Author : Jessie Huang

Published on Aug 02, 2019 Updated 0 Hours ago

देश में परिवार नियोजन की सफलता सिर्फ गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर आबादी की वृद्धि दर को स्थिर बनाने पर ही नहीं बल्कि सूचनाओं के प्रसार और पहुंच पर भी निर्भर करती है.

परिवार नियोजन मानव का अधिकार है और इस हक को हासिल करना ही होगा
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भारत 1.3 अरब लोगों के साथ दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है. संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के मुताबिक, जल्द ही यह इसमें दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन को भी पीछे छोड़ देगा. बढ़ती आबादी से स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच, टिकाऊ विकास और ग्रोथ की राह में बाधाएं खड़ी हो सकती हैं, जिससे आबादी और बढ़ेगी. इसमें कोई शक नहीं है कि ग्रोथ से दुनिया के कई देशों में आबादी पर लगाम लगाने में मदद मिली है, पर परिवार नियोजन कार्यक्रमों से मां और शिशु की सेहत में सुधार होता है. यह देश के स्वास्थ्य ढांचे का अनिवार्य हिस्सा है. इससे बच्चों के जन्म में अंतराल और गर्भनिरोध में भी मदद मिलती है. कुपोषण घटाने, घर का खर्च कम करने और मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी में भी इसकी भूमिका साबित हो चुकी है. महिलाओं को अपने शरीर से जुड़े फैसले लेने का अधिकार मिलता है. इसलिए परिवार नियोजन से लैंगिक समानता भी बढ़ती है. ऐसे में अगर महिलाएं शिक्षा और करियर जारी रखती हैं तो देश की तरक्की में उनका योगदान बढ़ता है. साक्षरता से शिशु जन्म दर घटाने में मदद मिलती है और यह सिलसिला चलता रहता है. हालांकि, परिवार नियोजन के सभी प्रोग्राम लैंगिक समानता और स्वास्थ्य में सुधार के साथ रिप्लेसमेंट लेवल फर्टिलिटी (जितने लोगों का देहांत होता है, उतने ही बच्चों का जन्म हो) का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते.

विश्व में 15.3 करोड़ महिलाओं को परिवार नियोजन से संबंधित सेवाएं नहीं मिल पातीं. इनमें से 20 प्रतिशत भारत में रहती हैं यानी परिवार नियोजन कार्यक्रम महिfलाओं की जरूरत पूरी करने में नाकाम रहे हैं.

परिवार नियोजन एक बुनियादी मानवाधिकार है और समूचे दुनिया में यह हक मिलना चाहिए. रिसर्च से पता चला है कि विश्व में 15.3 करोड़ महिलाओं को परिवार नियोजन से संबंधित सेवाएं नहीं मिल पातीं. इनमें से 20 प्रतिशत भारत में रहती हैं यानी परिवार नियोजन कार्यक्रम महिलाओं की जरूरत पूरी करने में नाकाम रहे हैं.

देश में 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया गया था और समय के साथ यह बेहतर हुआ है. गर्भपात को वैध बनाने, स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या में बढ़ोतरी और मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाएं देने में इसकी बड़ी भूमिका रही है. वैसे, इसका मकसद मां बन चुकी महिलाओं के बच्चे जनने पर रोक लगाकर (स्टेरिलाइजेशन) आबादी घटाना था. देश में गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल में इस प्रक्रिया का योगदान 70 प्रतिशत है. स्टेरिलाइजेशन को अभी भी बढ़ावा दिया जा रहा है. देश में इस प्रक्रिया को लेकर समझ की कमी है और परिवार नियोजन का लक्ष्य हासिल करने के आज कई सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं. स्टेरिलाइजेशन की प्रक्रिया में सारा जोखिम महिलाओं पर होता है. इसमें परिवार नियोजन की पूरी जवाबदेही उन पर डाल दी गई है. गलत सामाजिक मान्यताओं और लैंगिक असमानता के कारण पुरुषों की नसबंदी जैसे उपायों का इस्तेमाल बहुत कम हो रहा है. गर्भनिरोधकों में नसबंदी का योगदान सिर्फ दो प्रतिशत है. दरअसल, परिवार नियोजन को सिर्फ महिलाओं से जुड़ा हुआ मामला मान लिया गया है, जबकि काफी हद तक इसकी सफलता पुरुषों की भागीदारी पर निर्भर करती है. परिवार नियोजन कार्यक्रम का मकसद स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के साथ स्वैच्छिक विकल्प देकर आबादी पर लगाम लगाना था, लेकिन अभी जिस तरह से इसे चलाया जा रहा है, उसमें महिलाओं के स्वास्थ्य की अनदेखी हो रही है. उनकी रिप्रॉडक्टिव (जनन) ज़रूरतों को समझने की कोशिश नहीं हो रही और इससे लैंगिक भेदभाव बढ़ रहा है.

