Published on Nov 26, 2019 Updated 0 Hours ago

डेमोग्रैफिक डिविडेंड और युवा आबादी वाला देश भारत अमीर बनने से पहले बूढ़ा होने की राह पर आगे बढ़ रहा है

देश के बुज़ुर्गों पर भी पड़ रहा है आर्थिक गरीबी का असर

देश गंभीर आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहा है. आने वाले कुछ महीनों में इस  वजह  से फैक्टरियां बंद होंगी, जिससे बड़े पैमाने पर  रोज़गार घट सकते हैं. सरकार ने आर्थिक सुस्ती को ख़त्मकरने और खपत बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिससे जीडीपी ग्रोथ को तेज़ करने में मदद मिल सकती है. हालांकि, अभी तक नए रोज़गार पैदा करने या सुस्त पड़ती खपत को बढ़ाने पर इन उपायों का असर नहीं हुआ है और बेरोज़गारी दशकों के चरम पर पहुंच चुकी है. अर्थव्यवस्था को इससे उबारने के लिए जल्द कुछ बड़े कदम नहीं उठाए जाते तो इसका समाज पर गहरा असर होगा और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसकी कीमत सबको चुकानी पड़ेगी. भारत और कई अन्य देशों में नौकरीशुदा बच्चे, बुजुर्गों की मदद करते हैं. अगर उनके पास नौकरी नहीं होगी तो परिवार और आश्रितों पर दबाव बढ़ेगा. ख़ासतौर  पर इससे बुजुर्गों की मुश्किल बढ़ सकती है. अक्सर हमें अख़बारों  में ऐसी  ख़बरें पढ़ने को मिलती हैं कि बुजुर्ग माता-पिता के साथ उनके बच्चे बदसलूकी करते हैं क्योंकि अपने बच्चों की शिक्षा के मुकाबले बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के मुकाबले उनकी प्राथमिकता में काफ़ी नीचे है. ख़ासतौर पर ऐसा तब होता है, जब उनकी आमदनी कम हो जाती है. दूसरी तरफ, हमने उन्हीं अख़बारों में ऐसी ख़बरें भी पढ़ी हैं, जिनमें बच्चों ने गंभीर बीमारियों से पीड़ित बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी. दोनों ही मामलों में बुजुर्गों को मुश्किल हालात से निकालने के लिए सरकार को दख़ल देना चाहिए.

देश में 60 साल और उससे अधिक उम्र वाले लोगों की स्थिति तुलनात्मक तौर पर कहीं अधिक ख़राब है क्योंकि वे कमा नहीं सकते और देखभाल के लिए परिवार के सदस्यों पर आश्रित होते हैं. इन बुजुर्गों ने अपनी कामकाजी ज़िंदगी में बचत से जो घर ख़रीदा होता है, उम्र बढ़ने पर वे उसे बेटे और बेटियों के नाम कर देते हैं. ऐसे कुछ बुजुर्गों को उन्हीं के घर से बेदख़ल कर दिया जाता है. संयुक्त परिवारों के ढांचे के कमज़ोर पड़ने से एकल परिवारों का चलन बढ़ा है. आधुनिकीकरण और शहरीकरण का भी इस पर असर हुआ है. इसलिए अक्सर बुजुर्ग माता-पिता को बच्चों के साथ छोटे घरों में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है, जो सहज स्थिति नहीं है. कई बार तो इन बुजुर्गों के पास उम्र के आख़िरी पड़ाव के लिए पर्याप्त बचत तक नहीं होती, जिससे उनकी ज़िंदगी दुश्वार हो जाती है.

अमीर देशों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होती हैं. प्रिवेंटिव चेकअप और दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं की वज़ह से उनकी शारीरिक स्थिति अच्छी है. फिज़ियोथेरेपी की मदद से वे एक्टिव बने रहते हैं.

पश्चिमी देशों में जहां बुजुर्ग बालिग बच्चों से अलग रहते हैं, वहीं भारत में वे अक्सर परिवार के साथ रहते हैं. देश में अकेले रहने वाले बुजुर्ग पुरुष या महिला की संख्या कुल आबादी का 2.2 प्रतिशत, जबकि ऐसी दंपत्ति की संख्या 10 प्रतिशत है. देश में 87.8 प्रतिशत बुजुर्ग अपने बच्चों के साथ रहते हैं. इसके उलट पश्चिमी देशों में उम्रदराज पुरुष या महिला या बुजुर्ग पति-पत्नी का अकेला रहना सामान्य बात है और वे अपनी सारी ज़रूरतें  ख़ुद  ही पूरी कर लेते हैं. वे अधिक फिट और एक्टिव भी होते हैं. अमीर देशों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होती हैं. प्रिवेंटिव चेकअप और दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं की वज़ह से उनकी शारीरिक स्थिति अच्छी है. फिज़ियोथेरेपी की मदद से वे एक्टिव बने रहते हैं. दूसरी तरफ, भारत में परिवार बुजुर्गों का मुख्य आसरा है और जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है और वे कमज़ोर होते जाते हैं, उनकी निर्भरता परिवार पर बढ़ती जाती है.

