Author : Soumya Bhowmick

Published on Oct 09, 2019 Updated 0 Hours ago

पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में खाद्यान्न की ख़रीद में राशन कार्ड रखने की अहमियत बहुत ज़्यादा है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली का डिजिटलीकरण न होने की वजह से बंगाल की दिक़्क़तें और भी बढ़ जाती हैं.

पश्चिम बंगाल में खाद्य सुरक्षा: अंतरराज्यीय स्थानांतरण और डिजिटलीकरण

भारत में सरकार की तरफ़ से खाद्य सुरक्षा की संस्थागत व्यवस्था करने की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के दौर यानी 1944 से हुई थी. अपने मौजूदा स्वरूप में भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली, अपनी तरह की दुनिया की सबसे बड़ी वितरण प्रणाली है. जो 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून (National Food Security Act) के तहत काम करती है. हर साल करोड़ टन से भी ज़्यादा सस्ता अनाज 81 करोड़ से ज़्यादा लाभार्थियों को वितरित किया जाता है.

पिछले कुछ दशकों में कई ऐसी नीतियां बनाई गई हैं, ताकि भारत की बढ़ती आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाए. 2018 के ग्लोबल फूड सिक्योरिटी इंडेक्स में शामिल किए गए 113 देशों में भारत 76वें नंबर पर आता है. भारत के सामने जो बडी चुनौतियां हैं, उन में कृषि क्षेत्र के रिसर्च और डेवेलपमेंट में निवेश की कमी, प्रति व्यक्ति जीडीपी और प्रोटीन की गुणवत्ता प्रमुख हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ, भारत की केंद्रीय सरकार की नीतियों, और पीडीएस, राष्ट्रीय पोषण मिशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और नेशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर जैसी योजनाओं का हवाला देकर कहता है कि भारत में खाद्यान्न की कमी और खाद्य सुरक्षा जैसी चुनौतियों का सामना करने में इनका रोल अहम है.

वन नेशन वन राशन कार्ड का फ़ायदा ये होगा कि अगर कोई व्यक्ति या परिवार किसी दूसरे राज्य में जाएगा, तो उसे नया राशन कार्ड नही बनवाना होगा. वो केवल एक डिजिटल राशन कार्ड की मदद से सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभ कहीं भी ले सकेगा.

हाल ही में केंद्र की बीजेपी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने पर वन नेशन वन राशन कार्ड योजना का एलान किया था. ये एनडीए सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक है. ये योजना जून 2020 से लागू की जानी हैं. इसका मक़सद सरकार से मिलने वाली खाद्य सुरक्षा के लाभ के स्थानांतरण की सुविधा होगी. पहले हर राशन कार्ड इलाक़े के किसी उचित मूल्य की दुकान से संबंद्ध होता था. लेकिन, इस वन नेशन वन राशन कार्ड का फ़ायदा ये होगा कि अगर कोई व्यक्ति या परिवार किसी दूसरे राज्य में जाएगा, तो उसे नया राशन कार्ड नही बनवाना होगा. वो केवल एक डिजिटल राशन कार्ड की मदद से सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लाभ कहीं भी ले सकेगा.

लेकिन, इस मामले में कुछ सावधानियों पर ग़ौर करने की ज़रूरत है –

क. इस योजना को पूरे देश में लागू करने का मतलब होगा कि पूरे देश में लोग कहां से कहां अप्रवास करते हैं, उसके बारे में गहराई से रिसर्च की जाए. ताकि खाद्यान्न की सरकारी खरीद का फ़ैसला लेने में सहूलत हो.

ख. देश भर में मौजूद सरकारी उचित दर दुकानों में प्वाइंट ऑफ़ सेल मशीनों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराया जाए, ताकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का डिजिटलीकरण हो सके.

पश्चिम बंगाल जैसे दशों में राशन कार्ड रखना अब भी बहुत मायने रखता है. इसका असर अनाज की ख़रीद के फ़ैसले पर पड़ता है. दिक़्क़त ये है कि पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का डिजिटलीकरण बहुत कम हुआ है. इस से राज्य की परेशानी और भी बढ़ जाती है.

पश्चिम बंगाल उर्वर ज़मीन के मामले में बहुत भाग्यशाली है. यहां पर खेती के लिए पानी भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. क्योंकि ये गंगा के मैदानी इलाक़ों में पड़ता है. भारत के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के मुताबिक़, पश्चिम बंगाल देश के सबसे ज़्यादा अनाज उत्पादक राज्यों में से एक है. वो रबी और ख़रीफ़ दोनों ही फ़सलों के उत्पादन में बहुत आगे है. 2016-17 में पश्चिम बंगाल देश का सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य था. पश्चिम बंगाल में उस वित्तीय वर्ष में 1.59 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था. इसी तरह, वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1.69 करोड़ टन अनाज के उत्पादन के साथ पश्चिम बंगाल अनाज उत्पादन के मामले में कई दक्षिण, पश्चिम और उत्तरी पूर्वी भारत के राज्यों से आगे था.

