Author : Neeraj Singh

Published on Dec 29, 2021 Updated 0 Hours ago

सर्दियों में होने वाले वायु प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं. अब इस बात को सब स्वीकार भी कर रहे हैं. ख़राब हवा के प्रभाव कई राज्यों में महसूस किए जा रहे हैं.

उत्तर भारत में वायु प्रदूषण से मुक़ाबला: सहकारी संघवाद से जीत होगी पक्की

इस सर्द मौसम में पूरा उत्तर भारत वायु प्रदूषण (Air Pollution) की चपेट में है. हवा में मौजूद ये ज़हरीला धुआं उत्तर भारत से फैलते-फैलते पश्चिम बंगाल (West Bengal) तक पहुंच गया है. इस भीषण संकट पर गरमागरम बहस का दौर भी जारी है. वैसे कुछ साल पहले तक वायु प्रदूषण को लेकर मचने वाली तमाम हायतौबा का केंद्र सिर्फ़ राजधानी दिल्ली (New Delhi) हुआ करती थी. हालांकि अब हरियाणाउत्तर प्रदेशपंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में वायु प्रदूषण के हालात भी चर्चा का विषय बन गए हैं.  

सर्दियों में होने वाले वायु प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं. अब इस बात को सब स्वीकार भी कर रहे हैं. ख़राब हवा के प्रभाव कई राज्यों में महसूस किए जा रहे हैं. प्रदूषण के पीछे मौसम से जुड़े कारकों में देश के पूर्वी हिस्से में तैयार हो रही ला नीना और प्रतिचक्रवातीय अवस्थाएं भी शामिल हैं. इनके अलावा हवा के बहाव की दिशा और उत्तर भारत में कोहरे और धुंध के प्रभाव के चलते वायु प्रदूषण का एक बड़े इलाक़े में विस्तार हो जाता है. 

राज्यों के बीच की रस्साकशी में आपसी तालमेल के ज़रिए इस संकट से मिलजुलकर निपटने का लक्ष्य पीछे छूट गया है. 

वायु प्रदूषण से जुड़े संकट

वायु प्रदूषण से जुड़े संकट के ऐसे मिज़ाज के चलते सबके तालमेल वाला रुख़ आज वक़्त की मांग है. अतीत में दिल्ली और आसपास के राज्य इस संकट से निपटने के लिए आपसी सहयोग से आगे बढ़ने की कोशिशें करते रहे हैं. हालांकि अब तक ऐसी क़वायद सिर्फ़ आरोप-प्रत्यारोप और एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने तक ही सिमट कर रह गई थी. राज्यों के बीच की रस्साकशी में आपसी तालमेल के ज़रिए इस संकट से मिलजुलकर निपटने का लक्ष्य पीछे छूट गया है.

बहरहाल ख़राब हवा की समस्या से समग्र रूप से और आपसी सहयोग के माहौल में निपटने के लिए इस साल भारत की संसद ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के इलाक़ों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ विधेयक, 2021 को मंज़ूरी दे दी. इस क़ानून में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उसके नज़दीकी इलाक़ों में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के मकसद से ज़रूरी प्रबंधननिगरानी और आवश्यक क़दम उठाने के लिए एक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है. इस आयोग को आम तौर पर वायु प्रदूषण आयोग के नाम से जाना जाने लगा है. कुछ अर्सा पहले ही इसका गठन किया गया है. ये वायु प्रदूषण के स्रोत पर क़ाबू पाने के लिए निर्माण कार्यों पर पाबंदी समेत अनेक सख़्त क़दमों की सिफ़ारिश कर चुका है. 

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इसके कारणों, प्रभावों और असर से जुड़ी सभी जटिलताओं को ध्यान में रखना होगा. इसके लिए राज्यों के बीच रणनीतिक गठजोड़ तैयार करना होगा. 

पिछले कुछ वर्षों में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ने वायु प्रदूषण के मुद्दे को बेहद गंभीरता से लिया है. भारतीय राजसत्ता के ये तीनों ही अंग सर्दियों में भयावह रूप ले लेने वाले वायु प्रदूषण और उसके कुप्रभावों की रोकथाम के ठोस उपाय ढूंढने की जद्दोजहद में लगे हैं. फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए सभी राज्य सरकारों को कई ख़ास उपायों का पालन करने को कहा है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए एनफ़ोर्समेंट टास्क फ़ोर्स के गठन का भी निर्देश दिया है. वायु गुणवत्ता आयोग के निर्देशों पर अमल करने में राज्य सरकारों के नाकाम रहने की सूरत में प्रदूषण पर क़ाबू पाने से जुड़े उपायों के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी इसी टास्क फ़ोर्स पर होगी.

