Published on May 09, 2017 Updated 0 Hours ago

भारत में बांग्लादेश की सीमा पर बने एन्क्लेवों के बुनियादी ढांचे की बेहतरी के लिए मौजूदा सरकार द्वारा प्रयास किए जा रहे हें।

देशविहीन से लेकर नए नागरिक बनने तकः अधिक सक्रिय पुनर्वास नीतियों की तलाश

मेघालय -बांग्लादेश सीमा

स्रोतः निहाल पाराशर/सीसी बाय 2.0

वर्तमान सदी में, दक्षिण एशिया में भारत और बांग्लादेश के बीच सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय पहल लम्बे समय से चले आ रहे सीमा विवाद का समाधान करने की कोशिश से संबंधित रही है जो विवाद 1947 के बंटवारे के बाद पैदा हुआ था। यह पहल भूमि सीमा समझौता (एलबीए) तथा एन्क्लेव (छितमहलों), दूसरे शब्दों में कहें तो, इन दोनों देशों के बीच जमीन के टुकड़ों के आदान-प्रदान से संबंधित थी। बहरहाल, समझौते के कार्यान्वयन के एक वर्ष से अधिक समय के बाद भी, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित बना हुआ है कि किस हद तक जमीन के टुकड़ों और इसकी आबादी का यह आदान-प्रदान अनसुलझे मुद्दों के समाधान का रास्ता प्रशस्त कर सकता है जो कि एलबीए के बाद की अवधि के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

क्षेत्रों एवं आबादी के आदान-प्रदान की शुरूआत करने की दिशा में यह एक सकारात्मक कदम है पर इसके बावजूद अभी भी कुछ गड़बडि़यां हैं। भारत में, फोकस अब एक ओर एलबीए-पूर्व स्थिति में एन्क्लेवों में रहने वाले लोगों के सामने आ रहे पहचान के संकट से बदलकर कुशासन के मुद्दों की तरफ है और दूसरी ओर, केंद्र और एलबीए के बाद के वर्षों में पश्चिम बंगाल के बीच हितों के संघर्ष की तरफ परिवर्तित हो गया है। केंद्र और राज्य के बीच राजनीतिक मुद्दों ने स्पष्ट रूप से एन्क्लेवों को सत्ता संघर्ष के स्थानों में रूपांतरित कर दिया है।

नए नागरिकों के रूप में मान्यता

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2015 में बांग्लादेश की यात्रा के दौरान ऐतिहासिक एलबीए (1974) को समर्थन प्राप्त हुआ जिसने आखिर लंबे समय के बाद भारत और बांग्लादेश दोनों ही देशों के भौगोलिक क्षेत्रों के भीतर के एन्क्लेवों के रहने वाले लोगों को एक कानूनी पहचान प्रदान की। इस ऐतिहासिक समझौते के तहत भारत ने बांग्लादेश को 17,160.63 एकड़ क्षेत्रफल के 111 इंक्लेवों का हस्तांतरण किया। इसके साथ-साथ भारत ने बांग्लादेश स्थित 7,110 .02 एकड़ क्षेत्रफल के 51 इंक्लेव प्राप्त किए। इस ऐतिहासिक समझौते से पूर्व, मनमोहन सिंह और शेख हसीना के बीच किए गए 2011 के मसविदे के तहत भूमि के प्रतिकूल स्वामित्व के मुद्दों के समाधान के लिए यथास्थिति बरकरार रखने पर सहमति जताई गई। इसके तहत भारत 2,777.038 एकड़ जमीन प्राप्त करेगा तथा बांग्लादेश को 2,267.68 एकड़ जमीन हस्तांतरित करेगा। 2011 के मसविदे असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल की सरकारों के अनुरूप तैयार किए गए थे, लेकिन सौहार्दपूर्ण राजनीतिक माहौल की कमी के कारण इसे कार्यान्वित नहीं किया जा सका। इस प्रकार, तीन सेक्टरों जैसे दैयखाटा-56 (पश्चिम बंगाल), मुहूरी नदी- बेलोनिया (त्रिपुरा) एवं लाठीटिला-डुमाबारी (असम) में लगभग 6.1 किलोमीटर की बगैर निर्धारित भूमि सीमा; एन्क्लेवों के आदान-प्रदान; एवं 2011 के मसविदे में उल्लेखित प्रतिकूल स्वामित्व से संबंधित अनसुलझे मुद्दों को इस प्रकार एलबीए 2015 द्वारा कार्यान्वित किया गया है।

