जैसे जैसे अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा के हालत लगातार बिगड़ रहे हैं और राजनीतिक माहौल भी ख़राब होता जा रहा है वैसे वैसे यहाँ चीन को अपनी मौजूदगी बनाने में आसानी हो रही है। हालाँकि चीन और अफ़ग़ानिस्तान कि साझा सीमा सिर्फ ७६Km लम्बी है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा कि बिगडती स्थिति पर चीन की चिंता लगातार बढती रही है। चीन के सदाबहार दोस्त पाकिस्तान कि सीमा भी अफ़ग़ानिस्तान से लगी हुई है, जहाँ आतंकवादियों कि भारी संख्या में मौजूदगी, विश्व शक्ति चीन के शिनजियांग इलाके में खतरा और बढाती है। शिनजियांग अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर है और यहाँ उईघर मुसलमानों कि बड़ी आबादी है जिन्हें चीन की सरकार दबा कर रखती है। शिनजियांग का ये इलाका दुनिया के के उन क्षेत्रों में है जहाँ सबसे ज्यादा निगरानी है।
इसी साल के शुरुआत में एक रिपोर्ट आई कि चीन अफ़ग़ानिस्तान के उत्तर पूर्वी इलाके बदक्शां में एक सैनिक बेस बनाना चाहता है। बदक्शां का इलाका ताजीकिस्तान और पाकिस्तान सीमा पर है और ये सीमा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और चीन से होकर गुज़रती है। ये जानकारी आते ही इस इलाके के सारे क्षेत्रीय खिलाडी सक्रिय हो गए, ख़ास तौर पर भारत में इस पर काफी हलचल हुई क्यूंकि अफ़ग़ानिस्तान में भारत की सामरिक रूचि और मौजूदगी दोनों है। चीन अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति और स्थिरता चाहता है, लेकिन ख़ास तौर पर में बदक्शां में एक सैनिक बेस बनाने में चीन की रूचि तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (TIP ) के कारण है, जिसके तार अल कायदा और तालिबान से जुड़े हैं और जिसका चीन के जिनजिंग इलाके में उईघर मुस्लिम आबादी पर काफी प्रभाव है। TIP के राष्ट्रवाद और अलगाववाद की गूँज इस इलाके में भी है।
मार्च में ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट यानी कि TIP ने कुछ तसवीरें, कुछ पर्चे कुछ विडियो जारी किए जिसमें अफ़ग़ानिस्तान के कबायली इलाकों में उनकी मौजूदगी, पहुँच और उनके ऑपरेशन के बारे में जानकारी थी। तालिबान के साथ उनके साझा ऑपरेशन का विडिय़ो दिखाया गया, कुछ छोटे बच्चों को हथियार इस्तेमाल करते हुए दिखाया गया। साथ ही अमेरिकी Humvees और दुसरे हथियार पर क़ब्ज़ा करने का विडियो। TIP के विडियो जारी होने के १ महीने बाद एक अमेरिकन B52 बॉम्बर ने बदक्शां के वार्दुज इलाके में TIP के तथाकथित ठिकाने पर हमला किया, ये इलाका २०१६ से तालिबान के कब्जे में था जब से तालिबान ने कुंदुज़ और ताजीकिस्तान बॉर्डर के बीच के हाईवे पर क़ब्ज़ा किया था। माना जा रहा है कि ये हमला अमेरिका और बीजिंग कि साझा रजामंदी से हुआ है। विश्लेषक मानते हैं कि तीन साल पहले यहाँ तालिबान का क़ब्ज़ा TIP की मदद से ही हो पाया है, जिसने इसके बाद से ट्रेनिंग की जडें जिन्जियांग और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में फैला दी हैं। इस ग्रुप कि सीरिया में भी बड़ी मौजूदगी है और इद्लिब की जंग में इसका हाथ रहा है।
तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी कि चीन के उईघर मुसलमानों के बीच मौजूदगी और उनपर उसका असर चीन के लिए एक बड़ा खतरा है। बीजिंग इन पर निगरानी रखने के लिए आधुनिकतम तकनीक अपना रहा है और साथ ही चीन सरकार के मुताबिक इस्लाम के स्वरूप को ऐसे बदल रहा है जो कम्युनिस्ट शासन की विचारधाराओं से मेल खता हो।
