Published on Dec 07, 2021 Updated 0 Hours ago

चीनी नागरिकों की जीवन में बेहतरी लाने के लिए शी की सराहना की गई. इस साल सीसीपी द्वारा की गई घोषणा के मुताबिक 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक की स्थापना के बाद से चीन में करोड़ों लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला गया है.

चीन: सियासी तौर पर लगातार ताक़तवर होते शी जिनपिंग और तेज़ होती विरासत की जंग

चीन में सियासी आयोजनों के तौर-तरीक़े शुरू से ही बेहद दकियानूसी रहे हैं. इन जलसों में होने वाले दिखावों और बरते जाने वाले आडंबरों से दर्शकों पर बहुत रौब जमता है. हालांकि इन क़वायदों के पीछे कुछ निश्चित मकसद होते हैं. नवंबर 2021 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का पूर्ण अधिवेशन भी ऐसा ही आयोजन साबित हुआ. इसमें पार्टी की तमाम बड़ी हस्तियां इकट्ठा हुई थीं. 2022 में होने वाले नेशनल कांग्रेस की तैयारियों के बीच ये अधिवेशन आयोजित किया गया.

2049 में सीसीपी द्वारा चीन की सत्ता संभालने के 100 साल पूरे हो जाएंगे. अधिवेशन में शी को दुनिया में चीन की ताक़त बढ़ाने का श्रेय दिया गया. साथ ही उन तमाम समस्याओं को सुलझाने का सेहरा भी उनके सिर बांधा गया जिनका निपटारा करने में उनके पूर्ववर्ती नाकाम रहे थे.

पूर्ण अधिवेशन के बारे में मिली सूचनाओं से पता चलता है कि शी जिनपिंग के विचार ही चीन को 2049 तक “एक महान आधुनिक समाजवादी राष्ट्र” में बदलने में निर्णायक साबित होंगे. 2049 में सीसीपी द्वारा चीन की सत्ता संभालने के 100 साल पूरे हो जाएंगे. अधिवेशन में शी को दुनिया में चीन की ताक़त बढ़ाने का श्रेय दिया गया. साथ ही उन तमाम समस्याओं को सुलझाने का सेहरा भी उनके सिर बांधा गया जिनका निपटारा करने में उनके पूर्ववर्ती नाकाम रहे थे. चीनी नागरिकों की जीवन में बेहतरी लाने के लिए शी की सराहना की गई. इस साल सीसीपी द्वारा की गई घोषणा के मुताबिक 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक की स्थापना के बाद से चीन में 85 करोड़ लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला गया है. साथ ही चीन में दरिद्रता या कंगाली को पूरी तरह से मिटा देने की बात भी कही गई है. 2012 में शी के सीसीपी का मुखिया बनने के बाद से तक़रीबन 10 करोड़ लोगों को तंगहाली से छुटकारा दिलाने का दावा किया गया है.

लिहाज़ा सीसीपी के इस महत्वपूर्ण जमावड़े से संदेश साफ़ है: ऐसा लग रहा है कि शी ने राष्ट्रपति के तौर पर तीसरे कार्यकाल के लिए अपनी दावेदारी और पुख़्ता कर ली है. चीन में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के सौ साल पूरे हो गए हैं. इस मौके पर जश्न मनाने को लेकर मंज़ूर किए गए ‘ऐतिहासिक प्रस्ताव’ में ज़ोर शोर से शी के नाम का ज़िक्र हुआ है. 1921 में सीसीपी के अस्तित्व में आने के बाद ये इस तरह का तीसरा प्रस्ताव है. कई लोगों का विचार है कि इससे शी का दर्जा माओत्से तुंग और डेंग  जियाओपिंग के बराबर का हो गया है. इतना ही नहीं इस अधिवेशन के ज़रिए 2022 में पार्टी कांग्रेस (महासम्मेलन) के लिए ज़रूरी तैयारियां भी पूरी कर ली गई हैं. इस महासम्मेलन में अभूतपूर्व रूप से शी के तीसरी बार राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने की उम्मीद की जा रही है.

इस पूरी क़वायद का मकसद शी की सत्ता और वैधानिकता को पुख़्ता करना और चीन की जनता के सामने पार्टी के ऐतिहासिक मिशन की भरोसेमंद दलील पेश करना है. ऐसा लगता है कि तीसरी बार राष्ट्रपति का ताज पहनने का रास्ता शी के लिए काफ़ी सहज हो गया है. 

