Published on Jun 24, 2021 Updated 0 Hours ago

सत्ताधारी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी और अन्य दल चाहते हैं कि भारत के साथ मालदीव के संबंधों को नई रफ़्तार मिले.

परेशानियों के घिरे मालदीव में क्या फिर से भारत विरोधी जज़्बात उभरने लगे हैं?

एक के बाद एक दो नये विवादों से मालदीव में कमज़ोर पड़ रहे, ‘भारत बाहर निकलो’ अभियान में नई जान आ गई है. इससे राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है, क्योंकि सत्ताधारी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी और अन्य दल चाहते हैं कि भारत के साथ मालदीव के संबंधों को नई रफ़्तार मिले. ‘लक्षद्वीप विवाद’, जिसे भारत का अंदरूनी मामला माना जाता है और संवेदनशील दक्षिणी शहर अद्दू में नया कॉन्सुलेट खोलने को लेकर भारतीय मीडिया द्वारा जल्दबाज़ी में जानकारी देने के चलते संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद को निशाना बनाकर किए गए बम हमले पर से लोगों का ध्यान हट गया है.

लक्षद्वीप के विकास के लिए वहां के प्रशासक प्रफुल्ल कोड़ा पटेल के फ़ैसलों पर जनता और राजनेताओं की राय बंटी हुई है. लक्षद्वीप में बीफ खाने पर प्रतिबंध लगाने के बाद रिज़ॉर्ट टूरिज़्म के प्रफुल्ल पटेल के विचारों से नागरिक संगठनों के अलावा राष्ट्रीय स्तर के नेता जैसे कि राहुल गांधी (कांग्रेस), शरद पवार (एनसीपी), एम के स्टालिन (डीएमके), तमिलनाडु के मुख्यमंत्री) और लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फ़ैज़ल (एनसीपी) असहमत हैं. केरल विधानसभा ने तो पिनराई विजयन द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को आम सहमति से पारित करके लक्षद्वीप के प्रशासक को वापस बुलाने की मांग की है. उनका आरोप है कि पटेल ‘मुस्लिम विरोधी हिंदुत्व के एजेंडे’ को आगे बढ़ा रहे हैं.

लालच से बचाव

जहां तक मालदीव की बात है तो, राजधानी माले में मालदीव के उत्तर और दक्षिण के द्वीपों से आए लोगों की अच्छी तादाद रहती है. माले में मालदीव की 40 फ़ीसद आबादी और मतदाता रहते हैं. अन्य द्वीपों से आए अप्रवासियों का अपने मूल द्वीप से संपर्क बना रहता है. यही कारण है कि मालदीव की सरकारें घरेलू और विदेश नीति के मुद्दों पर इन लोगों के प्रति संवेदनशील रहती आई हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ख़ास तौर से ‘पड़ोसी पहले’ की नीति के तहत, एक तरफ़ तो पड़ोसी देशों में विकास के प्रोजेक्ट में मदद देता है और दूसरी तरफ़ ख़ुफ़िया जानकारी जुटाकर साझा करता है. 

मालदीव की भौगोलिक स्थिति और मानव संसाधन समेत अन्य संसाधनों की नियमित रूप से कमी के चलते मालदीव के शासक पारंपरिक रूप से आस-पास के इलाकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते आए हैं. भारत भी इन बातों को समझता है. यही कारण है कि वो मालदीव की तर्ज पर लक्षद्वीप में रिज़ॉर्ट टूरिज़्म को बढ़ावा देने की लालच से बचता रहा है. अब प्रशासक प्रफुल्ल पटेल यही कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ख़ास तौर से ‘पड़ोसी पहले’ की नीति के तहत, एक तरफ़ तो पड़ोसी देशों में विकास के प्रोजेक्ट में मदद देता है और दूसरी तरफ़ ख़ुफ़िया जानकारी जुटाकर साझा करता है. कोरोना वायरस की पहली लहर के दौरान, पिछले साल सितंबर में भारत ने मालदीव के कुल्हुधुफ्फुशी से दक्षिण भारत के थूथुकुडी और कोच्चि के बीच सीधी मालवाहक फेरी सेवा शुरू की थी. इससे समय तो बचता ही है, मालदीव के स्थानीय लोगों पर सामान और सेवाओं का बोझ भी कम होता है.

