Published on Sep 25, 2020 Updated 0 Hours ago

जब अमेरिका का राजनीतिक माहौल बेहतर होता है, तो हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियान की कमियों को दूर करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए जाने चाहिए.

अमेरिका में हिंसक आतंकवाद से मुक़ाबला: मुहिम की सरंचना ‘संघीय तंत्र’ के अनुकूल हो

हिंसक आतंकवाद को मुंह तोड़ जवाब देना क्यों ज़रूरी है, इसका जवाब बिल्कुल सपाट है. आतंकवाद से निपटने के लिए जो पारंपरिक तरीक़े अपनाए जाते हैं और जो क़ानूनी ज़रिए हैं, उनसे हिंसक उग्रवाद को सामुदायिक स्तर पर अपनी जड़ें जमाने से नहीं रोका जा सकता है. इसके बजाय, हिंसक उग्रवाद से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति और समाज के हर तबक़े को साथ लेकर चलने के विकल्प पर काम करना ज़रूरी है. तभी हम हिंसा के कारकों का सामना कर सकते हैं. इसी तरीक़े से हिंसक उग्रवाद के व्याख्यानों और दुष्प्रचार का मुक़ाबला किया जा सकता है. इस दृष्टिकोण की ज़रूरत इसलिए है, जिससे कि युवाओं को कट्टरपंथ की ओर झुकाव और दुष्प्रचार का शिकार होने से रोका जा सके. इससे भी अहम बात ये है कि क़ानून और व्यवस्था संभालने के लिए ज़िम्मेदार संस्थाओं के अलावा अगर हम सामुदायिक स्तर पर काम करने वाले लोगों, जैसे कि सामाजिक कार्यकर्ताओं, सामुदायिक नेताओं, नागरिक संगठनों और अध्यापकों को इस मुहिम में शामिल करते हैं, तो इससे क़ानून व्यवस्था संभालने वाली एजेंसियों और अन्य सुरक्षा संगठनों को अपना सारा ध्यान और संसाधन उन व्यक्तियों पर लगाने में मदद मिलेगी, जो पहले ही हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे चुके हैं.

ऊपरी तौर पर देखें तो अमेरिका ने हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ अभियान (CVE) को वैश्विक नेतृत्व प्रदान किया है. अमेरिका की कोशिशों से ही आज दुनिया के तमाम देशों में हिंसक उग्रवाद से निपटने के अच्छे तौर तरीक़े अपनाए जा रहे हैं. तमाम देशों को अमेरिका से दिशा निर्देश मिलते हैं. सैद्धांतिक रूप से अमेरिका का ये अभियान एक ठोस बुनियाद पर खड़ा है. लेकिन, ख़ुद अमेरिका के भीतर हिंसक उग्रवाद से मुक़ाबला करने का इतिहास बेहद उथल-पुथल भरा रहा है.[1] अमेरिका में घरेलू स्तर पर हिंसक उग्रवाद से निपटने के अभियानों को जन समर्थन नहीं मिला है. और इसी कारण से ये अभियान ख़ुद अमेरिका में धारदार शक्ल नहीं अख़्तियार कर सके हैं. यही कारण है कि आज अमेरिका हिंसक उग्रवाद का मुक़ाबला करने में अपने ही सहयोगी देशों से पिछड़ गया है. इसके बावजूद, अमेरिका के पास इस बात का अच्छा अवसर है कि वो हिंसक आतंकवाद से निपटने के अपने इस रिकॉर्ड को बेहतर बना सके. इसके लिए उसे कुछ अच्छी नीतियों पर अमल करना होगा. पर, शर्त ये है कि देश का राजनीतिक माहौल इसकी इजाज़त दे.

ऊपरी तौर पर देखें तो अमेरिका ने हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ अभियान (CVE) को वैश्विक नेतृत्व प्रदान किया है. अमेरिका की कोशिशों से ही आज दुनिया के तमाम देशों में हिंसक उग्रवाद से निपटने के अच्छे तौर तरीक़े अपनाए जा रहे हैं. तमाम देशों को अमेरिका से दिशा निर्देश मिलते हैं.

ओबामा के शासन काल में हिंसक आतंकवाद के विरुद्ध अभियान

हिंसक आतंकवाद के ख़िलाफ़ मुहिम (CVE) की इस परिकल्पना को राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के कार्यकाल के आख़िरी दिनों में तवज्जो मिलने लगी थी. इसे 9/11 के आतंकी हमले के बाद के शुरुआती दिनों में ‘आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध’ (War on Terror) की व्यापक परिभाषा के दायरे में ही रख कर देखा जा रहा था. लेकिन, इस मुहिम को नीतिगत स्तर पर ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल के दूसरे हिस्से  तक अहमियत नहीं मिल रही थी. जब इस्लामिक स्टेट (ISIS) और दूसरे जिहाद संबंधी कट्टरपंथ और आतंकवाद ने अमेरिका की सीमा में दस्तक देनी शुरू की, तब जाकर इस मुहिम को अहमियत मिलनी शुरू हुई. ख़ासतौर से बोस्टन शहर में मैराथन के दौरान हुई बमबारी के बाद.[2]