लेकिन, बड़ी तादाद में अनाज उत्पादन और आपूर्ति के बावजूद, राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थिति अच्छी नहीं है. लोकसभा से मिले आंकड़ों का विश्लेषण करने पर कई अहम बातों का पता लगता है. जैसे कि, पश्चिम बंगाल में राशन कार्ड धारकों और उचित दर दुकानों का अनुपात विषम है. हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में राशन कार्ड धारकों और 2017-18 में उन्हें राशन उपलब्ध कराने वाली उचित दर दुकानों के अनुपात में बहुत विषमता देखने को मिलती है. देश के 10 सबसे ज़्यादा आबादी वाले राज्यों में ये अनुपात बहुत बिगड़ा हुआ नज़र आता है. ये आंकडे 2011 की जनगणना के हिसाब से हैं. बढ़ती हुई आबादी की मांग के मुताबिक़ उचित दर दुकानों की संख्या नहीं बढ़ रही है.

रैंक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश प्रति दुकान/व्यक्ति
1. पश्चिम बंगाल 2,968
2. दिल्ली 863
3. दादरा और नगर हवेली 686
4. ओडिशा 647
5. कर्नाटक 519
6. मध्य प्रदेश 514
7. दमन और ड्यू 473
8. छत्तीसगढ़ 436
9. उत्तर प्रदेश 422
10. गुजरात 420
11. राजस्थान 389
12. बिहार 371
13. आंध्र प्रदेश 329
14. त्रिपुरा 327
15. गोवा 310
16. हरियाणा 310
17. तमिलनाडु 283
18. महाराष्ट्र 282
19. तेलंगाना 282
20. जम्मू और कश्मीर 268
21. झारखंड 247
22. मणिपुर 240
23. केरल 240
24. पंजाब 218
25. नागालैंड 168
26. असम 151
27. उत्तराखंड 144
28. हिमाचल प्रदेश 142
29. लक्षद्वीप 131
30. मिज़ोरम 115
31. अरुणाचल प्रदेश 102
32. मेघालय 91
33. सिक्किम 68
34. अंडमान और निकोबार 28
35. चंडीगढ़ 0
36. पुडुचेरी 0

पश्चिम बंगाल, अनाज उत्पादन में भले ही बहुत आगे हो, लेकिन, खाद्य बाज़ार की मांग और आपूर्ति के बीच का फ़र्क़ ऊपर की सारणी को देखने पर साफ़ नज़र आता है. पश्चिम बंगाल में हर एक राशन की दुकान 2968 लोगों को राशन उपलब्ध कराती है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के डेटाबेस के आंकड़ों का अपडेट न होना है. इसका मतलब ये है कि राशन कार्ड धारक बहुत से लोग ऐसे हैं, जो वित्तीय तौर पर इस सुविधा के लिए पात्रता नहीं रखते हैं. कई लोग तो खाद्यान्न हासिल करने के बजाय किसी और मक़सद से राशन कार्ड धारक बन गए हैं. हक़ीक़त तो ये है कि बहुत से कार्ड धारक, व्यवस्था का फ़ायदा उठाकर काला बाज़ारी के बड़े बड़े रैकेट चलाते हैं. ख़ास तौर से सस्ते मिट्टी के तेल की काला बाज़ारी बहुत होती है.

राशन कार्ड की दुकानों पर आबादी के इस व्यापक बोझ की वजह से जल्द ही पश्चिम बंगाल सरकार राशन कार्ड धारकों का एक सर्वे करने वाली है. इसके बाद राशन कार्ड धारकों का उनकी ज़रूरतों के हिसाब से वर्गीकऱण किया जाएगा. ताकि, जो लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ लेना चाहते हैं और जो केवल पहचान पत्र के तौर पर राशन कार्ड रखे हुए हैं, उन के बीच फ़र्क़ करना. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि, “बहुत से लोगों ने तो इसलिए राशन कार्ड बनवा लिया है कि कहीं राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लागू करने की वजह से उन्हें परेशानी न हो. लेकिन हम इस बात का पता लगाएंगे कि कौन असली लाभार्थी है और कौन से लोग हैं जो केवल पहचान पत्र के तौर पर राशन कार्ड रखे हुए हैं.”

हक़ीक़त तो ये है कि बहुत से कार्ड धारक, व्यवस्था का फ़ायदा उठाकर काला बाज़ारी के बड़े बड़े रैकेट चलाते हैं. ख़ास तौर से सस्ते मिट्टी के तेल की काला बाज़ारी बहुत होती है.

