चीन की संसद ने तुर्की के साथ प्रत्यर्पण समझौते को हाल ही में अपनी स्वीकृति दे दी. इस समझौते का मकसद अंतरराष्ट्रीय अपराधियों और आतंकवादियों पर नकेल कसने के लिए दोनों देशों के बीच न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग स्थापित करना है. 2017 में तुर्की के राष्ट्रपति रेचैप तैय्यप अर्दोआन के बीजिंग दौरे के दौरान इस समझौते पर दस्तख़त किए गए थे. अभी तुर्की की संसद द्वारा इस समझौते का अनुमोदन होना बाकी है. अगर अंकारा में भी इस समझौते को स्वीकृति मिल जाती है तो इसका तुर्की में रहने वाले करीब 50 हज़ार वीगर प्रवासियों के लिए अंजाम ख़ौफ़नाक होगा. तुर्की के अलावा चीन ने न्यायिक सहयोग को बढ़ावा देने के मकसद से पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों समेत 81 देशों के साथ ऐसी ही प्रत्यर्पण संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं.
तुर्की के साथ अपने मज़बूत सांस्कृतिक, भाषाई और मज़हबी रिश्तों की वजह से निर्वासन झेल रहे वीगर लोगों के लिए तुर्की स्वाभाविक रूप से एक लोकप्रिय ठिकाना बन गया है.
चीन के उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती प्रांत शिनज़ियांग में रहने वाले वीगर समुदाय के लोग तुर्क मूल के माने जाते हैं. बोलचाल के लिए ये लोग तुर्की की स्थानीय बोली का ही इस्तेमाल करते हैं. तुर्की के साथ अपने मज़बूत सांस्कृतिक, भाषाई और मज़हबी रिश्तों की वजह से निर्वासन झेल रहे वीगर लोगों के लिए तुर्की स्वाभाविक रूप से एक लोकप्रिय ठिकाना बन गया है. 1950 के दशक के बाद से अंकारा ने चीन से निर्वासित होकर आए वीगर समुदाय के कई नेताओं को अपने यहां पनाह दी. इन लोगों ने तुर्की में रहते हुए अपनी संस्कृति और पूर्वी तुर्कीस्तान की आज़ादी के अपने मकसद को आगे बढ़ाने के लिए गाहे-बगाहे कई संगठन भी खड़े किए. हालांकि उन्हें अपने मकसद में आजतक कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिल पाई.
तुर्की में पनाह ले रहा वीगर प्रवासी समाज 1990 के बाद से अपने मकसद को लेकर काफी सक्रिय रहा है. प्रदर्शनों, सम्मेलनों, बैठकों और प्रेस वार्ताओं के ज़रिए ये लोग दुनिया का ध्यान खींचने में कामयाब रहे हैं. हालांकि, जैसे-जैसे चीन आर्थिक तौर पर बड़े से बड़ा होता गया उसने इन वीगर लोगों द्वारा चीन-विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए अंकारा पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दबाव डालना शुरू किया. शुरू-शुरू में तो चीन को इसमें कुछ ख़ास कामयाबी हासिल नहीं हुई. टर्की में वीगर समुदाय की गतिविधियां जारी रहीं और उन्हें वहां समर्थन और स्वीकृति मिलती रही. दरअसल शिनजियांग की वीगर आबादी के साथ तुर्की के ज़्यादातर लोग और राजनेता ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर अपना जुड़ाव महसूस करते हैं. तुर्की के राजनेता वीगर समाज के लोगों को आदिम तुर्क समाज के अगुवा के रूप में देखते हैं. वीगरों और तुर्कों के बीच सांस्कृतिक बंधन इतने गहरे रहे हैं कि अभी हाल तक तुर्की का राष्ट्रीय ध्वज और पूर्वी तुर्किस्तान का झंडा तुर्की के विभिन्न शहरों में बिलकुल पास-पास फहराए जाते रहे. 28 जुलाई 1995 को इस्तांबूल का मेयर रहते हुए अर्दोआन ने शहर के बीचोंबीच स्थित मशहूर नीले मस्जिद के एक हिस्से का नाम पूर्वी तुर्किस्तान की आज़ादी से जुड़े आंदोलन के नेता इशा यूसुफ़ अल्टेकिन के नाम पर रख दिया. 2015 में तुर्की के राजनयिकों ने दक्षिणपूर्वी एशिया में रह रहे कई वीगर लोगों की तुर्की की यात्रा करने में मदद की थी और उन्हें यात्रा के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ उपलब्ध करवाए थे.