प्रेसीडेंट ओबामा ने अपने शासन काल के आख़िरी दो वर्षों के दौरान हिंसक आतंकवाद निरोधक मुहिम को लेकर कई गतिविधियों की शुरुआत की थी. हालांकि, इसके मिले-जुले नतीजे ही निकले थे. ओबामा प्रशासन ने हिंसक आतंकवाद निरोध गतिविधियों के तहत एक सम्मेलन भी आयोजित किया गया था. इस दौरान ओबामा प्रशासन ने उन क़दमों की नुमाइश की जो बोस्टन, मिनियापोलिस और लॉस एंजेलेस शहरों में उठाए गए थे. इसके अलावा ओबामा प्रशासन ने घरेलू स्तर पर हिंसक आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए कुछ और क़दम भी उठाए.[3] और, इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों में समन्वय के लिए फेडरल टास्क फोर्स का भी गठन किया गया. जिससे कि इस मुहिम से जुड़ रही तमाम संघीय एजेंसियों के बीच आपस में तालमेल बैठाया जा सके और वो इस अभियान में अधिक से अधिक योगदान दे सकें. इसके अलावा ओबामा प्रशासन ने एक करोड़ डॉलर का एक फंड भी बनाया, जिसके अंतर्गत सामुदायिक स्तर पर हिंसक आतंकवाद से निपटने के जो उपाय किए जा रहे थे, उन्हें आर्थिक मदद भी दी जा सके. इस फंड से अगले दो वर्षों में लगभग 26 सामुदायिक CVE कार्यक्रमों को आर्थिक मदद दी गई. इसके अलावा ओबामा के शासन काल में डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी के अंतर्गत एक कार्यालय भी बनाया गया.[4] इस विशेष कार्यालय का मक़सद था हिंसक आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित समुदायों के बीच आपसी तालमेल क़ायम करना. जिससे कि हिंसक उग्रवाद के भर्ती अभियान की कोशिशों विरोध करने वालों को एकजुट किया जा सके. इसके अलावा अमेरिका के न्याय विभाग ने हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियानों को लेकर रिसर्च को भी बढ़ावा देने का काम शुरू किया.[5] जिससे अधिकारियों को ये पता लग सके कि कौन से उपाय कारगर साबित हो रहे हैं और किन्हें लागू करने में असफलता ही हाथ लगी है. इसके साथ ही साथ नेशनल काउंटर टेररिज़्म सेंटर ने अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर सामुदायिक जागरूकता के प्रयासों को पूरे देश के तमाम समुदायों के बीच जारी रखा. लोगों को समझाया गया कि आतंकवाद से किस तरह के ख़तरे हैं. इसके माध्यम से उन्हें ये बताया गया कि किस तरह से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद हिंसक उग्रवाद को बढ़ावा देने वाले संगठनों में लोगों को भर्ती करने का काम कर रहा है. और किस तरह से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, अमेरिका में लोगों को कट्टरपंथ की ओर धकेल रहा है.[6]

हालांकि, इन अभियानों के पीछे नीयत साफ़ थी. फिर भी ओबामा प्रशासन के हिंसक आतंकवाद निरोधक अभियानों को आम लोगों और उन समुदायों के बीच वो समर्थन हासिल नहीं हुआ, जिनको इस अभियान से सबसे अधिक लाभ होना था. इसके कई कारण थे और जिनका आपस में भी संबंध है. जैसे कि अमेरिका के कुछ मुसलमानों और नागरिक अधिकार संगठनों के बीच ये अवधारणा थी कि भले ही ओबामा प्रशासन ये कह रहा हो कि उसका ये अभियान हर तरह के हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ है. लेकिन, असल में उसका लक्ष्य केवल इस्लामिक स्टेट और अन्य इस्लामिक समूहों द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद को निशाना बनाना ही है. ओबामा प्रशासन के राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों के लिए ये उस समय सबसे अधिक चिंता की बात थी.

इसकी दूसरी वजह ये थी कि हिंसक उग्रवाद के विरुद्ध ये अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित एजेंसियां चला रही थीं और इन्हें संघीय सरकार द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा था. तो, इसमें ग़ैर इरादतन तरीक़े से कई समुदायों को बदनाम किया गया. इससे लोगों में ये संदेश गया कि ये अभियान ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने और क़ानून व्यवस्था की एजेंसियों द्वारा नागरिकों के अधिकारों का हनन करने के लिए एक फ्रंट के तौर पर इस्तेमाल हो रहे हैं. क़ानून और व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार एजेंसियों के इस अभियान से सक्रिय तौर पर जुड़ने से फ़ायदा कम और नुक़सान ज़्यादा ही हुआ.[7]

तीसरी वजह ये थी कि भले ही ओबामा प्रशासन ये मानता था कि हिंसक उग्रवाद से निपटने के ये अभियान स्थानीय स्तर पर चलाए जाने चाहिए और इनकी अगुवाई सामुदायिक संगठनों के हाथ में होनी चाहिए. ताकि वो इससे संबंधित नीतियां और कार्यक्रम बनाने में सक्रिय योगदान दे सकें. लेकिन, सामुदायिक स्तर पर संगठनों की भागीदारी बेहद सीमित रही थी. बहुत से समुदायों ने इसके लिए हिंसक उग्रवाद की रोकथाम (CVE) के नाम का इस्तेमाल करने पर ही ऐतराज़ जताया. उनका कहना था कि सरकार की ओर से इस संदर्भ में जो कार्यक्रम पहले से ही चलाए जा रहे थे, उन्हीं में इन नए प्रयासों को भी शामिल कर लिया जाना चाहिए. जिससे कि वो व्यापक स्थानीय और सामाजिक अभियान का हिस्सा बनें. न कि सुरक्षा एजेंसियों द्वारा हिंसक उग्रवाद की रोकथाम चलाने के अभियान हों. क्योंकि सामुदायिक भागीदारी से ही सामाजिक सद्भाव बनाया जा सकता था.

जब हिंसक उग्रवाद की रोकथाम के इन कार्यक्रमों को सामुदायिक और सामाजिक स्तर पर सहयोग नहीं मिले, तो अमेरिकी संसद ने भी इस अभियान में दिलचस्पी नहीं दिखाई. डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद, CVE के प्रयासों को इस नज़रिए से देखते थे कि इससे अमेरिकी मुसलमानों [8] के नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है और उन्हें जान-बूझकर निशाना बनाया जा रहा है. वहीं, रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों को लगता था कि हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ ओबामा प्रशासन का रवैया कुछ ज़्यादा ही नरम है. और वो राजनीतिक रूप से संतुलन बनाने के लिए कठोर क़दम उठाने से हिचक रहे हैं. रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों का मानना था कि तमाम सबूत होने के बावजूद ओबामा प्रशासन, हिंसक उग्रवाद की समस्या को इस्लामिक कट्टरपंथ [9] के रूप में नहीं देख रहा है. इसके अलावा स्थानीय स्तर पर CVE के बहुत कम ही कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जा रहा था. इसलिए, इसकी सफलता या असफलता का कोई पुराना ट्रैक रिकॉर्ड उपलब्ध ही नहीं था. न ही इस संदर्भ में कोई वायदा किया जा रहा था, जिससे इसे लेकर सशंकित सांसदों को भरोसा दिया जा सके और उन्हें हिंसक उग्रवाद की रोकथाम के लिए किए जा रहे उपायों का समर्थन करने के लिए राज़ी किया जा सके.

