Published on May 31, 2018 Updated 0 Hours ago

शिक्षा समृद्धि में गहने और विपदा में सहारे के समान है। —अरस्तु

भारत में शिक्षा और कौशल पर नए सिरे से चिंतन

भारत के शिक्षा और कौशल संबंधी प्रयास अरस्तु के विचारों से एकदम उलट हैं। जहां एक ओर यहां इंजीनियरों, एमबीए डिग्री धारकों और शिक्षा की अन्य धाराओं के स्नातकों की भरमार है, जो बेरोजगार हैं और विडम्बना यह है कि ये ऐसे देश में बेरोजगार हैं, जो दुनिया की तेजी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। वहीं दूसरी ओर, मौजूदा समय में दी जाने वाली शिक्षा तथा कौशलों के प्रशिक्षण छात्रों के मन में उस लचीलेपन को बैठाने में विफल रहे हैं, जो आर्थिक मंदी और तेज गति से हो रहे तकनीकी बदलावों से निपटने के लिए आवश्यक है।

शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने और/या भारत को परेशानी में डालने वाले कौशल संकट से निपटने के संभावित कदम कौन से हैं। हालांकि यह मामला बड़े पैमाने पर ध्यान आकर्षित करना जारी रखे हुए है और इस पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया है, लेकिन इससे जुड़े कुछ बिंदु ऐसे भी हैं, जिन पर गम्भीरता से सोच विचार और चिंतन नहीं किया गया है।

भारत में शिक्षित कार्यबल की बेरोजगारी के आंकड़े निम्नलिखित हैं:

शैक्षिक योग्यता बेरोजगारी का स्तर (प्रतिशत में) 
बी. फार्मा 52
पॉलिटेक्नीक 67
एमसीए 56
आईटीआई 71
बी.एससी 66
बी. कॉम 66
बीए 63
एमबीए 61
इंजीनियरिंग 48

स्रोत: इंडिया स्किल रिपोर्ट 2018, व्हीलबॉक्स

व्हीलबॉक्स द्वारा प्रकाशित इंडिया स्किल रिपोर्ट, 2018 से पता चलता है कि सभी शैक्षि​क क्षेत्रों में बेरोजगारी का आंकड़ा 54.4 प्रतिशत है। ये आंकड़े देश के कार्यबल को असमर्थ बना रही कौशल की कमी को जाहिर करते हैं। रोजगार संबंधी योग्यता का आकलन करने वाली एजेंसियां जनरल एप्टीट्यूड टेस्ट्स में बेहद खराब प्रदर्शन और बुनियादी तथ्यों की अज्ञानता देखकर दंग रह गईं। नए इंजीनियरिंग स्नातकों के चौंकाने वाले विशाल समूह में बेसिक प्रोग्रामिंग स्किल्स का चिंताजनक रूप से अभाव पाया गया। उनमें कौशल की कमी की वजह अप्रचलित पाठ्यक्रम, खराब तरीके से प्रशिक्षित शिक्षक तथा दोषपूर्ण अध्यापन और शिक्षण पद्धति है।

भारत में कौशलों के बेमेल होने की समस्या के दो आयाम हैं। पहला, भारत में शिक्षा जगत उद्योग जगत के मानकों और नियोक्ताओं की अपेक्षाओं से बिल्कुल अलग है, जिससे देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है।

