Published on Apr 19, 2018 Updated 0 Hours ago
नौकरी दो वादे नहीं

हफ्ते भर पहले २ अप्रैल २०१८ को मध्य प्रदेश के मुख्या मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नौजवानों के लिए १ लाख नौकरियों का ऐलान किया [1]। ये नौकरियां अलग-अलग सरकारी महकमों में थीं जिसमें ३१,००० टीचर, सहायक टीचर और प्रोफेसर कि जगह थी। इस से पहले १५ फरवरी को भारतीय रेलवे ने दुनिया कि सबसे बड़ी भर्ती मुहीम शुरू की जिसमें लगभग ९० हजार नौकरियां थीं [2]। इसके लिए २८ मिलियन लोगो ने अर्जी दी [3]। यानी एक पद के लिए ३०० से ज्यादा अर्जी। सरकार इन ऐलानों का जश्न मन रही है। दरअसल ये तो राजनीतिक नाकामी है।

क्या सरकारी नौकरियों से बेरोज़गारी कि समस्या हल हो जायेगी। सरकार वो माहौल बनाने में नाकाम रही है जिस में लोग ऐसी व्यवस्र्था बनाने में निवेश करें जिस से नयी नौकरियां पैदा हों। या व्यवसायी ऐसे क्षेत्रों में पैसे लगायें जहाँ नौकरियां पैदा हों। सरकारी नौकरियां जिन्हें मिल जाती है उनके लिए कई सरकारी सुविधाओं की गारंटी हो जाती है, लेकिन उसके बदले में क्या वैल्यू या क्वालिटी सरकार को मिल रही है इसकी कोई गारंटी नहीं। सरकारी नौकरियों से नौकरी के बाज़ार में हालात बदलेंगे ऐसा सोंचना सही नहीं है।

सरकार में रहने के ४ सालों के बाद अगर सरकार नौकरियों के नाम पर इतना ही कर सकती है तो फिर चुनावी वादों और ज़मीनी कार्यवाई में कोई तालमेल नहीं है।

नौकरी के वादे के इर्द गिर्द सरकार जनता के ही टैक्स के पैसे से चुनाव में माहौल बना रही है। ये लोकप्रिय तरीका हो सकता है लेकिन बेरोज़गारी से लड़ने के लिए कारगर नहीं। युवाओं में नौकरियों को लेकर एक छोटे समय के लिए कुछ उत्साह तो बनेगा, उम्मीद बंधेगी और ये माहौल बनेगा कि सरकार कुछ कर रही है लेकिन इस से ज्यादा कुछ नहीं। लेकिन एक ऐसे समय में जब हर पालिसी, हर प्रोजेक्ट, हर कॉन्ट्रैक्ट और नौकरी की नतीजों के आधार पर समीक्षा होनी चाहिए, सरकार इसे लोगों तक अपनी दरियादिली के तौर पर पहुंचा रही है, पुराने ढर्रे पर चल रहे ख़राब प्रशासन की तरह।

ये सच है कि सरकार ने बहुत कुछ किया भी है इसलिए कारोबार की आसानी में भारत का स्थान ऊपर गया है, ३० पॉइंट ऊपर जा कर अब भारत का नंबर पहले १०० देशों में है लेकिन भारत का लक्ष्य पहले ५० देशों में शामिल होने का है जहाँ चढ़ाई और मुश्किल होगी। [4]