सीसीपी पर शी का कसता शिकंजा

इस पूरी क़वायद का मकसद शी की सत्ता और वैधानिकता को पुख़्ता करना और चीन की जनता के सामने पार्टी के ऐतिहासिक मिशन की भरोसेमंद दलील पेश करना है. ऐसा लगता है कि तीसरी बार राष्ट्रपति का ताज पहनने का रास्ता शी के लिए काफ़ी सहज हो गया है. शी ने अपने नेतृत्व को लेकर किसी भी तरह की चुनौती को प्रभावी रूप से कुंद करते हुए सीसीपी पर अपना शिकंजा पूरी मज़बूती से कस लिया है. हालिया पूर्ण अधिवेशन में ये साफ़ नज़र भी आया. अधिवेशन में शी का गुणगान करते हुए कहा गया कि शी ने पार्टी पर निगरानी रखने की कमज़ोर व्यवस्था का पूरी तरह से अंत कर दिया है. शी की पकड़ पार्टी पर कितनी मज़बूत हो गई है इसको समझने के लिए 2012 की मिसाल ले सकते हैं. बताया जाता है कि उस वक़्त पार्टी कांग्रेस की तैयारियों के दौरान चॉन्गकिंग प्रांत में सीसीपी के नेता रहे बो शिलाई ने सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया में पेच फंसा दिया था. तब सीसीपी में अपना सिक्का जमाने के लिए चल रहे संघर्ष के बीच देश में बढ़ती आर्थिक असमानता को पाटने के तरीक़ों को लेकर भी बहस और मतभेद चरम पर थे. पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच इस मुद्दे पर छिड़ी तकरार को ‘केक डॉक्ट्रिन’ के रूप में जाना जाता है.

दरअसल इस सिद्धांत के तहत आर्थिक विकास को केक तैयार करने की मिसाल के ज़रिए दर्शाया जाता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एक धड़े ने केक (दूसरे शब्दों में आर्थिक तरक्की) को और अधिक समानता के साथ वितरित करने पर ज़ोर दिया. जबकि दूसरा धड़ा पहले केक का आकार (यानी आर्थिक वृद्धि के आकार और गति) बड़ा करने के पक्ष में था. उसका विचार था कि पुनर्वितरण से जुड़े सवाल पर बाद में ध्यान दिया जाना चाहिए. बो की नीतियां का ज़ोर आर्थिक समृद्धि में आए अंतर को पाटने पर था. वो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच की असमानता को दूर करना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने छात्रों, प्रवासी मज़दूरों और निम्न आय वाले समूहों के लिए सार्वजनिक रिहाइश (public apartments) तैयार करने का विचार रखा था. [i]  2007 में उन्होंने गांवों में रहने वालों के लिए शहरी दर्जा हासिल करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए हुकोऊ सिस्टम (पारिवारिक रजिस्ट्रेशन) के तहत एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था. दरअसल इसी दर्जे से शैक्षणिक अवसर, कर दायित्व और संपत्ति के अधिकार तय होते हैं. चीन में आज भी ऐसी कानाफ़ूसी होती है कि समानतावादी ‘चॉन्गकिंग मॉडल’ पर ज़ोर देने के पीछे बो का इरादा बीजिंग में सत्ता की सर्वोच्च कुर्सी हथियाने का था. दरअसल वो इस दांव के ज़रिए उस समय के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति की कुर्सी के उत्तराधिकारी शी जिनपिंग को किनारे लगाना चाहते थे. [ii]  

राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद से ही वो अपने आपको मज़बूत करते आ रहे हैं. बो के साथ ही फ़ौज और सुरक्षा तंत्र से जुड़े कई बड़े अफ़सरों को भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के इल्ज़ामों में सलाख़ों के पीछे भेज दिया गया. 