किसी क्षेत्र या देश के संदर्भ से हटकर मोटे तौर पर देखें तो भारत का सुरक्षा सहयोग मालदीव के समुद्री और घरेलू चिंताओं का ध्यान रखता है, जहां पर कुछ इस्लामिक कट्टरपंथियों में आतंकवाद के प्रति रुझान देखा जा रहा है. छह मई को देश के पहले लोकतांत्रिक तरीक़े से चुने गए राष्ट्रपति और मौजूदा स्पीकर मोहम्मद नशीद पर बम हमला, इसकी ताज़ा मिसाल है, जो निश्चित रूप से आख़िरी नहीं है.

धर्म केंद्रित नहीं

मालदीव से नज़दीकी बढ़ाने के भारत के सभी नहीं तो कुछ प्रयासों को पिछले महीने के लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेग्यूलेशन से ज़रूर झटका लगा होगा. अन्य देशों के मीडिया की तरह मालदीव का मीडिया भी इसे ‘नस्लवादी सफाए’ और पर्यटन के क्षेत्र की बड़ी कंपनियों द्वारा ‘ज़मीन पर क़ब्ज़े’ की कोशिश के तौर पर देख रही हैं. जिन लोगों ने प्रशासक पटेल की कोशिशों पर सवाल उठाए हैं, उनके सुर में सुर मिलाते हुए आलोचकों का कहना है कि लक्षद्वीप में मालदीव मॉडल की नक़ल नहीं की जा सकती. वो ये भी कहते हैं कि भारत की बड़ी अर्थव्यवस्था को देखते हुए लक्षद्वीप के लोगों के रहन-सहन और रोज़ी-रोटी को चोट पहुंचाने की ज़रूरत नहीं थी.

लक्षद्वीप से जुड़े मालदीव के हितों को ‘धर्म आधारित मामूली विवाद’ कहकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता है. हो सकता है कि कुछ हद तक ये धार्मिक मसला हो, लेकिन बात इससे आगे की है. मालदीव के लोग लक्षद्वीप के साथ ऐतिहासिक जुड़ाव महसूस करते आए हैं. आज भी लक्षद्वीप की जनता उस दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाते हैं, जब उत्तरी मालदीव के थाकुरुफानू भाइयों ने सोलहवीं सदी के मध्य में पुर्तगाल से आज़ाद कराया था. मालदीव के लिए लक्षद्वीप केवल उसके उत्तरी इलाक़े का विस्तार ही नहीं, बल्कि ऐसी जगह है जिसके साथ उसके ऐतिहासिक संबंध रहे हैं.

मालदीव के लक्षद्वीप में दिलचस्पी रखने की वजह ये सामाजिक और भाषाई संबंध हैं, जो इस्लामिक रिश्तों से भी आगे हैं. लक्षद्वीप की हाल की घटनाओं के बाद मालदीव के एक मीडिया संगठन ने मौक़े से एक रिपोर्ट भेजी थी. 

पहले के ज़माने में मालदीव के राजाओं के फ़रमान मालिकू या मिनीकॉय द्वीप पर भी लागू होते थे, जबकि तब मिनिकॉय, चिरिक्कल के राजा कोलाथिरी और बाद में यूरोपीय साम्राज्यवादियों के अधिकार क्षेत्र में आता था. सोलहवीं सदी में मिनिकॉय समेत पूरा लक्षद्वीप, ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया और 1947 में देश की आज़ादी के बाद भारत का. 1956 में मिनिकॉय में कराए गए जनमत संग्रह में कुछ लोगों ने भारत में विलय के ख़िलाफ़ वोट दिया था. हालांकि, बहुमत भारत के साथ रहने वालों का ही था. 

मालदीव के लक्षद्वीप में दिलचस्पी रखने की वजह ये सामाजिक और भाषाई संबंध हैं, जो इस्लामिक रिश्तों से भी आगे हैं. लक्षद्वीप की हाल की घटनाओं के बाद मालदीव के एक मीडिया संगठन ने मौक़े से एक रिपोर्ट भेजी थी. जिसमें कहा गया था कि ‘भारत जो सबसे महान लोकतंत्र’ है, वो मिनीकॉय में तानाशाही शासन थोपना चाहता है. उन्होंने स्थानीय लोगों के जज़्बात का फ़ायदा उठाने की कोशिश की, जो ये चाहते हैं कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाए, हालांकि वो भारत में विलय के ख़िलाफ़ नहीं हैं.