डोनाल्ड ट्रंप के शासन काल में हिंसक उग्रवाद विरोधी अभियान

जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए, तो आम तौर पर ये धारणा थी कि अमेरिका का हिंसक उग्रवाद विरोधी ये अभियान ख़त्म हो जाएगा.[10] लेकिन, इस अभियान को काउंटरिंग रेडिकल इस्लामिक एक्सट्रीमिज़्म जैसे नाम में परिवर्तित करने की चर्चा सिर्फ़ अटकलें ही रही. लेकिन, ट्रंप प्रशासन ने CVE के कई ऐसे प्रोजेक्ट्स को फंडिंग रोक दी, जिन्हें ओबामा के शासन काल के आख़िरी दिनों में मंज़ूरी दी गई थी.[11] इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने गृह सुरक्षा विभाग (Department of Homeland Security)की ओर से हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियानों के लिए दी जाने वाली मामूली रक़म भी रोक दी. और CVE प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे कर्मचारियों की संख्या भी घटा दी.[12] यही नहीं, ट्रंप प्रशासन ने तमाम एजेंसियों के बीच इस मुद्दे पर होने वाले तालमेल को भी कमज़ोर कर दिया. पर, इससे भी महत्वपूर्ण बात ये थी कि स्थानीय समुदायों और संघीय सरकार के बीच जो बचा-खुचा विश्वास था वो भी डोनाल्ड ट्रंप के विभाजनकारी और अप्रवासी विरोधी बयानों के चलते कमज़ोर होता गया. जबकि, ज़रूरत इस बात की थी कि हिंसक उग्रवाद के विरुद्ध अभियान को मज़बूत करने के लिए संघीय सरकार और स्थानीय समुदायों के बीच विश्वास को और मज़बूत किया जाता.

लेकिन, ये धारणा भी ग़लत साबित हुई कि इस्लाम विरोधी, विभाजनकारी और अप्रवासी विरोधी ट्रंप प्रशासन के दौरान हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियान की मौत हो जाएगी. कम से कम काग़ज़ पर तो अमेरिकी सरकार का ये अभियान अभी भी जारी है. पहले ओबामा के शासन काल के हिंसक उग्रवाध निरोधक अभियानों की आलोचना करने और उन्हें कमज़ोर करने के बाद ट्रंप प्रशासन ने होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के निर्देश पर रैंड कॉरपोरेशन द्वारा CVE की एक व्यापक समीक्षा की गई. इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंसक उग्रवाद विरोधी अच्छे अभियानों के पैमाने पर कस कर देखा गया. जिसके बाद ट्रंप प्रशासन ने CVE के प्रयासों को एक नई दशा और दिशा देने की कोशिश की. और ऐसा लगा कि अब शायद हिंसक उग्रवाद निरोधक मुहिम को नई दिशा मिलेगी.[13]

ट्रंप के शासन काल में हिंसक उग्रवाद के विरुद्ध इस अभियान का सिर्फ़ नाम ही नहीं बदला. बल्कि, DHS ने आतंकवाद और लक्ष्य आधारित हिंसा को रोकने के लिए ऐसी रणनीति विकसित की जिसका मक़सद, ‘नस्लवादी, जातिवादी और धार्मिकता से प्रेरित हिंसा’ को रोकना था.

पहली बात तो ये हुई कि डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी ने लोगों को दोषी ठहराने वाले हिंसक उग्रवाद विरोधी शब्दों से परहेज़ किया. जिससे कि सामुदायिक स्तर पर लोगों के बीच इसे और स्वीकार्य बनाया जा सके. इसे आतंकवाद और लक्ष्य आधारित हिंसा निरोधक फ्रेमवर्क का नाम दिया गया. टारगेटेड वायलेंस पर ज़ोर देना एक सकारात्मक क़दम था. क्योंकि इससे क़ानून व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार एजेंसियों और नागरिक संगठनों को ये मौक़ा मिला कि वो एक ख़ास समुदाय पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय स्थानीय स्तर पर रणनीति बना सकें. और, तमाम तरह के हिंसक उग्रवाद के ख़तरों और समुदायों की चिंताओं से निपट सकें.

ट्रंप के शासन काल में हिंसक उग्रवाद के विरुद्ध इस अभियान का सिर्फ़ नाम ही नहीं बदला. बल्कि, DHS ने आतंकवाद और लक्ष्य आधारित हिंसा को रोकने के लिए ऐसी रणनीति विकसित की जिसका मक़सद, ‘नस्लवादी, जातिवादी और धार्मिकता से प्रेरित हिंसा’ को रोकना था.[14] और इस नए अभियान के तहत ‘समाज के हर तबक़े’ को शामिल करने पर ज़ोर दिया गया. इसमें क़ानून और व्यवस्था की ज़िम्मेदार एजेंसियों के अलावा अन्य संघीय एजेंसियों और राज्यों व शहरों के प्रशासन को भी भागीदार बनाया गया[15]. इसके अलावा हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ अभियान के इस नए स्वरूप में स्थानीय पेशेवर लोगों और हिंसा रोकने के लिए काम करने वालों, सामाजिक सेवाएं देने वालों या सामुदायिक स्तर पर काम करने वालों को भी शामिल किया गया. ये वो लोग और संगठन थे जो हिंसक उग्रवाद के रास्ते पर चल पड़े लोगों की पहचान कर सकते थे और उन्हें अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते थे.[16]