TIP जहाँ जहां फल फूल रही है वहीँ उसे ख़त्म करने के लिए चीन में राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है और साथ ही सैनिक शक्ति भी ताकि आतंक के खिलाफ लड़ाई चीन के प्रभाव क्षेत्र के बाहर भी जारी रखी जा सके। अफ़ग़ानिस्तान में बीजिंग अमेरिकी हमले के पहले से उईघर अलगाववादियों के विरुद्ध अपनी कूटनीति में लगा हुआ है। आज भी वो काबुल पर अच्छा खासा दबाव डालता रहता है कि TIP के खिलाफ सटीक कार्यवाई की जाए , साथ साथ वो तालिबान और अमेरिका के समर्थन वाली अशरफ गनी कि मौजूदा सरकार के बीच बातचीत के लिए भी सक्रिय है ताकि तालिबान और सरकार के बीच शांति बनाई जा सके। पिछले साल मार्च में बीजिंग ने शान्ति वार्ता के लिए तालिबान के एक दल की मेजबानी कि थी और साथ ही चर्चा हुई थी, ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दे अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों का क्यूंकि चीन चाइना पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर में 60 बिलियन का निवेश कर रहा है।
अफ़ग़ानिस्तान में चीनी सेना कि मौजूदगी यहाँ मौजूद भारत के लिए मुश्किल स्थिति खड़ी करती है। हालांकि यहां चीनी सेना का लक्ष्य सीमित है, TIP के असर को कम करना और उसे कमजोर करने में अफ़ग़ान सरकार कि मदद करना, लेकिन पाकिस्तान से चीन का भाईचारा यहाँ ज़मीन पर काफी असर पैदा कर सकता है। अफ़ग़ान अर्थव्यवस्था, राजनीती से लेकर समाज पर भारतीय असर और पाकिस्तान की मौजूदगी भारत के असर के खिलाफ दबाव बना सकती है। तालिबान को मुख्यधारा में लाने कि कोशिश को भारत किनारे से सिर्फ देख रहा है क्यूंकि अच्छे और बुरे आतंक में भारत फर्क नहीं करता। भारत का ये रुख कश्मीर के हालात कि वजह से हैं इसी आधार पर न सिर्फ एक क्षेत्र में बल्कि दुनिया भर में फैलते आतंक के खिलाफ भारत ने अपना रुख तय किया है।
प्रधानमंती नरेन्द्र मोदी के साथ हाल ही में हुए वुहान शिखर सम्मेलन में ये मुद्दा भी उठा। अफ़ग़ानिस्तान में चीन और भारत के साझा आर्थिक प्रोजेक्ट कि बात हुई।
हलांकि ये पहली बार नहीं हुआ है कि दो देशों के बीच इस तरह के सहयोग की बात हुई है, लेकिन अच्छा है कि इन दोनों देशों को चुनैतिपूर्ण परिस्थितियों में काम करने का तजुर्बा है। ऐसे क्षेत्रों में जो राजनीतिक तौर पर चुनौती से भरे हैं। सीरिया में गृह युद्ध शुरू होने के पहले भारत और चीन दोनों कि कंपनियां सीरिया के तेल भंडारों में निवेश कर रही थीं। अफ़ग़ानिस्तान में चीन कि सैन्य मौजूदगी कुछ हद तक भारत के हक में भी हो सकती है।
चीन के बड़े वैश्विक स्तर पर चल रहे प्रोजेक्ट जैसे बेल्ट रोड पहल और चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर सुरक्षा और स्थायित्व पर निर्भर हैं। इसलिए हो सकता है कि चीन इस्लामाबाद पर दबाव बनाए कि तालिबान को मदद देना बंद करे। इसका असर TIP पर भी पड़ेगा और उसका आर्थिक ढांचा कमज़ोर होगा और क्षेत्र में उसका प्रभाव कम होगा।
बदक्शां बेस का आईडिया आज न कल लागु होगा और हो सकता है कि मौजूदा ट्रम्प प्रशासन में इसे अमेरिका से सहयोग भी मिले, क्यूंकि ट्रम्प के लिए इस से अव्छा क्या होगा कि अफ़ग़ानिस्तान में आतंक के खात्मे का बोझ उनके साथ कोई और भी साझा करे।
बदक्शां बेस के साथ चीन TIP के खतरे से सीधे तौर पर तो निपटेगा ही साथ ही वो ये दिखाएगा कि ये पहल दुनिया भर में सुरक्षा और शांति के लिए कितनी ज़रूरी है। दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रवैय्ये कि वजह से दुनिया के किसी देश को भी ये मानना मुश्किल लगता है कि चीन को विश्व शांति और स्थिरता कि कोई फ़िक्र है। चीन हिन्द प्रशांत महासागर क्षेत्र (इंडो पसिफ़िक) में भी क़र्ज़ के जाल कि कूटनीति में लगा हुआ है। हाल ही में अफ्रीका के जिबूती में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का एक बेस बना है जो दिखाता है कि किस तरह आने वाले दिनों में बनने वाला चीनी सैनिक बेस विश्व शांति बनाये रखने में काम कर सकता है। हालाँकि बेस के शुरू होते ही चीन ने वहां सैनिक ड्रिल शुरू कर दिया था। अगर अफ़ग़ानिस्तान में चीनी अपना एक सक्रिय सैनिक ठिकाना बनाते हैं तो ये जाहिर है कि चीन का इस देश में एक बड़े रोल का इरादा है। हो सकता है कि भारत के लिए भी अच्छा हो। हो सकता है कि इसकी वजह से वैश्विक मंच पर चीन पर ज्यादा दबाव बने कि वो पाकिस्तान को तालिबान को खुला समर्थन देने पर लगाम लगाए।
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