Published on Jan 20, 2017 Updated 0 Hours ago
भारत के परमाणु विकल्पों का विस्तार

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने जब भारत की परमाणु नीति को ज्यादा अनिश्चित बना कर परमाणु शक्ति के रूप में भारत की रक्षात्मक क्षमता को और मजबूत करने के बारे में सार्वजनिक रूप से विचार व्यक्त किए तो उनकी जम कर आलोचना हुई। पर्रिकर ने भारत की ओर से पहले उपयोग नहीं करने (एनएफयू) की नीति को ले कर शिकायत की थी। उनकी तरह बहुत से विश्लेषकों की नजर में भी यह नीति भारत के हाथ बांधती है और भारत के विरोधियों को भरोसा दिलाती है कि वह अपनी ओर से आगे बढ़ कर परमाणु हथियार का उपयोग नहीं करेगा।

एनएफयू को कायम रखने के पक्ष में काफी मजबूत तर्क हैं, लेकिन भारत के परमाणु विकल्प को बढ़ाने के पक्ष में भी काफी मजबूत तर्क हैं। ऐसा करने से भारत की परमाणु प्रतिक्रिया को ले कर अनिश्चितता बनेगी और परमाणु शक्ति के तौर पर भारत की रक्षात्मक क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। बिना एनएफयू को समाप्त किए भी भारत के परमाणु विकल्पों को बढ़ाने के रास्ते हैं। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पाकिस्तान की ओर से टेक्टिकल न्यूक्लियर वेपन (टीएनडब्लू) के खतरे से निपटने के रास्ते तलाशे। यह ऐसा क्षेत्र है, जहां भारत अपने विकल्प बढ़ा सकता है ताकि यह खतरा भी कम हो और भारत के पारंपरिक सैन्य विकल्प भी बढ़ सकें।

भारत की परमाणु नीति में एनएफयू निश्चित तौर पर एक ऐसा तत्व है जिसमें लचीलापन नहीं है। क्योंकि यह भारत को सिर्फ परमाणु हमले की प्रतिक्रिया तक सीमित करता है और खुद पहल करने का विकल्प समाप्त करता है। इसके बावजूद, एनएफयू को बनाए रखने के लिए भी पर्याप्त तर्क हैं, क्योंकि ऐसा कोई विश्वसनीय खतरा नहीं है जिसके लिए भारत को परमाणु हमला करने की पहल करनी पड़े। महज परमाणु हमले की प्रतिक्रिया तक सीमित रहने की बजाय खुद भी पहल करने का विकल्प खुला रख कर जो अनिश्चितता कायम होगी, उससे शक्ति संतुलन अपने पक्ष में होगा। पहले प्रयोग का विकल्प खुला रखने के खतरे इससे होने वाले फायदों से ज्यादा बड़े हैं। इसमें कमांड और कंट्रोल और सुरक्षा व रक्षा जैसे मामले भी जुड़े हैं।

लेकिन भारत की परमाणु नीति में एनएफयू अकेला गैर लचीला कारक नहीं है। कुछ ऐसा ही भारत की नीति का यह तत्व भी है जो कहता है कि “पहले किए गए हमले के जवाब में प्रतिक्रिया व्यापक होगी और इस तरह की होगी जो अस्वीकार्य नुकसान करेगी।” इससे भारत एक ही तरह की प्रतिक्रिया के लिए सीमित हो जाता है जो है एक व्यापक प्रतिक्रिया और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि भारत पर किस तरह का परमाणु हमला हुआ है। दूसरे शब्दों में, अगर भारतीय सेना के किसी कॉलम पर पाकिस्तानी सीमा के काफी अंदर भी छोटे से परमाणु वारहेड से हमला हुआ हो तो भारत को पाकिस्तान के विभिन्न शहरों पर व्यापक परमाणु हमला करना होगा। इससे दो समस्याएं हैं: पहली है ‘पहले हमले’ के शब्द-युग्म की वजह से पैदा हुई सीमा और दूसरी है ‘व्यापक प्रतिक्रिया’ की वजह से होने वाली समस्या।