काग़ज़ी स्तर पर इस प्रगति के बावजूद, ट्रंप प्रशासन ने माना कि उसने इस योजना को लागू करने के लिए और फंड की मांग नहीं की. और, प्रशासन की ओर से बस इस मामले में संसद के ख़ुद की दख़ल देने का इंतज़ार किया जाता रहा. हालांकि, डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी ने CVE के लिए नए कार्यालय की मांग की. और ट्रंप प्रशासन ने इस कार्यक्रम के लिए एक करोड़ डॉलर की नई वित्तीय मदद की मांग की.[17]

एक नए नाम से पुराने की कार्यक्रम को जारी रखने का एलान करने से पहले डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी ने ओबामा के शासन काल में की गई फंड की व्यवस्था की एक समीक्षा की. जिससे कि इस दौरान सीखे गए सबक़ को नए कार्यक्रम का हिस्सा बनाया जा सके.[18]

डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्टोरिटी के इस विश्लेषण के दौरान कई दिलचस्प तथ्य सामने आए. उदाहरण के लिए इस बात का ख़ूब शोर मचाया गया कि क़ानून और व्यवस्था से ताल्लुक़ न रखने वाली एजेंसियों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए. साथ ही साथ सामाजिक, स्वास्थ्य और युवा कार्यकर्ताओं व अध्यापकों को भी हिंसक उग्रवाद के खिलाफ़ मुहिम से जोड़ा जाना चाहिए. इसके अलावा हिंसा और उग्रवाद का रास्ता अपनाने वालों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था या मार्ग भी विकसित किया जाना चाहिए. लेकिन, हिंसक उग्रवाद का मुक़ाबला करने के अधिकतर कार्यक्रमों में सामुदायिक स्तर पर लोगों को जोड़ने, उनको प्रशिक्षित करने और जागरूकता बढ़ाने (रोकथाम का प्राथमिक उपाय) पर सिर्फ़ चर्चा करने पर ही ज़ोर दिया जाता रहा. वास्तविकता में तो इस कार्यक्रम में ऐसे लोगों की संख्या केवल 15 प्रतिशत ही थी. इसके अलावा, पूरे अभियान में कुछ गिने चुने कार्यक्रम ही थे, जो हिंसक उग्रवाद और कट्टरपंथ की ओर झुकाव रखने वाले गिने चुने व्यक्तियों की पहचान करके उनके साथ काम करने की दिशा में आगे बढ़े. जबकि ये एक ऐसा क्षेत्र है, जहां पुलिस, और सामाजिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम करने वालों के बीच में बहुत समन्वय की आवश्यकता है.

अमेरिका में हिंसक उग्रवाद से निपटने के अधिकतर द्वितीयक कार्यक्रम ख़ुद से ही स्थानीय समुदायों के बीच से उभरे हैं. और इनका संचालन गैर सरकारी, और क़ानून व्यवस्था से संबंध न रखने वाली संस्थाएं करती हैं. इनमें डेनवर यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित कोलोराडो रेज़िलिएंस कोलैबोरेटिव और बोस्टन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल द्वारा संचालित, ‘कम्युनिटी कनेक्ट’ कार्यक्रम शामिल हैं. इन कार्यक्रमों के माध्यम से हिंसक उग्रवाद के रास्ते पर चलने वाले लोगों की मनोवैज्ञानिक सामाजिक और अन्य ज़रूरतों को पूरा किए जाने की कोशिश हो रही है.[19] [20]

डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी द्वारा ओबामा के शासन काल में हिंसक उग्रवाद के ख़िलाफ़ चलाए जाने वाले अभियानों की इस समीक्षा से उन कार्यक्रमों के हक़ में बात निकली, जो एक ख़ास तरह के हिंसक उग्रवाद का मुक़ाबला करने के बजाय आतंकवाद से जुड़े जोखिमों के तमाम कारणों का निवारण कर सकें. [21]

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के बारे में रिसर्च में निवेश के बढ़ते चलन का अनुसरण करते हुए DHS ने 3.5 करोड़ डॉलर के फंड की व्यवस्था की, जिसके तहत अगले दस सालों में इस दिशा में रिसर्च को फंड किया जा सके.

DHS ने हिंसक उग्रवाद के विरुद्ध अभियान (या आतंकवाद और लक्ष्य आधारित हिंसा की रोकथाम) को सुधारने को लेकर प्रतिबद्धता जताई. और इसीलिए ओबामा के शासन काल की योजनाओं की समीक्षा से आगे बढ़ कर भी काम किए गए. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के बारे में रिसर्च में निवेश के बढ़ते चलन का अनुसरण करते हुए DHS ने 3.5 करोड़ डॉलर के फंड की व्यवस्था की, जिसके तहत अगले दस सालों में इस दिशा में रिसर्च को फंड किया जा सके. इसके अलावा DHS ने इस बात का पता लगाने पर भी ज़ोर दिया कि इन समस्याओं से निपटने में कौन से क़दम कारगर हैं और कौन से नहीं. इसके लिए नेब्रास्का यूनिवर्सटी में एक सेंटर ऑफ एक्सेलंस की भी शुरुआत की गई.[22]

अमेरिका के हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियान की कमियां

हालांकि, ट्रंप प्रशासन को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने देर से ही सही, मगर अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा के शासन काल में शुरू किए गए हिंसक उग्रवाद निरोध (CVE) अभियान का स्वरूप बदला (भले ही सिर्फ़ नाम और दिशा बदली हो) और इसको असरदार बनाने की कोशिश की. लेकिन, इसमें काफ़ी कमियां फिर भी रह गईं.

