Published on Sep 22, 2020 Updated 0 Hours ago

हिंद महासागर से होकर गुज़रने वाले जिन समुद्री रास्तों का उपयोग चीन तमाम तरह के मक़सदों के लिए करता है, उनमें कई ऐसे ठिकाने हैं, जो संकरे हैं और चीन के लिए मुश्किलें पैदा कर सकते हैं.

हिंद महासागर में चीन: भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसके मायने

चीन के ऊर्जा संबंधी हित, प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच बनाने का सतत प्रयास, लगातार बढ़ते कारोबारी हितों और हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी मूल के लोगों की लगातार वृद्धि के चलते एक बात बिल्कुल तय है. वो ये कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की नौसना की उपस्थिति लगातार शक्तिशाली होती जाएगी.

चीन के चमत्कारिक आर्थिक सामरिक विकास का भारत के ऊपर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ना तय है. क्योंकि दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से पेचीदा रहे हैं. आज भारत और चीन की सामरिक शक्ति में काफ़ी असंतुलन आ चुका है. इसके अलावा दोनों ही देश जिस महत्वाकांक्षी भविष्य की ओर बढ़ना चाह रहे हैं, उससे दोनों के बीच प्रतिद्वंदिता तय है. चीन लगातार भारत के आस पास के क्षेत्र में अपने सामरिक प्रभाव को बढ़ा रहा है. जिसतरह चीन और भारत के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बना हुआ है. उसी तरह भारत के दो अन्य पड़ोसी देशों नेपाल व चीन ने भी भारतीय क्षेत्र पर अपनी दावेदारी ठोकी है. जिसके पीछे संभवत: चीन का ही हाथ है. क्षेत्रीय दावेदारी किसी भी देश मूल हितों में शुमार किए जाते हैं. और कोई भी देश इस मुद्दे पर समझौता नहीं करना चाहता. नेपाल और पाकस्तान ने भारतीय सीमा में अपने जिस अधिकार का दावा किया है, उसे लेकर भारत को अधिक चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. क्योंकि भारत इन देशों से सामरिक और आर्थिक मोर्चे पर बहुत आगे है. लेकिन, जिसतरह से चीन भारतीय क्षेत्र में अपनी दावेदारी को बढ़ा रहा है. उसे देखते हुए ये साफ़ है कि चीन के मूल हितों का भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति पर प्रभाव पड़ने वाला है. ख़ासतौर से भारत के पड़ोसी देशों के क्षेत्र में. 

चीन ने हमेशा ही अपने मूल हितों को बहुत व्यापक रूप से परिभाषित किया है. इससे चीन को ये लाभ होता है कि जैसे जैसे बात आगे बढ़ती है, वो ख़ास क्षेत्रों में अपने अधिकार क्षेत्र को और लचीला बनाते हुए बढ़ाता जाता है.

प्रत्यक्ष प्रमाण

पहली बात तो ये है कि चीन ने हमेशा ही अपने मूल हितों को बहुत व्यापक रूप से परिभाषित किया है. इससे चीन को ये लाभ होता है कि जैसे जैसे बात आगे बढ़ती है, वो ख़ास क्षेत्रों में अपने अधिकार क्षेत्र को और लचीला बनाते हुए बढ़ाता जाता है. वर्ष 2009 में चीन के स्टेट काउंसलर या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे डाय बिंग्गुओ ने राष्ट्रीय सुरक्षा’को चीन के मूल हितों के तौर पर परिभाषित किया था. इसके अलावा, 2011 के व्हाइट पेपर में चीन ने पहली बार अपने मूल हितों को आधिकारिक रूप से परिभाषित किया था. इन्हें देखने पर पता चलता है कि चीन के नेताओं के पास इस बात की व्यापक परिभाषा है कि वो किन मुद्दों को अपने राष्ट्रीय हितों में शामिल कर सकें. यानी वो किसी भी मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला बता कर उसे अपने कोर इंटरेस्ट या मूल हितों में गिन सकते हैं. दूसरी बात जैसे-जैसे चीन अपनी सैन्य ताक़त को बढ़ा रहा है और उसकी आर्थिक शक्ति का विस्तार हो रहा है, उसे देखते हुए तो चीन अपने मूल हितों के दायरे को समेटने तो बिल्कुल ही नहीं जा रहा है. बल्कि, इसके उलट जैसे जैसे चीन की सैनिक और आर्थिक ताक़त का विस्तार होगा, उसके मूल हितों का दायरा भी बढ़ता जाएगा. और बदली हुई परिस्थितियों में चीन की प्राथमिकताएं भी बदलती जाएंगी. तीसरी अहम बात ये है कि चीन ने देश के मूल हितों की रक्षा की ज़िम्मेदारी को बड़ी मज़बूती से अपनी सेनाओं के हवाले कर दिया है. चीन ने ये घोषणा भी की है कि वो एक असरदार सैन्य बल विकसित करेगा. ख़ासतौर से मध्यम अवधि के युद्ध में जीत हासिल करने वाली समुद्री ताक़त का विस्तार करने पर उसका बहुत ज़ोर है. चीन की नौसेना क्षेत्रीय स्तर पर भीषण युद्ध के लिए ख़ुद को तैयार कर रही है.