‘पहला हमला’ शब्द युग्म का प्रयोग ही भारतीय संदर्भ में कुछ अटपटा है, और संभवतः इसकी वजह ‘पहला हमला’ के मतलब को ठीक से ना समझ पाना भी हो सकता है। लॉरेंस फ्रीडमैन कहते हैं कि परमाणु विद्या में, ‘पहले हमले’ का मतलब होता है ऐसा परमाणु हमला जो पहल कर दुश्मन के अधिक से अधिक परमाणु जखीरे को समाप्त कर युद्ध जीतने के इरादे से किया गया हो ताकि उसकी “प्रतिक्रिया करने की क्षमता नष्ट की जा सके”। यह परमाणु पर्ल हार्बर की तरह होगा लेकिन संभवतः इसे उस प्रयास से ज्यादा कामयाब होने के लिए तैयार किया गया होगा। लेकिन ऐसे परमाणु पहले हमले को कर दिखाना बहुत बड़ी चुनौती है। पहले तो इसके लिए बहुत अच्छी खुफिया जानकारी होनी चाहिए कि दुश्मन के परमाणु जखीरे का पक्का ठिकाना मिल सके ताकि एक ही हमले में उन सब को नष्ट किया जा सके क्योंकि अगर कोई भी परमाणु हथियार बचा रह गया तो उसका उपयोग प्रतिक्रिया में किया जाएगा। दूसरा, पहले हमले के लिए परमाणु हथियार का पर्याप्त रूप से बड़ा जखीरा भी होना चाहिए ताकि हर लक्ष्य पर कई वारहेड में उनका इस्तेमाल किया जा सके और इसके अलावा अगर जरूरत पड़े तो आगे भी हमला करने के लिए उन्हें सुरक्षित रखा जा सके। किसी भी परमाणु शक्ति के लिए इन जरूरतों को पूरा करना आसान नहीं है और खास तौर पर पक्की खुफिया जानकारी। भारत के संदर्भ में इसका कोई मतलब नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान या चीन में से किसी के भी पास भारत के खिलाफ ‘पहले हमले’ के लायक जरूरी खुफिया क्षमता और परमाणु क्षमता की श्रेष्ठता ना रही है और ना है।

इसलिए, ज्यादा संभावना इस बात की है कि परमाणु नीति बनाने वालों ने शुरुआती परमाणु हमले को ही साधारण रूप से ‘पहले हमले’ के तौर पर मान लिया। लेकिन लगता है कि उनका अभिप्राय स्ट्रैटजिकल परमाणु हमले से था, क्योंकि पाकिस्तान का टैक्टिकल परमाणु हथियारों का विचार भारतीय नीति तैयार होने के बहुत बाद आया है। दूसरे शब्दों में, इस बात की बहुत संभावना है कि जब भारतीय परमाणु नीति तैयार की गई उस समय पाकिस्तान के टीएनडब्लू की संभावना पर विचार ही नहीं किया गया। पहले हमले से उन्होंने जो आशय निकाला वो पाकिस्तान या चीन की ओर से किया गया स्ट्रैटजिकल परमाणु हमला था।

2003 में यह मानना तार्किक ही था कि भारत पर परमाणु हमले का अधिकांश मामलों में मतलब स्ट्रैटजिकल हमला ही होगा लेकिन अब यह स्थिति नहीं है। पाकिस्तान जिस तरह टीएनडब्लू की ओर बढ़ा है, उससे इस बात की संभावना बढ़ गई है कि भारत को बहुत छोटे स्तर के परमाणु हमले से भी निपटना पड़ सकता है जो पाकिस्तानी धरती पर भारतीय सेना के खिलाफ किया गया होगा। ऐसे हमले को ले कर भारतीय परमाणु नीति में तय ‘व्यापक प्रतिक्रिया’ से अलग प्रतिक्रिया की जरूरत होगी। व्यापक प्रतिक्रिया भी भारतीय नीति को सीमित करती है, लेकिन यह एनएफयू से इस मामले में अलग है कि हम इसे बदल सकते हैं और बेहतर बना सकते हैं।

