ग्रिड स्केल बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम: क्या ये उम्मीदों पर खरे उतरेंगे?
ग्रिड कनेक्टेड बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीईएसएस) एक तकनीकी विकल्प है जो अक्षय ऊर्जा के ज़्यादातर भाग को अपने आप में समाहित कर सकता है और ग्रिड स्थिरता में मददगार साबित हो सकता है. भारत के 2030 तक 500 गीगा वॉट अक्षय ऊर्जा (आरई) क्षमता के प्रस्तावित लक्ष्य को साकार करने के लिए ज़रूरत है कि लगातार सौर ऊर्जा को बीईएसएस के साथ जोड़ा जाए जिससे दिन-रात बिजली की आपूर्ति हो सके, यहां तक कि गर्मी, सर्दी और मानसून के दौरान भी बिजली की आपूर्ति की जा सके. बीईएसएस को भारत के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प के रूप में पेश किया गया है क्योंकि इसके लिए कम समय में परिस्थितियों के अनुसार ढलने की क्षमता की आवश्यकता होती है जो दिन के बीच में और शाम के वक़्त बिजली की ज़्यादा मांग के बीच सामंजस्य बैठा सके. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए ) को उम्मीद है कि भारत में 2040 तक लगभग 140 गीगावॉट बैटरी स्टोरेज की क्षमता हो जाएगी, जो किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज़्यादा है. सरकार का अनुमान है कि भारत को 2030 तक बीईएसएस से जुड़े 27 गीगावॉट ग्रिड की आवश्यकता होगी. हाल में ही एक अध्ययन के मुताबिक 500 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को 63 गीगावॉट/252 (गीगावॉट घंटा) बीईएसएस की आवश्यकता होगी.
एईएस और मित्सुबिशी द्वारा ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकी और एकीकरण सेवा प्रदाता फ्लुएंस के साथ बनाई गई परियोजना, जो ख़ुद सीमेंस और एईएस का एक संयुक्त उपक्रम है.
भारत में बैटरी स्टोरेज प्रोजेक्ट्स
भारत को साल 2019 में अपना पहला ग्रिड-स्केल आधारित विकसित लिथियम-आयन बैटरी स्टोरेज सिस्टम मिला था, जब दिल्ली में टाटा पावर वितरण नेटवर्क पर एक घंटे के भंडारण की पेशकश करने वाली 10 मेगावाट (मेगावाट) / 10 मेगावाट (मेगावाट घंटा) प्रणाली को शुरू किया गया था. एईएस और मित्सुबिशी द्वारा ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकी और एकीकरण सेवा प्रदाता फ्लुएंस के साथ बनाई गई परियोजना, जो ख़ुद सीमेंस और एईएस का एक संयुक्त उपक्रम है. उसने टाटा पावर के 2,000 मेगावॉट बिजली नेटवर्क के वितरण के लिए ऊर्जा भंडारण की उच्चतम क्षमता की जांच शुरू की थी. मार्च 2021 में, टाटा पावर ने लिथियम-आयन बैटरी और स्टोरेज कंपनी नेक्सचार्ज़ की मदद से एक 150 किलोवॉट (किलोवॉट) / 528 किलोवॉट (किलोवॉट घंटा) बैटरी स्टोरेज सिस्टम स्थापित किया था, जो वितरण स्तर पर आपूर्ति की विश्वसनीयता में सुधार करने और उच्चतम मांग इसके वितरण करने वाले ट्रांसफॉर्मर पर लोड को कम करने के लिए छह घंटे के भंडारण की पेशकश की. ऑफ-पीक घंटों के दौरान चार्ज करने और पीक आवर्स के दौरान बिजली का निर्वहन करने के लिए डिज़ाइन किए गए बीईएसएस सिस्टम से उम्मीद की जाती है कि वे पीक लोड को प्रबंधित करने, वोल्टेज को विनियमित करने, बिजली में सुधार करने, आवृत्ति को विनियमित करने, विचलन को दूर करने, ग्रिड स्थिरता को बनाने और रोकने के लिए वितरण ट्रांसफॉर्मर के पक्ष में समर्थन करेंगे और बिजली ट्रांसफॉर्मर का अधिभार, प्रतिक्रियाशील शक्ति का प्रबंधन और कैपेक्स (पूंजीगत व्यय) को स्थगित करेंगे. अभी हाल ही में टाटा पावर सोलर सिस्टम्स को भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई) से 9.45 अरब रुपये (यूएस 126 मिलियन अमेरिकी डॉलर) की 100 मेगावॉट की सौर परियोजना की इंजीनियरिंग, ख़रीद और निर्माण (ईपीसी) के लिए 120 मेगावाट घंटा की बैटरी के साथ एक पुरस्कार पत्र छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से दिया गया है. हालांकि ऐसे कदम की कामयाबी के आकलन के लिए यह बेहद जल्दबाज़ी होगी लेकिन उद्योग प्रधान देशों में होने वाला विकास नई बात सीखा सकता है.
