Author : Anirban Sarma

Published on Dec 22, 2021 Updated 0 Hours ago

कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के दौरान शैक्षणिक सामग्रियों तक पहुंच के लिए डिज़िटल प्लेटफॉर्म (Digital Platform) की मांग में ज़बर्दस्त बढ़ोतरी हुई. सभी तक पहुंच बेहद ज़रूरी है लेकिन पब्लिशर (Publishers) के अधिकार को भी सुरक्षित रखना होगा. 

प्लेटफॉर्म इकोनॉमी का विकास और शैक्षणिक संसाधनों तक पहुंच
Getty

डेढ़ साल से अधिक के अंतराल के बाद पूरे भारत में शिक्षण संस्थानों (Education Institutions in India) के दरवाज़े एक बार फिर छात्रों के लिए खुलने लगे हैं. देश भर में छात्र धीरे-धीरे ही सही क्लासरूम टीचिंग (Classroom Teaching) के पारंपरिक तरीकों पर लौटने लगे हैं और पुस्तकालयों और अकादमिक संसाधनों का उपयोग करने लगे हैं.

 प्लेटफ़ॉर्म नेटवर्क प्रभावों के साथ समुदाय और बाज़ार बनाते हैं जो उपयोगकर्ताओं को बातचीत करने और लेनदेन करने की आज़ादी प्रदान करते हैं. 

विश्व और भारत दोनों ही स्तर पर हालांकि, कोविड महामारी (Covid_19 Pandemic) ने अब तक सीखने की सामग्री तक पहुंचने के लिए डिज़िटल प्लेटफॉर्म Digital Platform) की सुस्त प्रवृति को ही आगे बढ़ाया है. यह  इस बात का संकेत है कि यह प्रवृति अब अपरिवर्तनीय है. जहां तक एक नए अध्ययन की रिपोर्ट की बात है तो साल 2030 तक कक्षा 1-12 के लिए भारत का ऑनलाइन शिक्षा बाज़ार (Education Market of India) छह गुना ज़्यादा तेजी से बढ़कर करीब 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर (American doller) का हो जाएगा  जबकि उच्च शिक्षा का बाज़ार करीब चार गुना बढ़कर इसी दौरान 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है.

प्लेटफॉर्म इकोनॉमी का उदय

भारत में प्लेटफॉर्म इकोनॉमी का उदय ऑनलाइन लर्निंग की अहम वजह है.  एप्लाइको के सीईओ एलेक्स मोअज़ेड प्लेटफॉर्म को ‘एक व्यापार मॉडल’ के रूप में बताते हैं जो दो या अधिक परस्पर निर्भर समूहों, आमतौर पर उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाकर उसे मूल्यवान बनाता है. इन विनिमयों को बनाने के लिए प्लेटफ़ॉर्म, उपयोगकर्ताओं और संसाधनों के बड़े स्तर के नेटवर्क का उपयोग करते हैं जिस तक मांग के आधार पर पहुंच बनाई जा सकती है. प्लेटफ़ॉर्म नेटवर्क प्रभावों के साथ समुदाय और बाज़ार बनाते हैं जो उपयोगकर्ताओं को बातचीत करने और लेनदेन करने की आज़ादी प्रदान करते हैं. ऑनलाइन प्लेटफार्मों, विशेष रूप से, इंटरनेट के नेटवर्क प्रभावों का इस्तेमाल करके एक एक्सपोनेन्शियल स्तर पर वैल्यू बनाते हैं.

नेशनल डिज़िटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया (एनडीलआई) – 55 मिलियन से अधिक शैक्षिक संसाधनों तक मुफ़्त पहुंच प्रदान करने वाला एक खुला मंच, मार्च 2020 से उपयोग में है जिसमें अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है.

ऑनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में, इसलिए, एक डिजिटल प्लेटफॉर्म एक नेटवर्क में तब्दील हो जाता है जो एक तरफ एजुकेशनल पब्लिशर कंटेट देने वालों को एक मंच पर लाता है और दूसरी ओर छात्रों को, उनके बीच लेनदेन की सुविधा देता है ताकि यह प्लेटफॉर्म लेनदेन, प्रकाशकों और सीखने वाले छात्रों के साथ बढ़ता रहे.

मुक्त और बंद एजुकेशनल प्लेटफॉर्म


मुक्त और बंद शैक्षिक प्लेटफॉर्मों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है, जिसका दोनों ही विद्यार्थियों और प्रकाशकों तक पहुंच और प्रकाशक की सामग्रियों पर नियंत्रण पर असर होता है.

