Author : Sohini Nayak

Published on Sep 12, 2019 Updated 0 Hours ago

नेपाल ने नज़दीकी संबंधों में नई जान फूंकने के लिहाज़ से विदेश मंत्री एस. जयशंकर की नेपाल यात्रा बेहद अहम है. इससे भारत को इलाक़े के दादा की अपनी छवि से छुटकारा पाने का मौक़ा मिलेगा.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर के नेपाल दौरे: एक नए पॉवर प्ले की दिशा में बढ़ते क़दम?

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के हालिया नेपाल दौरे पर पूरी दुनिया क़रीब से निगाह रखे हुए थी. जयशंकर के इस दौरे का मक़सद नेपाल और भारत के ऐतिहासिक संबंधों को नई धार और रफ़्तार देना था. भारत के इस नेपाल दौरे का मक़सद तो भारत-नेपाल के साझा आयोग की पांचवीं बैठक में हिस्सा लेना था. 21 और 22 अगस्त को हुई इस बैठक की शुरुआत 1987 में हुई थी. लेकिन, भारतीय विदेश मंत्री के नेपाल दौरे ने दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने का मौक़ा दिया जिसका फ़ायदा उठाकर दोनों देश विश्व के नए राजनीतिक परिदृश्य में अपनी अहमियत बढ़ा सकते हैं. ये मौक़ा इसलिए भी अहम था क्योंकि जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A हटाए जाने के बाद से पूरी दुनिया भारतीय कूटनीति पर गहराई से नज़र बनाए हुए है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जम्मू-कश्मीर दक्षिण एशिया का सबसे गंभीर विवाद वाला क्षेत्र है.

भारत और नेपाल के संबंधों को अक्सर ‘बेहद ख़ास’ कहा जाता है. इसकी कई वजहें हैं. दक्षिण एशिया के कूटनीतिक मंच पर, हिमालय की गोद में बसा नेपाल जैसा चारों तरफ़ से ज़मीन से घिरा देश आम तौर पर विश्व की दो उभरती शक्तियों चीन और भारत के बीच ‘बफ़र स्टेट’ कहा जाता है. भारत और चीन में इस बात की अपार संभावनाएं दिखती हैं कि वो अपनी क्षमताओं के बल-बूते पर पूरे इलाक़े का राजनीतिक परिदृश्य बदलने की क्षमता रखते हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए जब हम ये देखते हैं कि नेपाल ने दोनों ही क्षेत्रीय ताक़तों से अच्छे संबंध बनाए रखने में क़ामयाबी हासिल की है, तो ये बात और अच्छे से समझ में आ जाती है कि दोनों उभरती शक्तियों यानी भारत और चीन के बीच संबंध का संतुलन बनाए रखना नेपाल के लिए कितना अहम है. इस दिशा में नेपाल को बहुत संभल कर चलने की ज़रूरत होती है.

ये बात और अच्छे से समझ में आ जाती है कि दोनों उभरती शक्तियों यानी भारत और चीन के बीच संबंध का संतुलन बनाए रखना नेपाल के लिए कितना अहम है.

डॉक्टर एस. जयशंकर न तो नेपाल के लिए नए हैं, न ही वो इस बात से अनजान हैं कि आम नेपाली नागरिक के मन में भारत के प्रति नकारात्मक जज़्बात हैं. इसकी बुनियाद वर्ष 2015 में उस वक़्त पड़ गई थी, जब भारत ने नेपाल को सामान की सप्लाई रोक दी थी. तब नेपाल ने इसे ‘मानवीय और आर्थिक संकट’ का नाम दिया था. भारत के व्यापार रोकने की वजह से नेपाल में खाने-पीने के सामान की भारी कमी हो गई थी. हालांकि भारत ने कई बार कहा है कि उसका नेपाल को तंग करने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन, नेपाल के लोगों के दिल-दिमाग़ पर 2015 में भारत की तरफ़ से लगाई गई पाबंदियों की वजह से हुई परेशानियों ने गहरे पैठ बना ली है. आज भी नेपाल के लोग इस बात का ज़िक्र करते हैं कि किस तरह भारत के साथ शुरू हुए विकास के साझा प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं. इनके मुक़ाबले चीन के साथ नेपाल के संबंध दिनों-दिन गहरे होते जा रहे हैं. चीन से ब्रॉडबैंड जैसी मामूली सेवा हासिल करने पर भी नेपाल के लोग चीन के प्रति कुछ ज़्यादा ही शुक्रगुज़ार हो जाते हैं जबकि पहले नेपाल में ब्रॉडबैंड सेवा भारत की मदद से ही मुहैया कराई जाती थी. ऐसे हालात में दोनो देशों के क़रीबी संबंधों को मज़बूत करने और बेहतर बनाने के लिहाज़ से भारत के विदेश मंत्री का नेपाल दौरा बहुत अहम हो जाता है. इससे भारत को ये मौक़ा हासिल हुआ कि वो इलाक़े में दादागीरी जमाने की अपनी छवि से छुटकारा पा ले. क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद से दक्षिण एशिया के छोटे देशों को ये आशंका सता रही है कि भारत अब क्षेत्रीय शक्ति की हैसियत से उन पर रौब गांठेगा.