शिनजियांग की वीगर आबादी के साथ तुर्की के ज़्यादातर लोग और राजनेता ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर अपना जुड़ाव महसूस करते हैं. तुर्की के राजनेता वीगर समाज के लोगों को आदिम तुर्क समाज के अगुवा के रूप में देखते हैं.
चीन की आर्थिक ताक़त व दमन
आगे चलकर अपनी बेजोड़ आर्थिक कामयाबी के चलते चीन ने विदेश नीति के मोर्चे पर दबंगई-भरी कूटनीति चालू कर दी. 2013 में बहुप्रचारित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के उद्घाटन के बाद से ही चीन के लिए अशांत शिनजियांग प्रांत का भू-सामरिक महत्व काफी बढ़ गया. बीआरआई के तहत आने वाले 6 अहम ज़मीनी गलियारों में से तीन शिनजियांग प्रांत से निकलते हैं. लिहाजा सुरक्षा चौकसी बढ़ाने के बहाने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने दमनकारी चीनी नीतियों को इस्तेमाल शुरू कर दिया. इसके तहत निगरानी और गुप्तचरी के लिए हाईटेक तरीके इस्तेमाल किए जाने लगे, लोगों को तथाकथित सुधारगृहों में भेजा जाने लगा और स्थानीय वीगर आबादी का सामाजिक और आर्थिक तौर पर शोषण किया जाने लगा. 10 लाख से भी ज़्यादा लोगों को सुधार गृहों में डाल दिया गया. वीगर महिलाएं अपने समाज और संस्कृति की एक मज़बूत पहचान हैं. चीन में सरकार-प्रायोजित अभियानों के ज़रिए इन महिलाओं का जबरन बंध्याकरण और गर्भपात कराया गया. और तो और ज़बरदस्ती उनके शरीर में गर्भनिरोध से जुड़े उपकरण लगा दिए गए. वीगर संस्कृति पर ऐसे आघातों और वीगर आबादी के सफाए के मकसद से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ढाए जा रहे जुल्मों के खिलाफ तुर्की में निर्वासन में रह रहे वीगर समाज के लोगों ने मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए एकजुट होकर विरोध किया.
सीसीपी द्वारा वीगर मुसलमानों के साथ बरती जाने वाली बदसलूकियों का मामला जब-जब विश्व मंचों पर उठा है तब-तब सऊदी अरब, पाकिस्तान, तुर्की, मलेशिया और ईरान जैसे ज़्यादातर बड़े इस्लामिक देशों ने बीजिंग के आधिकारिक रुख़ का ही अनुसरण किया है.
वीगर लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने, उनसे बंधुआ मज़दूरी करवाने और सांस्कृतिक रूप से उनका सफाया करने की कोशिशों के कारण अपनी चौतरफा निंदा झेल रहा चीन अपने आर्थिक रसूख के दम पर इन आलोचनाओं का धार कुंद करने की लगातार कोशिश करता रहा है. इतना ही नहीं चीन ने दबंगई भरी नीतियों के दम पर ज़्यादातर मुस्लिम देशों को भी अपने काबू में कर रखा है. ये मुस्लिम देश वैश्विक मंचों पर वीगर लोगों से जुड़े मामलों पर ख़ामोश रहते हैं. और तो और आर्थिक तौर पर चीन के एहसानों तले दबे इन मुस्लिम देशों ने ‘विकास के ज़रिए मानवाधिकारों की रक्षा करने और बढ़ावा देने’ के लिए चीनी प्रयासों की तारीफ़ और बचाव किया है. सीसीपी द्वारा वीगर मुसलमानों के साथ बरती जाने वाली बदसलूकियों का मामला जब-जब विश्व मंचों पर उठा है तब-तब सऊदी अरब, पाकिस्तान, तुर्की, मलेशिया और ईरान जैसे ज़्यादातर बड़े इस्लामिक देशों ने बीजिंग के आधिकारिक रुख़ का ही अनुसरण किया है. अतीत में भी चीन ने अपनी आर्थिक कूटनीति के ज़रिए ताजिकिस्तान और कज़ाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियां कीं और वहां रह रहे निर्वासित वीगर लोगों को अपने यहां लाकर या तो उन्हें जेल में डाल दिया या फिर उनका खात्मा कर दिया.
