Author : UDAYVIR AHUJA

Published on Dec 01, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन ने एक बार फिर अपना दबदबा ज़ाहिर करने की कोशिश है. उसने दक्षिण चीन सागर के लिए नये समुद्री कानून बनाये हैं, जो क्षेत्र में तनाव को बढ़ा सकते हैं.

चीन की नयी समुद्री नीति : क़ानून का इस्तेमाल, युद्ध के ‘हथियार’ की तरह

Source Image: Getty

29 अप्रैल 2021 को, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की 13वीं एनपीसी स्टैंडिंग कमेटी (NPCSC) के 28वें सत्र ने PRC के संशोधित मैरीटाइम ट्रैफिक शेफ्टी लॉ (MTSL) को स्वीकार किया. यह 1 सितंबर 2021 से प्रभावी हो चुका है. MTSL पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के न्यायाधिकार (jurisdiction) के तहत आनेवाले समुद्री इलाकों में समुद्री यातायात की सुरक्षा का नियमन करने वाला प्राथमिक क़ानून है.

दक्षिण चीन सागर (SCS) के अखाड़े में चीन अपना दबदबा स्थापित करने में जुटा हुआ है. वहां चीन जो आक्रामक पैंतरे दिखा रहा है, उसी के अनुरूप संशोधित यह MTSL उस इलाक़े की नाज़ुक शांति के भंग होने का ख़तरा पैदा करता है. ऐसा हो रहा है उस जाने-पहचाने दांव के चलते, जिसे ‘लॉफेयर’ (lawfare) कहते हैं, यानी युद्ध के हथियार के रूप में क़ानूनों का इस्तेमाल. यहां जिस क़ानून की बात की जा रही है, उसका मक़सद विवादित दक्षिण चीन सागर इलाके में चीनी न्यायाधिकार स्थापित करना है. इस इलाके को चीन नक्शे पर ‘नाइन-डैश लाइन’ के जरिये दिखाता है.

 दक्षिण चीन सागर (SCS) के अखाड़े में चीन अपना दबदबा स्थापित करने में जुटा हुआ है. वहां चीन जो आक्रामक पैंतरे दिखा रहा है, उसी के अनुरूप संशोधित यह MTSL उस इलाक़े की नाज़ुक शांति के भंग होने का ख़तरा पैदा करता है. 

समुद्री कानूनों को लेकर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS), 1982 एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जो सभी समुद्री (marine and maritime) गतिविधियों के लिए एक लीगल फ्रेमवर्क (क़ानूनी ढांचा) स्थापित करता है. चीन इस समझौते की 1996 में संपुष्टि कर चुका है, और इसलिए वह इससे बंधा हुआ है. क़रीब से नज़र डालें, तो संशोधित MTSL UNCLOS के विपरीत है, और इसलिए अंतरराष्ट्रीय कानून के विपरीत है.

क्या कहता है MTSL क़ानून

संशोधित MTSL की पहली और सबसे बड़ी ख़ास बात इस कानून को बरते जाने में है. यह इसके दायरे को ‘तटीय जलक्षेत्रों’ से बढ़ाकर ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के न्यायाधिकार के तहत आने वाले समुद्री इलाक़ों’ तक करता है. जैसे यह है, वैसी ही कई अस्पष्ट शब्दावलियां संशोधित क़ाननू में मौजूद हैं. यह पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की ओर से सोची-समझी क़वायद रही है, क्योंकि इससे उसे किसी ख़ास वक्त में तब के हालात के मुताबिक़ पैंतरा लेने की सहूलियत मिलती है.

‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के न्यायाधिकार के तहत आने वाले समुद्री इलाक़ों’ की सबसे उपयुक्त व्याख्या चीन के लॉ ऑन द टेरिटोरियल सी एंड द कंटीग्युअस ज़ोन के साथ की जा सकती है, जो कहता है :

‘[पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के] देशीय समुद्र (territorial sea) से आशय उसके देश की भूमि से लगे जलक्षेत्र से है. और PRC की देशीय भूमि (territorial land) में मुख्यभूमि और उसके अपतटीय द्वीप, ताइवान तथा विभिन्न संबद्ध द्वीप जिनमें Diaoyu Island, Penghu Islands, Dongsha Islands, Xisha Islands, Nansha (Spratly) Islands और ऐसे दूसरे द्वीप शामिल हैं जो चीन से ताल्लुक़ रखते हैं. PRC के आंतरिक जलक्षेत्र से आशय, भूमि से लगे देशीय समुद्र की बेसलाइन (baseline) के समानांतर जलक्षेत्र से है.’

इन शब्दों के असल मायने बयान करती है वह नाइन-डैश लाइन, जो पूर दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरती है. न्यायाधिकार का यही दावा 2016 में दक्षिण चीन सागर मध्यस्थता ट्रिब्युनल ने आधारहीन पाया था, क्योंकि ये दावे UNCLOS के विपरीत थे.