चुनौतियां
जबकि औद्योगिक देशों में कई बीईएसएस प्रणालियां काम कर रही हैं, इस कड़ी में जिसने लगातार मीडिया का ध्यान खींचा है, वह है दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में हॉर्न्सडेल पावर रिज़र्व (एचपीआर) प्रोजेक्ट. एचपीआर की 100 मेगावॉट/129 मेगावाट घंटा की प्रणाली टेस्ला द्वारा निर्मित और एक फ्रांसीसी कंपनी द्वारा संचालित दुनिया की सबसे बड़ी लिथियम-आयन बीईएसएस है. वैसे दिसंबर 2017 में परिचालन शुरू करने वाले एचपीआर से दो अलग-अलग सेवाएं प्रदान करने की उम्मीद थी : 1) ऊर्जा आर्बिट्रेज; और 2) आकस्मिक स्पिनिंग रिज़र्व. साल 2017 में, एक बड़े कोयला संयंत्र के अप्रत्याशित रूप से ऑफ़लाइन हो जाने के बाद, एचपीआर मिलीसेकंड के भीतर ग्रिड में कई मेगावॉट बिजली इंजेक्ट करने में सक्षम था. यही नहीं, ग्रिड फ्रिक्वेंसी में हो रही गिरावट को तब तक रोक दिया गया जब तक कि गैस जेनरेटर ने काम शुरू नहीं कर दिया. फ्रिक्वेंसी में गिरावट को रोककर, बीईएसएस संभावित कैस्केडिंग ब्लैकआउट को रोकने में सक्षम था. लेकिन सितंबर 2021 में, ऑस्ट्रेलियाई ऊर्जा नियामक (एईआर), जो देश के थोक बिजली और गैस बाज़ारों की देखरेख करता है, ने एचपीआर के ख़िलाफ़ 2019 की गर्मियों के चार महीनों के दौरान कई बार “फ्रिक्वेंसी कंट्रोल एनसिलिरी सर्विस” प्रदान करने में विफल रहने के लिए एक संघीय मुकदमा दायर किया. एक और टेस्ला बैटरी, 300 मेगावाट बीईएसएस में भी ऑस्ट्रेलिया में जुलाई 2021 में आग लग गई. 2020 में बैटरी भंडारण के साथ कुछ हाई-प्रोफ़ाइल सुरक्षा-संबंधी मुद्दे थे, जिसमें एरिज़ोना लोक सेवा सुविधा में विस्फ़ोट और दक्षिण कोरिया में भंडारण-संबंधी आग के मामले शामिल थे.
भारत में, बिजली बाजार प्रतिस्पर्द्धी नहीं है और निहित सब्सिडी की लागत पर ही यह प्रणाली निर्माण की जा सकती है.