शी ने इस वाक़ये से बड़ा सबक़ लिया. राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद से ही वो अपने आपको मज़बूत करते आ रहे हैं. बो के साथ ही फ़ौज और सुरक्षा तंत्र से जुड़े कई बड़े अफ़सरों को भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के इल्ज़ामों में सलाख़ों के पीछे भेज दिया गया. चीन के एक शीर्ष अधिकारी ने बाद में ये खुलासा किया था कि सीसीपी के कुछ आला सदस्यों ने शी जिनपिंग से सत्ता हथियाने की साज़िश रची थी. पार्टी से जुड़े इस तरह के राज़ बेपर्दा होने से सीसीपी में अंदरख़ाने चल रहा सत्ता संघर्ष जगज़ाहिर हो गया. इससे एकजुट चेहरा पेश करने की सीसीपी की क़वायद को बड़ा झटका लगा. कहते हैं कि अगर आप किसी को खेल में हरा न सको तो उनके हिसाब से खेलना शुरू कर दो. मालूम होता है शी ने भी यही मंत्र अपना लिया है. ‘सामूहिक समृद्धि’ के लक्ष्य की तलाश में चॉन्गकिंग मॉडल ने अब राष्ट्रीय स्वरूप ले लिया है. इस क़वायद में चीन की सरकार द्वारा उठाए गए कुछ क़दम आत्मघाती लग रहे हैं. दरअसल चीनी नियामकों के निशाने पर देश की कुछ बड़ी टेक कंपनियां आ गई हैं. उनके स्टॉक भाव में खरबों की गिरावट आ चुकी है. ज़ाहिर है इससे देश के उद्यमियों में ख़ौफ़ भर गया है. सरकार की कार्रवाइयों से देश का सबसे बड़ा रियल एस्टेट फ़र्म दीवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है. इससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भी हड़कंप मच गया है.

दरअसल राष्ट्रपति शी चीन में सामाजिक तानेबाने को नया रूप देना चाहते हैं. ऐसे में न सिर्फ़ कारोबारियों को बल्कि चीन के आम या औसत दर्जे के नागरिकों को भी परेशानी झेलनी पड़ रही है. चीन में मनोरंजन जगत की हस्तियों के ख़िलाफ़ भी कठोर कार्रवाइयों का दौर जारी है. वहां कम उम्र वाले तमाम कलाकारों को 9 साल की अनिवार्य स्कूली शिक्षा पूरी करने को कहा गया है.

माओ और शी की तुलना

चीन में माओ को उनके जीवनकाल में एक “महान शासक” के तौर पर जाना जाता रहा. हालांकि उनकी कई नीतियां आगे चलकर विनाशकारी साबित हुईं. ग्रेट लीप फ़ॉरवर्ड और सांस्कृतिक क्रांति जैसी नीतियों के चलते लाखों लोग तबाह हो गए. बहरहाल उनका जलवा ही कुछ ऐसा था कि उनके जीते जी इन नीतियों की किसी ने आलोचना करने की हिम्मत नहीं की. उनकी मृत्यु के बाद ही सीसीपी ने इन तमाम मसलों पर निष्पक्ष दृष्टिकोण सामने रखना शुरू किया. हाल ही में सीसीपी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा मंज़ूर किए गए ‘ऐतिहासिक प्रस्ताव’ से माओ की ग़लत नीतियां बेपर्दा हो गई हैं. 16 नवंबर 2021 को इस दस्तावेज़ को सार्वजनिक किया गया. इस प्रस्ताव से 1950 के दशक में चीन में बुद्धिजीवियों के सफ़ाए के लिए छेड़े गए अभियान, 1950 के दशक के अंत में देश की कृषि और औद्योगिक अर्थव्यवस्था के सामूहिकीकरण और ग्रेट लीप फ़ॉरवर्ड के बारे में कई अहम जानकारियां मिलती हैं. माओ को चीन में सांस्कृतिक क्रांति का उत्तरदायी बताया जाता है. प्रस्ताव में इसे एक ऐसी आपदा करार दिया गया है जिसके चलते देश में क़रीब एक दशक तक अफ़रातफ़री का माहौल रहा.

माओ और शी के बीच कई समानताएं हैं. दोनों का तौर-तरीक़ा व्यक्ति पूजा को बढ़ावा देने वाला रहा है. दोनों ने ही ऐसी विचारधाराएं शुरू की जिन्हें उनके ही नाम से बेहतर तरीक़े से जाना-समझा जाता है. उनकी शख़्सियत और विचारधारा चीनी व्यवस्था के हरेक क्षेत्र में अनिवार्य रूप से दख़ल देने वाली है. 

