Author : Nivedita Kapoor

Published on Mar 07, 2020 Updated 0 Hours ago

रूस की प्रशासनिक व्यवस्था की ये कह कर आलोचना होती रही है कि इसमें राष्ट्रपति सर्वशक्तिमान है. ऐसे में अगर देश की संसद को कुछ और अधिकार मिल रहे हैं, तो ये स्वागत योग्य क़दम है.

रूस के संविधान में बदलाव के आसार: जवाब से ज़्यादा हो रहे हैं सवाल खड़े!

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने देश के संविधान में कई परिवर्तनों की घोषणा की है. राष्ट्रपति पुतिन की इस घोषणा को ज़्यादातर जानकार, 2024 के पश्चात रूस के राजनीतिक नेतृत्व का निर्धारण करने की दिशा में पहले क़दम के तौर पर देख रहे हैं. 11 फ़रवरी 2020 को रूस की संसद के निचले सदन, स्टेट ड्यूमा में संविधान में किए जाने वाले संशोधन को लेकर दोबारा परिचर्चा शुरु हुई. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने संविधान में संशोधन के प्रस्तावों की घोषणा 15 जनवरी 2020 को केंद्रीय असेंबली को अपने संबोधन में की थी. और इन संविधानों पर पहली मुहर लगाने की प्रक्रिया एक सप्ताह से भी कम समय में पूरी हो गई थी. 20 जनवरी तक ड्यूमा ने प्रथम परिचर्चा के पश्चात इन संशोधनों को सर्वसम्मति से हरी झंडी दे दी थी. ऐसा माना जा रहा था कि इन संविधान संशोधनों पर रशियन स्टेट ड्यूमा के दोबारा मुहर लगाने की परिचर्चा 11 फ़रवरी से शुरू होगी. पर फिलहाल ये प्रक्रिया आरंभ नहीं हुई है. राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित संशोधनों एवं विपक्ष के साथ-साथ 72 सदस्यों वाले वर्किंग ग्रुप के सुझावों पर अब एक जनमत संग्रह 22 अप्रैल को होने की संभावना है.

हालांकि, रूस के राजनीतिक हलकों की गतिविधियों में आई इस तीव्रता से अगर किसी को ये अपेक्षा थी कि रूस के सामने खड़े प्रमुख प्रश्नों, 2024 के बाद पुतिन का उत्तराधिकारी कौन होगा और स्वयं पुतिन का उसके बाद क्या रोल होगा, के उत्तर मिलेंगे. लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है. हालांकि, ये तो स्पष्ट है कि रूस के संविधान में ये संशोधन, पुतिन के उत्तराधिकार की प्रक्रिया की शुरुआत हैं. और इनका नेतृत्व स्वयं व्लादिमीर पुतिन कर रहे हैं. लेकिन, इस संबंध में अन्य जानकारियां सामने नहीं आ पा रही हैं.

रूस के संविधान के इन संशोधनों में से सबसे प्रमुख है प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति से लेकर स्टेट ड्यूमा यानी रूस की संसद के निचले सदन को देना. मौजूदा संविधान के अनुसार, रूस में प्रधानमंत्री को नियुक्त करने के लिए केवल ड्यूमा की सहमति लेने की आवश्यकता होती है. और अगर राष्ट्रपति द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री को रूस की संसद तीन बार नकार देती है, तो राष्ट्रपति के पास संसद को भंग करने का भी अधिकार है. लेकिन, प्रस्तावित संविधान संशोधनों के अनुसार अब राष्ट्रपति को ड्यूमा द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के चुनाव को मानना ही होगा.

एक ऐसी ज़मीन तैयार की जा सकती है जिसमें पुतिन की निरीक्षणात्मक भूमिका के लिए एक ठोस संस्थागत व्यवस्था बना दे. लेकिन, इसमें ये ख़तरा भी है कि ये सत्ता के एक वैकल्पिक केंद्र के तौर पर उभर सकती है

यहां ये ध्यान देने योग्य बात है कि इस शक्ति के बग़ैर भी रूस के राष्ट्रपति के पास कई महत्वपूर्ण अधिकार होंगे (नीचे सारणी देखें). पुतिन ने 15 जनवरी को अपने भाषण में ख़ुद ही कहा था कि इन संशोधनों के बावजूद रूस एक मज़बूत राष्ट्रपति वाला गणराज्य होगा.