मु्क्त शैक्षिक प्लेटफ़ॉर्म उन लोगों को संदर्भित करते हैं जिनकी सामग्री स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है और जिस पर प्रकाशक या शोध संस्थान कंटेंट सामग्री प्रदाताओं के कंटेंट प्रदान करने में भरोसा होने पर अपने अकादमिक उत्पादों को जगह दे सकते हैं. इसके विपरीत, बंद एजुकेशनल प्लेटफार्मों को व्यावसायिक रूप से संचालित किया जाता है – सामग्री तक पहुंच भुगतान द्वारा प्रतिबंधित होता है; एक वाणिज्यिक प्रकाशक या तकनीकी शिक्षा फर्म प्लेटफ़ॉर्म मालिक हो सकता है, या फिर कई प्रकाशक अपनी सामग्री को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराने के लिए एक मंच पर आ सकते हैं जिसके जरिए वो अपने कंटेंट को व्यवासायिक रूप से उपलब्ध करा सकें.

ज्ञान की बहुलता ( गुणवत्ता और तादाद दोनों में ) और विस्तार सावधानीपूर्वक पूर्णरेखांकित और सख़्त रूप से सीमित किए जाने की ज़रूरत है 

भारत में, महामारी ने दोनों प्रकार के प्लेटफार्मों पर शैक्षिक संसाधनों की मांग को ज़बर्दस्त बढ़ाया है.  उदाहरण के लिए, बड़े पैमाने पर मु्क्त  ऑनलाइन पाठ्यक्रमों (एमओओसी) के लिए सरकार के राष्ट्रीय मंच स्वयम ने कोरोना प्रकोप के बाद से इसमें तेज वृद्धि देखी है.  इसी तरह, नेशनल डिज़िटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया (एनडीलआई) – 55 मिलियन से अधिक शैक्षिक संसाधनों तक मुफ़्त पहुंच प्रदान करने वाला एक खुला मंच, मार्च 2020 से उपयोग में है जिसमें अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है. और इस साल अक्टूबर में, एनडीएलआई ई-संसाधनों की तादाद में बढ़ोतरी हुई और 100 मिलियन  डाउनलोड के मार्क को पार कर गया.  बंद प्लेटफार्मों में भी शानदार बढ़ोतरी हुई है. तकनीकी शिक्षा के प्लेटफॉर्म के राजस्व में साल 2020 में 100 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई और भारत की सबसे बड़ी शिक्षा कंपनी बायजू, ने बताया है कि कोरोना वायरस महामारी शुरू होने के बाद से 40 मिलियन नए यूज़र्स इसके प्लेटफॉर्म से जुड़ गए हैं.

जाहिर है, यहां सब्सक्राइब्ड कंटेंट का बाज़ार फल-फूल रहा है जहां एक ख़ास वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए कीमत की बहुत ज़्यादा पाबंदियां नहीं हैं  लेकिन अगर गुणवत्ता वाले शैक्षिक संसाधनों की पहुंच व्यापक होनी है और जिसमें यह भी सुनिश्चित करना है कि प्रकाशकों के अधिकारों और प्रोत्साहनों की रक्षा हो, तो कंटेंट के मु्क्त पहुंच और भुगतान सामग्री तक पहुंच के बीच संवेदनशील संतुलन स्थापित करना होगा.

संतुलन बनाना


इतिहासकार और लेखक टिमोथी गार्टन ऐश कहते हैं, ‘ हमारे समय में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक ‘ खुली पहुंच को लेकर होने वाली क्रांति और कॉपीराइट सहित बौद्धिक संपदा की रक्षा के बीच है’.[i]

खुली पहुंच (ओए) क्रांति 21 वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में अमेरिकी और यूरोपीय विश्वविद्यालयों में शुरू हुई वह भी इस बात का नतीजा थीकि तब बौद्धिक पत्रिकाओं द्वारा निषेधात्मक फीस ली जाने लगी.

यह आंदोलन उसके बाद से दुनिया भर में गति पाया, जिससे खुली पहुंच और खुले शैक्षिक संसाधनों (ओईआर) के इस्तेमाल में बढ़ोतरी हुई. खुले शैक्षिक संसाधनों (ओईआर) शिक्षण, सीखने और अनुसंधान संसाधनों के रूप में परिभाषित किया गया है जो सार्वजनिक क्षेत्र में रहते हैं या एक बौद्धिक संपदा लाइसेंस के तहत जारी किए गए हैं, जो उनके मुफ़्त उपयोग और दूसरों द्वारा उपयोग की अनुमति देता है. आज ओईआर अक्सर ‘क्रिएटिव कॉमन्स’ के तहत दिया जाने वाला लाइसेंस है जो यह निर्धारित करता है कि एक शैक्षिक संसाधन का इस्तेमाल, इसका दोबारा इस्तेमाल, इसे फिर से लागू करना या फिर इन सभी कार्यों के लिए इसे तैयार किया जा सकता है या नहीं.