अगर निजी क्षेत्र में नौकरियां बढ़ रही हैं तो वो दिखाई नहीं दे रहीं। वजह है आंकड़ों की कमी। श्रमिक ब्यूरो के रोज़गार और बेरोज़गारी सर्वे का आखिरी आंकड़ा २०१५-१६ [5] का है। इसके मुताबिक १५ साल से ऊपर के व्यक्ति के लिए बेरोज़गारी की दर ३.७ फीसदी है। जिसमें सबसे ऊपर अंडमान और निकोबार है जहाँ ये दर १२ प्रतिशत है, केरला में १०।६ प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश में १०.२ प्रतिशत। सब से कम है दमन और दिऊ में, ०.३ प्रतिशत, गुजरात में ०.६ प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में १.२। राष्ट्रीय स्तर पर २०१५-१६ के आंकड़े २०१३-१४ से कुछ बेहतर हैं ३.४ प्रतिशत लेकिन २०१२-१३ से कुछ कम जब राष्ट्रीय औसत ४।० प्रतिशत था। रोज़गार पर २०१५ -१६ के बाद सरकारी आंकड़े नहीं हैं। उस से भी बुरी बाद ये है कि अब सरकार के मुताबिक इसकी ज़रूरत भी नहीं है। रोज़गार पर एक टास्क फ़ोर्स बनाई गयी थी जिसके सुझाव पर इस सर्वे को बंद कर दिया गया। श्रम और रोज़गार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने ७ मार्च २०१८ को संसद [6] को ये जानकारी दी। टास्क फ़ोर्स ने एक नए टाइम यूज़ सर्वे के गठन का सुझाव दिया और इसके लिए प्रशासनिक आंकड़े जैसे प्रोविडेंट फण्ड राज्य बीमा, राष्ट्रीय पेंशन स्कीम, मुद्रा लोन जैसे आंकड़ों का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया। ये भी मंत्री जी ने संसद में पूछे गए एक और सवाल [7] के जवाब में बताया। टास्कफ़ोर्स का सुझाव है कि संगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए एक नई परिभाषा की ज़रूरत है।

लेकिन जब एक टास्क फ़ोर्स का ये सुझाव होता है की ये सर्वे और उनसे जुड़े आंकड़ों को अब बंद कर दिया जाए, जबकि उसकी जगह कोई दूसरा या बेहतर तरीका भी नहीं तैयार किया गया है तो साफ़ तौर पर इसके पीछे किसी तकनीकी अड़चन की जगह राजनीतिक मंशा नज़र आती है।

लेकिन इस को कई तरह के राजनीतिक रंग दिए जाते हैं। नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा ने कुछ दिनों पहले ये कहा कि नौकरियों के संबंध में सही आंकड़े नहीं मिल पा रहे हैं सरकार से जो आंकड़े मिल रहे हैं उसकी जगह कई दुसरे सोर्स से नौकरियों के आंकड़े जुटाने की सलाह मंत्री जी ने दी है [9], जब तक कि नीति आयोग सही आंकड़े नहीं इकठ्ठा कर लेता। इस तरह अलग अलग सोर्स से आंकड़े जुटाए जाएँ तो हमें इस बात का सही अंदाज़ा होगा कि अर्थव्यवस्था में क्या चल रहा है। इसके लिए आंकड़ों के आधार पर बात करना बेहतर है। भारत में आज क्या स्थिति है इसे समझने के लिए भरोसेमंद आंकड़ों पर विश्वास करना बेहतर है या गर आप में क्षमता है की आप सही आंकड़ों को हासिल कर सकें तो कर सकते हैं। सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करने से सही तस्वीर नहीं मिल पाएगी। ये आंकड़ों को नज़रंदाज़ करने जैसा होगा।

इसलिए जब मंत्री जी कहते हैं कि आज कल जो ये कथात्मक फैलाया जा रहा है, कि नौकरियां कहाँ ग़ायब हो गयी हैं, ये भ्रमित करने वाला है। हम माफ़ी के साथ ये कहना चाहते हैं की हम इस पर cynical हुए बिना नहीं रह सकते। समस्या ये नहीं जो मंत्री जी कह रहे हैं कि रोज़गार सम्बन्धी सही आंकड़े निरंतरता से नहीं मिल रहे। समस्या ये है कि मौजूदा आंकड़ों को सामने नहीं लाया जा रहा और परदे के पीछे नए आंकड़े बनाने की कोशिश हो रही है। इसलिए जो ये नजरिया सामने आ रहा है कि नौकरियां कहाँ ग़ायब हो रही हैं वो इसी बात से जुड़ा है की सरकार आंकड़े समय समय पर जारी नहीं कर रही।