परिवार नियोजन कार्यक्रम में सामाजिक-सांस्कृतिक बंदिशों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए.

हाल के वर्षों में भारी दबाव के बाद सरकार ने युवा जोड़ों की गर्भनिरोध की ज़रूरतों को पूरा करने की पहल की है. इसमें दो बच्चों के जन्म के समय में अंतर रखने और इंजेक्टेबल कॉन्ट्रासेप्शन (गर्भनिरोधक) जैसी पहल हुई है.  2017 में लंदन में हुए परिवार नियोजन सम्मेलन में भारत सरकार ने परिवार नियोजन से संबंधित सेवाएं, सप्लाई, सूचना देने और गर्भनिरोधकों की कमी 2020 तक दूर करने की प्रतिबद्धता दोहराई थी. इसके बावजूद बच्चों के जन्म में अंतर रखने के तरीकों की अनदेखी हो रही है. साथ ही, रिवर्सबल कॉन्ट्रासेप्शन का इस्तेमाल भी नहीं हो रहा है. सिर्फ 11.7 प्रतिशत शादीशुदा और 13.4 प्रतिशत अविवाहित महिलाएं रिवर्सबल मेथड का इस्तेमाल कर रही हैं. वहीं, सुरक्षा संबंधी विवादों की वजह से नए तरीकों का मिला-जुला असर ही हुआ है. गर्भनिरोध के आधुनिक तरीकों को लेकर कई मिथ और ग़लतफ़हमियाँ हैं. महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह साइड इफेक्ट के कारण इंजेक्टेबल कॉन्ट्रासेप्शन का विरोध कर रहे हैं. परिवार नियोजन और आधुनिक गर्भनिरोधकों को लेकर जागरूकता बढ़ने के बावजूद खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में फ़ीमेल स्टरलाइजेशन का अधिक इस्तेमाल हो रहा है. इसे कम करने की ज़िम्मेदारी सरकार पर है. उसे अलग-अलग गर्भनिरोधकों के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए. यह बात सच है कि गर्भनिरोध के कई तरीकों से साइड इफेक्ट की समस्या है. महिलाओं को इसके सभी विकल्पों की जानकारी दी जानी चाहिए. यह उनका अधिकार है.

इसके साथ, परिवार नियोजन कार्यक्रम में सामाजिक-सांस्कृतिक बंदिशों का भी ख्याल रखा जाना चाहिए. इससे देश के अलग-अलग क्षेत्रों की ज़रूरतों को पूरा करना होगा. जो साइंटिस्ट गर्भनिरोध के तरीकों पर काम कर रहे हैं और जो सरकारी एजेंसियां उन्हें लोगों तक पहुंचा रही हैं, उन्हें महिलाओं की जरूरतों व इच्छाओं का सम्मान करना होगा. साथ ही, परिवार नियोजन का लक्ष्य हासिल करने के लिए कई बातों का ध्यान रखना होगा: पहली बात तो यह है कि बच्चा जनने के फैसलों में पुरुषों की भागीदारी बढ़ानी होगी. दूसरी, गर्भनिरोध के आधुनिक तरीकों से जुड़ी गलतफहमियों और डर को दूर करना होगा. जिन सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के चलते लोगों तक परिवार नियोजन के फायदे नहीं पहुंच रहे हैं, उन्हें दूर करना होगा. तभी जनन संबंधी स्वास्थ्य सेवाओं और जन-स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार होगा.

सुरक्षित और किफायती सेवा, कुशल स्वास्थ्यकर्मियों और बेहतर गुणवत्ता वाली सेवा के लिए अधिक से अधिक महिलाओं से संपर्क किया जाना चाहिए. इसके साथ सरकारी स्वास्थ्य सेवा के ढांचे की निगरानी और समीक्षा भी करनी होगी.

देश में जनन स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली का पता जन्म देते वक्त महिलाओं की ऊंची मृत्यु दर और आधुनिक गर्भनिरोध के तरीकों के बजाय स्टरलाइजेशन के अधिक इस्तेमाल से चलता है. भारत की तुलना में चीन ने दमनकारी उपायों से आबादी की ग्रोथ कम करने में सफलता पाई. वहां इसके लिए IUD डिवाइस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ. अमेरिका में गर्भनिरोध के लिए कई विकल्प हैं, जिनमें सबके लोकप्रिय ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल यानी खाई जाने वाली दवा है. इनसे मां और शिशु के स्वास्थ्य के लिए कम खतरा होता है और दो बच्चों के जन्म में अंतर का मकसद आसानी से हासिल किया जा सकता है. भारत में भी सरकार को परिवार नियोजन को बढ़ावा देने और महिलाओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तुरंत आधुनिक उपायों पर गौर करना चाहिए.