धार्मिक समानता और मालदीव की जनता से संपर्क के चलते लक्षद्वीप के लोग इस बात को लेकर आशंकित हैं कि द्वीप के विकास के लिए बिना सलाह-मशविरे के ऊपर से थोपी गई योजना के कई कारणों से नाकाम होने का डर है. अब विदेशियों के संरक्षण में बड़े स्तर पर रिजॉर्ट टूरिज़्म शुरू करने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. इनकी शुरुआत तब हुई थी जब प्रधानमंत्री मोदी ने लक्षद्वीप में एक वायुसैनिक अड्डा बनाने का लान किया था और इसके साथ लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ति स्थित नौसैनिक अड्डे आईएनएस द्वीपरक्षक को अपग्रेड करने का भी लान किया था. इस नौसैनिक अड्डे का उद्घाटन 2012 में हुआ था.

पहले से प्रचार

दूसरा विषय भारत द्वारा इस बात का जल्दबाज़ी में किया गया प्रचार है कि केंद्रीय कैबिनेट ने अद्दू में भारतीय कॉन्सुलेट खोलने को मंज़ूरी दे दी है. उद्घाटन के बाद इस कॉन्सुलेट से दक्षिणी मालदीव के लोगों को वीज़ा लेने के लिए माले जाने की ज़रूरत नहीं रहेगी. ये सुविधा मेडिकल इमरजेंसी में और काम आएगी. दक्षिणी मालदीव का हालिया इतिहास बग़ावती तेवर वाला रहा है. 1958-63 के दौरान इसने ‘यूनाइटेड सुवादीव रिपब्लिक’ के ज़रिए माले की सत्ता को चुनौती दी थी.

अद्दू में कॉन्सुलेट खोलने की प्रेस इन्फ़ॉर्मेशन ब्यूरो की प्रेस विज्ञप्ति मालदीव की सरकार को जानकारी देने और कूटनीतिक मंज़ूरी लेने की औपचारिकता से पहले ही जारी कर दी गई थी. आम तौर पर ये काम विदेश मंत्रालय करता है. द्विपक्षीय संबंधों के ऐसे संवेदनशील समय में इस प्रेस विज्ञप्ति में घरेलू राजनीतिक जुमलों जैसे कि, त्मनिर्भर भारत, सबका साथ सबका विकास, नेबरहुड फर्स्ट और आधी अधूरी समझ वाले सागर का ज़िक्र भी था. 

उमर नसीर ने भी भारत के कॉन्सुलेट खोलने के फ़ैसले को भारत के क़ब्ज़े जैसा बताया और दावा किया कि ये कॉन्सुलेट भारत के सैनिक अड्डे की तरह काम करेगा. हालांकि, ये बात कूटनीतिक रूप से ग़लत है. 

परेशानी तब और बढ़ गई, जब एक प्रेस कांफ्रेंस में राष्ट्रपति सोलिह ने साफ़तौर पर ये कह दिया कि भारत ने उन्हें इस प्रस्ताव की जानकारी नहीं दी है, और वो इस बारे में तब फ़ैसला लेंगे, जब उनसे इस बारे में संपर्क किया जाएगा. नागरिक संगठनों समेत स्थानीय आलोचकों के मुताबिक़ भारत ने बिना मालदीव की मंज़ूरी के ये फ़ैसला कर लिया. उन्होंने कहा कि ये ‘भारत के क़ब्ज़ा करने’ जैसा है. भारत मालदीव को अपना हिस्सा मानकर ऐसा बर्ताव कर रहा है. कुछ लोगों ने इसे सत्ताधारी बीजेपी के ‘हिंदुत्व एजेंडे’ से जोड़ते हुए ‘इस्लामिक उम्मत’ के नाम पर उन खाड़ी अरब देशों का ध्यान खींचने की कोशिश की, जिनके साथ मालदीव ने 1965 में अपनी आज़ादी के बाद से विकास और धर्म से जुड़े संबंध विकसित कर लिए हैं.

भारत के प्रमुख आलोचकों में राष्ट्रपति बनने का ख़्वाब देखने वाले उमर नसीर भी हैं, जिन्होंने जेल में बंद पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन और अन्य नेतों के साथ जीएमआर केंद्रित, इस्लामिक राष्ट्रवादी भारत विरोधी प्रदर्शनों की अगुवाई की थी, जो मौजूदा स्पीकर मोहम्मद नशीद के कार्यकाल पूरा होने से पहले राष्ट्रपति पद छोड़ने के साथ ख़त्म हुए थे. उमर नसीर, अब अब्दुल्ला यामीन के साथ नहीं हैं. नसीर पहले यामीन सरकार में गृह मंत्री थे. लेकिन, उन्होंने यामीन का साथ छोड़ने के साथ भारत विरोधी गुट के अभियान को भी पिछले साल छोड़ दिया था.