2019 तक, बीईएसएस बाज़ार पर तकनीकी आशावाद हावी था. तब से लगातार विश्वसनीयता, सुरक्षा और निवेश पर होने वाले फायदे की संभावनाओं पर चिंता व्यक्त की जा रही है. एक अध्ययन के मुताबिक, प्रतिस्पर्द्धी बिजली बाज़ारों में भंडारण में निवेश करना लाभदायक नहीं है लेकिन यह उपभोक्ता अधिशेष को बढ़ाता है, बिजली उत्पादन लागत को कम करता है और कुछ मामलों में उत्सर्जन को भी कम करता है. इसका मतलब यह है कि मुक्त प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों में भी, नीतियां ऐसी हों जिसमें सब्सिडी या बीईएसएस में क्षमता के लिए भुगतान का प्रावधान होना चाहिए. भारत में, बिजली बाजार प्रतिस्पर्द्धी नहीं है और निहित सब्सिडी की लागत पर ही यह प्रणाली निर्माण की जा सकती है. ऊपर दिए गए बीईएसएस परियोजनाओं को अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसियों से कम लागत वाली पूंजी द्वारा फंड मुहैया कराया जाता है जो आक्रामक रूप से भारत में कार्बन के उत्सर्जन को कम करने पर जोर दे रही हैं. हालांकि यह मॉडल लंबे समय के लिए कैसे चलेगा जबकि बीईएसएस सिस्टम को और बेहतर करने की ज़रूरत है लेकिन ये कब होगा यह अभी साफ नहीं है.
भारत में थर्मल जेनरेटर का उपयोग वर्तमान में सहायक भूमिका प्रदान करने के लिए किया जाता है, जिन्हें रैंप-लिमिटेड संसाधन (आरएलआर) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, क्योंकि उसे ऊपर और नीचे करने में समय लगता है लेकिन अनिश्चित अवधि के लिए ऊर्जा उत्पादन को ये बनाए रखने में सक्षम हैं. बैटरी (स्थिर या इलेक्ट्रिक वाहनों में) और हाइड्रो जेनरेटर को ऊर्जा-सीमित संसाधनों (ईएलआर) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि वे उप-सेकेंड समय अंतराल पर चालू किए जा सकते हैं, लेकिन ऊर्जा उत्पादन को ये बनाए नहीं रख सकते हैं. अनियंत्रित (या मौसम पर निर्भर) आरई पर चर्चा जो ऊर्जा के अपेक्षाकृत महंगे स्टैंड-बाय सहायक सेवाओं के प्रावधान को ज़रूरी और नियंत्रित करने योग्य फॉसिल आधारित फ्यूल के स्रोत को तैयार करती है, वो नई नहीं है.
साल 1867 में, कार्ल मार्क्स ने यह देखा कि औद्योगीकरण को शक्ति देने वाले ऊर्जा स्रोतों को ‘भरोसेमंद, शहरी और पूरी तरह से मनुष्य के नियंत्रण में’ होना चाहिए. घोड़े को ऊर्जा के सबसे ख़राब रूप में ख़ारिज करते हुए उन्होंने देखा कि घोड़े का अपना सिर था और उसे रख पाना काफी महंगा था और उसका इस्तेमाल कारखानों तक ही सीमित था. उन्होंने हवा को भी ऊर्जा के तौर पर ख़ारिज कर दिया क्योंकि यह ‘असंगत और बेकाबू’ थी. बहते पानी की काइनेटिक एनर्जी पर उनके अधिक लचीले विचार थे लेकिन उन्होंने कहा कि ‘इसे इच्छा पर नियंत्रित नहीं किया जा सकता था और कुछ मौसमों में यह नाकाम रहने के साथ ही बेहद स्थानीय था’. मार्क्स कोयले की ऊर्जा के पक्ष में थे ( साथ ही वाट की भाप टरबाइन में पानी ) जो उन्होंने कहा था कि ‘पूरी तरह से आदमी, गतिशीलता और इंसानी हरकत के साधन के नियंत्रण में था और हवा और पानी के इतर शहरी भी था जो ग्रामीण इलाकों में बिखरे हुए थे’.