2016 में एस. जयशंकर ने विदेश सचिव के तौर पर नेपाल का दौरा किया था. उस वक़्त उन्होंने ये बात स्पष्ट की थी कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता और इसका विकास, भारत की सुरक्षा और समृद्धि से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. अब वक़्त आ गया है कि उस दृष्टिकोण को अमली जामा पहनाया जाए. अब दोनों देशों को आपसी सहयोग से एक उद्देश्यपूर्ण साझेदारी विकसित करने पर काम करना चाहिए. ये बेहद कारगर बात है कि नेपाल और भारत के साझा आयोग की ये बैठक द्विपक्षीय मतभेदों को सुलझाने और इनके सही और सर्वमान्य हल तलाशने के इरादे से आयोजित की जाती है. इसका मक़सद ये होता है कि दोनों देशों के आपसी संपर्क और ऊर्जा की ज़रूरतों को नेपाल और भारत दोनों ही गहराई से समझें और उसका समाधान निकालने की कोशिश करें. हम ये अंदाज़ा लगा सकते हैं कि विदेश मंत्री जयशंकर की नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली और विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली से मुलाक़ातों के दौरान दोनों देशों के परस्पर संबंध को उस दिशा में ले जाने पर चर्चा हुई होगी, जिससे दोनों ही देशों को फ़ायदा हो. इससे नेपाल को दक्षिण एशिया में अपनी अलग पहचान बनाने का मौक़ा मिलेगा. चूंकि नेपाल चारों तरफ़ से ज़मीन से घिरा हुआ है और इसके पास समुद्र तट नहीं है. ऐसे में अगर नेपाल अपनी नई पहचान बनाने में कामयाब होता है, तो सामरिक तौर पर उसकी आवाज़ को दक्षिण एशिया में ज़्यादा वज़न मिलेगा. इसी तरह, नेपाल के साथ संबंध भारत पर भी गहरा असर डालने वाले हैं. क्योंकि नेपाल में चीन के बढ़ते दखल के बावजूद भारत की ख़्वाहिश यही है कि नेपाल में उसकी अहमियत बनी रहे और उसे द्विपक्षीय संबंधों में तरज़ीह मिलती रहे.

ज़मीन और नदियों के माध्यम से संपर्क के विवादों की पहचान

नेपाल की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जो इसके विकास के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी करती हैं. नेपाल का 70 फ़ीसदी इलाक़ा पहाड़ी है. वहीं, इसके दक्षिणी हिस्से में बहने वाली नदियां अक्सर रास्ता बदल कर खेती योग्य ज़मीन का नक़्शा बदल देती हैं. आवाजाही के तमाम संसाधनों के ज़रिए नेपाल अपने आयात को पूरा करता है. इसके लिए नेपाल को कोलकाता और हल्दिया के बंदरगाहों के इस्तेमाल के लिए मिली छूट अहम हो जाती है. साथ ही बीरगंज में बना टर्मिनल भी नेपाल के लिए बहुत अहमियत रखता है. फिर भी, कोलकाता बंदरगाह नेपाल की ज़रूरतों के लिहाज़ से कारगर नहीं माना जाता. क्योंकि ये मालवाहक जहाज़ों से कंटेनर उतारने और सामान लादने में सात दिन का वक़्त लगा देता है. इससे आयात और महंगा हो जाता है. फिर नेपाल को बंदरगाह में ज़्यादा दिनों तक सामान रखे रहने के लिए ज़्यादा पैसे देने पड़ते हैं. इससे मसला और भी पेचीदा हो जाता है. भारत से नेपाल को सामान सप्लाई करने वाले केंद्रों की हालत भी अच्छी नहीं है. दरभंगा-सीतामढ़ी-रक्सौल की रेलवे लाइन उत्तरी बिहार में आयी बाढ़ से तबाह हो गई है. इसका असर भी नेपाल के साथ संबंधों पर पड़ा है. फिर रेल सेवा असंगठित है. इसके अलावा भारत को नेपाल से जोड़ने वाले तीन और प्रोजेक्ट हैं, न्यू जलपाईगुड़ी-काकरभिट्टा, नौतनवा-भैरहवा और नेपालगंज रोड-नेपालगंज. इन पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. ये तीनों ही प्रोजेक्ट भारत और नेपाल के ज्वाइंट वर्किगं ग्रुप के तहत आते हैं. जो अंतत: व्यापक क्षेत्रीय नेटवर्क का हिस्सा है.

