Published on Jan 09, 2021 Updated 0 Hours ago

पर्यावरण अनुकूल इमारतें आर्थिक विकास और “बेहतर कल” के विशेषाधिकार का मज़बूत ज़रिया बन सकती हैं 

भारत में पर्यावरण अनुकूल इमारतों का निर्माण ज़रूरी

जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ भारत की जंग में यहां की इमारतों के विकास और विस्तार की अहम भूमिका है. भारत की कुल ऊर्जा खपत में इमारतों का योगदान 40 प्रतिशत है और इसमें सालाना 8 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो रही है. अगर परंपरागत तौर-तरीक़े से इमारतें बनती रहीं तो 2050 तक उत्सर्जन में इमारतों का योगदान 70 प्रतिशत हो जाएगा. इस तरह पर्यावरण से जुड़ी भारत की महत्वाकांक्षा के लिए बड़ा ख़तरा उत्पन्न होगा.

अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) के मुताबिक़ 2030 तक भारत के लिए जितनी इमारतों की ज़रूरत होगी, उसका 70 प्रतिशत हिस्सा बनना अभी बाक़ी है. अगर भारत इस विशाल मांग को पूरा करने के लिए पर्यावरण अनुकूल (ग्रीन) इमारतों के विचार को अपनाता है तो ये पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए फ़ायदेमंद साबित होगा. भारत में पर्यावरण अनुकूल इमारतों का बाज़ार अभी शुरुआती दौर में है. सिर्फ़ 5% इमारतों को ग्रीन इमारत का दर्जा मिला है. शुरुआत में ये एक चुनौती की तरह लगता है लेकिन ये ग्रीन इमारतों के विकास के लिए कई तरह के मौक़े मुहैया कराता है.

ग्रीन इमारतों की ज़रूरत

भारत में ग्रीन इमारतों का समर्थन करने के लिए कई कारण हैं. इनमें सबसे पहली और शायद सबसे साफ़ वजह पर्यावरण पर उनके असर से जुड़ी है- ख़ास-तौर पर ऊर्जा की मांग. परंपरागत इमारतों के मुक़ाबले ग्रीन इमारतों में ऊर्जा पर कम लागत आती है. हालांकि ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण और डिज़ाइन पर शुरुआत में ज़्यादा लागत आती है लेकिन लंबे वक़्त में कम रखरखाव की लागत और ऊर्जा की कम खपत की वजह से इस लागत की भरपाई हो जाती है. इसकी एक मिसाल है सीआईआई गोदरेज ग्रीन बिज़नेस सेंटर. इस इमारत को बनाने में परंपरागत इमारत के मुक़ाबले 18 प्रतिशत ज़्यादा ख़र्च हुआ. लेकिन सात साल के छोटे से ही समय में इमारत की लागत की भरपाई हो गई. इसी तरह नोएडा में स्पेक्ट्रल सर्विसेज़ कंसल्टेंट का दफ़्तर 8 प्रतिशत ज़्यादा ख़र्च पर बना लेकिन इसकी भरपाई चार साल में ही हो गई. इसलिए इस बात की सख़्त ज़रूरत है कि लोगों को जागरुक किया जाए कि टिकाऊ चीज़ किफ़ायती होती है और इस झूठ का पर्दाफ़ाश किया जाए कि ग्रीन इमारत बनाना “महंगा” है.

ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण और डिज़ाइन पर शुरुआत में ज़्यादा लागत आती है लेकिन लंबे वक़्त में कम रखरखाव की लागत और ऊर्जा की कम खपत की वजह से इस लागत की भरपाई हो जाती है.

महामारी और इसके झटकों को देखते हुए रिहायशी घरों में रहने वालों के साथ-साथ काम-काज की जगह के लिए ग्रीन इमारतों का आकर्षण बढ़ गया है. कोविड के बाद उम्मीद की जा रही है कि लोग अपनी सेहत, तंदुरुस्ती और आराम के लिए और भी सतर्क हो जाएंगे. लोग ऐसी इमारतों में रहना पसंद करेंगे जिनमें बेहतर वेंटिलेशन सिस्टम, सूर्य की पर्याप्त रोशनी और ताज़ा पानी की उपलब्धता होगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक़ घर के भीतर ख़राब हवा-पानी की वजह से होने वाली सांस और फेफड़े से जुड़ी बीमारियां मौत की पांच बड़ी वजहों में से तीन के लिए ज़िम्मेदार हैं. ग्रीन इमारतों की ख़ूबियों से साबित हो चुका है कि उनका सेहत और तंदुरुस्ती पर सकारात्मक असर पड़ता है. ग्रीन घर और दफ़्तरों के डिज़ाइन में प्राकृतिक रोशनी का सही इस्तेमाल किया जाता है और कृत्रिम रोशनी का कम-से-कम इस्तेमाल होता है. रिसर्च बताती हैं कि प्राकृतिक रोशनी तनाव के स्तर को कम करने में मदद करती है, मनोवैज्ञानिक आराम मुहैया कराती है और दफ़्तर में काम करने वाले कर्मचारियों की उत्पादकता में क़रीब 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी करती है. इस तरह ग्रीन डिज़ाइन में निवेश करके कंपनियां अपनी सबसे मूल्यवान संपत्ति यानी कर्मचारी से बेहतर मुनाफ़ा हासिल कर सकती हैं.