इन सभी को साथ मिलाकार मुक्त कंटेंट और डिज़िटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती मांग जो अस्थायी प्रकाशकों, जो परंपरागत कॉपीराइट कानून के तहत मान बैठे हैं कि उनके सारे अधिकार आरक्षित हैं, उन्हें भी जोड़ता है. इस वजह से मुक्त बनाम भुगतान वाले शैक्षिक संसाधनों के ध्रुवीकरण पर विवाद छिड़ गया है. मुक्त पहुंच के समर्थक इस बात की वकालत करते हैं कि ज्ञान मुफ्त में बांटा जाना चाहिए, जबकि व्यावासायिक प्रकाशक बौद्धिक संपदा को सुरक्षित करने और उसके लिए भुगतान किए जाने पर जोर देते हैं. हालांकि इन दोनों के बीच का रास्ता अख़्तियार करने की ज़रूरत है. जैसा कि गार्टन ऐश ने कहा है कि,  ‘यह कोई जंग का सैंपल नहीं है जहां एक तरफ ज्ञान के सशक्तिकरण को लेकर और दूसरी तरफ विशेष रूप से प्रतिक्रियावादी प्रॉपर्टी राइट्स का मामला है. ज्ञान की बहुलता ( गुणवत्ता और तादाद दोनों में ) और विस्तार सावधानीपूर्वक पूर्णरेखांकित और सख़्त रूप से सीमित किए जाने की ज़रूरत है लेकिन बौद्धिक संपदा के संरक्षण को भी प्रभावी बनाया जाना ज़रूरी है.’[ii]

2020 की शुरुआत से कई प्रकाशकों ने घर में पढ़ाई और शिक्षण के लिए भारत में मुफ़्त शैक्षणिक कंटेंट को लोगों तक उपलब्ध कराया

भारत में संतुलन मॉडल की ओर

प्रकाशकों के वाणिज्यिक हितों के साथ उपयोगकर्ता लाभों को संतुलित करने वाले एक्सेस मॉडल की खोज कोरोना को देखते हुए ज़रूरी है लेकिन कोरोना वायरस महामारी ने एक नए स्तर से इसे खोजने की ज़रूरत को रेखांकित किया है. भारत में चार निम्नलिखित दृष्टिकोणों को लागू किया जा रहा है या उनका पता लगाया जा रहा है लेकिन देश अभी भी एक विशेष संतुलित मॉडल को अपनाने के लिए व्यापक आधार का परीक्षण कर रहा है-
मुफ़्त में कंटेंट बांटने का कदम:
2020 की शुरुआत से कई प्रकाशकों ने घर में पढ़ाई और शिक्षण के लिए भारत में मुफ़्त शैक्षणिक कंटेंट को लोगों तक उपलब्ध कराया, या फिर कोविड रिसर्च के लिए ये सामग्रियां बांटी गईं लेकिन लंबी अवधि के लिए मुफ़्त में कंटेंट को बांट पाना मुमकिन नहीं है और कुछ हद तक इनके लिए शुल्क वसूलने की प्रक्रिया को इज़ाद करने की आवश्यकता है. सच में, जैसे-जैसे कोरोना का प्रभाव घट रहा है प्रकाशक मुफ़्त कंटेंट को कम करने लगे हैं.
एक देश, एक सब्सक्रिप्शन:
भारत सरकार द्वारा वर्तमान में जिस साहसिक ‘वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन’ (ओएनओएस) योजना पर विचार-विमर्श किया जा रहा है, उससे प्रकाशकों और विद्यार्थियों दोनों को लाभ हो सकता है. ओएनओएस के लिए ज़रूरी है कि वो सरकार से बातचीत करे और अकादमिक पुस्तक और जर्नल प्रकाशकों के एक कंसोर्टियम से एक एकल एकीकृत सदस्यता खरीदने की ओर कदम बढाए,  जिसके बाद उनके शैक्षिक संसाधन सभी नागरिकों और सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित संस्थानों के लिए उपलब्ध हो सकेंगे.
राष्ट्रीय लाइसेंसिंग:
ओएनओएस की तरह ही, हालांकि बेहद सीमित स्तर पर, राष्ट्रीय लाइसेंसिंग भी शिक्षा मंत्रालय और एनडीएलआई की तरफ से एक क्रिएटिव कदम है. इसके लिए मंत्रालय धन्यवाद का हकदार है क्योंकि इसके जरिए बल्क में प्रकाशकों और डिज़िटल प्लेटफॉर्म के लिए सब्सक्रिप्शन का भुगतान कर दिया गया, जिससे उनके कंटेंट तक एनडीएलआई प्लेटफॉर्म के जरिए पहुंचा जा सके. हालांकि इसके सोर्स प्लेटफॉर्म से इस तक पहुंचने के लिए भुगतान ज़रूरी होगा  लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर लाइसेंस्ड कंटेंट की उपलब्धता विद्य़ार्थियों के लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हुई है.
गोल्ड एंड ग्रीन ओपन एक्सेस:
गोल्ड खुली पहुंच लेखकों को बनाने की प्रथा से जुड़ी है – या उनके संस्थागत फंडर्स – किसी पत्रिका में लेख के लिए भुगतान(एपीसी ) करते थे, जिसके बाद उनका लेख खुली पहुंच तक उपलब्ध हो पाता था.  हालांकि विकासशील देशों में यह दृष्टिकोण बेहद सामान्य था लेकिन भारत में यह कम मशहूर हुआ क्योंकि एपीसी कई बार लेखकों और फंडर्स की पहुंच से दूर रहे. ग्रीन मुक्त पहुंच कई मायनों में एपीसी को शामिल नहीं करता है लेकिन इसके तहत लेखकों के लिए ज़रूरी है कि वो मुक्त ऑनलाइन संसाधन में भी अपने शैक्षणिक पेपर के प्रिंट वर्ज़न को उपलब्ध कराएं. कभी-कभी तो कंटेंट के प्रकाशन के तुरंत बाद. हालांकि अभी यह देखा जाना बाकी है कि क्या भारत औपचारिक रूप से मुक्त पहुंच को प्रकाशकों का मानदंड बनाता है या नहीं.