भारत के लिए क्या मायने हैं?

ऐतिहासिक रूप से देखें, तो चीन एक व्यापारिक देश के तौर पर समुद्री व्यापारिक मार्गों पर काफ़ी निर्भर रहा है. हाल के समय में चीन की समुद्री व्यापारिक मार्गों पर ये निर्भरता और बढ़ गई है. आज चीन का जहाज़ी बेड़ा दुनिया के कुल जहाज़ी बेड़े का 15 प्रतिशत यानी सबसे बड़ा है. पिछले दो दशकों में चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र की व्यापारिक अहमियत को काफ़ी समझा है. इसके कई कारण हैं. अगले तीस वर्षों में इस बात की काफ़ी संभावना है कि चीन की ऊर्जा यानी तेल और गैस संबंधी खपत दोगुनी हो जाएगी. ऊर्जा की इस घरेलू मांग को पूरा करने के लिए चीन मुख्य तौर पर आयात पर निर्भर होगा. इसलिए चीन के मुख्य व्यापारिक मार्ग अगले तीन दशक तक वैसे ही रहने की संभावना है, जैसे आज हैं. चीन का 75 से 80 प्रतिशत तक ऊर्जा संबंधी आयात समुद्री मार्ग के माध्यम से ही होता है. और इसका एक बड़ा हिस्सा हिंद महासागर क्षेत्र से होकर ही गुज़रेगा. चीन ने जिस समुद्री सिल्क रूट की कल्पना की है, वो चीन पाकिस्तान के आर्थिक गलियारे के अतिरिक्त है, जो चीन को बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट तक पहुंच प्रदान करता है. CPEC के विकास के बावजूद, चीन का तेल और गैस के आयात का मुख्य माध्यम समुद्री व्यापार ही होगा, जो पश्चिम के खाड़ी देशों से हिंद महासागर क्षेत्र होते हुए चीन तक पहुंचता है.

दूसरी बात ये है कि चीन ने मार्च 2016 में अपनी जिस पंचवर्षीय योजना (Five Year Plan-FYP) को मंज़ूरी दी है, उसमें ऐसे प्रोजेक्ट्स पर ज़ोर देने की बात कही गई है, जो समुद्र की गहराई में पड़ताल करने वाले उच्च स्तर के उपकरणों का विकास कर सकें. जैसे कि समुद्र में खुदाई, समुद्र की तलहटी के संसाधनों का मूल्यांकन एवं विकास और अन्य समुद्री कार्यों में सहयोग करना. चीन के गहरे समुद्र में अन्वेषण करने वाले जहाज़, जैसे कि समुद्र में डूब कर पड़ताल करने वाला जियालोंग नाम के जहाज़ का 2017 में जलावतरण. ये जहाज़ पहले से ही हिंद महासागर में खोज बीन और अनुसंधान का काम कर रहे हैं. इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी ने पहले ही जियालोंग को एक ठेका दिया है कि वो हिंद महासागर क्षेत्र में पॉलीमेटैलिक सल्फाइड की खोज का काम करे. ऐसे कार्यों से समुद्र तल से संबंधित तमाम अन्य आंकड़े भी मिलते हैं. इन आंकड़ों की मदद से सैनिक लक्ष्य हासिल करने में भी मदद मिलती है. इनमें समुद्र के भीतरी इलाक़ों में चीन की बढ़ती सैनिक गतिविधियां भी शामिल हैं.