माओ और शी के बीच कई समानताएं हैं. दोनों का तौर-तरीक़ा व्यक्ति पूजा को बढ़ावा देने वाला रहा है. दोनों ने ही ऐसी विचारधाराएं शुरू की जिन्हें उनके ही नाम से बेहतर तरीक़े से जाना-समझा जाता है. उनकी शख़्सियत और विचारधारा चीनी व्यवस्था के हरेक क्षेत्र में अनिवार्य रूप से दख़ल देने वाली है. इसके मायने यही हैं कि शी के जीवनकाल में उनकी नीतियों और कार्यक्रमों का वास्तविक मूल्यांकन लगभग असंभव होगा. व्यक्ति पूजा के प्रभावों के चलते न तो कोई निष्पक्ष विश्लेषण और न ही ज़रूरत पड़ने पर मौजूदा नीतियों में किसी तरह का सुधार लाना मुमकिन होगा. हालांकि यहां शी के सामने बेहद कठिन चुनौतियां मौजूद हैं. दरअसल डेंग ने चीन में प्रशासकीय ढांचे को विकेंद्रीकृत कर दिया था. इससे प्रांतीय स्तर के नेताओं को नई ताक़त मिली. साथ ही उन्हें सुधारवादी क़दम उठाने का मौका भी मिला. 1980 के दशक की शुरुआत में तटीय गुआंगदोंग प्रांत को विदेश व्यापार नीति से जुड़े फ़ैसले ख़ुद लेने का अधिकार मिल गया. इसके अलावा गुआंगदोंग को हॉन्गकॉन्ग के साथ लगी अपनी सरहद में पहले से तयशुदा इलाक़ों में विदेशी निवेश आकर्षित करने का हक़ भी मिल गया. शेनज़ेन में विशेष आर्थिक क्षेत्रों से जुड़ी परियोजना पर निगरानी रखने का जिम्मा डेंग ने शी झोंग्शून (शी जिनपिंग के पिता) को सौंप रखा था. डेंग ने अर्थव्यवस्था को पार्टी और राज्यसत्ता के चंगुल से मुक्त कर दिया. इससे चीन में निजी क्षेत्र को फलने-फूलने का मौका मिला. इसी पहल का नतीजा है कि चीन आज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. बहरहाल डेंग की नीतियों के विपरीत शी ने अर्थव्यवस्था में सरकारी क्षेत्र की भूमिका का विस्तार किया है. इसके साथ ही उन्होंने निजी क्षेत्र में भी सीसीपी का दख़ल बढ़ा दिया है. दरअसल एकाधिकारवादी व्यवस्थाएं उस सामान्य सत्य पर भरोसा करती हैं जिसके मुताबिक इतिहास पर नियंत्रण रखने वाले ही भविष्य को क़ाबू में रखते हैं. आज चीन में शी की तूती बोल रही है. ऐसे में उनके पास नए सिरे से इतिहास गढ़ने के तमाम साधन और अवसर मौजूद हैं. यही वजह है कि 2018 में चीन में आर्थिक उदारवाद की 40वीं सालगिरह के मौके पर शी ने शेनज़ेन पायलट में अपने पिता के योगदान को डेंग की तुलना में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया. इसी परियोजना ने चीन में औद्योगिकरण का रास्ता तैयार किया था. चीन में आर्थिक सुधार और खुलेपन से जुड़े दौर को लेकर वहां के नेशनल आर्ट म्यूज़ियम में लगाई गई प्रदर्शनी में शी सीनियर को डेंग के मुक़ाबले ज़्यादा प्रमुखता से दर्शाया गया (चित्र देखिए).

Source: social media

मैकिंज़ी ग्लोबल इंस्टीट्यूट (McKinsey Global Institute) की नवंबर 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो दशकों में दुनिया की दौलत तीन गुणा बढ़ गई है. 2000 में विश्व की कुल दौलत 156 खरब अमेरिकी डॉलर थी जो 2020 में बढ़कर 514 खरब अमेरिकी डॉलर हो गई. 2000 में चीन की दौलत कुल 7 खरब अमेरिकी डॉलर थी जो 2020 में कई गुणा बढ़कर 120 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई. चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना. इससे चीन को दौलतमंद बनने का मौका मिला. चीन ने इसी समृद्धि को अपनी ताक़त बना लिया. हालांकि इस रणनीति के अपने नुकसान भी देखने को मिले हैं. आज चीन की कुल दौलत का 65 प्रतिशत हिस्सा 10 फ़ीसदी रईस परिवारों के हाथों में केंद्रित है.

साझा समृद्धि का ढिंढोरा पीटे जाने के बाद से ही चीन में उद्यमों के ख़िलाफ़ कार्रवाई का दौर शुरू हो गया. चीन के समाज में सीसीपी का दख़ल भी बढ़ गया है. ये तमाम घटनाक्रम आने वाले वक़्त का एहसास करा रहे हैं. साथ ही इनसे शी के तीसरे कार्यकाल की झांकी भी देखने को मिल रही है. 