इसके परिणामस्वरूप, बांग्लादेश के लालमोनिरहाट, पंचगढ़, कुरिग्राम एवं निल्फामारी के उप-आयुक्तों के साथ-साथ भारत के महापंजीयक कार्यालय, बांग्लादेश ब्यूरो ऑफ स्टैटिक्स एवं भारत के कूचबिहार के जिला मजिस्ट्रेट ने एन्क्लेवों के निवासियों से ‘राष्ट्रीयता का विकल्प’ का संग्रह करने के लिए प्रणालीगत और समन्वित तरीके से कार्य किया। कार्यान्वयन प्रक्रिया की रूपरेखा तीन चरणों में बनाई गईः समझौता एवं मसविदा 31 जुलाई 2015 की आधी रात से प्रभावी हुआ। क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र का हस्तांतरण, पट्टी मानचित्रों एवं सीमा रेखा के जमीन सीमांकन का आदान-प्रदान 30 जून 2016 तक पूरा कर लिया गया और लोगों की आवाजाही का कार्य 2015 के मध्य नवंबर से 2015 के आखिर तक हुआ। बांग्लादेश के भारतीय एन्क्लेवों से भारतीय नागरिकता का चयन करने वाले लोगों की अनुमानित संख्या लगभग 13,000 थी। फिर भी केवल 987 लोगों ने भारतीय नागरिकता का चयन किया। दूसरी तरफ, भारत में बांग्लादेशी एन्क्लेवों में रहने वाले 14,221 निवासियों ने भारतीय नागरिकता का चयन किया जिससे कुल संख्या 15,208 हो गई। ये लोग, जो वास्तव में हर प्रकार से देशविहीन थे, अब भारत के नए नागरिक बन गए।

विवादों के स्थान बने अस्थायी शिविर 

आस-पास के क्षेत्रों में गांवों के निकट स्थान में तीन जगहों, जिनके नाम कूचबिहार जिले में मेखलिगंज, हल्दीबारी, दिनहाटा हैं, में अस्थाई पुनर्वास शिविरों की स्थापना की गई, जिससे कि शिविर में रहने वालों के साथ उनके संबंधित मुख्य भूमि में रहने वालों के साथ सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। आने वाले नए लोगों का काफी उत्साह के साथ स्वागत किया गया। शिविर में रहने वालों की सुविधा के लिए कपड़े, बर्तन, तारपोलीन, स्टोव, कंबल, चटाई और तकिए उपलब्ध कराए गए। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक परिवार को घर की चाबी के साथ मकान आवंटन पत्र उपलब्ध कराया गया। फिर भी बांग्लादेश से अलग हो जाने का अहसास समय गुजरने के साथ उनमें प्रकट होने लगा। यह अहसास सरकार के असंतोषजनक कदमों के परिणाम हैं।

एक महीने के बाद, शिविर में रहने वालों की मदद के लिए प्रारंभिक चरण में जिस कैंटीन का निर्माण किया गया था, उसे बंद कर दिया गया। राशन की सूखी खैरात के रूप में नए नागरिकों के बीच 30 किलो चावल, पांच किलो मसूर, एक किलो नमक, एक किलो पाउडर मिल्क और पांच-पांच लीटर सरसों तेल एवं केरोसीन का वितरण प्रत्येक महीने के पहले सप्ताह में किया गया। बहरहाल, सूखी खैरात के रूप में उपलब्ध कराई गई ये वस्तुएं कैंप में रहने वालों की रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में विफल रहीं। शिविरों में रह रहे लोगों द्वारा आक्रोश जताए जाने के बाद पांच सदस्यों से अधिक संख्या वाले परिवारों को पांच किलो अतिरिक्त चावल उपलब्ध कराया जा रहा है।

रोजगार की कमी और व्यक्तिगत संसाधनों में कमी की वजह से शिविर में रहने वालों को लगातार भोजन की कमी का सामना करना पड़ता है और अक्सर उन्हें अपने सीमित धन से स्थानीय बाजारों से रोजाना के खाने की चीजों को खरीदने को मजबूर होना पड़ता है। आजीविका के लिए खेती योग्य भूमि से अलगाव ने शिविर में रहने वालों के असंतोष को बढ़ा दिया है। स्थानीय अस्पतालों तथा अपने बच्चों के लिए सरकारी स्कूल की सुविधाएं प्राप्त होने के बावजूद शिविर में रहने वाले लोग राज्य सरकार द्वारा उन्हें उपलब्ध कराई जाने वाली स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाओं को लेकर काफी मायूस हैं।

राज्य सरकार ने शिविर में रहने वालों के लिए आय के एक अस्थायी स्रोत के रूप में जूट मिलों में रोजगार के अतिरिक्त प्रत्येक परिवार को 100 दिनों के एक वर्क कार्ड की पेशकश की है। चूंकि ये व्यक्ति बांग्लादेश में शिक्षण, व्यवसाय, खेती, बढ़ईगिरी जैसे विभिन्न प्रकार के व्यवसायों से जुडे थे, उनकी इच्छा है कि उन्हें यहां भी वैसी ही नौकरियां प्रदान की जाएं जो उनके कौशलों एवं योग्यताओं के अनुरूप हों। वास्तव में, शिविर में रहने वालों ने उन्हें अपार्टमेंटों में बसाने की राज्य सरकार की नीति के खिलाफ अपनी आवाजें उठाई हैं।