तीसरी बात ये है कि चीन आर्थिक संपर्क का दायरा लगातार बढ़ा रहा है. इसके निर्यात में निरंतर वृद्धि हो रही है. BRI प्रोजेक्ट के तहत चीन तमाम देशों में अपना निवेश बढ़ा रहा है. बहुत से देशों को चीन सैन्य उपकरण भी बेच रहा है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि हिंद महासागरीय क्षेत्र में स्थित देशों के पास किस तरह के प्राकृतिक संसाधन हैं. चीन ने अफ्रीका के पूर्वी तट पर बंदरगाह विकसित करने में भारी मात्रा में निवेश किया है. 2017 में चीन ने पूर्वी अफ्रीका के देश जिबूती में अपना पहला सैनिक अड्डा भी बनाया था. चीन, म्यांमार के क्याउकफ्यू में एक गहरे समुद्र वाला बंदरगाह भी विकसित कर रहा है. पाकिस्तान के ग्वादर में भी चीन CPEC के तहत बंदरगाह बना रहा है. चीन, श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट का निर्माण कर रहा है, तो हम्बनटोटा पोर्ट का संचालन कर रहा है. बांग्लादेश का चटगांव बंदरगाह भी चीन संचालित कर रहा है. चीन से मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे हिंद महासागर के छोटे-छोटे द्वीपीय देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है. हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को चीन के कुल निर्यात का 7-8 प्रतिशत जाता है. और ये दस प्रतिशत प्रति वर्ष की गति से बढ़ रहा है. चीन अपनी प्राकृतिक संसाधनों की ज़रूरत जैसे कि धातुओं, अयस्कों, खनिजों और कृषि संबंधी कच्चे माल जैसे कि कच्चे रबर, कच्चा कपास और अन्य तमाम रेशों के लिए भी ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और थाईलैंड जैसे देशों पर निर्भर है, जो हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित हैं.

चीन से मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे हिंद महासागर के छोटे-छोटे द्वीपीय देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है. हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को चीन के कुल निर्यात का 7-8 प्रतिशत जाता है. और ये दस प्रतिशत प्रति वर्ष की गति से बढ़ रहा है.

संभावित कमज़ोरियां

हिंद महासागर से होकर गुज़रने वाले जिन समुद्री रास्तों का उपयोग चीन तमाम तरह के मक़सदों के लिए करता है, उनमें कई ऐसे ठिकाने हैं, जो संकरे हैं और चीन के लिए मुश्किलें पैदा कर सकते हैं. जैसे कि होरमुज़ जलसंधि, मलक्का जलसंधि, लोम्बोक जलसंधि और सुंडा स्ट्रेट्स. इन इलाक़ों में संभावित ख़तरों से निपटने के लिए चीन की नौसेना की मौजूदा तैनाती अपर्याप्त है. कम से कम सैद्धांतिक तौर पर तो यही लगता है. अगर किसी अन्य देश से चीन का संघर्ष छिड़ता है तो उसके जहाज़ों को कोई भी विरोधी ताक़त रोक सकती है. अंतराराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में चीन के जहाज़ों को आक्रामक रूप से रोके जाने का ख़तरा तो है ही. ऐसे संभावित हालात से निपटने के लिए चीन की नौसेना को अपने आस-पास के समुद्री तटों की रक्षा के साथ साथ दूर समुद्री मार्गों पर अपने देश के जहाज़ों की रक्षा के लिए भी नए सिरे से रणनीति बनाने को मजबूर होना पड़ा है.