उमर नसीर ने भी भारत के कॉन्सुलेट खोलने के फ़ैसले को भारत के क़ब्ज़े जैसा बताया और दावा किया कि ये कॉन्सुलेट भारत के सैनिक अड्डे की तरह काम करेगा. हालांकि, ये बात कूटनीतिक रूप से ग़लत है. इस मौक़े पर अपने 2023 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए उमर नसीर ने मालदीव की जनता से अपील की कि अगर वो भारत के कॉन्सुलेट के प्रस्ताव को ख़ारिज करना चाहते हैं, तो ‘धिवेही नेशनल एक्शन’ को वोट दे, जिसकी स्थापना उन्होंने पूर्व विदेश मंत्री दुनिया मामून के साथ की है. दुनिया मामून, मामून अब्दुल गयूम की बेटी है, जो 30 साल (1978-2008) तक मालदीव के राष्ट्रपति रहे थे. 

मालदीव के अप्रवासियों के एक सदस्य और अद्दू के मूल निवासी डॉ. हसन उगैल ने अधिकारियों से मांग की कि वो भारतीय कॉन्सुलेट की स्थापना के मुद्दे पर आगे बढ़ने से पहले इसे भविष्य की कारोबारी संभावनाओं से जोड़ें. डॉ. उगैल अभी ब्रिटेन की ब्रैडफोर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं. इसी बीच माले में भारतीय उच्चायुक्त ने अपने बयान से सही जानकारी न रखने वाले आलोचकों को चुप कराने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि अद्दू और भारत के बीच जल्द ही कॉमर्शियल फ्लाइट शुरू होंगी, जो दक्षिणी मालदीव की जनता और कारोबारियों के लिए फ़ायदेमंद होंगी.

स्थानीय आलोचकों के उलट हाल ही में अद्दू सिटी काउंसिल के मेयर चुने गए एमडीपी नेता अली निज़र ने कॉन्सुलेट के प्रस्ताव का खुले दिल से स्वागत किया. उन्होंने इसके ज़रिए दक्षिण के नागरिकों को भारत का वीज़ा लेने में आसानी होने और शहर में 20 करोड़ डॉलर की भारतीय मदद से चल रहे प्रोजेक्ट का भी हवाला दिया. पूर्व मंत्री उमर नसीर के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रह चुके निज़र ने कहा कि ये कॉन्सुलेट भारत की मदद से अद्दू में बन रहे पुलिस अकादेमी के कैंपस में नहीं बनेगा. कुछ लोग सोशल मीडिया पर ये दावा कर रहे थे. 

अन्य बड़े नेता जिनमें अद्दू से एमडीपी संसदीय दल के उपनेता इलियास लबीब ने भी इन्हीं कारणों से भारत के प्रस्ताव का स्वागत किया है. अप्रैल में हुए स्थानीय परिषद के चुनावों के लिए जनवरी में प्रचार करते हुए, एमडीपी अध्यक्ष और स्पीकर नशीद ने लान किया था कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो अद्दू के दरवाज़े पूरी दुनिया के लिए खुलेंगे.

धमाके की जांच अलग करना

मालदीव के भारत विरोधी आलोचक इन दोनों बातों का ताल्लुक़ सत्ताधारी पार्टी और छह मई को स्पीकर नशीद पर हुए बम हमले की जांच से जोड़कर देख रहे हैं, जो धीमी पड़ गई है. हालांकि दोनों के बीच कोई संबंध है नहीं. राष्ट्रपति सोलिह ने आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए सेना के उस स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप के उच्च पदों पर बदलाव का आदेश दिया है जो वीवीआईपी सुरक्षा देखता है. सोलिह की पार्टी के कई नेता आदत के मुताबिक़ इस बारे में सार्वजनिक रूप से बयानबाज़ी कर रहे हैं.

पुलिस ने लोगों से सोशल मीडिया पर अटकलबाज़ी न करने की अपील की है. इनमें नशीद की बेटी और भाई शामिल हैं. इनके अलावा न्यूज़ीलैंड में बसी नशीद की मौसी ने पुलिस पर जांच का दबाव बनाने के लिए एक ख़ुला ख़त लिखा. इन तीनों में नशीद की बेटी मीरा लैला का स्थानीय धिवेही भाषा में किया गया ट्वीट सबसे नुक़सानदेह साबित हुआ. लैला को इस बात का 90 प्रतिशत विश्वास है कि ये पार्टी के भीतर के ही किसी व्यक्ति का काम है. उन्होंने इसके लिए रक्षा मंत्री मारिया दीदी और गृहमंत्री इमरान अब्दुल्ला को जवाबदेह ठहराते हुए उनके इस्तीफ़े की मांग की.