ऊर्जा की विशेषताओं पर मार्क्स की टिप्पणियां जैसे ‘निश्चितता’ ‘गतिशीलता’ और ‘नियंत्रणीयता’ जो औद्योगीकरण के लिए ऊर्जा के कुछ स्रोतों को अपरिहार्य बनाती हैं, कुछ हद तक सटीक थीं.
ऊर्जा की विशेषताओं पर मार्क्स की टिप्पणियां जैसे ‘निश्चितता’ ‘गतिशीलता’ और ‘नियंत्रणीयता’ जो औद्योगीकरण के लिए ऊर्जा के कुछ स्रोतों को अपरिहार्य बनाती हैं, कुछ हद तक सटीक थीं. क्योंकि सौर ऊर्जा उस घोड़े की तरह ही है जिसका अपना सिर होता है. लेकिन यह पहले से ही शहरी है (जैसा कि ग्रामीण इलाकों में ऊपर और नीचे बिखरा हुआ है) क्योंकि फोटोवोल्टिक (पीवी) पैनल शहरी छतों से सूरज की रोशनी को बिजली में आसानी से बदल सकते हैं. उम्मीद है कि एलन मस्क की लिथियम-आयन बैटरी सौर ऊर्जा के ‘अनिश्चित और अनियंत्रित’ घोड़े को वश में कर पाएगी और इसे मोबाइल (बैटरी में) कर देगी.
लेकिन इसे साकार करने के लिए जैसा कि मूर के नियम में बताया गया है कि सौर ऊर्जा की कीमत और भंडारण में कमी लानी होगी. इंटेल के सह-संस्थापक गॉर्डन मूर ने 1965 में कहा था कि सेमीकन्डक्टरों (उच्च ग्रेड सिलिकॉन से बना) का सर्किट घनत्व हर 18 महीने में दोगुना हो सकता है. मूर के नियम जैसा कि इसे कहा जाता है वह माइक्रो चिप इंडस्ट्री के लिए बेहद सही साबित हो सकता है. एक सर्किट पर ट्रांज़िस्टर की संख्या लगभग हर दो साल में दोगुनी हो गई है और लागत में आश्चर्यजनक तौर पर गिरावट आई है. पिछले 50 वर्षों में, किसी दिए गए आकार के माइक्रोचिप की शक्ति में एक अरब से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है, लेकिन सौर पैनल का बिजली उत्पादन केवल दोगुना ही हो सका है. 1976 से 2019 तक, PV मॉड्यूल की लागत यूएस डॉलर 106/वाट से गिरकर यूएस डॉलर 0.38/वाट रह गई है. यह कहीं भी मूर पैमाने पर गिरावट के करीब नहीं कही जा सकती है, लेकिन यह असरदार है. पीवी की अधिकांश लागत की वजह कम इनपुट सामग्री लागत (सौर ग्रेड सिलिकॉन) और उत्पादन के बढ़े हुए पैमाने (पैमाने की अर्थव्यवस्था), विनिर्माण स्वचालन के जरिए से कम श्रम लागत और कुशल प्रोसेसिंग है. दूसरे शब्दों में, पीवी मॉड्यूल की लागत में गिरावट उत्पादन का नतीजा है ना कि भौतिकी में सफलता का परिणाम. माइक्रो चिप्स के पैमाने पर सोलर ने ब्रेक थ्रू बनाने में कामयाबी पाई क्योंकि क्रिस्टलीय सिलिकॉन की तकनीक की भी सीमाएं हैं. बैटरियों में ऊर्जा भंडारण को बढ़ाने के लिए अधिकांश अनुमान मूर पैमाने पर लागत में गिरावट की धारणा की वजह से ही है. जब तक यह धारणा सही साबित नहीं हो जाती, तब तक बीईएसएस को बढ़ाने के अनुमान साकार नहीं हो सकते, क्योंकि भंडारण की लागत ग़रीब देशों के लिए एक बड़ी बाधा बन सकती है.
स्रोत – अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी
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