इसके लिए सबसे पहले परिवार नियोजन में पुरुष सदस्यों की भागीदारी और जवाबदेही बढ़ाई जानी चाहिए. सरकार को ऐसी पहल करनी होगी ताकि पुरुष युवा अवस्था से ही गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करें. यह काम विज्ञापन और शिक्षा के जरिये किया जा सकता है. दूसरी तरफ, परिवार नियोजन कार्यक्रमों में गर्भनिरोधक चुनने की महिलाओं की आज़ादी पर बहुत जोर नहीं दिया गया है. अक्सर देखा गया है कि नव-युवतियों के साथ शिशु मृत्यु दर की समस्या अधिक है, लेकिन उनके पास जनन से जुड़े फैसले करने की आज़ादी नहीं है. 2016 के एक अध्ययन में पता चला था कि गर्भनिरोधकों के बारे में जानकारी और परिवार नियोजन की काउंसलिंग से घरेलू हिंसा के मामलों में कमी आती है. सामाजिक संगठनों के जरिये इसे बढ़ावा दिया जा सकता है.

गर्भनिरोध के तरीकों और यौन शिक्षा का प्रसार करना होगा. रिवर्सबल आधुनिक तरीकों (ऐसे तरीके जिनका इस्तेमाल बंद करने के बाद फिर से बच्चे पैदा किए जा सकते हैं) के बारे में जानकारी का अभाव और कई गलतफहमियां हैं.

दूसरी, गर्भनिरोध के तरीकों और यौन शिक्षा का प्रसार करना होगा. रिवर्सबल आधुनिक तरीकों (ऐसे तरीके जिनका इस्तेमाल बंद करने के बाद फिर से बच्चे पैदा किए जा सकते हैं) के बारे में जानकारी का अभाव और कई गलतफहमियां हैं. इसलिए महिलाओं को गर्भनिरोधकों के जोखिम और फायदों के साथ उस बारे में पूरी और सही जानकारी दी जानी चाहिए. आज गर्भनिरोध के कई विकल्प हैं, इसके बावजूद मीडिया और इस क्षेत्र में काम करने वाले समूह चुनिंदा तरीकों को ही बढ़ावा दे रहे हैं. व्यापक यौन शिक्षा से युवाओं को गर्भ निरोध के विभिन्न और आधुनिक तरीकों के बारे में पता चलेगा.

इनके प्रसार में एक्रिडिटेटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट्स (आशा) प्रोग्राम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इससे परिवार नियोजन की अधूरी ज़रूरतों को पूरा करने में मदद मिली है. आशा खासतौर पर ग्रामीण समुदायों में जागरूकता फैलाने में सफल रहा है. इससे मातृत्व और शिशु स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ है. हमें परिवार नियोजन कार्यक्रम की क्षमता और स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाने के साथ परिवार नियोजन में निवेश बढ़ाना होगा ताकि ये नियमित और जिम्मेदार सेवा दे सकें. सुरक्षित और किफायती सेवा, कुशल स्वास्थ्यकर्मियों और बेहतर गुणवत्ता वाली सेवा के लिए अधिक से अधिक महिलाओं से संपर्क किया जाना चाहिए. इसके साथ सरकारी स्वास्थ्य सेवा के ढांचे की निगरानी और समीक्षा भी करनी होगी.

देश में परिवार नियोजन की सफलता सिर्फ गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर आबादी की वृद्धि दर को स्थिर बनाने पर ही नहीं बल्कि सूचनाओं के प्रसार और पहुंच पर भी निर्भर करती है. परिवार नियोजन कार्यक्रम तभी प्रभावशाली होगा, जब इससे महिलाओं का सशक्तिकरण हो और उन्हें अपने शरीर से जुड़े फैसले लेने का हक मिले. लैंगिक समानता के लिए नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, सेवा देने वालों और उनका इस्तेमाल करने वालों को मिलकर काम करना होगा. इसके लिए पुरुषों और महिलाओं की ऐसी भागीदारी होनी चाहिए, जिससे उन्हें पता चल सके कि महिलाओं की रिप्रॉडक्टिव हेल्थ और हेल्थकेयर बुनियादी मानवाधिकार है. इन बातों को समझकर निवेश जारी रखने पर ही भारत समृद्धि और तरक्की की राह पर आगे बढ़ सकता है.


जेसी हुआंग ORF मुंबई में रिसर्च इंटर्न हैं.

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