Published on Jul 28, 2020 Updated 0 Hours ago

कोविड से पहले के समय में मेडिकल कम्युनिटी और स्वास्थ्य पर नीति बनाने वालों में इस बात पर गरम बहस हो चुकी है कि क्या तकनीक स्वास्थ्य देखभाल के सबसे ज़रूरी स्वभाव- असरदार देखभाल के लिए नज़दीकी संपर्क में रहने को ख़त्म कर देगी.

डिजिटल भविष्य के स्वास्थ्यकर्मी:  तकनीक को लेकर मिश्रित स्वास्थ्य नीति की ज़रूरत

कोविड-19 ने लोगों के स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक बातचीत को तेज़ी से बदल डाला है. डिजिटल स्वास्थ्य की ज़रूरत अब कोई सवाल या चर्चा का विषय नहीं रह गया है. वैश्विक स्वास्थ्य के लिए डिजिटल तकनीक और डाटा साइंस को अपनाना कम समय में महामारी को हराने और स्वास्थ्य व्यवस्था को भविष्य की लड़ाई के लिए तैयार रखने का इकलौता रास्ता है.

राष्ट्रीय हो या वैश्विक स्तर, स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने के लिए हर देश की रणनीति में तकनीकी तौर पर सक्षम रक्षा और आक्रमण रणनीति ज़रूर होगी. भविष्य के स्वास्थ्य से जुड़े ख़तरे के ख़िलाफ़ तैयारी डिजिटल स्वास्थ्य को पूरी तरह बदल देगी. साथ ही ये मोर्चे पर तैनात स्वास्थ्य सैनिकों की प्रोफेशनल प्रोफाइल, हुनर और टूल बॉक्स को भी बदल देगी. 

क्या आज के स्वास्थ्यकर्मी स्वास्थ्य के डिजिटल भविष्य को अंजाम तक पहुंचा पाएंगे? 

जब पूरी दुनिया में सरकारें स्वास्थ्य प्रणाली के साथ तकनीक को जोड़ने के लिए डिजिटल और मोबाइल कनेक्टिविटी का विस्तार करने में लगी हैं, उसी वक़्त एक महत्वपूर्ण सवाल पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. क्या आज के स्वास्थ्यकर्मी डिजिटल भविष्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए तैयार हैं ? तैयारी के दोनों पहलुओं यानी क्षमता और योग्यता के आधार पर इसका सीधा जवाब है नहीं.

वैश्विक क्षमता के मामले में स्वास्थ्यकर्मियों की मांग हमेशा सप्लाई से ज़्यादा रही है. स्वास्थ्यकर्मियों की कमी किसी देश के सामाजिक-आर्थिक हालत के आधार पर किसी तरह काम चलाने से लेकर बेहद ज़्यादा तक है. अच्छी तरह तैयार स्वास्थ्य प्रणाली को भी कोविड-19 की वजह से ज़बरदस्त चोट के बाद दुनिया भर के देशों में स्वास्थ्यकर्मियों की क्षमता को बढ़ाना प्राथमिकता बन गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक़ 2030 तक दुनिया के 165 देशों में 8.02 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों की ज़रूरत होगी जबकि मौजूदा संख्या क़रीब 4.80 करोड़ है.

आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य सेवा पहले से काफ़ी ज़्यादा तकनीक आधारित होगी. हर देश में स्वास्थ्यकर्मियों के विवरण को अपने द्वारा तय डिजिटल स्वास्थ्य प्राथमिकता के साथ ज़रूर जोड़ना चाहिए

हालांकि, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या को कुछ महीनों के दौरान नहीं बढ़ाया जा सकता. ये लंबी प्रक्रिया है जो हर हाल में जल्द शुरू होनी चाहिए ताकि लाखों स्वास्थ्यकर्मियों की कमी को ख़त्म किया जा सके. अर्थव्यवस्था के कमज़ोर होने के कारण इसको लेकर और तेज़ी से काम करने की ज़रूरत है. ये बात साबित हो चुकी है कि स्वास्थ्य सेक्टर में निवेश करने से रोज़गार का निर्माण होता है ख़ासतौर पर महिलाओं और युवाओं के लिए. भविष्य में स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी ज़रूरत के आधार पर स्वास्थ्य सेवा में नई कंपनियों को तैयार करने का मौक़ा है. आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य सेवा पहले से काफ़ी ज़्यादा तकनीक आधारित होगी. हर देश में स्वास्थ्यकर्मियों के विवरण को अपने द्वारा तय डिजिटल स्वास्थ्य प्राथमिकता के साथ ज़रूर जोड़ना चाहिए. हालांकि, हर देश के लिए निश्चित तौर-तरीक़े अलग-अलग होंगे लेकिन आम निर्देश निम्नलिखित सिद्धांतों का मेल होंगे.