1993 के संविधान के अनुसार रूस के राष्ट्रपति की शक्तियां-

  1. रूस गणराज्य का राष्ट्रपति देश का राष्ट्राध्यक्ष होता/होती है.
  2. रूस का राष्ट्रपति ही देश की घरेलू एवं विदेश नीति के मूलभूत लक्ष्यों का निर्धारण करता/करती है.
  3. रूस के राष्ट्रपति, देश की संसद यानी ड्यूमा की सहमति से सरकार के प्रमुख की नियुक्ति करता है.
  4. रूस के राष्ट्रपति के पास सरकार की बैठकों की अध्यक्षता का अधिकार होता है.
  5. सरकार के त्यागपत्र से जुड़े निर्णय लेने का अधिकार भी राष्ट्रपति के पास है.
  6. रूस के राष्ट्रपति ही देश के केंद्रीय बैंक का नाम संसद यानी ड्यूमा को प्रस्तावित करते हैं.
  7. सरकार के प्रमुख के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति ही सरकार के उपाध्यक्ष और केंद्रीय मंत्रियों की नियुक्ति अथवा उन्हें पद से मुक्त करने के निर्णय लेता है.
  8. रूस के राष्ट्रपति ही गणराज्य की परिषद के समक्ष संवैधानिक कोर्ट के न्यायाधीशों, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों, सर्वोच्च परिवाद (शिक़ायत) निस्तारण अदालत के जजों के प्रत्याशी प्रस्तावित करते हैं. साथ ही वो सरकार के सबसे बड़े वक़ील एवं अन्य केंद्रीय अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं.
  9. रूस के राष्ट्रपति रूसी गणराज्य की सुरक्षा परिषद का गठन करते हैं. एवं उसके अध्यक्ष भी होते हैं.
  10. राष्ट्रपति ही देश की सैन्य डॉक्ट्रिन तय को मंज़ूरी देते हैं.
  11. रूस के राष्ट्रपति ही सर्वाधिकार प्राप्त प्रतिनिधियों की नियुक्ति एवं बर्ख़ास्तगी करते हैं.
  12. राष्ट्रपति के पास ही देश की सभी सेनाओं के सर्वोच्च कमांडरों की नियुक्ति एवं उन्हें पदच्युत करने का अधिकार होता है.
  13. राष्ट्रपति के पास ही देश की संसद यानी ड्यूमा को भंग करने का संविधान सम्मत अधिकार होता है.
  14. देश में जनमत संग्रहों, प्रस्तावित क़ानूनों के ड्राफ़्ट को ड्यूमा के समक्ष प्रस्तुत करने और केंद्रीय क़ानूनों पर हस्ताक्षर कर के उन्हें जारी करने का अधिकार,राष्ट्रपति के पास ही होता है.
  15. रूसी गणराज्य की विदेश नीति को निर्देशित करता है.
  16. राष्ट्रपति ही देश की सभी सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर होता है.
  17. राष्ट्रपति कोई भी अध्यादेश, क़ानून, निर्देश या नियम जारी कर सकता है.

हालांकि, रूस की प्रशासनिक व्यवस्था की ये कह कर आलोचना होती रही है कि इसमें राष्ट्रपति सर्वशक्तिमान है. ऐसे में अगर देश की संसद को कुछ और अधिकार मिल रहे हैं, तो ये स्वागत योग्य क़दम है. सच तो ये है कि, जैसा कि विद्वानों ने कहा कि रूस की संवैधानिक व्यवस्था में संतुलन बनाने के ये क़दम, पुतिन के राजनीतिक परिदृश्य से जाने के पश्चात भी सकारात्मक असर दिखाएंगे. अगर इनके साथ मज़बूत राजनीतिक दल एवं ज़्यादा प्रभावशाली मंत्रिमंडल वाली व्यवस्था का भी उदय हुआ, तो इस बात की संभावना है कि रूस में भविष्य में एक मज़बूत संसद का प्रादुर्भाव होगा.

राष्ट्रपति पद के लिए किसी भी व्यक्ति के दो बार से अधिक इस पर न बैठने की पाबंदी और साथ ही लगातार शब्द को संविधान से हटाने की वजह से भविष्य में रूस का कोई भी राष्ट्रपति दो बार से अधिक राष्ट्रपति नहीं बन सकेगा. साथ ही इस बात की भी उम्मीद जगही है कि पुतिन वास्तव में 2024 के बाद ये पद छोड़ देंगे. अब चूंकि राष्ट्रपति ने स्वयं ये कहा है कि इन संवैधानिक संशोधनों को जनमत संग्रह से मंज़ूरी मिलने के बाद वो इन पर दस्तख़त कर देंगे. तो इससे इस अपेक्षा को और बल मिलता है कि 2024 के बाद पुतिन राष्ट्रपति नहीं रहेंगे. अगर, राष्ट्रपति पद पर लगी ये पाबंदी जनमत संग्रह के बाद भी बनी रहती है, तो ये एक सकारात्मक क़दम होगा. इससे किसी एक व्यक्ति के लंबे समय तक राष्ट्रपति पद की शक्तियों का प्रयोग कर पाने की संभावना ख़त्म हो जाएगी. साथ ही, संविधान संशोधन में ये भी प्रस्ताव है कि रूस का राष्ट्रपति बनने के लिए किसी व्यक्ति को कम से कम 25 वर्ष तक लगातार स्थायी रूप से रूस में रहने की शर्त पूरी करनी होगी. इसके अतिरिक्त उसके पास कभी भी किसी अन्य देश का पासपोर्ट न होने की शर्त भी पूरी करनी होगी. इससे इस समय विदेश में रह रहे विपक्षी नेताओं के राष्ट्रपति चुनाव में शामिल होने का रास्ता बंद हो जाएगा.