डिज़िटल प्लेटफॉर्म और आईसीटी आधारित शैक्षणिक पहल को ज़्यादा से  ज़्यादा विस्तार दिए जाएं और मौजूदा और भविष्य की सभी शैक्षणिक ज़रूरतों को वो पूरा कर सकें और इस तरह की शिक्षा सभी को सुलभ हो.

शिक्षा को लेकर फिर से चिंतन:

लॉकडाउन के चरम पर लॉन्च किए गए नेशनल एजुकेशन पॉलिसी(एनईपी) 2020 भारत के लिए शिक्षा को फिर से प्रस्तावित करता है. एनईपी इस बात पर जोर डालता है कि डिज़िटल प्लेटफॉर्म और आईसीटी आधारित शैक्षणिक पहल को ज़्यादा से  ज़्यादा विस्तार दिए जाएं और मौजूदा और भविष्य की सभी शैक्षणिक ज़रूरतों को वो पूरा कर सकें और इस तरह की शिक्षा सभी को सुलभ हो. मौजूदा समय में एनईपी ऐसी व्यवस्था के बारे में विचार कर रहा है कि जहां  कंटेंट डेवलपर्स यूज़र फ्रेंडली और क्वालिटेटिव कंटेंट पैदा कर सकें जिसे डिज़िटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया जा सके.

जैसा कि ज़्यादातर विद्यार्थी कई दूसरे प्लेटफॉर्म पर आधारित हो रहे हैं और प्रकाशक अपने प्रोग्राम को कंटेंट की बढ़ती मांग के बीच बढ़ा रहे हैं, हमें विद्यार्थियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वो कहीं भी अपनी ज़रूरतों के हिसाब से शैक्षणिक कंटेंट को प्राप्त कर सकते हैं और जो प्रकाशक इसे तैयार कर रहा है उसे इसका भुगतान दिया जा सके. यह विचार की सभी के लिए मुक्त पहुंच उपबल्ध हो सके यह प्रकाशकों के हितों को ख़त्म नहीं करे, लेकिन विद्यार्थियों की पहुंच से गुणवत्ता वाले कंटेंट कभी दूर नहीं हों इसका ध्यान रखा जाना चाहिए. अगर शिक्षा के स्तर को बढ़ाना है तो एक ज़रूरी संतुलन बेहद आवश्यक है.


[i] टिमोथी गार्टन ऐश,फ्री स्पीच: टेन प्रिंसिपल्स फॉर ए कनेक्टेड वर्ल्ड (लंदन: अटलांटिक बुक्स, 2016), पृ.164

[ii] गार्टन ऐश, फ्री स्पीच, पृ.167

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.