Author : Ramanath Jha

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

वित्तीय और प्रशासनिक पहलुओं का ध्यान रखते हुए इन धरोहरों के संग्रहण हेतु, धरोहरों की लिस्ट का संग्रह किए जाने की जरूरत है. 

शहरी धरोहर और इनके रखरखाव की त्रुटिपूर्ण रणनीतियाँ
शहरी धरोहर और इनके रखरखाव की त्रुटिपूर्ण रणनीतियाँ

भारत, एक प्राचीन और ज़िंदादील सभ्यता हैं, जो कि अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिपूर्ण हैं. उसकी विविधता भी समान रूप से विशाल है, जहां उन्होंने अपनी विरासत की विविधता को हजारों वर्ष से आत्मसात किया है. यह समृद्धि उनके मूर्त विरासत के रूप में – पुरातात्विक स्थलों, स्मारकों, परिदृश्य, कलाकृतियाँ और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण अन्य अमूर्त स्मारकों एवं विरासत जैसे – भाषा, संगीत, पर्व, नृत्य, सामाजिक प्रथाओं, और रिवाज़ जैसे रूप में – दिखाई देती हैं.

भारतीय संविधान में इसका ज़िक्र 

 

भारतीय संविधान सभी राज्यों को ये जिम्मेदारी देती है कि वे अपने राज्य की विरासत की रक्षा करें. आर्टिकल 49 कहती है, “ ये सभी राज्यों की जिम्मेदारी बनती हैं कि वे सभी स्मारकों अथवा स्थानों या कला की कोई धरोहर (न्यायपालिका द्वारा अथवा देश के संसद द्वारा घोषित) या ऐतिहासिक महत्व की चीजों, के बिगड़ने, विरूपण अथवा विनाश होने, हटाए जाने, नष्ट या फिर निर्यातीत किए जाने से उसके बचाव की व्यवस्था करे.” आर्टिकल 51 ए (एफ) इन जिम्मेवारियों को और विस्तृत करते हुए सभी नागरिकों को इन विरासत की रक्षा में योगदान देने को प्रोत्साहित करती हैं. वो कहती हैं: “ये भारत के सभी नागरिकों की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे हमारे समग्र संस्कृति को महत्व दें; और (जी) और प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें वन, झील, नदी और वन्य जीवन की रक्षा करें, और सभी जीवित प्राणी के प्रति सहिष्णु बने.” 

धरोहरों के महत्व के आधार पर, अमूमन ग्रेडिंग सिस्टम द्वारा ग्रेड 1, ग्रेड 2 और ग्रेड 3 ढांचों में बांटा गया हैं. ये वही स्थानीय धरोहरों की लिस्ट और उनके संरक्षण के लिए बनायी गई नीति के प्रति की चिंता ही इस लेख का प्रमुख मुद्दा हैं.  

संविधान के पृष्ठभूमि में, विरासत के संरक्षण हेतु कई प्रकार के राष्ट्रीय नियम / बिल पास किए गए हैं. प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल अधिनियम एक्ट 1958, प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक, पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व के अवशेष के संरक्षण का प्रावधान करते हैं. मूर्तियों के संरक्षण, काश्तकारी,और अन्य समान वस्तुएं आदि हेतु ये पुरातात्विक खुदाई के विनियमन निर्धारित करती हैं. संरक्षित स्मारक और स्थलों के ग्रेडिंग और वर्गीकरण आदि की जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण को दी गई हैं. विरासत के संरक्षण की दिशा में एक और कदम देश ने आगे तब बढ़ाई जब इसने यूनेस्को के विश्व विरासत सम्मेलन में वैश्विक और राष्ट्रीय स्मारकों के संरक्षण के प्रस्तावना पर हस्ताक्षर किए थे. इसके अलावे, ज़्यादातर राज्यों ने भी अपने यहाँ इन विरासत नियमों को अमल में लाया हैं. 

 

हमने, अबतक, राष्ट्रीय स्तर पर संख्याओं में लगभग 3,650 स्मारकों को संरक्षित किया है जिसका रखरखाव भारतीय पुरातात्विक सर्वे (एएसआई), जो सांस्कृतिक (कल्चर) मंत्रालय और राज्य संरक्षित स्मारक मंत्रालय, जो डिरेक्टरट ऑफ स्टेट आर्कियोलॉजी द्वारा संचालित हैं, के द्वारा किया जाता है. एक साथ मिलकर, दोनों ही लगभग 10,000 स्मारकों, जो की एक बहुत छोटा सा, परंतु देश के कुल विरासत का बहुत अहम हिस्सा है, का रख रखाव और संरक्षण करते हैं. 