चीन की रणनीति

चीन के सामरिक विचारों में हिंद महासागर क्षेत्र की बहुत अहमियत है. चीन ने अपनी जिस 13वीं पंचवर्षीय योजना की घोषणा की 2016 में की थी. उसके अंतर्गत चीन ने 2016 से 2020 के दौरान पूरे किए जाने वाले प्रोजेक्ट्स का व्यापक खाका प्रस्तुत किया था. इसमें चीन को एक सशक्त समुद्री ताक़त के तौर पर विकसित करने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया था. इस योजना के तहत जो प्रमुख लक्ष्य चीन ने तय किए थे, उसमें चीन के समुद्री अधिकारों और हितों की मज़बूती से रक्षा करने का भी था. चीन की कोशिश अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय समुद्री व्यवस्था विकसित करने और उसके संचालन में अग्रणी भूमिका निभाने की भी है. इस बात से साफ़ है कि चीन को समुद्री व्यापार की मौजूदा विश्व व्यवस्था स्वीकार्य नहीं है.

चीन की कोशिश अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय समुद्री व्यवस्था विकसित करने और उसके संचालन में अग्रणी भूमिका निभाने की भी है. इस बात से साफ़ है कि चीन को समुद्री व्यापार की मौजूदा विश्व व्यवस्था स्वीकार्य नहीं है.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जुलाई 2013 में प्रतिज्ञा की थी कि चीन‘कभी भी अपने वाजिब समुद्री अधिकारों और हितों की रक्षा से पीछे नहीं हटेगा.’2013 का चीन का रक्षा संबंधी श्वेत पत्र कहता है कि, सागर और महासागरों में पर्याप्त मात्रा में संसाधन और क्षेत्र उपलब्ध है, जो चीन के टिकाऊ विकास के संसाधन उपलब्ध करा सके. इसीलिए समुद्री क्षेत्र चीन की जनता के वर्तमान और भविष्य के हितों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. 2015 में जारी हुआ सैनिक रणनीति पर चीन का श्वेत पत्र कहता है कि-चीन के राष्ट्रीय हितों में वृद्धि के साथ साथ आज चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय उठापटक की शिकार होने की आशंका बढ़ गई है. इससे हमारे अन्य क्षेत्रों से संबंधित ऊर्जा और संसाधन संबंधी हितों पर ख़तरा पैदा होने का डर है. ऐसे में सामरिक रूप से समुद्री संचार के मार्ग फौरी चिंता और ध्यान का विषय बन चुका है.

हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति

वर्ष 2008 से पहले चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) अपने तटीय क्षेत्रों और पश्चिमी प्रशांत महासागर के क्षेत्र में गश्त लगाया करती थी. लेकिन, वर्ष 2008 के बाद से चीन की नौसेना अपनी क्षमता में लगातार वृद्धि कर रही है. इसकी वजह से ये अफ्रीका में सोमालिया के तट और अदन की खाड़ी जैसे दूर के इलाक़ों में समुद्री डाकुओं के ख़िलाफ़ अभियान चला रही है. चीन की नौसेना को इसका मौक़ा तब मिला जब दिसबंर 2008 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने समुद्री डकैती के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया. शुरुआत में तो चीन की नौ सेना केवल व्यापारिक जहाज़ों की सुरक्षा करती थी. ख़ासतौर से उन जहाज़ों की जो मानवीय मदद से जुड़ी सामग्री लेकर अंतरराष्ट्रीय संगठनों तक पहुंचाने का काम करते थे. इसके बाद चीन की नेवी ने अन्य देशों के जहाज़ों की सुरक्षा में भी साथ साथ चलने का काम शुरू किया. दूसरी ओर, चीन ने अपने नौसैनिक जहाज़ों को हिंद महासागरीय क्षेत्र के देशों के साथ युद्धाभ्यासों के लिए भी तैनात किया. इसमें भारत भी शामिल है. समुद्री डकैती के ख़िलाफ़ चीन की नौसेना की टास्क फोर्स ने तमाम देशों की नेवी के साथ युद्धाभ्यास किए हैं. इनमें ऑस्ट्रेलिया की रॉयल नेवी और हिंद महासागर में पाकिस्तान की नौसेना के साथ अभ्यास भी शामिल है. आज की तारीख़ में चीन के नौसैनिक, उन समुद्री ठिकानों पर अन्य देशों के नौसैनिकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं, जहां पर चीन की नौसेना ने हाल ही में अड्डे बनाए हैं. इनमें, बांग्लादेश, पाकिस्तान, ईरान और कई अफ्रीकी देश शामिल हैं. तीसरी बात ये कि ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने वाले चीन के जहाज़ आज हिंद महासागर में अक्सर आंकड़ों का संग्रह करते हुए दिखाई दे जाते हैं. चौथी बात ये कि 2013 में चीन की नौसेना ने अपनी एक पनडुब्बी को हिंद महासागर क्षेत्र में तैनात किया था. हालांकि, इसके पीछे समुद्री डकैतों पर लगाम लगाने का मक़सद बताया गया था. 2014 में चीन की एक पनडुब्बी ईंधन लेने के लिए कोलंबो बंदरगाह के तट पर आई थी. इसी तरह नवंबर 2016 में चीन की एक पनडुब्बी को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर देखा गया था. पांचवीं बात ये कि पीपुल्स लिबेशन आर्मी नेवी (PLAN) ने तमाम देशों के नागरिकों को सुरक्षित निकासी के अभियानों में भी मदद की है. पहली बार चीन की नौसेना ने ये काम वर्ष 2011 में लीबिया में किया था. और दूसरी बार यमन में वर्ष 2015 में किया था. वर्ष 2019 में भारत के नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लाम्बा ने कहा था कि इस समय हिंद महासागर में छह से आठ जहाज़ मौजूद रह रहे हैं. पनड्डुब्बियों की गश्त इसके अतिरिक्त है.