हालांकि व्यापक प्रतिक्रिया शब्द युग्म का इस्तेमाल भारतीय नीति में नहीं किया गया है बल्कि इसकी जगह लिखा गया है ‘प्रतिक्रिया.. व्यापक होगी’। लेकिन यह स्पष्ट है कि यह व्यापक स्तर की प्रतिक्रिया की ओर ही संकेत कर रहा है। दूसरे शब्दों में, भारत पर किसी तरह का परमाणु हमला हुआ है, इसे देखे बिना भारतीय परमाणु नीति यही सुझाती है कि व्यापक प्रतिक्रिया होनी चाहिए। 2013 में एक महत्वपूर्ण भाषण में तब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के प्रमुख श्याम सरन ने इस विचार पर और जोर देते हुए कहा, भारत स्ट्रैटजिकल और टैक्टिकल परमाणु हथियारों में कोई विभेद नहीं करता। उन्होंने कहा, “भारत पर हमले के लिए उपयोग किए गए परमाणु हथियार पर स्ट्रैटजिकल का लेबल लगा था या टैक्टिकल का, यह भारतीय परिप्रेक्ष्य में बेमतलब है। सीमित परमाणु युद्ध अपने आप में विरोधाभासी है।” इसी तरह हाल के समय में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे शिवशंकर मेनन ने भी अपनी हाल की पुस्तक में इसी तरह के तर्क दिए हैं। उन्होंने कहा है, “भारत-पाकिस्तान के सामरिक संदर्भ में टैक्टिकल और स्ट्रैटजिकल परमाणु हथियार के प्रभाव और उपयोग दोनों ही के लिहाज से कोई खास फर्क नहीं किया जा सकता।”

स्ट्रैटजिकल और टैक्टिकल परमाणु हमले में फर्क को स्वीकार करने से इंकार करने से पाकिस्तान के लिए एक अलग समस्या पैदा हो जाती है। अगर पाकिस्तानी नीति-निर्माताओं को लगे कि छोटे स्तर के हमले से भी व्यापक स्तर की प्रतिक्रिया ही देखने को मिलेगी तो क्या वे छोटे स्तर के हमले के लिए राजी होंगे? ऐसी स्थिति में रावलपिंडी के लिए क्या यह बेहतर नहीं होगा कि वह पूर्ण स्तर का परमाणु हमला ही करे ना कि भारत के व्यापक हमले में पाकिस्तान की परमाणु क्षमता को तबाह होने दे। लेकिन अगर टैक्टिकल हमले की बजाय पूर्ण स्तर का परमाणु हमला ही बेहतर हो तो क्या छोटे से इलाके पर भारत के कब्जे की स्थिति में वह भारत पर पूर्ण स्तरीय परमाणु हमला करेगा, जब उसे पता हो कि आखिरकार भारत उसका क्षेत्र उसे लौटा ही देगा (अगर मान लें कि यह इलाका कश्मीर के बाहर का हो)?

ऐसी स्थिति भारतीय नीति निर्माताओं के लिए और बड़ी उहापोह पेश कर देगी। क्या पाकिस्तानी सीमा के अंदर, भारतीय हमलावर बलों पर एक छोटा पाकिस्तानी टीएनडब्लू हमला भी पूर्ण स्तरीय व्यापक परमाणु प्रतिक्रिया को सही ठहराता है? यह दावा करना बेमतलब है कि एक छोटे असर वाले परमाणु हथियार से पाकिस्तानी क्षेत्र के बेहद अंदर भारतीय हमलावर सेना की टुकड़ी पर किए गए हमले और भारत के विभिन्न शहरों में बड़े प्रभाव वाले परमाणु हथियारों से किए गए हमले में कोई फर्क नहीं है। हालांकि टीएनडब्लू का प्रभाव भी बहुत व्यापक होगा, लेकिन इसकी तुलना कई बड़े शहरों पर किए गए हमले से नहीं की जा सकती। यह तथ्य भी ध्यान देने वाला है कि ऐसा टीएनडब्लू पाकिस्तानी क्षेत्र के अंदर होने की संभावना ज्यादा है। क्या भारतीय नीति निर्माता तब भी पाकिस्तान के विभिन्न शहरों पर एक व्यापक परमाणु हमला करेंगे जबकि भारतीय क्षेत्र पर सीधे परमाणु हमला नहीं किया गया हो?

