झुकने के तौर पर देखा जा रहा है. चूंकि भारत जेनेरिक दवाओं का बड़ा निर्माता है. इसके पास प्रशिक्षित पैरामेडिकल लोगों की अच्छी ख़ासी फौज है. और भारत के पास इस बात के लिए पर्याप्त संसाधन हैं कि वो हिंद प्रशांत क्षेत्र के बड़े इलाक़े तक अपनी पैठ बढ़ा सकता है. ऐसे में वो क्या कारण है जो भारत को कोविड-19 की महामारी के ख़िलाफ़ जंग में दुनिया का नेतृत्व करने से रोक रहे हैं?

Samir Saran: ट्रंप के ट्वीट को अगर हम उसके राष्ट्रपति काल के दौरान की अन्य सनक भरी घटनाओं के समान ही एक और उदाहरण मानें तो ही बेहतर होगा. दोनों ही देशों के मीडिया ने भी इस मुद्दे को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस घटना के बग़ैर भी भारत, अमेरिका और अन्य ज़रूरतमंद देशों को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा के निर्यात के लिए तैयार ही था. भारत के पास इस दवा का पर्याप्त भंडार है. और पिछले कई वर्षों से भारत अन्य देशों को इस दवा का निर्यात करता रहा है.

इस महामारी से निपटने के लिए भारत ने पहले तो सार्क देशों के साथ तुरंत साझा अभियान चलाने का प्रस्ताव रखा. इसके बाद G-20 देशों के वर्चुअल शिखर सम्मेलन की पहल करके भारत ने इस मुद्दे पर वैश्विक नेतृत्व की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है. जब इस महामारी का प्रकोप शुरू हुआ था, तो भारत ने दुनिया के कई देशों में फंसे अपने नागरिकों को वापस लाने का काम किया था. इसके साथ साथ भारत ने दुनिया के कई देशों को सार्वजनिक वस्तुओं का निर्यात भी किया है

इस शोर से इतर अगर हम असल संकेतों को समझने का प्रयास करें, तो पता ये चलता है कि भारत उन गिने चुने देशों में शामिल है, जो इस महामारी से निपटने के लिए दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं. इस महामारी से निपटने के लिए भारत ने पहले तो सार्क देशों के साथ तुरंत साझा अभियान चलाने का प्रस्ताव रखा. इसके बाद G-20 देशों के वर्चुअल शिखर सम्मेलन की पहल करके भारत ने इस मुद्दे पर वैश्विक नेतृत्व की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है. जब इस महामारी का प्रकोप शुरू हुआ था, तो भारत ने दुनिया के कई देशों में फंसे अपने नागरिकों को वापस लाने का काम किया था. इसके साथ साथ भारत ने दुनिया के कई देशों को सार्वजनिक वस्तुओं का निर्यात भी किया है.

भारत को चाहिए कि वो इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए अपनी घरेलू चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करे, ताकि विश्व मंच पर अपनी भूमिका को नए सिरे से परिभाषित कर सके. इस समय भारत को चाहिए कि वो अपने असली मित्रों और साझीदारों का भी मूल्यांकन करे. मेरे लिए तो महत्वपूर्ण ये है कि भारत की सरकार, अगले छह से बारह महीनों में किस तरह से अपनी जनता और अर्थव्यवस्था को इस संकट से मुक्ति दिलाती है. अगर भारत इस काम में सफल रहता है, तो दुनिया इस बात को और भारत की सफलता को तवज्जो देगी. और अगर हम इसमें नाकाम रहते हैं, तो हमारी कहानी अन्य देश लिखेंगे.

OPR: विदेश नीति और अर्थव्यवस्था की परिचर्चाओं को निर्धारित करने और संभावित भूमिका निभाने के अतिरिक्त, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन सार्वजनिक स्वास्थ्य की भी एक पहल चलाता है. भारत सरकार और बड़े उद्योगपतियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों के अतिरिक्त क्या ओआरएफ (ORF) जैसे थिंक टैंक भी मौजूदा संकट से निपटने के भारत के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं?

 

Samir Saran: ORF ने एक नीतिगत थिंक टैंक होने के नाते इस महामारी से निपटने के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया दी थी. हमने अपने कोविड-19 ट्रैक की मदद से भारत में इस महामारी के फैलते प्रकोप के बारे में जानकारी दी है. और पूरी दुनिया में भी हम सटीक और त्वरित जानकारी देने में काफ़ी आगे हैं. हम इस विषय में सार्वजनिक स्वास्थ्य, वित्त भौगोलिक राजनीति और अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा प्रति दिन लेख और निबंधों का प्रकाशन कर रहे हैं. ताकि इस महामारी के वास्तविक प्रभाव का पूरी तरह से सही मूल्यांकन और भविष्य के बारे में सटीक आकलन को प्रस्तुत कर सकें. और हम ये उम्मीद करते हैं कि हम ORF के डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से जनता को इस संकट के तमाम आयामों के बारे में जानकारी दे सकेंगे.

थिंक टैंक को चाहिए कि वो ख़ास तौर से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में अपने देशों की सरकारों की क्षमताओं को बढ़ाने में योगदान दें. न केवल इस महामारी के दौरान बल्कि, कम मुश्किल दौर और सामान्य दिनों में भी उन्हें इस ज़िम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए. हम पूरी दुनिया से तमाम विषयों पर ईमानदारी से सभी पक्षों को प्रस्तुत करने की अपनी भूमिका का निर्वाह करते आ रहे हैं. ख़ास तौर से आज के दौर में जब ग़लत जानकारी कुलांचे भर रही है. हमारे जैसे संगठनों को चाहिए कि वो अन्य संगठनों और विशेषज्ञों को साथ लाएं, जो विविध विषयों पर अपने दृष्टिकोण लोगों के सामने रख सकें. उन लोगों को तमाम समस्याओं के समाधान सुझा सकें, जो इन्हें जानने के इच्छुक हैं.

कुछ वर्षों पूर्व ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में हमने ये तर्क रखा था कि स्वास्थ्य नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में आती है. इसलिए इस क्षेत्र के तमाम साझेदारों और अलग अलग विषयों पर विभिन्न तरह के दृष्टिकोण रखने वाले विशेषज्ञों को इस मुद्दे पर आपस में संवाद करना चाहिए. अच्छा हो कि कूटनीति, अर्थशास्त्र और तकनीक के विशेषज्ञ इस विषय पर अपनी राय प्रतिपादित करें. इस महामारी ने बहुत से लोगों को ऐसा करने पर मजबूर कर दिया है.


यह साक्षात्कार मूलरूप से ऑक्सफ़ोर्ड पॉलीटिकल रिव्यू में प्रकाशित हो चुका है.

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