हालिया ‘ऐतिहासिक प्रस्ताव’ में ज़ोर देकर कहा गया है कि डेंग द्वारा अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किए जाने के कई नुकसानदेह नतीजे देखने को मिले. इनमें “ऐश-मौज वाली ज़िंदगी” और “दौलत की पूजा” शामिल है. ज़ाहिर है कि इस प्रस्ताव के ज़रिए इशारों में डेंग को चीन में बढ़ी आर्थिक असमानता का ज़िम्मेदार ठहराया गया है. साथ ही आय की विषमता से जुड़ी चुनौती पर लगाम लगाने के लिए शी की सराहना भी की गई है. बहरहाल यहां शी को ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि आर्थिक सुधारों की वजह से ही 1970 के दशक के अंत से चीनी अर्थव्यवस्था में मज़बूती आने लगी थी. सुधारवादी उपायों के तहत चीनी राज्यसत्ता ने समाज में अपनी पकड़ ढीली करते हुए मुक्त व्यापार और निजी उद्यमों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया था.

प्रस्ताव में साफ़ किया गया है कि जीडीपी में बढ़ोतरी ही कामयाबी का इकलौता पैमाना नहीं होगा और देश के लिए साझा समृद्धि ही आख़िरी लक्ष्य होगा. साझा समृद्धि का ढिंढोरा पीटे जाने के बाद से ही चीन में उद्यमों के ख़िलाफ़ कार्रवाई का दौर शुरू हो गया. चीन के समाज में सीसीपी का दख़ल भी बढ़ गया है. ये तमाम घटनाक्रम आने वाले वक़्त का एहसास करा रहे हैं. साथ ही इनसे शी के तीसरे कार्यकाल की झांकी भी देखने को मिल रही है. एक बड़ी आबादी में ‘केक’ के फिर से बंटवारे के लिए रिएलिटी टैक्स के साथ-साथ पूंजी लाभ (capital gains) और विलासिता से जुड़े उपभोगों पर शुल्क लगाए जाने की संभावना है. ख़ैराती दान को बढ़ावा देने के लिए शी करों में प्रोत्साहन देने पर भी विचार कर रहे हैं. ग़ौरतलब है कि बिग टेक के कई संस्थापकों ने इस तरह का दान देने का बीड़ा उठाया है. इन सबके बीच चीन पर निवेशकों का भरोसा कम हो रहा है. सिंगापुर की सरकारी निवेश कंपनी टेमासेक ने चीनी शिक्षा और तकनीकी स्टॉकों से अपने हाथ झटक लिए हैं. इसके साथ ही कंपनी ने अलीबाबा और परिवहन क्षेत्र की चीन की विशाल कंपनी डीडी ग्लोबल में भी अपना निवेश घटा लिया है.

चीन में कोविड-19 के मामलों में रुक-रुककर उछाल देखने को मिल रहा है. नतीजतन वहां कई इलाक़ों में लॉकडाउन लग चुका है. चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने “सख़्त शून्य-कोविड” नीति अपना रखी है. इसके तहत जिन इलाक़ों में कोरोना संक्रमण के मामले आते हैं उन्हें पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है ताकि मरीज़ों के क़रीब या संपर्क में आए लोगों का ठीक से पता लगाया जा सके. कोरोना संक्रमण से निपटने का ये तरीक़ा दुनिया के बाक़ी देशों के मुक़ाबले ज़्यादा कठोर है. हालांकि टीकाकरण की दर और रफ़्तार के मामले में चीन दुनिया में काफ़ी आगे है. नवंबर के मध्य तक चीन की क़रीब तीन-चौथाई आबादी को टीके लग चुके थे. बहरहाल बार-बार हो रही बंदियों की वजह से आजीविका और आमदनी का नुकसान हुआ है. इससे चीनी समाज में कड़वाहट बढ़ गई है. जनता में फैलते असंतोष को दबाने के लिए शी समाजवादी तरीक़े खंगाल रहे हैं. चीन में दौलत पैदा करना और पैदा हुई दौलत यानी ‘केक’ के बंटवारे के बीच संतुलन कायम करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. उन्हें इस बात का एहसास ज़रूर होगा कि उनकी इसी काबिलियत के हिसाब से इतिहास उनके बारे में फ़ैसला करेगा.


[i] Kerry Brown, The New Emperors: Power and the Princelings (I B Tauris, 2014), pp 217-218.

[ii] Kerry Brown, The New Emperors: Power and the Princelings (I B Tauris, 2014), pp 217-218.

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