उदाहरण के लिए, अभी भी कोई राष्ट्र स्तर का कोई व्यापक फ्रेमवर्क नहीं है. न ही आतंकवाद और लक्ष्य आधारित हिंसा निरोधक कार्यक्रम है. जबकि संयुक्त राष्ट्र लंबे समय से तमाम देशों से ये अपील करता रहा है कि हर देश को एक ऐसे राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम का विकास करना चाहिए.[23] अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ अच्छे प्रयासों का अनुसरण करें, तो पता चलता है कि हिंसक उग्रवाद से निपटने के ऐसे फ्रेमवर्क आम तौर पर अलग अलग राष्ट्रीय एजेंसियों के लिए अलग भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियां तय करते हैं. फिर चाहे वो क़ानून व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार एजेंसियां हों. या फिर, अन्य कार्यों से जुड़ी हुई सरकारी संस्थाएं. जिन देशों में ऐसे फ्रेमवर्क विकसित किए गए हैं, वो धीरे-धीरे हिंसक उग्रवाद निरोधक कार्यक्रमों को भागीदारी वाली व्यवस्था के रूप में परिवर्तित कर रहे हैं. जिसमें स्थानीय और सामुदायिक स्तर पर काम करने वाले और नागरिक संगठन भी अपना योगदान दे सकें.

ट्रंप प्रशासन ने ओबामा के शासन काल की टास्क फोर्स को सुसुप्ता अवस्था में डाल दिया था. जिसके कारण, हिंसक उग्रवाद विरोधी अभियान में संलग्न अलग अलग संघीय एजेंसियों के बीच तालमेल करने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं बची.

इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन ने ओबामा के शासन काल की टास्क फोर्स को सुसुप्ता अवस्था में डाल दिया था. जिसके कारण, हिंसक उग्रवाद विरोधी अभियान में संलग्न अलग अलग संघीय एजेंसियों के बीच तालमेल करने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं बची. [24] जबकि तमाम देशों के अनुभव बताते हैं कि तमाम एजेंसियों के बीच तालमेल के लिए एक केंद्रीय व्यवस्था हिंसक उग्रवाद को रोकने में काफ़ी असरदार साबित होती है. इसका सबसे बड़ा फ़ायदा तो ये होता है कि क़ानून व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों से इतर अन्य संस्थाएं, जैसे कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता और शिक्षा विभाग से जुड़े लोग सरकार और स्थानीय लोगों के बीच संवाद का माध्यम बनते हैं. और ये सब मिलकर हिंसक उग्रवाद से निपटने के अभियान में पूरे देश को लगातार जोड़े रखने का काम करते हैं. इन अलग अलग कारकों की मदद से ही अन्य देशों के CVE अभियानों से सीखने में भी मदद मिलती है. क्योंकि ये पूरे अमेरिकी सरकार के ढांचे से ये अनुभव साझा करते हैं. इसके अलावा ये हिंसक उग्रवाद के विरुद्ध संघर्ष करने वाले देश भर के सभी लोगों से अपने तज़ुर्बे साझा करते हैं.

आपसी समन्वय के प्लेटफॉर्म से इतर, इस विषय में हमें ट्रंप प्रशासन में कोई भी ऐसा व्यक्ति सामने आता नहीं दिखता, जो इन अभियानों को नेतृत्व प्रदान कर सके. कोई ऐसा शख़्स नहीं जो देश को ये सुझा सके कि ट्रंप की सरकार हिंसक उग्रवाद से निपटने और इससे संबंधित अभियानों को लेकर प्रतिबद्ध है. न ही ट्रंप प्रशासन में कोई ऐसा व्यक्ति है, जो इन अभियानों से पूरे समाज को जोड़ने का जज़्बा पैदा कर सके. क्योंकि इसकी ज़रूरत डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी के सामने खड़ी चुनौतियों से साफ़ ज़ाहिर होती है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो हिंसक उग्रवाद विरोधी अभियान अच्छा काम कर रहे हैं, उनमें भी ये देखने को मिलता है कि एक नेतृत्व होने से ये कार्यक्रम ज़्यादा प्रभावी हो जाते हैं. क्योंकि ऐसे नेतृत्व के साथ होने पर क़ानून व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों से इतर अन्य संस्थाएं व सरकारी एजेंसियों की भागीदारी बढ़ जाती है.

कार्यक्रम के स्तर पर देखें, तो अमेरिका अपने सहयोगी देशों के मुक़ाबले, फंड और फोकस दोनों ही मामलों काफ़ी पीछे है. जहां तक फंड की बात है, तो ये कमी रैंड (RAND) कॉरपोरेशन के अध्ययन में साफ़ तौर पर दिखी थी. अगर हम अमेरिका के बराबर ही आतंकवाद का ख़तरा झेल रहे देशों की बात करें, तो अन्य देशों ने अमेरिका के मुक़ाबले हिंसक उग्रवाद से निपटने में काफ़ी अधिक पैसे लगाए हैं.[25] जबकि, फोकस की बात करें तो लगभग हर देश ने हिंसक उग्रवाद से निपटने के लिए व्यापक कार्यक्रम तैयार किया हैं. इसमें प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तर पर रोकथाम के उपाय किए गए हैं. जबकि अमेरिका में बहुत छोटे-छोटे कार्यक्रम हैं, जो प्राथमिक स्तर पर हिंसक उग्रवाद की रोकथाम का काम करते हैं. जैसे कि लोगों को जागरूक करना, उन्हें प्रशिक्षित करना, संवाद करना और ऐसे सरकारी कार्यक्रमों से लोगों को जोड़ना वग़ैरह. और जहां तक द्वितीयक और तृतीय स्तर के हिंसक उग्रवाद निरोध कार्यक्रमों की बात है, तो जैसे कार्यक्रम ऑस्ट्रेलिया[26], कनाडा[27], डेनमार्क[28], नीदरलैंड[29] और ब्रिटेन[30] में चलाए जा रहे हैं, वो अमेरिका में नहीं के बराबर हैं. जबकि सेकेंडरी और टर्शियरी CVE कार्यक्रमों के माध्यम से हिंसक उग्रवाद के शिकार होने के अधिक जोखिम वाले लोगों को हिंसा के रास्ते से दूसरी ओर ले जाते हैं. या फिर ऐसे रास्ते से भटके हुए लोगों (जिनमें आतंकवादी हिंसा को अंजाम देने के दोषी भी शामिल हैं) को पुनर्स्थापित करने और उन्हें समाज से फिर से जोड़ने के लिए ऐसे कार्यक्रम भी बेहद ज़रूरी हैं.