अगर नए आंकड़े पहले से बेहतर ढंग से इकठ्ठा किये भी जाते हैं तो भी उन पर हमेशा शक रहेगा क्यूंकि पुराने आंकड़े तुलना के लिए नहीं होंगे। स्वाभाविक है कि जो रोज़गार पर नज़र बनाए हुए हैं वो ये मानेंगे की सरकार कुछ छुपा रही है। पुराने आंकड़ों को छुपा कर नए आंकड़ों के ज़रिये राजनीती की पटकथा बदलना चाह रही है।

दुसरे अगर सिर्फ नए आंकड़े ही उपलब्ध होंगे तो इन्हें बीते सालों पर कैसे लागू किया जाएगा और ऐसे में UPA और NDA के समय कितने रोज़गार पैदा हुए इसकी तुलना कैसे कि जायेगी।

इसकी ५० फीसदी गुंजाईश है कि सिन्हा साहब सही हों, हो सकता है कि हम ऐसे विकास के दौर में न हों जहाँ विकास के साथ साथ रोज़गार भी बढ़ रहा हो। मंत्री जी ने बताया है कि ऑटोमोटिव, IT-BPM, खुदरा और कपडा उद्योग में २०१४ से २०१७ के बीच १४ मिलियन नौकरियां बढ़ी हैं। पर्यटन उद्योग में भी हर साल ३-४ मिलियन बढ़ रही हैं और इसके साथ ही इ कॉमर्स, उड्डयन और मोबिलिटी सर्विस में नौकरियों की स्थिति क्या है इस पर नज़र नहीं रखा जा रहा। ये सच है की एक आधुनिक २१वीं सदी के भारत में नौकरियों का हिसाब रखने के लिए एक आधुनिक ढांचा भी खड़ा किया जाना चाहिए। लेकिन ये नए आंकड़े पुराने आंकड़ों की कीमत पर नहीं आने चाहिए। दोनों को साथ साथ एक दुसरे के पूरक के तौर पर रहना चाहिए और जब नए आंकड़ों में स्थिरता आ जायेगी तब पुराने को नए से पूरी तरह से बदला जा सकता है।

जिन लोगों को सच में आंकड़ों की धुन है उनके लिए आंकड़े अब भी मौजूद हैं। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक बेरोज़गारी दर ७१ हफ़्तों में सबसे ज्यादा ७।१ प्रतिशत २५ फरवरी २०१८ के हफ्ते में रही। यानी बेरोज़गारी बढ़ रही है। जुलाई २०१७ से इसमें लगातार वृद्धि हुई है। CMIE के मैनेजिंग डायरेक्टर और CEO महेश व्यास के मुताबिक इस हफ्ते में एक अनुमान के मुताबिक ३१ मिलियन बेरोजगार नौकरी कि तलाश में थे जो अक्टूबर २०१६ [10] से अब तक सबसे ऊंचा स्तर है।इस से साफ़ लगता है कि सरकार की तरफ से २०१५-१६ के बाद से आंकड़ों को छुपाना और बेरोज़गारी दर में बढ़ोतरी का सीधा संबंध है।