भारत में ग्रीन इमारतों की ज़रूरत को मज़बूत बनाने वाली एक और महत्वपूर्ण वजह है भारत के पर्यावरण से जुड़ी आर्थिक बहाली में इसकी मुख्य भूमिका. कोविड के बाद इस बात पर एक राय है कि “बेहतर कल बनाया जाए” और अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों में निवेश किया जाए जो रोज़गार उत्पन्न करने के साथ ही पर्यावरण अनुकूल विकास कर सके. ग्रीन इमारत इस लक्ष्य को पूरा करने का एक अच्छा ज़रिया है.

ग्रीन इमारतों को बढ़ावा: सरकार और बैंक के लिए भूमिका

भारत में पर्यावरण अनुकूल कंस्ट्रक्शन सेक्टर में फिलहाल प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और निर्माण के लिए फंड की कमी है. ग्रीन इमारत बनाने में ये सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है और इसके लिए रेगुलेशन की ज़रूरत है. कई सरकारी योजनाओं में इस सेक्टर को शुरुआती प्रोत्साहन मुहैया कराने का महत्वपूर्ण सामर्थ्य है. अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) की तारीफ़ की गई है. साथ ही रोज़गार निर्माण में भी इसकी सराहना की गई है. अगर इस योजना का इस्तेमाल पर्यावरण अनुकूल इमारत बनाने में किया जाए तो ये अर्थव्यवस्था पर और भी सकारात्मक असर डालेगी. पीएमएवाई और इको-निवास संहिता यानी ग्रीन हाउसिंग स्कीम मिलकर देश में ग्रीन रिहायशी इमारतों के सेक्टर को काफ़ी बढ़ावा दे सकती हैं. भारत सरकार ने ग्रीन इमारतों को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की है जैसे ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटैट एसेसमेंट (गृह). इस सिस्टम में आख़िरी लक्ष्य के तौर पर संसाधनों का इस्तेमाल 30 प्रतिशत ही किया जाता है. गृह के तहत सरकार ने ये ज़रूरी कर दिया है कि केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की सभी इमारतें कम-से-कम 3-स्टार रेटिंग हासिल करें.

ग्रीन घर और दफ़्तरों के डिज़ाइन में प्राकृतिक रोशनी का सही इस्तेमाल किया जाता है और कृत्रिम रोशनी का कम-से-कम इस्तेमाल होता है. रिसर्च बताती हैं कि प्राकृतिक रोशनी तनाव के स्तर को कम करने में मदद करती है

राज्य स्तर पर कई राज्य सरकारों ने गृह परियोजनाओं के लिए बढ़ी हुई फ्लोर टू एरिया रेशियो (एफएआर) का वादा किया है जिससे बिल्डर ग्रीन बिल्डिंग बनाकर ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकें. मिसाल के तौर पर, आंध्र प्रदेश सरकार इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) से ग्रीन रेटिंग प्राप्त ग्रीन प्रोजेक्ट को कुल पूंजी निवेश पर 25 प्रतिशत सब्सिडी की पेशकश करती है. अमेरिकी ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (यूएसजीबीसी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, इन प्रोत्साहनों की वजह से तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्य देश में सबसे ज़्यादा ग्रीन इमारतें बनाने में सफल हुए हैं. इन राज्य सरकारों की कामयाबी से पर्यावरण अनुकूल निर्माण को प्रोत्साहन मिला है और दूसरी राज्य सरकारों को भी इनका अनुसरण करने का प्रोत्साहन मिला है. उदाहरण के लिए, कर्नाटक की सरकार ने हाल में ग्रीन स्टैंडर्ड का पालन करने वाली परियोजनाओं के लिए प्रॉपर्टी टैक्स और स्टैंप ड्यूटी में कमी जैसा प्रोत्साहन मुहैया कराने का प्रस्ताव दिया है. इस मामले में कर्नाटक सरकार ने आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और सिक्किम का अनुसरण किया है.

