Author : Harsh V. Pant

Published on Jan 11, 2022 Updated 0 Hours ago

शी जिनपिंग अपनी ताकत और बढ़ाना चाहते हैं. इसलिए वह दूसरे देशों को लेकर और आक्रामक रुख अपनाएंगे. ऐसे में भारत और अमेरिका के साथ चीन का टकराव बढ़ सकता है. 

चीन: थर्ड टर्म के लिए दुनिया की मुश्किल बढ़ाएंगे शी जिनपिंग?

चीन के लिए 2022 लैंडमार्क साल है. इस साल फरवरी में ओलिंपिक गेम्स हैं. फिर मार्च में कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस नैशनल पीपल्स कांग्रेस होगी और नवंबर 2022 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की सबसे इंपॉर्टेंट इवेंट होगी. पार्टी इस साल उसी की तैयारी कर रही है. शी जिनपिंग का ध्यान इसी पर है कि किस तरह से सीपीसी लीडर के तौर पर वह अपने तीसरे पांच साल के कार्यकाल को और मजबूत करें. आमतौर पर दो टर्म के बाद जनरल सेक्रेटरी चले जाते हैं और लीडरशिप बदल जाती है.

 शी जिनपिंग का ध्यान इसी पर है कि किस तरह से सीपीसी लीडर के तौर पर वह अपने तीसरे पांच साल के कार्यकाल को और मजबूत करें.

अपने नेतृत्व की परिभाषा खुद गढ़ रहे हैं जिनपिंग

इस बार ऐसा नहीं होगा. शी की फिर से ताजपोशी होगी. पिछले कुछ सालों से जिस तरह से उन्होंने ख़ुद को मज़बूत किया है. अपने आप को एक तरह से तंग श्याओफिंग और माओ त्से तुंग की बराबरी में ला खड़ा किया है. अब वह अपनी ताकत और बढ़ाने की कोशिश में हैं. अगर शी ऐसा कर पाए तो उन पर कोई अंकुश नहीं रहेगा. इसी तरह से उन्होंने अपनी लीडरशिप को डिफाइन भी किया है. शी ने इसके लिए वैचारिक मुहिम चला रखी है. चीन में उनके विचारों को लोगों तक पहुंचाया जा रहा है.

 

ऐसे में साल 2022 में कम्युनिस्ट पार्टी में केंद्रीकरण तो देखेगा ही, बाहरी दुनिया के ख़िलाफ वह और भी आक्रामक हो सकता है. वह किसी तरह की आलोचना या दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अगर इस योजना पर आगे बढ़ती है तो शी इस साल के आख़िर तक ऐसे मुकाम पर होंगे, जहां उनसे पहले कोई भी राष्ट्रपति नहीं पहुंचा है. उनके पास इतनी पावर होगी, जो पहले चीन के किसी भी लीडर के पास नहीं रही है. चाहे वह इकॉनमिक पावर हो या पॉलिटिकल पावर. शी के चारों ओर ऐसी टीम होगी, जो उन्होंने पिछले दस सालों में बनाई है.

साल 2022 भारत के लिए ही नहीं, सबके लिए एक निश्चय का साल होगा. हम सब देख रहे हैं कि किस तरह से जो मुद्दे हैं, चाहे वो बॉर्डर एरिया में इलाकों का फिर से नामकरण हो, या जो झूठा कैंपेन चीन चला रहा है, झंडा फहराने का फर्जी विडियो जारी कर रहा है तो भारत के साथ ऐसी अदावत और बढ़ेगी. दूसरी ओर, हिंद-प्रशांत को लेकर अमेरिका और चीन के बीच टेंशन बढ़ेगी.

चीन में ये जो बदलाव होंगे, उनका असर उसकी विदेश नीति पर भी पड़ेगा. जब कोई नेता अपनी ताकत बढ़ा रहा है, ख़ुद को चीन के लिए अनिवार्य बता रहा है, वह अपने देश के लोगों को दिखाना चाहेगा कि दुनिया भर में उसकी कैसे इज्ज़त हो रही है. वह जो चाहता है, वह करता है. चीन इस मामले में कोई भी समझौता नहीं करेगा. इसी वजह से वह बार-बार कह रहा है कि ताइवान उनका है. दूसरे देशों के साथ भी सीमा को लेकर जो विवाद है, शी उसमें पीछे नहीं हटेंगे.