अपनी तरफ से सरकार ने एक नया ग्रुप बना दिया है, रोज़गार और निर्यात पर एक टास्क फ़ोर्स जिसका नेतृत्व नीति आयोग के उप चेयरमैन राजीव कुमार करेंगे [11]। बेरोज़गारी से निबटने के लिए टास्क फ़ोर्स को एक विस्तृत प्लान ऑफ़ एक्शन देना है। हर एक क्षेत्र में क्या नीति लागू की जानी चाहिए इसके सुझाव देने हैं। और जिन सेक्टर में रोज़गार और व्यापार की क्षमता अधिक है उसकी अलग लिस्ट बनाना है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। ३१दिसंबर २००९ को अमिताभ कुंडू की अध्यक्षता में रिपोर्ट तैयार की गयी थी। ये रिपोर्ट नेशनल स्टैटिस्टिकल कमीशन, पीरियाडिक लेबर फाॅर्स पर बनी कमिटी की थी जो सर्वे [12] के कार्यप्रणाली को तय करने के लिए बनी थी। नेशनल सैंपल सर्वे जो की महीने और तिमाही में श्रम बाज़ार के आंकड़े जारी करता है उसके सैंपल के डिजाईन तय करना भी इसकी ज़िम्मेदारी थी। इस के द्वारा रोज़गार के आंकड़े इकठ्ठा करने में आ रही कमियों को पहले ही बतया गया है।

राजीव कुमार की टास्क फ़ोर्स कुंडू कमिटी रिपोर्ट को और बल देगी। ये सब काम किये जा रहे हैं ताकि हम एक बेहतर सांख्यिकी ढांचा तैयार कर सकें। ये चलते रहना चाहिए क्यूंकि भारत की अर्थव्यवस्था और जटिल हो रही है। लेकिन मौजूदा आंकड़ों को रोकने का क्या मतलब है?

स्वरोज़गार की तरफ ध्यान बांटने का मतलब है समस्या से भागना। अगर नौकरियां मुद्दा हैं तो इस से सीधे निबटना चाहिए। जब उद्यमिता की बात होगो तो स्वरोज़गार को देखा जाएगा उअर तब दूसरी समस्या जैसे जबरन स्वरोज़गार या इसे छुपी हुई बेरोज़गारी भी कह सकते हैं, इनसे तब निबटा जाएगा।

टीम लीज के अध्यक्ष मनीष सभरवाल के अनुसार समस्या नौकरी नहीं नौकरी के लिए मिल रहा मेहनताना हो सकती है “जिसे भी नौकरी चाहिए उसके पास नौकरी है “उनके पास जो नहीं है वो है वो मेहनताना या मजदूरी जो वो चाहते हैं [13]। सर्वे के मुताबिक प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां इसलिए नहीं पैदा की जा सक रहीं क्यूंकि इस में अड़चन है जिसे २ तरह से दूर किया जा सकता है। एक तो अर्थव्यवस्था को नियम और कायदे में व्यवस्थित करना और लेन देन को आर्थिक प्रक्रिया में बदलना। GSTजो डिजिटल GST नेटवर्क के ज़रिये काम कर रहा है वो इसमें मदद कर रहा है। क्यूंकि GST [14] की वजह से सभी तरह के आंकड़े एक नेटवर्क में आ जाते हैं। इसके कारण अर्थव्यवस्था संगठित भी हो रही है और हर खरीदारी या लेन देन का डिजिटल हिसाब भी रहता है।

बड़ा सवाल है की सरकार बेरोज़गारी के आंड़े क्यूँ नहीं जुटा रही और इसे जारी क्यूँ नहीं किया जा रहा है?

अब अगर रोज़गार और बेरोज़गारी के लिए नए तरह के statistic की ज़रूरत है तो इसके लिए पर्याप्त आंकड़े मौजूद हैं। जुलाई २०१७ तक ये कहा जा सकता था कि आंकड़े सिर्फ उपरी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों से जुड़े जानकारी देते थे लेकिन GST लागू होने के बाद ये संख्याओं की बाधा हमारे सामने नहीं है। अब ये NSSO सर्वे में मदद कर सकती है। लेकिन पुरानी व्यवस्था को बिलकुल ही नहीं इस्तेमाल करना जिस के ज़रिये दशकों के रुझान की जानकारी मिलती है, ये विश्वसनीयता पर सवाल उठती है। जब आंकड़े ग़ायब होंगे तब व्यग्तिगत अनुभव पर ही भरोसा करना होगा।