दूसरा, कौशलों के बेमेल होने के कारण शिक्षा और कौशल का उचित इस्तेमाल नहीं हो पाता। उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवान उन नौकरियों से नकारे जा रहे हैं, जिनके लिए वह खुद को उपयुक्त समझते थे, ऐसे में वे तेजी से ऐसी नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे हैं, जहां उनसे कम शैक्षिक स्तर के लोगों की जरूरत है। हमने स्नातकों को क्लर्क के पद के लिए आवेदन करते देखा है, जिसके लिए केवल हायर सेकेंडरी स्तर की शिक्षा ही काफी होती है। हाल के समय में, नौकरियों की कमी के कारण स्नातकोत्तर लोगों की बात तो छोड़िए, पीएचडी डिग्री धारकों को भी शारीरिक परिश्रम वाली नौकरियों (ब्लू कॉलर जॉब्स) पर गौर करना पड़ा है। क्योंकि नियोक्ताओं द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को नौकरी देने की संभावना है, ऐसे में वे लोग जिनकी योग्यता इन नौकरियों के बिल्कुल उपयुक्त थी, उनकी जगह यह नौकरी उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों को मिल जाएगी। नौकरी पाने के हकदार लोगों को उससे वंचित कर देना, वास्तव में परेशानी की बात है। इस कारण उच्च शिक्षा पर हुए निवेश से मिलने वाला लाभ भी काफी घट जाता है तथा हानि की यह स्थिति निवेशक के लिए अतिरिक्त बोझ (या डेडवेट कॉस्ट) प्रस्तुत करती है। भारत के संदर्भ में, सब्सीडी के रूप में यह निवेश किया जाता है यहां यह अतिरिक्त बोझ (या डेडवेट कॉस्ट) करदाताओं के धन की बर्बादी है।

जिस दुनिया हम रहते हैं, वह तकनीकी, भौतिक और जैविक क्षेत्रों के आपसी प्रभाव से उत्पन्न हो रहे विचारों और संभावनाओं से लबालब भरी हुई है। जब वैश्वीकरण की ताकते इन विचारों और संभावनाओं पर काम करती हैं, तो हम अपनी आज की वास्तविकता और शायद, निकट भविष्य तक पहुंचते हैं। जो देश इस परिदृश्य में अपनी जगह बनाना चाहता है उसे फुर्तीला और गतिशील होना होगा; उसे बदलाव की दृष्टि से लगातार खुद को गढ़ना और नए सिरे से जानना होगा, ताकि वह उस बदलाव के साथ उपलब्ध हो रहे अवसरों का लाभ उठा सकें। मनुष्य बदलाव के प्रतिनिधि होते हैं, इसलिए शिक्षा प्रगति का साधन और राष्ट्र की वास्तुकार है। अगर भारत अपनी शिक्षा और कौशल प्रणाली के समक्ष आ रही चुनौतियों से निपटने में ढिलाई दिखाएगा, तो वैश्विक संदर्भ में उसके पिछड़ने और अप्रसांगिक रह जाने का जोखिम होगा।

दुनिया में जिन देशों की आबादी का बड़ा हिस्सा उम्रदराज लोगों का है, उनमें जापान, जर्मनी, इटली और ग्रीस शामिल हैं। दूसरी ओर भारत, जल्द ही दुनिया का सबसे युवा देश बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उम्रदराज देश होने के परिणामों के बारे में स्थापित तथ्य यह है कि देश की आर्थिक प्रगति पर उम्र बढ़ने का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बूढ़ा होने पर श्रमिकों की आपूर्ति कम होती है और उत्पादकता घटती है, जिसका आशय निवेश और आमदनी में कमी में हो सकता है। इसलिए दुनिया भर का मौजूदा जनसांख्यकीय प्रोफाइल भारत की कार्यशील आबादी (वर्किंग एज पापुलेशन) के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक अवसर प्रस्तुत करता है। उम्रदराज आबादी वाले देशों की आर्थिक वृद्धि को बरकरार रखने के लिए भारत के जनसांख्यकीय लाभांश को संघटित किया जा सकता है और साथ ही भारत की विप्रेषित धन वाली अर्थव्यवस्था (रमिटेंस इकॉनोमी) को प्रोत्साहन भी दिया जा सकता है। दुर्भाग्य से, भारत इस अवसर का लाभ उठाने के लिए पूरी तरह तैयार दिखाई नहीं दे रहा है।