और आख़िर में जो शायद सबसे महत्वपूर्ण है, वो ये कि जिन स्थानीय समुदायों के बीच हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियानों को चलाया जाता है, जिन्हें इन अभियानों से फ़ायदा होता है, उनके और सरकार की तमाम संस्थाओं के बीच भरोसे की भारी कमी होती है. और इसकी शुरुआत क़ानून व्यवस्था से जुड़ी स्थानीय एजेंसियों से होती है. हिंसक उग्रवाद से निपटने के किसी भी अभियान या नीति की बुनियादी शर्त भरोसा ही होती है. ये भरोसा ट्रंप प्रशासन के दौर में और भी कमज़ोर हो गया है. इसके कई कारण हो सकते हैं. इनमें पुलिस द्वारा अश्वेत नागरिकों से की जाने वाली हिंसा और उससे पैदा हुई सामाजिक उथल पुथल भी शामिल है. इसकी एक वजह ये भी है कि आज अमेरिका में ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिनके बड़बोले बयान अक्सर तमाम समुदायों के बीच दरार को बढ़ाते हैं. न कि वो देश के अलग अलग समुदायों को जोड़ते हैं. प्रेसीडेंट ट्रंप न तो देश में बढ़ती दक्षिणपंथी उग्रवादी हिंसा की खुलकर आलोचना करने के लिए तैयार हैं. और न ही वो नागरिकों के बीच बढ़ती नफ़रत को कम करना चाहते हैं. ऐसे में उनसे ये अपेक्षा करना भी बेमानी है कि वो हिंसक उग्रवाद के खिलाफ सरकार के अभियान में समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने का काम करेंगे. ट्रंप के ऐसे भड़काऊ बयानों का ही नतीजा है कि डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी ने CVE अभियानों का नया नामकरण करके ज़रिए जो थोड़ी बहुत सफलता पाने की कोशिश भी की थी, वो भी असफल साबित हुई. क्योंकि DHS ने हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियानों के निशाने पर दक्षिणपंथी उग्रवाद और ग़ैर इस्लामिक उग्रवादी हिंसा को भी निशाना बनाने की कोशिश की थी. गृह विभाग ने हिंसक उग्रवाद विरोधी अभियानों के पहले चरण से सबक़ लेते हुए जो दूसरा दौर शुरू किया था, वो भी असरदार साबित नहीं हो सका.

भविष्य के लिए उम्मीद

इस समय अमेरिका का जो राजनीतिक माहौल है, उसमें हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियान (CVE) से जुड़ी कमियों को दूर करने की गुंजाइश नहीं दिखती. कम से कम तब तक तो बिल्कुल नहीं, जब तक डोनाल्ड ट्रंप देश के राष्ट्रपति हैं. और ये बात तब और चिंताजनक हो जाती है, जब हम देखते हैं कि उग्रवादी हिंसा में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है, ख़ासतौर से श्वेत दक्षिणपंथियों की ओर से. ऐसे माहौल में सबसे ज़्यादा ज़रूरत इसी बात की है कि कट्टरपंथी हिंसा को रोकने के लिए एक असरदार व्यवस्था का निर्माण किया जाए.

हालांकि, जब अमेरिका का राजनीतिक माहौल बेहतर होता है, तो हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियान की कमियों को दूर करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए जाने चाहिए. इसके लिए अन्य देशों के अच्छे अनुभवों और सबक़ की मदद लेना चाहिए. साथ ही साथ ख़ुद अमेरिका में हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियानों के उठा-पटक भरे अनुभव से भी सीखना चाहिए.

पहली बात तो ये है कि संघीय सरकार (जिसमें केवल डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी ही शामिल न हो) को चाहिए कि वो हर तरह की उग्रवादी हिंसा से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति बनाए. और इस रणनीति में श्वेत कट्टरपंथियों द्वारा की जाने वाली हिंसा और अन्य दक्षिणपंथी हिंसा से निपटने की कोशिशों को भी शामिल किया जाना चाहिए. क्योंकि, हाल के वर्षों में अमेरिका में इन्हीं वजहों से सबसे अधिक मौतें हुई हैं.[31] संघीय सरकार द्वारा जो नया फ्रेमवर्क बनाया जाए, उसे अलग अलग ज़रूरतों की पूर्ति और देश भर के अलग अलग समुदायों की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाना चाहिए. इसमें लोगों की निजता और अन्य मानव अधिकारों का सम्मान करने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. इस फ्रेमवर्क में सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका को पूरी तरह से स्पष्ट किया जाना चाहिए. और ऐसे लोगों को चिह्नित किया जाना चाहिए जिनकी हौसला अफ़ज़ाई करनी है. जिन लोगों की मदद लेकर, इस फ्रेमवर्क को लागू किया जाना है.

हालांकि, अमेरिका की संघीय सरकार को एक रणनीति विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए. लेकिन, इसे ऊपर से निचले स्तर तक निर्देशित करने की भूमिका अपनाने से बचना चाहिए. इसके बजाय संघीय सरकार को चाहिए कि वो राज्य सरकारों, स्थानीय प्रशासन और सामुदायिक साझेदारों को इसमें पूरा योगदान करने का मौक़ा दे. इस प्रक्रिया में संघीय सरकार की भूमिका अग्रणी होनी चाहिए. न कि किसी संघीय एजेंसी के नेतृत्व में ये अभियान चलाया जाए. अगर सरकार स्वयं हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियान का नेतृत्व करेगी, तो इससे पूरी सरकारी व्यवस्था, इस कार्यक्रम को सफल बनाने की कोशिश करेगी. और इससे पूरे कार्यक्रम को केवल क़ानून व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार संस्थाओं के भरोसे छोड़ देने से भी बचा जा सकेगा. क्योंकि अब तक अमेरिका का हिंसक उग्रवाद से निपटने का अभियान क़ानून और व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों के नेतृत्व में ही चलाया जाता रहा है.