निष्कर्ष

हिंद महासागर क्षेत्र में अपने जहाज़ों की नियमित तैनाती और युद्धाभ्यास के ज़रिए चीन की नौसेना ने दो अलग अलग क्षेत्रों और अन्य देशों की नेवी के साथ मिलकर काम करने का अच्छा अनुभव प्राप्त कर लिया है. इस इलाक़े में गश्त लगाने का चीन की नौसेना को अब सीधा अनुभव प्राप्त हो गया है. इसे चीन की नौसेना को भविष्य में उपजने वाले किसी भी संघर्ष से निपटने का कौशल और संसाधन जुटाने का मौक़ा भी मिला है. जिसकी मदद से चीन की नौसेना आने वाले समय में लंबे समय और लंबी दूरी के अभियानों का संचालन कर सकेगी.

आधिकारिक रूप से चीन ने हिंद महासागर में न तो अपने हितों और न ही योजना को सुस्पष्ट रूप से परिभाषित किया है. लेकिन, इस बात की संभावना ज़रूर है कि चीन, हिंद महासागरीय क्षेत्र से होकर जाने वाले महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों के संरक्षण को अपने लक्ष्यों में शामिल करेगा.

भविष्य में भी हिंद महासागर क्षेत्र के महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों तक पहुंच चीन के भविष्य के लिए अहम बनी रहेगी. चीन के ऊर्जा संबंधी हित और प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच बनाने का सतत प्रयास और लगातार व्यापक होते जा रहे चीन के हितों को अगर हम हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी मूल के लोगों की बढ़ती उपस्थिति के साथ जोड़ दें, तो, यक़ीनन चीन की नौसेना इस क्षेत्र में अपनी ताक़त बढ़ाने का प्रयास करती रहेगी. इसके कारण चीन की नौसेना हर सामरिक विचार और समुद्री व सैनिक नीति के निर्धारण के समीकरणों में भी शामिल रहेगी. हालांकि, आधिकारिक रूप से चीन ने हिंद महासागर में न तो अपने हितों और न ही योजना को सुस्पष्ट रूप से परिभाषित किया है. लेकिन, इस बात की संभावना ज़रूर है कि चीन, हिंद महासागरीय क्षेत्र से होकर जाने वाले महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों के संरक्षण को अपने लक्ष्यों में शामिल करेगा. हो सकता है कि भविष्य में चीन, हिंद महासागर क्षेत्र के समुद्री व्यापारिक मार्गों को भी अपने मूल हितों में शामिल कर ले. इससे इस क्षेत्र में भारत के मुक्त रूप से नौसैनिक गतिविधियों के संचालन पर व्यापक प्रभाव पड़ना तय है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.