 

शहरों द्वारा किए गए अन्य योगदान 

धरोहर के संरक्षण के प्रति सारे प्रयास को और विस्तारित करने के लिए, कुछ प्रमुख भारतीय शहरों ने भी अपना योगदान देने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए हैं. उन्होंने शहर के प्रमुख धरोहरों की एक लिस्ट बनायी हैं जो ऐसे धरोहर वाले स्थान के तौर पर चिन्हित किए गए हैं जो ना तो राष्ट्रीय विरासत ना ही राज्य की धरोहर की श्रेणी में आते हैं. हालांकि, उनका उल्लेखनीय स्थानीय महत्व है. स्थानीय धरोहरों के संरक्षण हेतु, राज्यों की आज्ञा से शहरों नें भी अपने यहां ख़ुद के नियम, कायदा कानून बनाए हैं. 1990 के मध्य में, ऐसे किसी लिस्ट को तैयार करने वाली सबसे पहला शहर मुंबई थी. काफी अन्य शहरों नें भी इसका अनुसरण किया जिनमे अहमदाबाद, जयपुर, बैंगलोर, पुणे, हैदराबाद, चंडीगढ़, पुडुचेरी और काफी अन्य धरोहर जो इन शहरों में शामिल हैं, को धरोहरों के महत्व के आधार पर, अमूमन ग्रेडिंग सिस्टम द्वारा ग्रेड 1, ग्रेड 2 और ग्रेड 3 ढांचों में बांटा गया हैं. ये वही स्थानीय धरोहरों की लिस्ट और उनके संरक्षण के लिए बनायी गई नीति के प्रति की चिंता ही इस लेख का प्रमुख मुद्दा हैं.  

धरोहर रूपी चीजों में कुछ तो असाधारण महत्व होना चाहिए (सुंदरता, गौरव, वास्तुकला) जो इसके संरक्षण की सिफारिश कर सके.

कई शहर के धरोहरों की लिस्ट में कई एक सौ धरोहरों को सूचीबद्ध किया गया है. इनमें सार्वजनिक और निजी संपत्ति दोनों ही सूचीबद्ध किए गए हैं और इनमे से कई को तो और ढांचों की मदद से काफी वृहत किया गया है. ऐसे कई ताकतें अभी भी मुस्तैदी से इसके और भी विस्तार के लिए प्रयासरत है. 

सर्वप्रथम तो सभी शहरों को ये भली भांति समझ लेना चाहिए कि सारे के सारे धरोहरों को संग्रहीत नहीं किया जा सकता हैं. कई भारतीय शहरों के संदर्भ में, जहां काफी अतीत संजोये हुए हैं, पुराने ढांचे काफी ज़्यादा संख्या में हैं और उनमे से काफी तो कुछ सामान्य तक में विलुप्त होने के कगार में हैं. इसलिए, उम्र मात्र, संरक्षण संबंधी निर्णय लेने के लिए काफी नहीं हैं. धरोहर रूपी चीजों में कुछ तो असाधारण महत्व होना चाहिए (सुंदरता, गौरव, वास्तुकला) जो इसके संरक्षण की सिफारिश कर सके. स्थानीय स्तर पर उपरोक्त सोच अथवा प्राथमिकताओं को ध्यान में रख कर धरोहर के तौर पर सिफारिशें नहीं की जाती हैं. 

इसके आगे, ज़्यादातर शहरी धरोहरों की लिस्ट में, बने बनाए धरोहर और वास्तुशिल्पों पर ज़्यादा जोर दी गई हैं. उदाहरण के लिए, सूरत के धरोहरों पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, स्मारकों पर महत्वपूर्ण फोकस किया गया था. व्यापक शहरी भौगोलिक संदर्भ जो की सांस्कृतिक और प्राकृतिक मूल्यों के बहु-परत को एकीकृत करता है, को बहुतया नजरअंदाज किया गया. वास्तुकला के अंतर्गत, डिजाइन, निर्माण अथवा प्रकार की भौतिक विशेषताओं पर अत्यधिक जोर दिया गया है. एक तरफ, कई प्रकार से ये सच है कि स्थापत्य विरासत इस समूह में सबसे मूर्त हैं और पर्यटकों को काफी आकर्षित करती हैं. इसलिए विरासत की बाकी अन्य श्रेणियों के संरक्षण में समान बैलेंस को भी देखा जाना चाहिए. एक गाइड की तरह, हम यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट (डब्ल्यूएचएल) के दर्शन को आधार बना सकते हैं. ये अपनी चुनिंदा विरासत को सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित साइटों में विभाजित करती हैं. सांस्कृतिक विरासतों में ऐतिहासिक बिल्डिंग और पुरातात्विक स्थल, प्रतिमाएं और पेंटिंग आदि शामिल होती हैं. अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता, दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवर व पौधे तथा ऐसे अन्य चीज जो दुर्लभ प्राकृतिक महत्व के हैं आदि प्राकृतिक विरासत में शामिल हैं. मिले जुले विरासत के स्थल में प्राकृतिक और सांस्कृतिक महत्व के दोनों तत्व शामिल होते हैं और डब्ल्यूएचएल स्थलों के लिए लगभग 3 से 1 के अनुपात को मैन्टैन / कायम रखती हैं. 