पुलिस ने लोगों से सोशल मीडिया पर अटकलबाज़ी न करने की अपील की है. इनमें नशीद की बेटी और भाई शामिल हैं. इनके अलावा न्यूज़ीलैंड में बसी नशीद की मौसी ने पुलिस पर जांच का दबाव बनाने के लिए एक ख़ुला ख़त लिखा.

स्पीकर की मौसी चाहती हैं कि सोलिह सरकार, जांच की जानकारी पीड़ित परिवार से साझा करे. एक ट्वीट में स्पीकर के भाई डॉ. इब्राहिम नशीद ने बेवक़्त दिए गए बयान में कहा कि क्या नशीद अपने क़ैद के दिनों में (विरोधी सरकारो के राज में?) जेल के अंदर ज़्यादा सुरक्षित थे? अगर इस ट्वीट का मतलब ये था कि देश के सबसे लोकप्रिय नेता की सुरक्षा उनकी अपनी पार्टी की सरकार और राष्ट्रपति के होते हुए भी पर्याप्त नहीं थी, लेकिन नशीद के भाई ने इस पर ज़ोर नहीं दिया था.

उसके बाद से पुलिस ने हुलहुमाले उपनगरीय द्वीप से चार और आतंकवादियों को गिरफ़्तार किया है. लेकिन, नशीद पर हमले से उनका कोई संबंध होने की बात अभी साबित नहीं हुई है. इसके साथ साथ एक आपराधिक अदालत ने अद्दू में हुए धमाके के बाद गिरफ़्तार सात में से पांच लोगों को रिहा कर दिया. इससे पता चलता है कि जांच करने वाले किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. प्रॉसिक्यूटर जनरल के ऑफ़िस ने इस आदेश को चुनौती देने का लान किया है.

हौसला बहाल

पुलिस का मनोबल तब फिर क़ायम हो गया, जब संसद की संवैधानिक मान्यता वाली राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी ‘241 समिति’ के अध्यक्ष मोहम्मद असलम ने कहा कि वो जांच से संतुष्ट हैं. उन्होंने जांच एजेंसियों के काम में दख़ल न देने का भी वादा किया. इसके बजाय समिति और ऐसे क़ानूनी ढांचे और संसाधन तलाशेगी जो वीवीआईपी सुरक्षा देखने वाली एजेंसियों को दिए जा सकें.

वहीं, संसद एमडीपी सदस्य हिसा हुसैन के दंड संहिता में ‘नफ़रत वाले अपराध’ दर्ज करने से जुड़े संशोधन पर विचार कर रही है. हालांकि, रूढ़िवादी धार्मिक समूहों ने हिसान के उस प्रस्ताव का तुरंत विरोध किया, जिसमें उन्होंने साथी मुसलमानों को काफिर कहने वालों को सज़ा देने की बात कही है. इस समूह का कहना है कि हिसाम के विचार मालदीव को मामून अब्दुल गयूम के दौर के 80 के दशक वाले धर्मनिरपेक्षता के दौर में ले जाने वाले हैं. वैसे तो इस्लामिक संगठन के निशाने पर नशीद थे, जो हमेशा मालदीव के इस्लाम में खुलेपन की वकालत करते रहे हैं और अमेरिका व इज़राइल से संबंध जोड़ना चाहते हैं. देश के रूढ़िवादी संगठन को ये बात बिल्कुल मंज़ूर नहीं.

241 कमेटी के अध्यक्ष असलम ने मीडिया से ये वादा किया है कि वो इस धमाके की जांच में उनको नहीं घसीटेंगे. क्योंकि, एमडीपी के नशीद खेमे ने धमाके का विश्लेषण प्रकाशित करने वाली एक वेब पत्रिका की जांच की मांग की है. इस विश्लेषण में पत्रिका ने ये कहा था कि नशीद ने अपने पैत्रिक निवास पर न रहने की एसपीजी की सलाह को मानने से इनकार कर दिया था, जबकि ये सुरक्षा के लिहाज़ से ठीक नहीं था. ऐसा लगता है कि एमडीपी इस बात से ध्यान हटाना चाहती है और ये जानने पर ज़ोर दे रही है कि पार्टी का वो कौन ‘भीतरी’ है, जिसने कोड तोड़ते हुए मीडिया से बात की.

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