हिंसक उग्रवाद निरोधक कार्यक्रम में ऊपर नीचे और दाएं-बाएं यानी चहुंमुखी सहयोग को सुधारने के साथ-साथ एक ऐसी व्यवस्था भी बनायी जानी चाहिए, जिससे कि ये कार्यक्रम लागू करने वालों की जवाबदेही सुनिश्चित हो. इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए जो क़दम उठाए जाएं, वो भेदभाव वाले न हों.

दूसरी बात ये है कि केवल ओबामा के शासन काल के हिंसक उग्रवाद निरोधक टास्क फ़ोर्स का पुनर्गठन करने भर से काम नहीं चलने वाला. अमेरिका की संघीय सरकार को चाहिए कि इस टास्क फोर्स का नेतृत्व क़ानून व्यवस्था की एजेंसी के साथ-साथ एक ऐसी एजेंसी के पास हो, जिसके पास क़ानून व्यवस्था की ज़िम्मेदारी न हो. जैसे कि डिपार्टमेंट ऑफ़ हेल्थ ऐंड ह्यूमन सर्विसेज (HHS). ये इसलिए और भी ज़रूरी है कि डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी का अब तक का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद ख़राब रहा है. ख़ासतौर से ट्रंप प्रशासन के दौर में तो इस विभाग ने बच्चों को पिंजरों में क़ैद करने और अमेरिका के शहरों पर क़ब्ज़ा करने के लिए अर्धसैनिक बल भेजने जैसे काम किए हैं. इसीलिए, हिंसक उग्रवाद निरोधक कार्यक्रम में ग़ैर संघीय संगठनों और संस्थाओं की स्थायी स्तर पर भूमिका होनी चाहिए. जैसे कि शहरी प्रशासन और स्थानीय सामुदायिक समूहों की भागीदारी.

हिंसक उग्रवाद निरोधक कार्यक्रम में ऊपर नीचे और दाएं-बाएं यानी चहुंमुखी सहयोग को सुधारने के साथ-साथ एक ऐसी व्यवस्था भी बनायी जानी चाहिए, जिससे कि ये कार्यक्रम लागू करने वालों की जवाबदेही सुनिश्चित हो. इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए जो क़दम उठाए जाएं, वो भेदभाव वाले न हों. अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार नियमों का पालन करने वाले हों. जो लोगों की उम्र और लिंग के प्रति संवेदनशील हों. फिर, ऐसे कार्यक्रमों की स्वतंत्र रूप से निगरानी और मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए.

तीसरा क़दम ये होना चाहिए कि संघीय सरकार को चाहिए कि वो संघीय वित्तीय मदद के ऐसे कार्यक्रम संचालित करे, जिससे उग्रवादी हिंसा के ख़तरों से निपटने के मद में होने वाले व्यय (20 करोड़ डॉलर प्रति वर्ष) के अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर उग्रवाद निरोध के प्रयासों को प्रोत्साहित करे. ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा दे, जो समुदायों और नागरिक संगठनों द्वारा संचालित किए जाएं. क्योंकि ऐसे कार्यक्रम स्थानीय ख़तरों और चिंताओं से निपटने के लिए विशेष तौर पर तैयार किए जाएंगे. इनके अंतर्गत पुलिस की भागीदारी और सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. जिसमें सामाजिक, युवा और स्वास्थ्य कार्यकर्ता, अध्यापक और सामुदायिक नेताओं को शामिल किया जाए. चूंकि डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी के नेतृत्व में चलने वाले हिंसक उग्रवाद निरोधक अभियानों को लेकर विवाद उठते रहे हैं. और डोनाल्ड ट्रंप के शासन काल में ये विवाद और बढ़े ही हैं. ऐसे में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के नेतृत्व में चलाए जाने वाले ऐसे निरोधक अभियानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जो समुदायों को कलंकित करने के बजाय उन्हें हिंसक उग्रवाद की चुनौतियों से निपटने में मदद करें. इसके अलावा स्थानीय भागीदारों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए. क्योंकि ये स्थानीय भागीदार, डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी द्वारा संचालित CVE कार्यक्रमों में भागीदार बनने से परहेज़ करते रहे हैं. इसलिए DHS के बजाय डिपार्टमेंट ऑफ़ हेल्थ ऐंड ह्यूमन सिक्योरिटी (HHS) जैसी संस्था इनकी अगुवाई करे. जिसका संबंध क़ानून व्यवस्था संबंधी ज़िम्मेदारी से न हो.

चौथी बात ये कि इस मद में जो फंड तय किया जाए, उसके एक बड़े हिस्से को सामुदायिक स्तर पर निरोधक और रोकथाम संबंधी कार्यक्रम का संचालन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं, मनोचिकित्सकों, स्कूल प्रबंधकों और सामुदायिक वकीलों व समुदाय आधारित संगठनों और क़ानून व्यवस्था से जुड़े लोगों की टीम बनाने में इस्तेमाल किया जाना चाहिए.[32] इन टीमों पर उन परिवारों और व्यक्तियों का भरोसा अधिक होगा, जो ऐसा बर्ताव करने लगते हैं जिससे पता चल जाता है कि वो हिंसा के पथ की ओर अग्रसर हो रहे हैं.[33] इससे अपराध होने से पहले ही इन लोगों को रोका जा सकेगा. एक प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्यकर्मी और पेशेवर की दख़लंदाज़ी से आगे चलकर होने वाली हिंसा को रोका जा सकता है.[34]

और आख़िर में इन सभी बातों को बढ़ावा देने के लिए ख़ुद राष्ट्रपति की ओर से एक साफ़ और सीधा संदेश दिया जाना चाहिए. और इसमें संघीय सरकार के सभी अंगों की भागीदारी होनी चाहिए. इन सब को मिलकर हर तरह की उग्रवादी हिंसा की निंदा करनी चाहिए. और इस बात के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करनी चाहिए कि वो समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलेंगे. और लोगों के नागरिक अधिकारों का सम्मान और उनकी सुरक्षा करेंगे. और ऐसी नीतियों के अनुसार ही उन समुदायों से व्यवहार करेंगे जो हिंसक उग्रवाद से सबसे अधिक प्रभावित हैं.