2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक़, 2024-25 तक इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में भारत में 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की ज़रूरत है. सरकार के समर्थन के अलावा ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण के लिए निवेश मुहैया कराने में बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. ग्रीन परियोजना बनाने में वित्तीय समर्थन बहुत बड़ी रुकावट है क्योंकि उनके निर्माण और डिज़ाइन की शुरुआती लागत ज़्यादा होती है. ग्रीन परियोजनाओं में लंबे वक़्त तक निवेश की ज़रूरत होती है और बैंक ग्रीन इमारतों के निर्माण के लिए ग्रीन बॉन्ड जारी कर इस तरह का निवेश मुहैया करा सकते हैं. भारत में एसबीआई, यस बैंक, एग्ज़िम बैंक और एक्सिस बैंक कुछ ऐसे बैंक हैं जो ग्रीन बॉन्ड जारी करते हैं.

अगर इस योजना का इस्तेमाल पर्यावरण अनुकूल इमारत बनाने में किया जाए तो ये अर्थव्यवस्था पर और भी सकारात्मक असर डालेगी. पीएमएवाई और इको-निवास संहिता यानी ग्रीन हाउसिंग स्कीम मिलकर देश में ग्रीन रिहायशी इमारतों के सेक्टर को काफ़ी बढ़ावा दे सकती हैं.

बैंक होम लोन की ब्याज दर को इमारत की ग्रीन रेटिंग के साथ जोड़ सकते हैं. वो बिल्डर को प्रोत्साहन देने के लिए कम ब्याज दर पर कंस्ट्रक्शन लोन की भी पेशकश कर सकते हैं. प्रदर्शन को परखने और क्वालिटी सुनिश्चित करने के लिए भारत में भी सब्सिडी वाले इंश्योरेंस मॉडल की शुरुआत की जा सकती है (चीन के कुछ शहरों में इसे अपनाया गया है). इस मॉडल के तहत, कंस्ट्रक्शन से पहले बिल्डर एक ग्रीन इंश्योरेंस पॉलिसी ख़रीदता है, क्वालिटी का वादा करता है और तय मानकों का पालन करता है. इसके बाद बैंक इंश्योरेंस पॉलिसी के आधार पर ग्रीन क्रेडिट जारी करता है. फिर अगर वादा किए गए मानकों को पूरा नहीं किया जाता है तो पैसा देने या मरम्मत की ज़िम्मेदारी इंश्योरेंस कंपनी की होती है. इस मॉडल के कामयाब होने के लिए सरकार की तरफ़ से सब्सिडी मुहैया कराने और बिल्डर के द्वारा इंश्योरेंस पॉलिसी ख़रीदने के लिए उसे प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है.

निष्कर्ष

कंस्ट्रक्शन उद्योग भारत में सबसे तेज़ी से बढ़ते सेक्टर में से एक है. कंस्ट्रक्शन उद्योग 9.2 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रहा है और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 प्रतिशत का योगदान करता है. इस तरह रिहायशी कंस्ट्रक्शन में बहुत ज़्यादा संभावना है. “सब के लिए घर” कार्यक्रम के तहत 2 करोड़ शहरी और 1 करोड़ ग्रामीण घरों की ज़रूरत है. घर बनाने को लेकर कंपनियां भी ख़ुश हैं. कई कंपनियों ने तो “कार्बन न्यूट्रल” का वादा भी किया है. इसलिए भारत में ग्रीन रिहायशी और व्यावसायिक निर्माण को लेकर बेहद मज़बूत कारोबारी मामला बनता है.

कर्नाटक की सरकार ने हाल में ग्रीन स्टैंडर्ड का पालन करने वाली परियोजनाओं के लिए प्रॉपर्टी टैक्स और स्टैंप ड्यूटी में कमी जैसा प्रोत्साहन मुहैया कराने का प्रस्ताव दिया है. इस मामले में कर्नाटक सरकार ने आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और सिक्किम का अनुसरण किया है.

मौजूदा मंदी को देखते हुए 2030 तक पर्यावरण अनुकूल इमारतें रिन्यूएबल और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 90 लाख हुनरमंद नौकरियां मुहैया कराकर आर्थिक विकास और “बेहतर कल” के विशेषाधिकार का मज़बूत ज़रिया बन सकती हैं. बैंकिंग सेक्टर के साथ सहयोग करके सरकार ग्रीन कंस्ट्रक्शन सेक्टर को प्रोत्साहन मुहैया करा सकती है और इस मामले में भारत को उसका सामर्थ्य हासिल करने में मदद कर सकती है.

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