हुनर बढ़ाओ, एक-दूसरे से सीखो 

आज के स्वास्थ्यकर्मियों के लिए स्वास्थ्य प्रणाली का डिजिटलीकरण और उससे जुड़ी देखभाल के ब्लूप्रिंट का स्थानीय स्तर पर लागू होना उनके काम-काज के नये तौर-तरीक़ों का आकार तय करेगा. ये मिश्रित रूप में होगा यानी अच्छी सेहत बनाने के लिए मरीज़ की शारीरिक और डिजिटल देखभाल अलग-अलग अनुपात में इसमें शामिल होगी.

क्लिनिकल सर्विस और प्रोडक्ट में तकनीक को जोड़ने से भी नई तरह की नौकरियां पैदा होंगी- जीव विज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान के मेल-जोल से भविष्य के लिए लोगों के सामान या मेडिकल उत्पाद का आविष्कार और उन्हें संभालने का काम मिलेगा (नये ज़माने का इलाज, डायग्नोस्टिक्स और प्रिवेंटिव हेल्थ उपकरण). वो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), रोबोटिक्स, प्रेडिक्टिव एनेलिटिक्स इत्यादि के ज़रिए मेडिसीन, जीनोमिक्स और इंजीनियरिंग की श्रेणी में आएंगे.

सरकारों के लिए ज़रूरी है कि वो तुरंत कार्रवाई के ज़रिए मेडिकल और बायोफार्मा से जुड़े प्रोफेशनल्स के हुनर और सोच को बढ़ाएं ताकि वो अपने काम-काज में डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल करें. वर्चुअल देखभाल के लिए टेलीमेडिसीन का हाल के दिनों में इस्तेमाल (कोविड-19 की वजह से जिसे मजबूरन शुरू किया गया) भविष्य के मरीज़ और फिज़िशियन के तकनीक अपनाने की एक झलक है. लेकिन इसके बावजूद ये पूरी तरह नहीं दिखाता कि स्वास्थ्य तकनीक में बदलता रुझान स्वास्थ्यकर्मियों के लिए हुनर में बदलाव की रफ़्तार और प्रकृति को परिभाषित करेगा.

कौशल में बढ़ोतरी के लिए ये भी ज़रूरी है कि आज के स्वास्थ्य कर्मी फ़ैसला लेने में तकनीक का कितना इस्तेमाल करते हैं, उसके बारे में पता लगाया जाए.

कोविड से पहले के समय में मेडिकल कम्युनिटी और स्वास्थ्य पर नीति बनाने वालों में इस बात पर गरम बहस हो चुकी है कि क्या तकनीक स्वास्थ्य देखभाल के सबसे ज़रूरी स्वभाव- असरदार देखभाल के लिए नज़दीकी संपर्क में रहने को ख़त्म कर देगी. सवाल उठाए जा चुके हैं कि क्या AI इलाज को संपर्कहीन कर देगा, क्या देखभाल के मानक में कमी आएगी, क्या रेडियोलॉजी स्कैन को देखने, इलाज या बीमारी का पूर्वानुमान AI/ML के ज़रिए करने पर मरीज़ से ध्यान बंटेगा. मरीज़ के अधिकार और डाटा प्राइवेसी को लेकर जायज़ शक और चिंताए की जा चुकी हैं. सबसे महत्वपूर्ण, AI/ML की सुरक्षा और भरोसे को लेकर उचित अविश्वास भी उठाए जा चुके हैं.

कोविड के बाद अब सोच काफ़ी बदल गई है. मौजूदा हालात ने तकनीक को लेकर निराशावादी लोगों और विरोधियों को उनकी सोच से हटने के लिए मजबूर कर दिया है. अब वो रचनात्मक आलोचक बन गए हैं

इसके नतीजे के तौर पर डिजिटल स्वास्थ्य को लेकर बातचीत में अब तक तीन तरह के भागीदार देखे जा चुके हैं: पहले भागीदार वो हैं जो मज़बूती से यकीन करते हैं कि स्वास्थ्य तकनीक दुनिया को टिकाऊ विकास का लक्ष्य हासिल करने की तरफ़ ले जाएगी. दूसरे भागीदार वो हैं जिन्होंने ऊपर जिन सवालों का ज़िक्र किया गया है, उनमें से ज़्यादातर सवाल उठाए हैं. तीसरे भागीदार वो हैं जिन्हें लगता है कि तकनीक उनके करियर के लिए ख़तरा है या मेडिसीन की युगों पुरानी, पवित्र परंपरा में अवांछित घुसपैठ है.