कई संस्थाओं ने शुरु की कवायद

इन घटनाक्रमों से कई दिलचस्प पहलू सामने आते हैं. दरअसल मौजूदा परिस्थितियां बेहद ख़ास हैं. प्रदूषण से निपटने के लिए न्यायपालिका, कार्यपालिका, प्रशासनिक समितियां और विधायिका अपना बेशक़ीमती वक़्त और संसाधन खपा रही हैं. हालांकि इसके बावजूद ज़मीन पर उम्मीद के मुताबिक नतीजे देखने को नहीं मिल रहे हैं. इस नाकामी के पीछे इन तमाम संस्थाओं के नामुनासिब बर्ताव को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. दरअसल प्रदूषण की समस्या जटिल और दीर्घकालिक है. न्यायपालिका समेत तमाम दूसरी संस्थाएं केवल फ़ौरी तौर पर इस संकट से निपटने की क़वायद कर रही हैं. इस सिलसिले में हम निर्माण कार्यों पर रोक से जुड़े फ़ैसले या केंद्र और राज्य सरकारों को हाल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश की मिसाल ले सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने तमाम सरकारों से औद्योगिक इकाइयों को पाइप्ड नैचुरल गैस (पीएनजी) या दूसरे स्वच्छ ईंधनों के ज़रिए संचालित किए जाने से जुड़ा प्रस्ताव पेश करने को कहा है. हालांकि ऐसी क़वायदों का इस पूरी प्रक्रिया से जुड़े तमाम किरदारों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. हो सकता है कि ऐसे निर्देश जारी करते वक़्त सभी संबंधित पक्षों की चिंताओं को ठीक तरह से समझा ही नहीं गया हो.   

दरअसल वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इसके कारणों, प्रभावों और असर से जुड़ी सभी जटिलताओं को ध्यान में रखना होगा. इसके लिए राज्यों के बीच रणनीतिक गठजोड़ तैयार करना होगा. इस मसले पर आगे बढ़ने का यही सबसे सटीक तरीक़ा हो सकता है. इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए सहकारी संघवाद की भावना के साथ आगे बढ़ना होगा. साथ ही नीतियों और कार्रवाइयों को आगे बढ़ाने के लिए मज़बूत नेतृत्व की भी दरकार होगी.

दिल्ली के अलावा बाक़ी शहरों में हवा की गुणवत्ता से जुड़े सूचकांक में दिल्ली से भी ख़राब स्तर की गुणवत्ता दर्ज की जा रही है.

   

जवाबदेही वाला तंत्र हो

इस दिशा में एक बहुपक्षीय क्षेत्रीय सहयोग मंच (multi-stakeholder regional cooperation forum) के गठन से आगे की राह मिल सकती है. इस फ़ोरम का मकसद विभिन्न विशेषज्ञ समूहों और आधिकारिक संस्थाओं द्वारा पहले से किए गए कार्यों को आगे बढ़ाते हुए ज़रूरी नियमन के हिसाब से और टेक्नोलॉजी पर आधारित प्रशासनिक समाधान प्रस्तुत करना होना चाहिए. साथ ही योजनाओं को प्रभावी तौर पर अमल में लानेउनकी निगरानी करने और ज़रूरी फ़ीडबैक हासिल करने के लिए अंदरुनी तौर पर जवाबदेही वाला तंत्र भी इससे जुड़ा होना चाहिए. ऐसे क्षेत्रीय सहयोग मंच में तमाम दूसरे प्रतिनिधियों के साथ-साथ शिक्षा जगतप्रदूषण नियंत्रण बोर्डोंराज्यों की अफ़सरशाहीस्थानीय प्रशासनस्वास्थ्य विशेषज्ञों, उद्योग जगत के प्रतिनिधियोंकामगार संघोंपर्यावरण कार्यकर्ताओं, जलवायु विशेषज्ञों और अनुपालन कराने वाली एजेंसियों से जुड़े लोगों को शामिल किया जाना चाहिए. दरअसल वायु प्रदूषण के पीछे की वजहों और फ़ौरी तौर पर सामने लाए जाने वाले समाधानों के संभावित अनपेक्षित नतीजों के बीच के बेहद पेचीदा जुड़ावों की पड़ताल के लिए इस तरह की क़वायद निहायत ज़रूरी है.  

सहकारी संघवाद के ढांचे को प्रभावी तौर पर ज़मीन पर उतारने में उत्तर प्रदेश अगुवा की भूमिका निभा सकता है. भौगोलिक रूप से विशाल और प्रशासनिक और राजनीतिक तौर पर समृद्ध उत्तर प्रदेश राज्य वायु प्रदूषण के मोर्चे पर उम्मीद के मुताबिक बदलाव लाने की दिशा में नेतृत्वकारी पहल कर सकता है.  