जब आंकड़े ग़ायब हो जाते हैं तो एक शुन्य रह जाता है जिस से मंशाओं और राजनीती को बल मिलता है। वो इसे अपनी थ्योरी से बदल देते हैं जो किसी व्यक्ति विशेष की दृष्टि के दायरे तक ही सीमित होता है। उदाहरण के लिए दिसम्बर २०१६ को लीजिये, नोटबंदी के बाद, रिज़र्व बैंक ने जमा किये गए पुराने नोटों की संख्या की जानकारी देना बंद कर दिया। जिसकी वजह से कई तरह के कयास लगाये जाने लगे — किसी ने कहा २५ फीसदी नोट जमा नहीं हुए किसी ने कहा ४० फीसदी, किसी ने कहा ये आम आदमी कि इमानदारी की जीत है। जब ३० अगस्त २०१७ तक ९८.६ फीसदी पुराने नोट बैंकों में आ गए [15], तो फिर पटकथा आम आदमी के फायदे की जगह बेईमान को पकड़ा जा सकता है पर चली गयी ये नया कथात्मक तकनिकी तौर पर भी सही है और नैतिक तौर पर भी सही दिशा में था। लेकिन बीच के दौर में जब आंकड़े सामने नहीं आये थे तो एक धुंधलापन था जिस से सवाल उठता है कि आंकड़ों को छुपाने की वजह क्या थी।

२६ मार्च २०१४ के अपने चुनावी घोषणा पत्र में बीजेपी ने रोज़गार और उद्यमिता को महंगाई के बाद जगह दी थी। [16] घोषणापत्र में जोदार तरीके से ऐलान किया गया था की १० साल तक UPA सरकार ने देश को एक ऐसा विकास दिया है जिसमें रोज़गार के मौके नहीं बढे। बीजेपी अर्थव्यवस्था में नयी जान डालेगी जिसमें नए रोज़गार के मौके पैदा करने पर सबसे ज्यादा जोर होगा। जनता ने इस वादे को जोर शोर से अपनाया।

ये सोंचने वाली बात है की किस आधार पर ये दावा किया गया था की ये बिना रोज़गार वाला विकास है। अगर ये आधार ही ग़लत है जैसा की श्री सिन्हा अब कह रहे हैं, तब ये बयान भी एक जुमला ही था और ये पार्टी के २०१९ के घोषणा पत्र की विश्वसनीयता को कम करेगा।

२०१४ से २०१८ याक किये गए सब वादे [17] अब सिर्फ चुनावी वादे लगते हैं। जैसे कपडा, जूता और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योग का विकास जिसमें ज्यादा श्रम की ज़रूरत होती है। पारंपरिक रोज़गार के ज़रिये जैसे कृषि और उस से जुड़े उद्योग को मजबूती देना, रोज़गार कार्यालय को करियर केंद्र में बदलना, ये सब चुनावी बातें लगती हैं जिस की नियत पर अब शक है।ये अब भुला दी गयी हैं और ध्यान अब नए आंकड़े जुटाने पर चला गया है। जनता ने नोटबंदी और उस की वजह से हुई बेरोज़गारी को भी बर्दाश्त कर लिया लेकिन जयंत सिन्हा की कामयाबी बताती हुई हर रिपोर्ट का जवाब है। रोज़गार की सच्चाई को जानने के लिए हमें सरकार के आंकड़ों का कितना लम्बा इंतज़ार करना होगा।