विपक्षी दलों के स्थानीय राजनेताओं की मंशा राजनीतिक समर्थन हासिल करने के लिए इस स्थिति से लाभ उठाने की है। इन नेताओं से शह प्राप्त कर शिविर में रहने वालों ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है और राज्य सरकार के पुनर्वास कदमों के खिलाफ अपना असंतोष जाहिर करते हुए कूचबिहार जिले के स्थानीय जिला अधिकारियों को ज्ञापन देने की योजना बनाई है। इसके अतिरिक्त, शिविर में रहने वालों के मताधिकार का मामला सत्तारूढ़ दल एवं विपक्ष के बीच विवाद का एक अहम मुद्दा बन गया है।

भूमि अधिग्रहण एन्क्लेव में रहने वालों के लिए चिंता का एक बड़ा मुद्दा बना

जहां एलबीए को समर्थन निश्चित रूप से भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय संबंधों में एक स्वागत योग्य घटनाक्रम है, पर इसके साथ साथ समझौते के कार्यान्वयन पर भी काफी ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इस बीच, ऐसा भी पाया गया है कि भूमि के स्वामित्व के रिकॉर्ड या तो गलत जगह पर रख दिए गए हैं या फिर खो गए है और अंतिम निर्णय भारतीय क्षेत्र के भीतर एन्क्लेवों में रहने वाले स्थानीय लोगों के मौखिक बयानों पर आधारित हो सकता है। पहले के एन्क्लेव अनधिकृत जमीन हैं, सर्वे के जरिए आधिकारिक क्षेत्र में दाखिल जमीन का उन व्यक्तियों के बीच वितरण किया जाना है जो नए नागरिक बन गए हैं। हालांकि राज्य सरकार द्वारा प्रक्रिया की शुरूआत कर दी गई है, लेकिन उनकी गति बहुत संतोषजनक नहीं कह जा सकती।

चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम, 2016 के तहत उन्क्लेवों के निवासी, नए नागरिकों को वोट देने का अधिकार जारी कर दिया गया है जो 4 मार्च 2016 से प्रभावी है। अप्रैल-मई 2016 में आयोजित पश्चिम बंगाल राज्य के चुनावों में पहली बार एन्क्लेव में रहने वालों को मतदाता पहचान पत्र जारी किए गए है। 15,208 की कुल आबादी में से कूचबिहार के केवल 9,778 इंक्लेव वासियों ने पहली बार मतदान किया। इन परिस्थितियों में, एन्क्लेव में रहने वालों को मतदाता पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है जिसके बगैर उन्हें अभी भी ‘अवैध विदेशी’ समझा जाता है।

नए नागरिकों के बाधा मुक्त पुनर्वास के लिए सक्रिय नीतियों की आवश्यकता

केंद्र एवं राज्य के बीच समन्वय की कमी इंक्लेवों और उनके आस-पास के गांवों में विकास परियोजनाओं के लिए एक गंभीर चुनौती पैदा करती है। बुनियादी ढांचे के कार्य में देरी दोनों के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों के लंबे दौर के कारण हुई है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार द्वारा नए नागरिकों के पुनर्वास एवं भारत में एन्क्लेवों के बुनियादी ढांचे की बेहतरी तथा कुल मिलाकर कूचबिहार जिले के विकास के लिए भी राज्य को 1,005.99 करोड रूपये का क्षतिपूर्ति पैकेज संवितरित किए जाने की उम्मीद है। लेकिन राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार, अभी तक केवल 40 करोड़ रूपये ही प्राप्त हुए है और केंद्र से पैकेज के लिए शेष धन राशि प्राप्त होना अभी बाकी है।

राज्य सरकार नए नागरिकों के विश्वास को मजबूत बनाने के लिए पहले से योजनाबद्ध कौशल विकास कार्यक्रमों के प्रारंभिक कार्यान्वयन पर विचार कर सकती है और उन्हें हतोत्साहित करने वाले कारणों में कमी ला सकती है। वह रोजगार अवसरों को खोलने का रास्ता प्रशस्त कर सकती है। राज्य सरकार उनके उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित कर सकती है। गैर सरकारी संगठनों की सहायता से राज्य सरकार उन लोगों, जो पहले देशविहीन थे, और जिन्हें अब भारत के नए नागरिकों के रूप में स्वीकृति प्रदान की जा रही है, के बीच सरकारी पैकेजों के लाभों पर सार्वजनिक जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करने पर विचार कर सकती है।

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