Endnotes:

[1] Global Counterterrorism Forum, Ankara Memorandum Good Practices for a Multi-Sectoral Approach to Countering Violent Extremism, September 2013.

[2]Washington Institute for Near East Policy, “Defeating Ideologically Inspired Violent Extremism: A Strategy to Build Strong Communities and Protect the U.S. Homeland,” March 2017.

[3]Office of the Press Secretary, The White House, “Fact Sheet: The White House Summit on Countering Violent Extremism,” February 18, 2015.

[4]Eric Rosand, “Fixing CVE in the United States Requires More than a Name Change, Order from Chaos, Brookings, February 16, 2017.

[5]National Institute of Justice, US Department of Justice, “Research and Evaluation on Domestic Radicalization to Violent Extremism Eligibility,” March 12, 2014.

[6]Matthew Levitt, “Defeating Ideologically Inspired Violent Extremism: A Strategy to Build Strong Communities and Protect the U.S. Homeland, Washington Institute for Near East Policy, March 2017.

[7]Murtaza Hussain, “Federal ‘Countering Violent Extremism’ Grants Focus on Minority Communities – Including in Schools, The Intercept, June 15, 2018.

[8]Ryan B. Greer and George Selim, “Reframing Prevention: If Government Won’t Lead, Civil Society Must Step Up to Curb Extremism, Just Security, December 10, 2018.

[9]Eric Rosand, “Congress Needs a Bi-Partisan Panel on Violent Extremism Now, The Hill, August 16, 2017.

[10]Yasmin Faruki, “CVE Was Doomed to Fail. Under Trump, It Will Get Worse”, Small Wars Journal, 21 February, 2017.

[11]Peter Beinart, “Trump Shut Programs to Counter Violent Extremism The Atlantic, October 29, 2018.

[12]Julia Edwards Ainsley, “White House budget slashes ‘countering violent extremism’ grants”, Reuters, May 23, 2019.

[13]Brian A Jackson, Ashley L Rhoades, Jordan R Reimer, Natasha Lander, Katherine  Costello, and Sina Beaghley, “Practical Terrorism Prevention: Reexamining U.S. National Approaches to Addressing the Threat of Ideologically Motivated Violence”. Homeland Security Operational Analysis Center operated by the RAND Corporation, 2019.

[14] Eric Rosand and Stevan Weine, “On CVE, the Trump administration could have been worse but it’s still not good enough, Order from Chaos, Brookings, April 7, 2020.

[15]U.S. Department of Homeland Security, “Strategic Framework for Countering Terrorism and Targeted Violence,” September 2019.

[16] Ibid.

[17]U.S. Department of Homeland Security, “FY 2021 Budget Request: DHS Targeted Violence and Terrorism Prevention and Protection + $80 Million in Program,” Fact Sheet, February 10, 2020, Enhancements.

[18]U.S. Department of Homeland Security, Office of Terrorism and Targeted Violence Prevention, “Fiscal Year 2016 Countering Violent Extremism Grant Program – Preliminary Report on Programmatic Performance”, Office for Targeted Violence and Terrorism Prevention, U.S. Department of Homeland Security, March 26, 2020.

[19] Colorado Resilience Collaborative, “Fighting Targeted Violence”, Graduate School of Professional Psychology, University of Denver.

[20] Eric Rosand, “Multi-Disciplinary & Multi-Agency Approaches to Preventing & Countering Violent Extremism : An Emerging P/CVE Success Story?”, Global Terrorism Index 2018, December 13, 2018.

[21] U.S. Department of Homeland Security, “Countering Violent Extremism Grant Program Preliminary Report,” at 29.

[22] DHS Selects the University of Nebraska Omaha to Lead Center of Excellence for Terrorism Prevention and Counterterrorism Research,” Security Magazine, February 25, 2020.

[23] Guidelines & Good Practices: Developing National P/CVE Strategies & Action Plans”, Hedayah Center, January 1, 2016.

[24] United Nations Office of Counter-Terrorism, “Developing National and Regional Action Plans to Prevent Violent Extremism: 1st Edition”, September 2018.

[25] “Practical Terrorism Prevention”

[26] Department of Home Affairs, Government of Australia, “Countering violent extremism (CVE) intervention programs“.

[27] Public Safety Canada, Government of Canada, “Intervention Programs in Canada”.

[28] European Commission Radicalization Awareness Network, “Collection of Aspiring Practices: Aarhus model: Prevention of Radicalisation and Discrimination in Aarhus”.

[29] EU Reducing Reoffending Project, “Safety House Model – The Netherlands”.

[30] Government of the United Kingdom, “Case study: The Channel programme,”.

[31] Seth G. Jones, Catrina Doxsee, and Nicholas Harrington, “The Escalating Terrorism Problem in the United States,” Center for International and Strategic Studies, June 2020.

[32] Stevan Weine and Eric Rosand, “To Avoid Future ‘El Pasos’ It’s Time to Invest in Prevention,” Just Security, August, 7, 2019.

[33] Bishop Garrison and Ryan B. Greer, “New Zealand Attacks: A Wake-Up Call to Counter Far-Right Extremist Violence, Just Security, March 15, 2019.

[34] Stevan Weine, David P. Eisenman, La Tina Jackson, Janni Kinsler & Chloe Polutnik, “Utilizing mental health professionals to help prevent the next attacks,” International Review of Psychiatry, 29:4 (2017), 334-340, DOI: 10.1080/09540261.2017.1343533.

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