रेलवे में जो २ लाख नौकरियां बढ़ी हैं साथ ही मध्य प्रदेश और कुछ और बीजेपी शासिरt राज्यों में वो चुनावी साल में दिए गए लौलिपॉप या ज़ख़्म पर छोटा सा बंद ऐड लगाने जैसा ही है। इस से ज्यादा कुछ नहीं। ये देश को महंगा पड़ेगा। जब नौकरियां सियासत के तहत दी जा रही हैं ज़रूरत के आधार पर नहीं। ऐसे में जिन लोगों के पास नौकरी और पैसे हैं उनकी सेना में ये एक छोटी सी ब्रिगेड ये यूनिट जोड़ने जैसा होगा। ८० के दशक में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद जनता के टैक्स के पैसों से लगने वाले लोन मेला का बुरे प्रभाव हमने देखा है। क्या अब मोदी सरकार भी लोगों के टैक्स के पैसों से एक लोन मेला लगाएगी?

रोज़गार पैदा करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा बढ़ाये गए रोज़गार के मौके बेरोज़गारी पर आंकड़ों की कमी की भरपाई नहीं कर सकते। इस से आंकड़ों को हमसे छुपाया तो जा सकता है लेकिन सरकारी खजाने पर सिर्फ बोझ ही बढेगा।

वक़्त आ गया है कि इस अनियमितता को बदला जाए। याद रखिये आंकड़े राजनीतिक कथात्मक को बनाते या बिगड़ते हैं, इसका उलट नहीं चलेगा।


संदर्भ

[1] After raising retirement age, Madhya Pradesh CM Shivraj Singh Chouhan announces 1 lakh govt jobs for youth, The Indian Express, 2 April 2018, Accessed on 11 April 2018

[2] Ministry of Railways Announces one of the World’s Largest Recruitment Drive, Press Information Bureau, Government of India, Accessed on 11 April 2018

[3] Over 2।8 crore people apply for 90,000 railways jobs, The Times of India, 31 March 2018, Accessed on 11 April 2018

[4] Gautam Chikermane, #DoingBusiness: The climb to Top 50 will be steep, India Matters, Observer Research Foundation, Accessed on 11 April 2018

[5] Santosh Kumar Gangwar, Unemployment in the Country, Unstarred Question No। 1367, Rajya Sabha, 7 March 2018, Accessed on 11 April 2018

[6] Survey discontinued, Centre clueless about unemployment, DNA, 6 March 2018, Accessed on 11 April 2018

[7] Santosh Kumar Gangwar, Centralised Data on Job Creation, Unstarred Question No। 3767, Rajya Sabha, 28 March 2018, Accessed on 11 April 2018

[8] Report of the Task Force on Improving Employment Data, NITI Aayog, 11 May 2017, p। 14, Accessed on 11 April 2018

[9] Jayant Sinha, There’s no jobs drought: We will have more data soon, meanwhile here’s what the evidence tells us, The Times of India, 10 April 2018, Accessed on 11 April 2018

[10] Mahesh Vyas, Sharp increase in unemployment rate, Centre for Monitoring Indian Economy, 27 February 2018, Accessed on 11 April 2018

[11] Task Force on Employment and Exports and its Terms of Reference, Press Information Bureau, NITI Aayog, Government of India, 6 September 2017, Accessed on 11 April 2018

[12] Report of the NSC Committee on Periodic Labour Force Survey, Ministry of Statistics and Programme Implementation, Government of India, December 2009, Accessed on 11 April 2018

[13] Manish Sabharwal, Problem is wages, not jobs; answer lies in formalisation, financialisation, The Indian Express, 22 March 2018, Accessed on 11 April 2018

[14] Gautam Chikermane, The arrow effect of demonetisation and GST, 2 August 2017, Accessed on 11 April 2018

[15] Status of the Return of SBNs — Reserve Bank of India (RBI) Annual Report 2016-17, Press Information Bureau, Ministry of Finance, Government of India, 30 August 2017, Accessed on 11 April 2018

[16] BJP Election Manifesto 2014, 26 March 2014, p। 4, Accessed on 11 April 2018

[17] Ibid, p। 4 and 5

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