चौथी औद्योगिक क्रांति (4आईआर) हम पर निर्भर करती है और इसलिए इस बारे में चिंताएं केवल ऑटोमेशन के बाद होने वाले नौकरियों के नुकसान को लेकर ही नहीं, बल्कि चौथी औद्योगिक क्रांति से जुड़ी अनिश्चितता और अस्थिरता को लेकर भी हैं। यदि हमारी शैक्षणिक और कौशल प्रणाली वैश्विक मानकों के अनुरूप होती, तो भारत के हालात कुछ अलग हो सकते थे। आखिरकार, चौथी औद्योगिक क्रांति मानवीय प्रतिभा, रचनात्मकता और कल्पना की उपज है; और दुनिया के अविष्कारकों, नवोन्मेषकों, शोधकर्ताओं और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए यह तकनीकी उन्नति के अध्याय में सुनहरे क्षण का प्रतिनिधित्व करती है। इसके बावजूद, कई ऐसे हैं, जिनकी शैक्षणिक योग्यता संतोषजनक होने के बावजूद उनके लिए चौथी औद्योगिक क्रांति चुनौती प्रस्तुत करती है।इसके बावजूद, जैसा कि विश्व बैंक की ओर से प्रकाशित वि​श्व विकास रिपोर्ट 2019 में इस बात पर बल दिया गया है, अच्छी शिक्षा व्यक्ति को इस काबिल बनाती है कि वह तकनीकी ​रुकावटों का बखूबी सामना कर सके।महत्वपूर्ण चिंतन, तार्किक, विश्लेषणात्मक और गणना संबंधी योग्यताओं, रचनात्मकता और जिज्ञासा जैसे बुनियादी और सामान्य कौशलों का पोषण करने वाली शिक्षा सही मायनों में समृद्धि में गहने और विपदा में सहारे के समान है, जैसा कि अरस्तु ने स्थापित किया था।

मंशा सही होने के बावजूद स्किल इंडिया मिशन अपने कार्यान्वयन के दौरान लड़खड़ा गया और व्यवसायिक शिक्षा/प्रशिक्षण (वीईटी) व्यवस्था में सुधार लाने में विफल रहा। इस व्यवस्था को नियोक्ता की अपेक्षाओं और जरूरतों के अनुरूप बनाने का लक्ष्य हासिल करना सचमुच इस समय वक्त का तकाजा है। लेकिन आखिर यह प्रयास केवल वीईटी व्यवस्था तक ही क्यों सीमित हैं? बीए, बी कॉम, बी एससी, इंजीनियरिंग, एमबीए और अन्य ऐसे पाठ्यक्रमों तथा उद्योग की जरूरतों के बीच सामंजस्थ स्थापित करने के किसी तरह के सुव्यवस्थित प्रयास नहीं किए गए। इस समय की सबसे बड़ी जरूरत यह है​ कि उद्योग जगत की कौशल संबंधी जरूरतों को पूरा किया जाए तथा इस बात की समीक्षा की जाए कि क्या मौजूदा अकादमिक एवं कौशल कार्यक्रम इन जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। हमें नए शैक्षिक पाठ्यक्रम तैयार करने तथा मौजूदा शैक्षिक कार्यक्रमों की समीक्षा करने के लिए नियोक्ताओं को औपचारिक रूप से महत्वपूर्ण हितधारक के रूप में मान्यता देने के लिए नीति को संशोधित करने की आवश्यकता है। दरअसल, यह पहले ही स्पष्ट होना चाहिए कि भविष्य में श्रम बाजार में रोजगार की मौजूदा या सृजित, कौन सी भूमिकाएं, हमारी शैक्षिक प्रणाली द्वारा तैयार किए गए स्नातकों को नौकरी देंगी।

भारत में इंजीनियर बनने और वह भी सरकारी नौकरी पाने का जुनून है। सिविल सर्विसिज में जाने की इच्छा रखने वालों के अलावा, आईआईटी के स्नातकों की एक बड़ी तादाद निजी क्षेत्र में वित्तीय या एफएमसीजी क्षेत्रों में काम करना चाहती है। आवश्यकता से अधिक योग्यता रखने वाले इंजीनियर किसी भी ऐसे व्यक्ति को बेरोजगार कर देते हैं, जिसकी योग्यता उस पद पर नौकरी करने के लिए बिल्कुल उपयुक्त थी। एमबीए स्नातकों के बारे में भी ऐसा ही है। श्रम बाजार की इस खामी को दुरुस्थ किए जाने की जरूरत है।