भारत और नेपाल का सहयोग और मज़बूत करने में अंतर्देशीय जल परिवहन का भी बहुत अहम रोल हो जाता है. इस मामले में कोसी नदी के बेसिन की उपयोगिता पर ज़ोर डालने की ज़रूरत है.

चूंकि नेपाल और भारत के बीच की सरहद खुली हुई है. तो, इस में कोई दो राय नहीं कि इस सीमा के आर-पार आवाजाही को और नियंत्रित कर ने की सख़्त ज़रूरत है. इसीलिए अब वक़्त इस बात का है कि भारत और नेपाल, बार्डर मैनेजमेंट के ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप को नए सिरे से परिभाषित और गठित करें. साथ ही दोनों देशों को बार्डर डिस्ट्रिक्ट को-ऑर्डिनेशन कमेटियों (BDCCs) को नए सिरे से गठित करने की आवश्यकता है. दोनों देशों के बीच सीमा चौकियों जैसे, पानीटंकी (भारत), काकरबिट्टा (नेपाल) या जोगबनी (भारत) और बिराटनगर (नेपाल) की निगरानी बढ़ाने की ज़रूरत है. ताकि दोनों देशों की सीमा पर शांति बनी रहे और अवैध व्यापार व घुसपैठ पर भी रोक लग सके.

भारत और नेपाल का सहयोग और मज़बूत करने में अंतर्देशीय जल परिवहन का भी बहुत अहम रोल हो जाता है. इस मामले में कोसी नदी के बेसिन की उपयोगिता पर ज़ोर डालने की ज़रूरत है. अगर ऐसा होता है तो दोनों ही देशों के पास विकास के नए द्वार खोलने की अपार संभावनाएं हैं. अगर हम और बारीक़ी से हें, तो कोसी नदी का बेसिन वो इकलौता इलाक़ा है, जो चीन, नेपाल और भारत को एक साथ जोड़ता है. आज जब दुनिया में जल पर राजनीति बढ़ रही है, तो हमें इस इलाक़े की सामरिक अहमियत को समझकर इस पर ध्यान देना होगा. इसके अलावा दोनों देशों के बीच सीमा के आर-पार जल प्रबंधन के कई कार्यक्रम हैं, जो इस नज़रिए से बहुत अहम हैं. इस मोर्चे पर भी नेपाल और चीन के बीच नज़दीकी बढ़ती देखी जा रही है. जो भारत के लिए निराशाजनक है. लेकिन, शायद आगे चल कर इनसे भारत पानी की वजह से होने वाली आपदाओं का जवाब देने की स्थिति में होगा.

नए रास्ते की तलाश

कुल मिलाकर, इस पूरे माहौल में नेपाल और भारत को चाहिए कि वो आपसी संबंधों को नए सिरे से देखें और नई धार दें. ताकि, बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल के उप-क्षेत्रीय सहयोग में इनकी अहमियत बढ़ जाए. क्योंकि नेपाल और भारत के संबंध हाल के कुछ बरसों मे दिशा से भटक गए हैं, इसलिए इस क्षेत्रीय सहयोग में भी दोनों की अहमियत ख़त्म हो गई है. क्योंकि भूटान ने बीबीआईएन (Bangldesh, Bhutan, India, Nepal) के नेटवर्क से ख़ुद को अलग कर लिया था. आज के दौर में जब आपसी रज़ामंदी न बन पाने की वजह से सार्क जैसे क्षेत्रीय सहयोग संगठनों की पहचान धूमिल होती जा रही है, लेकिन जब दोनों देश एक जैसी नज़रिया रखते हो तो ऐसे में ये अपने रिश्तों को एक नया आयाम देने की ताक़त भी रखते हैं. दो सहयोगी देश आपसी संबंध और बेहतर कर के विकास को नई रफ़्तार दे सकते हैं. आज की तारीख़ में बांग्लादेश, नेपाल और भारत के नेटवर्क (BIN) के माध्यम से एक नई सामरिक शक्ति का विकास किया जा सकता है. इससे नेपाल के लिए भी विकास के नए रास्ते खुलेंगे. वो कारोबार के नए रास्ते बना सकेगा, और अपनी क्षमताओं का बेहतर इस्तेमाल कर सकेगा. इसके अलावा, वक़्त के साथ भारत पर ‘निर्भरता’ का विचार नेपाल के नागरिकों के मन से ख़ुद ब ख़ुद कमज़ोर होता जाएगा क्योंकि आपसी सहयोग में दोनों ही देश बराबरी के दर्जे पर खड़े होंगे और दक्षिण एशिया की तरक़्क़ी के लिए एक-दूसरे का समर्थन करेंगे. ये दुनिया को नई नज़र से देखने का तरीक़ा होगा, जिससे लाभ की जो उम्मीदें बंधेंगी, वो पूरी भी होंगी. ऐसा होने पर भारत और नेपाल के संबंधों के नए मानी निकलेंगे

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