ऐसी स्थिति से बाहर निकलने का भारत के लिए एक तरीका हो सकता है कि वह ऐसे हमलों को ले कर अपनी प्रतिक्रिया के विकल्पों को बढ़ाए और सभी मामलों के एक ही “व्यापक प्रतिक्रिया” के समाधान पर टिके रहना बंद करे। जैसा कि कुछ लोगों ने सुझाव दिया है भारत को आनुपातिक या लचीली प्रतिक्रिया की रणनीति अपनानी चाहिए। इस रणनीति को ले कर सबसे बड़ी समस्या है वह गलतफहमी जो टैक्टिकल हमले की प्रतिक्रिया को ले कर आम तौर पर मौजूद है। माना जाता है कि टैक्टिकल हमले से निपटने के लिए फोरवार्ड एरिया में ऐसी ही शक्ति तैनात करनी होगी और वह भी एकदम तैयार स्थिति में। साथ ही इसके लिए पहले से ऑथरिटी भी तय करनी होगी। टीएनडब्लू को आम तौर पर कम दूरी की मिसाइलों पर लगाया जाता है और ऐसे हथियारों के साथ जुड़े खतरे सभी को पता हैं। जब शीत युद्ध समाप्त हुआ तो अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ने ही अपने आप अधिकांश टीएनडब्लू वापस ले लिए, क्योंकि दोनों ने ही खतरे को माना था।

लेकिन पाकिस्तान के टीएनडब्लू का जवाब देने के भारत के विकल्प को बिना टीएनडब्लू तैनात किए भी विस्तार देना संभव है। भारत को बेहद छोटे आकार के वारहेड तैनात करने पर विचार करना चाहिए जिन्हें पाकिस्तान की ओर से टीएनडब्लू के उपयोग का जवाब देने के लिए मिसाइलों की बजाय बंबर्स से गिराया जा सके। इस से भारत को टीएनडब्लू-क्षमता भी हासिल हो जाएगी और इसे उसके लिए कम दूरी वाले हथियार भी तैनात नहीं करने होंगे, जिनकी वजह से टीएनडब्लू अक्सर अनुपयोगी हो जाते हैं। इसके लिए भारत को अपनी परमाणु नीति में भी हल्का सा बदलाव करने की जरूरत होगी ताकि यह कह सके कि प्रतिक्रिया कैसी हो यह तय किया जाएगा और यह पहले से इसी बात पर अड़ा नहीं रहे कि प्रतिक्रिया व्यापक होगी। इससे मौजूदा नीति की ओर से “व्यापक प्रतिक्रिया” के रूप में जो बाध्यता लगाई गई है, वह दूर हो सकेगी।

ऐसी बढ़ोतरी के कई फायदे हैं। पहला, यह भारतीय नीति निर्माताओं को सिर्फ “व्यापक प्रतिक्रिया” की बजाय ज्यादा विकल्प देता है। वैसे भी व्यापक प्रतिक्रिया पाकिस्तान के टीएनडब्लू का जवाब देने के लिए पूरी तरह से विश्वसनीय विकल्प नहीं है। छोटे परमाणु हथियार भारत को आनुपातिक रूप से प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाते हैं, जो व्यापक प्रतिक्रिया के मुकाबले काफी ज्यादा विश्वसनीय विकल्प है। इस बात की संभावना है (लेकिन ध्यान रखने की बात है कि यह निश्चितता नहीं) कि ऐसा बराबर का जवाब देने वाला हमला स्ट्रैटजिक स्तर तक पहुंच जाए, लेकिन ऐसे में इस स्तर तक पहुंचने की जवाबदेही भी उसी अनुसार तय की जाएगी। भारत इस तर्क में जरूर शामिल है कि स्ट्रैटजिक और टैक्टिकल में फर्क करना अप्रासंगिक है, लेकिन यह सोचना बहुत मुश्किल है कि भारत इसे ऐसे व्यापक स्तर तक पहुंचाने की जवाबदेही लेना चाहे। भारतीय नीति निर्माताओं के लिए “व्यापक प्रतिक्रिया” से आगे भी विकल्प उपलब्ध होना बहुत जरूरी है ताकि वे परमाणु हमले को इतने बड़े स्तर तक पहुंचाने में शामिल नहीं हों।