बिना किसी जानकारी के इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट शिक्षा की मांग के कारण भारत के हर कोने में इस तरह की डिग्रियां बांटने वाले संस्थान खुल गए हैं। सीटों की संख्या और नौकरियों के बीच वाजिब तालमेल होना चाहिए; ताकि आवश्यकता से अधिक योग्यता रखने वाले ऐसे स्नातक जो किसी पद के लिए उपयुक्त योग्यता रखने वाले लोगों परे धकेल देते हैं, उनकी तादाद रोजगार बाजार में कम होने लगे। इसके लिए देश की इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट संस्थाओं की संख्या को नियंत्रित करने की जरूरत होगी। हमें आम जनता में नई शिक्षा तथा देश और विदेश में रोजगार के अवसरों; इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट जैसे क्षेत्र संतृप्ति बिंदु या सेचुरेशन प्वाइंट्स की स्थिति में कैसे पहुंचे,आवश्यक योग्यताओं आदि के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए ऐसी जानकारी देने के लिए मौजूदा चैनलों को मजबूत बनाना होगा और नए प्रभावी चैनलों की स्थापना करनी होगी। ऐसी जानकारी शिक्षा और करियर के बारे में सोच विचार कर तथा ठोस निर्णय लेने में समर्थ बनाएगी।

भारत में, शिक्षा का कौशल से तथा कौशल का शिक्षा से वास्ता न होने की बढ़ती प्रवृत्ति ने इन दोनों के बीच अनिवार्य संबंधों को अनिश्चित बना दिया है; ऐसी शिक्षा का क्या लाभ, जो कौशल न सिखा सके और ऐसे कौशल का क्या लाभ जो आपको किसी रोजगार के लिए आवेदन करने लायक शिक्षित न बना सके? शिक्षा और कौशल जैसे विषयों के लिए अलग केंद्रीय मंत्रालय बनाकर इसी विचारधारा को बल दिया गया है। व्यवसायिक शिक्षा देने वाली आईटीआई जैसी संस्थाओं को ऐसी इकाइयों के तौर पर देखा जाता है, जो औपचारिक शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं से पूरी तरह अलग हैं। परम्परागत विश्वविद्यालयों से बिल्कुल अलग कौशल विश्वविद्यालयों की स्थापना करने की चर्चाएं होने लगी हैं। प्रभावी दास्तान कौशल के सीमित और अपुष्ट आशय का समर्थन करती हैं, उसमें कौशल का आशय उन जरूरतों से है, ​जो किसी तरह की नौकरी के लिए आवश्यक है। कौशल की यही धारणा स्किल इंडिया मिशन की संरचना में भी जाहिर होती है।

हर व्यक्ति को न सिर्फ अपने राष्ट्र के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए, वह भी हर तरह के हालात में स्वयं को उपयोगी बनने की इच्छा रखने का अधिकार है। कौशल, की परिकल्पना जब ऊपर की गई चर्चा की तरह सीमित रूप से की जाती है, तो वह सतत रोजगार की नहीं, केवल नौकरी दिलाने की गारंटी देता है, क्योंकि वर्तमान का कौशल भविष्य में बे​कार साबित हो सकता है। रोजगार दिलाना सुनिश्चित करने वाले कौशल समृद्धि में आभूषण हो सकते हैं, लेकिन विपदा में सहारा नहीं बन सकते। सतत रोजगार की गारंटी देने वाले कौशल इन दोनों भूमिकाओं को निभा सकते हैं।

इनका उदाहरण वे कौशल होंगे, जो नौकरी गंवा चुके लोगों को अपने हुनर को सुधारने में समर्थ बनाएंगे, ताकि उन्हें नए वातावरण में रोजगार मिल सके। उन बुनियादी और सामान्य कौशलों तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करना आवश्यक है, जिनका जिक्र पहले किया जा चुका है। हमें छात्रों को औपचारिक शिक्षा देते समय व्यवहारिक अनुभव कराने के लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण में औपचारिक शिक्षा के घटकों को शामिल करना होगा। इतना ही नहीं, हमें विचारों और सूचना का बहुविषयक आदान-प्रदान सुगम कराना होगा साथ ही औपचारिक शिक्षा और व्यवसायिक प्रशिक्षण के बीच तालमेल कायम करना होगा, ताकि ​लगातार बदल रही दुनिया में सिर्फ रोजगार में बने रहना ही नहीं, बल्कि सफलता पाना भी सुनिश्चित हो सके।

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