Author : Shoba Suri

Published on Sep 03, 2019 Updated 0 Hours ago

देश को 2022 तक कुपोषण से मुक्ति के लक्ष्य को पाने के लिए ज़रूरी है सरकारी कार्यक्रमों की प्रभावी निगरानी की जाए और उन्हें सफलता से लागू किया जाए.

कुपोषण मुक्त भारत के लिए

अक्सर चुनाव के दौरान हमारे राजनेता सिर्फ मतदाताओं पर ही ध्यान केन्द्रित करके रह जाते हैं लेकिन उन्हे जरूरत इस बात की है कि वो बच्चों के बेहतर जीवन स्तर के बारे में भी ध्यान दें.

क्योंकि राष्ट्र के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए किए गए वादों को निभाना भी महत्वपूर्ण है. 1975 से विभिन्न कार्यक्रमों, जैसे कि समुचित बाल विकास सेवाओं का सृजन और मध्याह्न भोजन योजना का राष्ट्रीय कवरेज जैसी व्यवस्थालागू करने के बावजूद भारत निरंतर उच्च दर के कुपोषण से जूझ रहा है. पोषण में सुधार और स्टंटिंग (उम्र के अनुसार बच्चों का विकास नहीं बढ़ना) को प्रबंधित करना बड़ी चुनौतियां हैं और उन्हें केवल एक अंतर-क्षेत्रीय रणनीति के साथ संबोधित किया जा सकता है.

स्टंटिंग का मानव पूंजी, ग़रीबी और इक्विटी पर आजीवन प्रभाव रहता है. यह शिक्षा और कम पेशेवर अवसरों पर भी असर डालता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) — 4 के अनुसार, सालों से सीमांत सुधार के बावजूद, भारत में स्टंटिंग बड़े पैमाने पर पाया जाता है साल 2015-16 में, पांच साल से कम उम्र के 38.4% बच्चे स्टंटिंग से ग्रसित थे और 35.8% बच्चों में कम वज़न की समस्या थी. भारत मानव पूंजी सूचकांक पर 195 देशों में से 158 रैंक पर है.

स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश की कमी के कारण आर्थिक विकास धीमा हो गया है. विश्व बैंक के अनुसार, “बचपन में स्टंटिंग के कारण वयस्क की औसत ऊंचाई में 1% की कमी, आर्थिक उत्पादकता में 1.4% के दर से नुकसान पहुंचा हुई है.”स्टंटिंग का भविष्य की पीढ़ियों पर भी प्रभाव पड़ता है. चूंकि साल 2015-16 में 53.1% महिलाएं रक्तहीनता या एनीमिया से पीड़ित थीं, इसलिए भविष्य में उनके गर्भधारण और उनके बच्चों पर इसका स्थायी प्रभाव पड़ेगा. इसके अलावा, स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब शिशुओं को अपर्याप्त आहार खिलाया जाता है.

महत्वाकांक्षी लक्ष्य

साल 2017 की राष्ट्रीय पोषण रणनीति का उद्देश्य 2022 तक भारत को कुपोषण मुक्त देश बनाना है. योजना यह है कि एनएफएचएस — चार पैमानों पर साल 2022 तक प्रति वर्ष लगभग तीन प्रतिशत बच्चों (0-3 वर्ष) में स्टंटिंग की समस्या को कम करने में मददगार होऔर बच्चों, किशोर और माँ बनने की उम्र में पहुंची महिलाओं में एनीमिया की समस्या को एक तिहाई तक कम करना है.

यह एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, क्योंकि अगर आंकड़ों पर ग़ौर करे तो हम पाएंगे कि स्टंटिंग की समस्या में गिरावट पिछले 10 वर्षों में प्रति वर्ष केवल एक प्रतिशत की हुई है अर्थात यह 2006 में 48% था और 2016 में 38.4% तक रहा. अब समय आ गया है कि इन मामलों से जुड़े मंत्रालयों के बीच गंभीर तरीके से मेल , पोषण कार्यक्रमों के मिलान और इन लक्ष्यों को पाने के लिए कड़ी निगरानी पर ध्यान दिया जाये.

स्टंटिंग पर उपलब्ध डेटा हमें बताता है कि भविष्य के कार्यक्रमों को कहां केंद्रित करना है. स्टंटिंग की समस्या उम्र के साथ बढ़ता चला जाता है और 18-23 महीनों में अपने चरम पर पहुँच जाता हैं. स्तनपान, उम्र-उपयुक्त पूरक आहार, पूर्ण टीकाकरण और विटामिन ‘ए’ की खुराक़ को समय पर बच्चों को देने से परिणाम काफी सुधार आते हैं. हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि जन्म के एक घंटे के भीतर केवल 41.6% बच्चों को स्तनपान कराया जाता है, 54.9% को विशेष रूप से छह महीने के लिए स्तनपान कराया जाता है, 42.7% को समय पर पूरक आहार प्रदान किया जाता है और दो साल से कम उम्र के केवल 9.6% बच्चों को पर्याप्त आहार प्राप्त होता है.

भारत को इन क्षेत्रों में सुधार करना होगा. विटामिन ‘ए’ की कमी से खसरा और डायरिया जैसी बीमारियों का संक्रमण बढ़ सकता है. लगभग 40% बच्चों को पूर्ण टीकाकरण और विटामिन ‘ए’ की खुराक नहीं मिल पाती है. इन रोगों की रोकथाम के लिए उन्हें ये उपलब्ध कराए जाने की ज़रूरत है.

राज्यों और जिलों में बदलाव

एनएफएचएस — 4 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की संख्या अधिक है, संभवतः ऐसी स्थिति उन क्षेत्रों में परिवारों की कम सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण है. स्टंटिंग की समस्या लगभग 12 या उससे अधिक वर्षों तक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली माताओं की तुलना में बिना स्कूली शिक्षा प्राप्त माताओं से पैदा होने वाले बच्चों में अधिक पाया जाता है. स्टंटिंग घरेलू आय में वृद्धि के साथ लगातार गिरावट को दर्शाता है.

भौगोलिक क्षेत्रों के संदर्भ में, बिहार (48%), उत्तर प्रदेश (46%) और झारखंड (45%) में स्टंटिंग की समस्या का बहुत अधिक दर है, जबकि सबसे कम दरों वाले राज्यों में केरल और गोवा (20%) शामिल है. छत्तीसगढ़ में सबसे महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई है (पिछले दशक में 15 प्रतिशत की गिरावट), इस प्रकार, सरकारें छत्तीसगढ़ से सबक ले सकती है. हालांकि, तमिलनाडु में सबसे कम प्रगति हुई है.

इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन से पता चलता है कि स्टंटिंग की समस्या ज़िला स्तर पर (12.4-65.1%) अलग-अलग है और लगभग 40% जिलों में स्टंटिंग का स्तर 40% से ऊपर है. उत्तर प्रदेश सूची में सबसे ऊपर है जहां 10 में से छह जिलों में स्टंटिंग की उच्चतम दर है.

इस डेटा को देखते हुए, गर्भावस्था से ही स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रमों के अभिसरण पर कार्य करना चाहिए जब तक कि बच्चा पांच वर्ष की आयु तक नहीं पहुंच जाता. इसके अलावा, भारत को सामाजिक-व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. कुपोषण को दूर करने के लिए कार्यक्रमों की प्रभावी निगरानी और उनके क्रियान्वयन की सच में बेहद ज़रूती है.

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