हालांकि राशन कार्ड का स्थानांतरण से बढ़ती आबादी के राशन की दुकानों पर बढ़ने वाले बोझ को कम किया जा सकेगा. लेकिन, पश्चिम बंगाल की चिंताएं दो तरह की हैं.

पहली बात तो ये है कि वन नेशन वन राशन कार्ड का असल मक़सद अप्रवासी कामगारों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है. ताकि वो अगर देश के किसी दूसरे हिस्से में जाएं, तो उन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली से सस्ती दरों पर अनाज मिल सके. पश्चिम बंगाल और बिहार से बड़ी संख्या में कामगारों का देश के दूसरे हिस्सों में अप्रवास होता है. पश्चिम बंगाल का मालदा ज़िला, काम की तलाश में बंगाल से दूसरे राज्यों में जाने वाले लोगों का गढ़ माना जाता है. यहां से भारत के दूर-दराज़ के हिस्सों तक लोग काम की तलाश में चले जाते हैं. इसीलिए, राशन कार्ड के स्थानांतरण की सुविधा पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित होगी. जब हर राज्य की राशन वितरण प्रणाली का पूरे देश में एकीकरण होगा, तो इसका फ़ायदा अप्रवासी कामगारों को होगा. हालांकि इस में समय लगेगा. इस अभियान के पहले चरण में केवल दो जोड़ी राज्यों ने इसे अपने यहां लागू किया है. आंध्र-प्रदेश और तेलंगाना के साथ महाराष्ट्र और गुजरात ने राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी को अपने यहां लागू कर लिया है.

दूसरी और ज़्यादा अहम बात ये है सार्वजनिक वितरण प्रणाली के डिजिटलीकरण में पश्चिम बंगाल बहुत पीछे रह गया है. खाद्य मंत्रालय के मुताबिक़, पश्चिम बंगाल की कुल 20 हज़ार आठ सौ छह उचित दर दुकानों में से केवल 366 में इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ़ सेल मशीनें लगी हैं. केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान कहते हैं कि, “पश्चिम बंगाल में ईपीओस का कवरेज केवल 70 प्रतिशत है. उत्तराखंड में ये 33 प्रतिशत है और बिहार में उससे भी कम यानी महज़ 15 फ़ीसद कवरेज. इनके मुक़ाबले पूर्वोत्तर के राज्यों की स्थिति तो और भी ख़राब है. मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिज़ोरम और असम में ईपीओस मशीनों की उपलब्धता तो बिल्कुल भी नहीं है. इसलिए हमें इन इलाक़ों पर ख़ास तौर से ध्यान देना होगा.”

अगर वन नेशन वन राशन कार्ड की योजना को सही तरीक़े से लागू किया जा सका, तो ये भी खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में असमानता को कम करने में बड़ा रोल निभाएगी.

भारत की विशाल आबादी और भयंकर ग़रीबी के चलते यहां दुनिया के कुल भूख के शिकार लोगों का एक चौथाई हिस्सा रहता है. भारत में क़रीब 19.5 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं. आज भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती सस्टेनेबल डेवेलपमेंड गोल 2 यानी 2030 तक एक भी व्यक्ति के भूखे न रहने का लक्ष्य हासिल करने की है. संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास समाधान के नेटवर्क ने 2019 में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत के बच्चों में लंबाई न बढ़ने की तादाद 38.4 प्रतिशत है और सही विकास न हो पाने वाले बच्चों की संख्या 21 फ़ीसद है. ये भारत के सामने खड़ी बहुत बड़ी चुनौती है.

अगर वन नेशन वन राशन कार्ड की योजना को सही तरीक़े से लागू किया जा सका, तो ये भी खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में असमानता को कम करने में बड़ा रोल निभाएगी. राज्यों के जोड़े बनाकर या उनके समूह बनाकर ये लक्ष्य आसानी से हासिल किया जा सकता है. जैसे कि राशन की दुकानों के कम घनत्व वाले पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों को एक समूह में रखा जाए. जबकि ज़्यादा दुकानों की उपलब्धता वाले राज्यों को एक अलग समूह में रखा जा सकता है. इससे सभी नागरिकों को खाद्यान्न बराबरी से उपलब्ध कराया जा सकेगा. मिसाल के तौर पर भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रख कर पश्चिम बंगाल को असम या सिक्किम के साथ शुरुआती तौर पर जोड़ा जा सकता है. देश में खाद्यान्न की उपलब्धता और आपूर्ति के बीच के फासले को दूर करने की दिशा में ये यक़ीनन ये सकारात्मक क़दम होगा. और अंतत: इसकी मदद से हम देश भर में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकेंगे.

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