  

वास्तुकला के आधार पर

वास्तुकला के आधार पर, ऐसे शहर जहां बहुतायत में ऐसे समान टुकड़े श्रेणीबद्ध हैं, की ओर झुकाव ज़्यादा होता हैं. चूंकि उस दौर में, जब उसी वास्तुकला टाइप के असंख्य स्मारकें होती थी तो एक विशेष ऐतिहासिक महत्व के वास्तुकला को ही सिर्फ बेहतरीन उदाहरणार्थ संरक्षित किया जा सकता है. अड़ोस-पड़ोस के लिहाज से भी एक समान राय ली जानी चाहिए. सामूहिक अथवा बड़े पैमाने पर संरक्षण के बजाय चयनात्मक संरक्षण के लिए कहा जाना चाहिए. 

जहां धरोहरों का अपना ही महत्व होता है, के बावजूद नगरपालिका के जिम्मे ऐसे और भी अहम जिम्मेदारियाँ हैं जो कि अनिवार्य कर्तव्य की श्रेणी में आती हैं. यूएलबी द्वारा इस पृष्ठभूमि का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए.

सार्वजनिक धरोहर क्षेत्र से निकाल कर निजी संपत्तियों के श्रेणीबद्ध किए जाने के व्यक्त अतिरिक्त सावधानी लिए जाने की आवश्यकता हैएक ओर जहां भारतीय न्यायालय ने ऐसे लिस्टिंग को अपनी हामी दी हैं, लोगों को ये समझना होगा कि ऐसे किसी भी श्रेणीकरण के दौरान निजी व्यक्ति अथवा परिवार की निजता का हनन नहीं होना चाहिए और उन्हें उस संपत्ति के पूर्ण इस्तेमाल ना करने दिया जाए. इसलिए अपवाद की स्थिति में इसका निपटारा किया जाना चाहिए जहां ऐसे किसी भी विरासत के प्रॉपर्टी को पहुँचने वाली चोट, धरोहर को होने वाली एक बड़ा नुकसान साबित होगी. ऐसा इसलिए भी है चूंकि कोई भी नगरपालिका अथवा म्युनिसिपल बॉडी ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि वे इन निजी मालिकों के होने वाले घाटे का हर्जाना भर सके. कुछ शहरों द्वारा ऐसे सम्पत्ति धारकों को अपने महत्व वालों विरासत के अनुदान टीडीआर (ट्रांसफर ऑफ डेवलपमेंट राइट्स) के तहत प्रोत्साहन देने का प्रयास किया गया, परंतु अबतक इनका कोई संतोषजनक समाधान मिल पाया है.   

अंततः आवश्यक धन एवं रखरखाव के लिए ज़रूरी प्रशासनिक मशीनरी के अभाव में, ऐसे किसी भी संपत्ति को श्रेणीबद्ध करना बुद्धिमानी का काम नहीं है. भारतीय यूएलबी आर्थिक तौर पर कमजोर है और अक्सरह राज्य अथवा केंद्र द्वारा ऐतिहासिक महत्व वाली विरासत के संरक्षण हेतु किसी प्रकार से वित्तीय सुविधा प्रदान नहीं की जाती हैं. इसलिए विरासत का संरक्षण एवं शासन म्युनिसिपल/ नगरपालिका के ख़ुद के संसाधन द्वारा ही होना चाहिए. जहां धरोहरों का अपना ही महत्व होता है, के बावजूद नगरपालिका के जिम्मे ऐसे और भी अहम जिम्मेदारियाँ हैं जो कि अनिवार्य कर्तव्य की श्रेणी में आती हैं. यूएलबी द्वारा इस पृष्ठभूमि का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए. ऐसे हर प्रयास किए जाने चाहिए ताकि यूएलबी अपने ऊपर किसी प्रकार का गैरवित्तपोषित शासनादेश ढेर ना लाद लें.  

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