 

इसलिए अमेरिका के साथ राजनीतिक विवाद और बढ़ेगा. उसमें जहां तक इंगेजमेंट का सवाल है, भारत की या ऐसे किसी भी देश की जो चीन के खिलाफ हैं या जिन्हें चीन से समस्या है, उनके साथ बहुत एंगेजिंग रोल तो मुझे नजर नहीं आता है. साल 2022 भारत के लिए ही नहीं, सबके लिए एक निश्चय का साल होगा. हम सब देख रहे हैं कि किस तरह से जो मुद्दे हैं, चाहे वो बॉर्डर एरिया में इलाकों का फिर से नामकरण हो, या जो झूठा कैंपेन चीन चला रहा है, झंडा फहराने का फर्जी विडियो जारी कर रहा है तो भारत के साथ ऐसी अदावत और बढ़ेगी. दूसरी ओर, हिंद-प्रशांत को लेकर अमेरिका और चीन के बीच टेंशन बढ़ेगी.

हिंद-प्रशांत का इलाका हो, या पश्चिमी देशों, अमेरिका के साथ उसका विवाद हो, वह बढ़ता हुआ ही नजर आ रहा है. अमेरिका और कई पश्चिमी देशों ने भी अब पुशबैक की पॉलिसी शुरू कर दी है, चाहे वह डेमोक्रेसी के मुद्दे पर हो या अमेरिका के वापस दुनिया को बेहतर बनाने के प्रोग्राम पर हो. पश्चिमी देश कई सारे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट ला रहे हैं.

चीन के ख़िलाफ पुश बैक पॉलिसी शुरू

पिछले दो सालों में इसमें एक बड़ी बात हुई है कि शी ने विदेश यात्रा नहीं की है. वह एक तरह से डरे हुए हैं, कोविड को लेकर. चीन में भी कोविड की जो स्थिति है, वह गंभीर है. उन्होंने अपने दो बड़े प्रांतों में लॉकडाउन अभी भी लगाया हुआ है, उनके यहां केसेज बढ़े हैं. तो इंटरनेशनल सिस्टम और इंटरनेशनल कम्युनिटी के साथ चीन के एंगेजमेंट में भी कमी आएगी. चीन का फोकस इंटरनल होगा, कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस पर होगा, कोविड को रोकने पर होगा. जो अंतरराष्ट्रीय मुद्दे हैं, उसमें ऐसा लगता नहीं कि चीन किसी तरह के समझौते की ओर जाएगा. वजह यह कि किसी भी हाल में अगर शी कमजोर दिखते हैं, तो उससे उनका सुप्रीम लीडर का सारा प्रॉजेक्शन भी कमजोर हो जाता है. हिंद-प्रशांत का इलाका हो, या पश्चिमी देशों, अमेरिका के साथ उसका विवाद हो, वह बढ़ता हुआ ही नजर आ रहा है. अमेरिका और कई पश्चिमी देशों ने भी अब पुशबैक की पॉलिसी शुरू कर दी है, चाहे वह डेमोक्रेसी के मुद्दे पर हो या अमेरिका के वापस दुनिया को बेहतर बनाने के प्रोग्राम पर हो. पश्चिमी देश कई सारे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट ला रहे हैं. वह एक तरह से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के कॉन्टेक्स्ट में उन्हें खड़ा करने की कोशिश है.

 

2021 के आख़िर में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने डेमोक्रेसी पर जो वर्चुअल समिट बुलाई, उसके बाद से एक नैरेटिव सेट हो गया है. अमेरिका और चीन में जो राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है, उसमें एक तरह से दोनों देश दो ध्रुव बनते नजर आ रहे हैं. इसमें चाइना की जो एक्टिव अप्रोच रही है. जिसे वुल्फ वॉरियर डिप्लोमैसी कहा जा रहा है. पिछले कुछ सालों से इसमें तेजी दिखी है और आगे चलकर यह और बढ़ सकती है.

भारत को भी इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि सीमा पर जो समस्या बनी हुई है, उसमें किसी तरह की राहत नहीं मिलने जा रही. मुझे तो लगता है कि यह और बढ़ सकती है

इसमें भारत को भी इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि सीमा पर जो समस्या बनी हुई है, उसमें किसी तरह की राहत नहीं मिलने जा रही. मुझे तो लगता है कि यह और बढ़ सकती है. 2022 चीन के अंदरूनी मोर्चे में बहुत महत्वपूर्ण साल है और जब भी अंदरूनी फोकस होता है एक अथॉरिटेरियन स्टेट का, तो अंदरूनी समस्याओं को दबाने के लिए बाहरी समस्याओं का इस्तेमाल बहाने के तौर पर होता है. ऐसे में मुझे नहीं लगता है कि भारत-चीन के बीच जो जो सीमा विवाद हैं, उनमें कमी आएगी.

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