ये बात बेहद महत्वपूर्ण है. दरअसल दिल्ली के अलावा बाक़ी शहरों में हवा की गुणवत्ता से जुड़े सूचकांक में दिल्ली से भी ख़राब स्तर की गुणवत्ता दर्ज की जा रही है. पिछले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश के सीतापुरमेरठमुज़फ़्फ़रनगरबुलंदशहर और नोएडा जैसे शहरों में हवा की गुणवत्ता का सूचकांक (AQI) 350 या उससे भी ऊपर दर्ज किया जाता रहा है. हवा की गुणवत्ता का ये स्तर स्वास्थ्य के लिहाज़ से बेहद नुकसानदेह माना जाता है. कई मौक़ों पर इन शहरों में AQI का स्तर 400 के भी पार चला गया है. इसे ख़तरनाक’ की श्रेणी में रखा जाता है. इसी तरह बाक़ी राज्यों के भी कई शहरों में वायु प्रदूषण के बेहद ऊंचे स्तर रिकॉर्ड किए जाते रहे हैं.    

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पहले से ही कई संस्थाएंटास्क फ़ोर्स और आयोग मौजूद हैं. ऐसे में इस पूरी क़वायद का मकसद सिर्फ़ एक और प्राधिकरण का गठन करना नहीं होना चाहिए. दरअसल वायु प्रदूषण से जुड़े मसले से निपटने के लिए एक समग्र और कार्य-आधारित समाधान मुहैया कराने वाले तंत्र की दरकार है. इस सिलसिले में तमाम संबंधित राज्यों के प्राधिकरणों की ऊर्जाओं और संसाधनों का मिल-जुलकर इस्तेमाल करने की ज़रूरत है.

समाधान के लिए एक व्यापक ढांचा

वायु प्रदूषण से जुड़ी समस्या के समाधान के तौर-तरीक़े तैयार करने के लिए बहुपक्षीय क्षेत्रीय सहयोग मंच एक साधारण कार्यकारी ढांचा अपना सकता है. इस सिलसिले में तमाम राज्यों के विभिन्न संबंधित किरदारों के ज्ञान और तजुर्बों को इकट्ठा कर वायु प्रदूषण पर निगरानी के सर्वोत्तम तौर-तरीक़ों की पहचान की जा सकती है. इतना ही नहीं ये मंच किसी ख़ास इलाक़े में वायु प्रदूषण की समस्या के स्थानीय कारणों और प्रभावों की पहचान करने में भी मददगार साबित हो सकता है. इन कारणों और प्रभावों की बुनियाद पर विभिन्न परिस्थितियों में कार्य-आधारित समाधान तैयार करने के लिए ये फ़ोरम एक व्यापक ढांचा मुहैया करा सकता है. ये फ़ोरम स्थानीय अनुपालन और निगरानी एजेंसियों के लिए क्षमता निर्माण से जुड़ी कार्यशालाओं के आयोजन से जुड़ी क़वायद में भी मदद कर सकता है.

वैसे तमाम राज्यों में प्रदूषण के कारण मोटे तौर पर एक जैसे ही हैं. इनमें औद्योगिक प्रदूषण, वाहनों से निकलता धुआं, पराली का जलाया जाना और निर्माण कार्यों से जुड़ा प्रदूषण शामिल हैं. इसके अलावा इन तमाम शहरों में प्रदूषण के कुछ स्थानीय कारक भी मौजूद हैं. इन वास्तविकताओं से निपटने के लिए उन्हीं के हिसाब से तैयार किए गए समाधानों (customised solutions) की ज़रूरत होती है. सबके लिए एक जैसे समाधान की नीति (one-size-fits-all approach) कारगर नहीं हो सकती. लिहाज़ा क्षेत्रीय सहयोग मंच में स्थानीय और शहरी स्तर के प्रशासनिक अमले के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना ज़रूरी है. इससे समाधानों को प्रभावी तौर पर अमल में लाने की क़वायद को रफ़्तार दी जा सकेगी. साथ ही तमाम ज़रूरी कार्रवाइयों के लिए आवश्यक ढांचा भी हासिल हो सकेगा.  

यक़ीनन वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने और उसकी रोकथाम करने के लिए सहकारी संघवाद की भावना राज्यों को अमल में लाने योग्य समाधान और ज़रूरी तौर-तरीक़े ढूंढने की काबिलियत मुहैया करा सकते हैं. उत्तर प्रदेश ने कई क्षेत्रों में अपनी मिसाल कायम की है. ऐसे में वायु प्रदूषण के मसले पर भी उत्तर प्रदेश का मज़बूत नेतृत्व प्रभावी रूप से तमाम समाधानों के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक साधन और तौर-तरीक़ों से जुड़ा अहम सहयोग उपलब्ध करा सकता है.

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