लेकिन कोविड के बाद अब सोच काफ़ी बदल गई है. मौजूदा हालात ने तकनीक को लेकर निराशावादी लोगों और विरोधियों को उनकी सोच से हटने के लिए मजबूर कर दिया है. अब वो रचनात्मक आलोचक बन गए हैं. इस तरह तकनीक पर भरोसा करने वाले और रचनात्मक आलोचना करने वाले मरीज़ों को केंद्र से हटाए बिना, डाटा सुरक्षा और प्राइवेसी के अधिकार से समझौता किए बिना डिजिटल तकनीक का असरदार फ़ायदा उठाने के लिए एकजुट होंगे. वो बदलाव लाने वाले बनेंगे, नये सिस्टम की शुरुआत करने वाले होंगे और आज के स्वास्थ्यकर्मियों को डिजिटल हुनर की ट्रेनिंग देने वाले भी.

मैट्रिक्स में दाखिल होना 

दीर्घकालीन लक्ष्य के तौर पर, सीखने के लिए और भविष्य के स्वास्थ्यकर्मियों को डिजिटल ज्ञान में माहिर बनाने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा में आमूल-चूल सुधार की ज़रूरत है. इसके लिए पाठ्यक्रम को बदलना होगा, ट्रेनिंग और मूल्यांकन के तरीक़ों में बदलाव करना होगा. इसके अलावा छात्रों के चयन की कसौटी और एपटीट्यूड टेस्ट नये ढंग से करना होगा.

मेडिकल और नर्सिंग कॉलेज को तकनीकी शिक्षा संस्थानों के साथ मिलकर प्रशिक्षण का नया तरीक़ा विकसित करना होगा. उदाहरण के तौर पर, मेडिकल साइंस, नर्सिंग या पैरामेडिकल छात्र को ज़रूरी रूप से कंप्यूटर साइंस, बायो-इंजीनियरिंग, गणित और उससे जुड़े विषय का भी कोर्स करना होगा. इसी तरह इंजीनियरिंग और गणित के छात्र के लिए ज़रूरी होगा कि वो चुना हुआ मेडिकल कोर्स करे ताकि उसे मरीज़ों और स्वास्थ्यकर्मियों के तजुर्बे और चुनौती का पता चल सके. इस तरह वो हेल्थकेयर और लाइफ साइंस सेक्टर के लिए डिजिटल उत्पाद तैयार कर सकेगा. प्राथमिक स्वास्थ्यकर्मी के चयन और प्रशिक्षण में भी डिजिटल साक्षरता को अनिवार्य रूप से जगह दी जाए.

मेडिकल और नर्सिंग कॉलेज को तकनीकी शिक्षा संस्थानों के साथ मिलकर प्रशिक्षण का नया तरीक़ा विकसित करना होगा. उदाहरण के तौर पर, मेडिकल साइंस, नर्सिंग या पैरामेडिकल छात्र को ज़रूरी रूप से कंप्यूटर साइंस, बायो-इंजीनियरिंग, गणित और उससे जुड़े विषय का भी कोर्स करना होगा

कुछ देश जैसे यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया ने पिछले साल डिजिटल हेल्थ के लिए अपने कामगारों को तैयार करने के मक़सद से विचार-विमर्श शुरू कर दिया है. उदाहरण के लिए, 2019 में यूनाइटेड किंगडम की नेशनल हेल्थ सर्विस ने जीनोमिक्स, टेलीमेडिसीन और AI आधारित तकनीकों की पहचान अपने भविष्य के कामगारों के प्रशिक्षण और शिक्षा की योजना में प्रमुख क्षेत्र के रूप में की है.

भविष्य के टेक्लिनिकल कामगार 

संक्षेप में कहें तो भविष्य में अलग-अलग क्षेत्रों की प्रोफेशनल टीम इलाज में इस्तेमाल होने वाले डिजिटल टूल के निर्माण में साथ मिलकर काम करेगी. इस भूमिका में आगे रहने वाले वो लोग होंगे जो तकनीक और क्लिनिकल साइंस या “टेक्लिनिकल” में माहिर होंगे. मरीज़ के अच्छे इलाज के लिए सभी स्वास्थ्य कर्मी डिजिटल तकनीक में दक्ष होंगे. दोनों  के मिले-जुले असर से मरीज़ का अच्छा इलाज हो सकेगा. डिजिटल हेल्थ को लेकर आशावादी रुख़ रखने वाले डॉ. एरिक टोपोल (स्क्रिप्स रिसर्च ट्रांसलेशनल इंस्टीट्यूट में मॉलीक्यूलर मेडिसीन के प्रोफेसर) के अनुमान के मुताबिक़ AI और दूसरी तकनीकों की मदद से मरीज़ का असली इलाज संभव हो सकेगा.

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