तुर्की, तख़्तापलट और अर्दोआन की नीतियां
तुर्की वीगर लोगों के लिए अपने दूसरे घर जैसा है. जुलाई 2016 में तख्त़ापलट की कोशिशों के बाद से राष्ट्रपति अर्दोआन की नासमझी भरी नीतियों की वजह से तुर्की को आज ज़बरदस्त आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. अर्दोआन का मानना है कि कि पश्चिमी दुनिया ख़ासकर अमेरिका विश्वसनीय सहयोगी नहीं है. उन्हें लगता है कि तुर्की में तख्त़ापलट की कोशिशों को भड़काने के पीछे अमेरिका का हाथ था. इतना ही नहीं, ग्रीस के प्रति नीतियों, सीरियाई शरणार्थियों को हथियार मुहैया कराने, कुर्द मामलों में अमेरिका के हितों की अनदेखी करने, और घरेलू मोर्चे पर लोकतंत्र को लगातार कमज़ोर करने की कोशिशों ने तुर्की के लिए आर्थिक तौर पर भारी परेशानियां खड़ी कर दी हैं. ऐसे में चीन को यहां अपना प्रभाव दिखाने का मौका मिल गया है. अर्दोआन ने जबसे रूस के साथ एस-400 मिसाइलें खरीदी हैं तबसे नाटो के साथ भी तर्की के रिश्तों में खटास आ गई है. ऐसे में अपने बुनियादी ढांचे में निवेश की ज़रूरतों को पूरा करने और अपना विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए अर्दोआन ने चीन से 3.6 अरब अमेरिकी डॉलर (2.9 अरब पाउंड) का कर्ज़ लिया. दोनों देशों ने वृहत मध्य एशिया के रास्ते ट्रेन सेवाएं चालू की हैं और आज चीन तुर्की के सामानों का सबसे बड़ा आयातक देश बन गया है. तुर्की में वीगर कार्यकर्ताओं द्वारा सीसीपी के खिलाफ किसी भी तरह के प्रदर्शन को रोकने की अपनी कोशिशों के तहत चीन ने अब तो कोविड-19 के टीके को भी कूटनीतिक हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
तुर्की की विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के अमेरिका-स्थित प्रतिनिधि युर्टर ओज़कान की ओर से भी ऐसा ही कहा गया है. अगर इस प्रत्यर्पण समझौते का अनुमोदन होता है तो अर्दोआन को घरेलू मोर्चे पर आलोचनाओं और विरोध का सामना करना होगा.
चीन से निर्वासित होकर तुर्की पहुंचे वीगर लोगों के पास नागरिकता से जुड़े दस्तावेज़ तक नहीं थे. 2019 के शुरुआत तक अंकारा ने वीगर अल्पसंख्यकों के साथ चीन के बर्ताव की सार्वजनिक रूप से भर्त्सना की थी और उसे ‘मानवता के लिए कलंक’ बताया था. लेकिन 2019 के शुरुआती दिनों के बाद से चीन पर तुर्की की आर्थिक निर्भरता बढ़ गई और तबसे ही अंकारा पर चुपचाप कुछ वीगर लोगों को चीन वापस भेजने के आरोप लगते रहे हैं. यहां तक कि अर्दोआन ने शिनजियांग मुद्दे पर सीसीपी की तारीफ़ तक कर डाली. बहरहाल चीन के साथ प्रत्यर्पण समझौते को तुर्की की संसद की मंज़ूरी के मामले में अर्दोआन को संसद के अंदर और बाहर भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. तुर्की में विपक्ष और सांसदों ने पहले ही इस समझौते का विरोध करने का मन बना लिया है. उनका कहना है कि इस समझौते के ज़्यादातर प्रावधान भ्रामक हैं. तुर्की की विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के अमेरिका-स्थित प्रतिनिधि युर्टर ओज़कान की ओर से भी ऐसा ही कहा गया है. अगर इस प्रत्यर्पण समझौते का अनुमोदन होता है तो अर्दोआन को घरेलू मोर्चे पर आलोचनाओं और विरोध का सामना करना होगा. वहीं देश के बाहर उन्हें नेटो सहयोगियों के भारी दबाव से दो-चार होना पड़ेगा, वो भी तब जब अंकारा यूरोपीय संघ के साथ बेहतर रिश्तों की चाह रखता है और हालिया पाबंदियों के बाद अमेरिका के साथ अपने संबंधों में तल्खी कम कर उसे वापस पटरी पर लाना चाहता है. अगर तुर्की की संसद इस समझौते को मंज़ूरी दे देती है तो ये वीगर संस्कृति की ताबूत में आखिरी कील साबित होगी. इसके बाद चीन शिनजियांग के बाहर रहने वाली वीगरों की सबसे बड़ी आबादी का हर तरह से मुंह बंद कर देगा. कुल मिलाकर ये समझौता पहले से ही ग़ुलामी का जीवन जी रहे वीगर अल्पसंख्यकों को और प्रताड़ित करने के लिए चीन का एक और हथकंडा बन जाएगा.
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