दूसरा, हवा में मार करने वाले छोटे परमाणु हथियार रखने से टीएनडब्लू की एक अहम समस्या दूर हो जाती है: कमांड और कंट्रोल की समस्या जो अग्रिम तैनाती में लगी कम दूरी की मिसाइलों के साथ आती है। हवा में मार करने वाले छोटे परमाणु हथियार के लिए भारत को अपनी कमांड और कंट्रोल व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं करना होगा। यह भारत के स्ट्रैटजिक हथियारों की तरह ही सख्त केंद्रीय नियंत्रण और सुरक्षा प्रक्रिया को मुमकिन बनाता है। इसमें डी-मैटेड हथियार और परमाणु हथियारों के उपयोग के फैसले पर राजनीतिक नियंत्रण भी शामिल है। ऐसी व्यवस्था अग्रिम तैनाती में लगे हथियारों से जुड़े हादसे या चोरी के अतिरिक्त खतरे से मुक्ति दिलाती है। इसी तरह गलती से इस्तेमाल कर दिए जाने या ‘चलाओ अथवा गंवाओ’ जैसे टीएनडब्लू से जुड़े पशोपेश को भी दूर करती है।

तीसरा, केंद्रीय नियंत्रण में टीएनडब्लू का उपयोग करने से हथियारों की प्रतिस्पर्धा के बढ़ने का खतरा नहीं है। पाकिस्तान की धमकी को देखते हुए उसी तरह की कम दूरी वाली टैक्टिकल परमाणु मिसाइल को तैनात करने से क्षेत्र में टीएनडब्लू के हथियारों की प्रतिस्पर्धा बढ़ने का खतरा है। जबकि वायु सेना के अड्डों में थोड़ी संख्या में छोटे आकार वाले हथियार तैनात करने से ऐसा मुकाबला बढ़ने का खतरा नहीं है। यह ज्यादा से ज्यादा भारत की परमाणु शक्ति में महज गिनती के छोटे आकार वाले हथियार और शामिल कर देगा।

इसी तरह, इसके लिए भारत को छोटे वारहेड डिजाइन करने के अलावा अलग से कोई और क्षमता विकसित करने की जरूरत नहीं होगी। भारत ने 1998 में सब-किलोटन उपकरणों का परीक्षण किया था जिससे यह काम और आसान हो जाता है। भारत के पास जगुआर और मिराज 2000 जैसे परमाणु सक्षम विमान हैं जिनको इस उपयोग के लिए अपनाया जा सकता है।

अंत में, अतिरिक्त परमाणु विकल्प तैयार करने से भारत को पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को दिए जा रहे समर्थन के खिलाफ प्रतिक्रिया स्वरूप पारंपरिक युद्ध में ज्यादा विकल्प उपलब्ध करवाएगा। हालांकि पाकिस्तान की ओर से प्रायोजित आतंकवाद पर भारत की ओर से प्रतिक्रिया नहीं करने का एकमात्र कारण पाकिस्तान के परमाणु हथियार नहीं हैं। भारत की पारंपरिक क्षमता अपने आप में ही एक कारण है। साथ ही भारत की आम तौर पर खतरे मोल नहीं लेने की नीति भी। भारत के पास अगर पारंपरिक युद्ध के और विकल्प होंगे तो इससे पाकिस्तान को भी यह तय करने में काफी उलझन होगी कि वह भारत के खिलाफ आतंकवाद को समर्थन देने की अपनी नीति को कैसे आगे बढ़ाए। पाकिस्तान ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान टीएनडब्लू पर जोर इसलिए भी दिया है कि उसे लगता है कि भारत अपने ‘कोल्ड स्टार्ट’ नीति के बावजूद ऐसे पारंपरिक युद्ध विकल्प को विकसित कर रहा है

भारत को पाकिस्तान के टीएनडब्लू हमले पर या तो कुछ नहीं करने या फिर व्यापक हमला करने के अलावा भी विकल्प चाहिएं। यह डर अनावश्यक है कि ऐसी क्षमता विकसित करने से परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ जाएगा क्योंकि टेक्टिकल परमाणु विकल्प विकसित करने के लिए जरूरी नहीं कि टेक्टिकल परमाणु हथियार विकसित किए जाएं। भारत को अपने “व्यापक प्रतिक्रिया” के सख्त रवैये की बजाय ज्यादा लचीली नीति अपनानी होगी जो इसे ज्यादा विकल्प देता हो।

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