सामाजिक सुरक्षा के मामले में भारत दुनिया के दूसरे देशों से काफ़ी पीछे है. यहां बुजुर्गों की देखभाल की संस्थागत व्यवस्था का अभाव है. देश की 70 प्रतिशत आबादी को ही किसी न किसी रूप में सामाजिक सुरक्षा हासिल है. बुजुर्ग अगर आर्थिक रूप से किसी पर आश्रित नहीं होते तो उससे उनकी स्थिति अच्छी होने का पता चलता है. हालांकि, देश में सिर्फ 26.3 प्रतिशत बुजुर्ग ही वित्तीय तौर पर किसी पर आश्रित नहीं हैं, जबकि 20.3 प्रतिशत आंशिक तौर पर दूसरों पर आश्रित हैं. देश की 53.4 प्रतिशत यानी अधिकांश बुजुर्ग आबादी आर्थिक सुरक्षा के लिए पूरी तरह बच्चों पर आश्रित है. देश में किफायती वृद्धाश्रम नहीं हैं, जहां लोग पूरी आज़ादी के साथ रह सकें. यह भी एक बड़ी दिक़्क़त है. कई वृद्धाश्रम इतने महंगे हैं, कि मध्य वर्ग उसे अफोर्ड नहीं कर सकता. लोग भूल जाते हैं कि डेमोग्रैफिक डिविडेंड और युवा आबादी होने के बावज़ूद भारत अमीर बनने से पहले ही बूढ़ा हो रहा है. भारत में रहने वालों की औसत उम्र 27.1 साल है. इसलिए यह युवा देश है, लेकिन जन्म दर में गिरावट के कारण भारत में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. श्रीनिवास गोली, भीमेश्वर रेड्डी ए, के एस जेम्स और वेंकटेश श्रीनिवास की स्टडी ‘इकॉनमिक इंडिपेंडेंस एंड सोशल सिक्योरिटीज अमॉन्ग इंडियाज एल्डर्ली’ यानी भारत में बुजुर्गों की आर्थिक आज़ादी और सामाजिक सुरक्षा (इकॉनमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, 28 सितंबर 2019) के मुताब़िक,  देश में उम्रदराज लोगों की बढ़ती संख्या की सावधानी से पड़ताल करने और उससे खड़ी होने वाली समस्याओं को हल करने की ज़रूरत है. उनका कहना है कि इसका मक़सद बुजुर्गों पर वित्तीय बोझ कम करना होना चाहिए. जन्म दर में गिरावट के कारण उम्र के लिहाज से आबादी की बनावट में बुनियादी बदलाव हो रहा है. देश में साल 2011 में 10.34 करोड़ बुजुर्ग थे. कुछ राज्यों में तो बुजुर्गों की आबादी दूसरे वर्गों से अधिक है. हालांकि, औसतन कुल आबादी में से 10 प्रतिशत बुजुर्ग हैं. 2040 तक इसके 15 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है. उस समय तक कामकाज आबादी में कमी शुरू हो जाएगी.

देश में बुजुर्ग आबादी सम्मान के साथ नहीं रह रही है. ख़राब पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं की कीमत भी उन्हें चुकानी पड़ रही है. ऐसे में राज्यों को बुजुर्गों की पेंशन बढ़ाने की ज़रूरत है.

अलग-अलग राज्यों में बुजुर्गों की देखभाल की व्यवस्था में भी अंतर है. अधिकतर राज्यों में बुजुर्गों को बेहद मामूली पेंशन मिलती है और इसके लिए राज्य के कुल बजट में मामूली सी रकम अलग रखी जाती है. देश में बुजुर्ग आबादी सम्मान के साथ नहीं रह रही है. ख़राब पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं की कीमत भी उन्हें चुकानी पड़ रही है. ऐसे में राज्यों को बुजुर्गों की पेंशन बढ़ाने की ज़रूरत है. इसके साथ अधिक वृद्धाश्रम (ओल्ड एज होम) भी बनाए जाएं ताकि उम्रदराज़ लोग वहां सम्मान के साथ रह सकें. उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं भी होनी चाहिए. 60 साल से अधिक उम्र के जो लोग अभी भी काम कर सकते हों, उन्हें रोज़गार के वैकल्पिक मौके दिलाए जाएं. इससे बुजुर्गों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को हल करने में मदद मिलेगी. पुरुषों की तुलना में बुजुर्ग महिलाओं के परिवार की तरफ से प्रताड़ित किए जाने की आशंका अधिक रहती है. उन्हें विशेष सुरक्षा मिलनी चाहिए.

इनकम टैक्स में छूट और बचत पर अधिक ब्याज दर भी सीनियर सिटिजंस के लिए बहुत जरूरी है. इससे उन्हें वित्तीय सुरक्षा हासिल करने में मदद मिलती है. रेल और हवाई किराये में छूट देकर उन्हें घूमने-फिरने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, जिससे बुजुर्गों की ज़िंदगी ख़ुशगवार बनेगी. उन्हें यूनिवर्सल हेल्थ इंश्योरेंस का लाभ भी मिलना चाहिए, जिसकी कुछ हद तक व्यवस्था आयुष्मान भारत योजना के जरिये की गई है. अकेलेपन और डिप्रेशन के शिकार बुजुर्गों की मदद के लिए सोशल वर्कर्स हों, जो उनके यहां जाएं. बुजुर्गों को रोज़मर्रा के नहाने, कसरत और खाने पकाने जैसे कामों में भी मदद की ज़रूरत है. इनमें भी सोशल वर्कर्स की भूमिका हो सकती है. हेल्पएज इंडिया जैसे कुछ NGO इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन यह मौजूदा ज़रूरतों को देखते हुए काफ़ी नहीं है.

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