ये घोषणाएं, जो पुतिन के बाद की व्यवस्था पर से पर्दा उठाने के लिए की गई हैं. लेकिन, इनसे भी 2024 के बाद रूस में पुतिन के रोल को लेकर अटकलों का दौर ख़त्म नहीं हुआ है. क्योंकि तब, पुतिन का राष्ट्रपति के तौर पर संवैधानिक कार्यकाल ख़त्म हो जाएगा. अब जिस तरह से राष्ट्रीय परिषद का नए सिरे से पुनर्गठन किया जा रहा है. जिसके अंतर्गत ये अब एक सलाहकार परिषद मात्र न रहकर ऐसी संस्था बन जाएगी, जिसकी संवैधानिक मान्यता एवं भूमिका होगी. इससे इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद पुतिन, इस परिषद की कमान अपने हाथों में ले लेंगे. सैद्धांतिक रूप से अधिक शक्तियों वाली स्टेट काउंसिल पुतिन को निरीक्षक की भूमिका में रहने का अधिकार देगी. साथ ही साथ वो भविष्य के नेता पर भी नियंत्रण बनाए रख सकेंगे.

आने वाले वर्षों में नई राजनीतिक व्यवस्था की रूप-रेखा बनाने का अधिकार अपने हाथ में रखेंगे. लेकिन अभी इसका ठोस स्वरूप स्पष्ट नहीं है.

हालांकि, संविधान संशोधन के विधेयक में स्टेट काउंसिल की संरचना में परिवर्तनों के बारे में विस्तार से कुछ नहीं कहा गया है. न तो इसकी अध्यक्षता, निर्णय लागू कराने की शक्तियां और यहां तक कि राष्ट्रपति की तुलना में इसकी शक्तियां क्या होंगी, ये स्पष्ट नहीं किया गया है. प्रस्तावित संविधान संशोधन से स्टेट काउंसिल की गतिविधियों का दायरा अवश्य बढ़ाया गया है. जिसमें सरकारी अधिकारियों के बीच परस्पर समन्वय, घरेलू एवं वाह्य नीतियों की दशा-दिशा को परिभाषित करना और देश के सामाजिक-आर्थिक विकास की प्राथमिकताएं तय करना सम्मिलित है.

इन जानकारियों को विस्तार से समझने के लिए हमें इंतज़ार करना होगा और देखना होगा कि पुनर्गठित स्टेट काउंसिल कैसी दिखेगी और इसका रूस की राजनीतिक व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा. हालांकि, एक तरफ़ इसके माध्यम से एक ऐसी ज़मीन तैयार की जा सकती है जिसमें पुतिन की निरीक्षणात्मक भूमिका के लिए एक ठोस संस्थागत व्यवस्था बना दे. लेकिन, इसमें ये ख़तरा भी है कि ये सत्ता के एक वैकल्पिक केंद्र के तौर पर उभर सकती है. इससे भविष्य में सरकार के अलग-अलग धड़ों के बीच सत्ता संघर्ष छिड़ने की आशंका उत्पन्न होगी. इसीलिए, ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि स्टेट काउंसिल को संविधान के दायरे में लाने के बाद इसकी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कौन सी व्यवस्था की जाती है.

ऐसे में इस मोड़ पर सिर्फ़ ये अटकल लगाई जा सकती है कि पुतिन, स्टेट काउंसिल के प्रमुख के तौर पर अपने लिए एक नई भूमिका देख रहे हैं. अगर उनकी योजना सत्ता को अपने हाथ में बनाए रखने की है, तो अभी ये स्पष्ट नहीं है कि वो कैसे संभव होगा. इसी वजह से मौजूदा स्थिति इतनी स्पष्ट नहीं है कि ये आकलन किया जाय कि 2024 के बाद रूस की राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप कैसा होगा. इस बात की संभावना तो है कि पुतिन, आने वाले वर्षों में नई राजनीतिक व्यवस्था की रूप-रेखा बनाने का अधिकार अपने हाथ में रखेंगे. लेकिन अभी इसका ठोस स्वरूप स्पष्ट नहीं है.

अगर, संविधान संशोधन की दूसरी परिचर्चा के दौरान बदलाव से जुड़ी बातें स्पष्ट रूप से सामने नहीं आतीं, ख़ास तौर से स्टेट काउंसिल की भविष्य की तस्वीर को लेकर और ये साफ़ नहीं होता कि पुतिन का उत्तराधिकारी कौन होगा, तब तक रूस की राजनीतिक व्यवस्था में अनिश्चितता का माहौल बना रहेगा. ये उन लोगों के लिए निराशाजनक होगा, जो इस उम्मीद में थे कि इस राजनीतिक प्रश्न का उत्तर मिल जाने के बाद, वो रूस की उन अन्य गंभीर आर्थिक चुनौतियों की तरफ़ ध्यान केंद्रित कर सकेंगे, जिन पर तुरंत ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है.

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