अगर चीन इस ख़ास प्रावधान, जोकि सीधे-सीधे अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ असंगत है, को थोपने पर उतारू रहता है, तो यह ध्वज राज्यों खास कर अमेरिका (US) के साथ संघर्ष का रूप लेने की हद तक पहुंच सकता है.

इस बदलाव के अहम होने की वजह यह है कि UNCLOS के मुताबिक़, तटीय राज्यों की संप्रभुता का विस्तार केवल उनके देशीय समुद्र (जो बेसलाइन से सिर्फ़ 12 नॉटिकल मील दूर तक माना जाता है) तक है. दूसरी तरफ चीन उपरोक्त शब्दावली के जरिये, दक्षिण चीन सागर के ज्यादातर हिस्से पर अपने न्यायाधिकार का दावा करता है. क़ानून लागू करने में इस तरह का विस्तार, क्षेत्र की नाज़ुक शांति के लिए गंभीर दुष्परिणाम पैदा करता है.

MTSL का एक और विवादास्पद प्रावधान, अनिवार्य पायलटेज (mandatory pilotage) से संबंधित है. अनिवार्य पायलटेज से आशय उस समुद्री यातायात नियम से है, जिसके तहत यह ज़रूरी है कि किसी जहाज़ का संचालन और नियंत्रण एक लाइसेंसधारी पायलट ही करे, जब तक कि वह जहाज़ छूट-प्राप्त श्रेणी में न आता हो. सामान्यत: इसकी ज़रूरत तटीय राज्यों के देशीय जलक्षेत्र में पड़ती है. सभी तटीय राज्यों की तरह, चीन ने भी अनिवार्य पायलटेज को ज़रूरी बना रखा है.

संशोधित MTSL निम्नलिखित के लिए अनिवार्य पायलटेज को ज़रूरी बनाता है :-

  1. विदेशी ध्वज वाले जहाज़
  2. नाभिकीय ऊर्जा से संचालित जहाज़, रेडियोऐक्टिव सामग्री ढो रहे जहाज़, और अति-विशाल तेल टैंकर
  3. भारी मात्रा में तरलीकृत गैस और ख़तरनाक रसायन ढोने वाले जहाज़ जो बंदरगाह की सुरक्षा को ख़तरे में डाल सकते हों
  4. ऐसे जहाज़ जिनकी लंबाई, चौड़ाई, और ऊंचाई उस नौवहन-योग्य चैनल (navigable channel) की स्थितियों की तय सीमाओं के क़रीब हो जिससे उसे गुज़रना है

यह सही है कि अनिवार्य पायलटेज सामान्यत: राज्यों के देशीय और तटीय जलक्षेत्रों से संबंधित है, लेकिन अगर MTSL के व्यावहारिक इस्तेमाल को ध्यान में रखें, तो इस मामले में अनिवार्य पायलटेज काफी समस्या भरा है. वजह वही पहले वाली है कि MTSL के प्रावधान अंतरराष्ट्रीय कानून, ख़ासकर UNCLOS के साथ, संगति में नहीं हैं. UNCLOS के तहत ‘तटीय राज्य उन विदेशी जहाज़ों पर अपनी ओर से तय ज़रूरतें नहीं थोप सकते जिसका व्यावहारिक असर हानिरहित आवाजाही के अधिकार (right of innocent passage) को कमज़ोर करता हो या उससे इनकार करता हो’. इतना ही नहीं, MTSL के तहत चीन के देशीय समुद्र के परे अनिवार्य पायलटेज की ज़रूरत को लागू करने का अंतरराष्ट्रीय क़ानून में कोई आधार नहीं है और यहां तक कि यह नौवहन (navigation) की स्वतंत्रता के सिद्धांत को ख़तरे में डालता है.

इसके अलावा, MTSL वाणिज्यिक और सरकारी जहाज़ों में कोई फ़र्क़ नहीं करता. यह अहम है क्योंकि UNCLOS के मुताबिक़, ‘देशीय समुद्र के परे, लड़ाकू जहाज़ों और गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए संचालित सरकारी जहाज़ों को ध्वज राज्य के अलावा किसी भी राज्य के न्यायाधिकार से पूरी तरह मुक्ति (immunity) हासिल है.’ ध्वज राज्य का मतलब वह देश है, जहां वह जहाज़ पंजीकृत या लाइसेंस-प्राप्त है. इस तरह, अगर चीन इस ख़ास प्रावधान, जोकि सीधे-सीधे अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ असंगत है, को थोपने पर उतारू रहता है, तो यह ध्वज राज्यों खास कर अमेरिका (US) के साथ संघर्ष का रूप लेने की हद तक पहुंच सकता है.

यह अंतरराष्ट्रीय कानून का बुनियादी सिद्धांत है कि ‘जहाज़ चाहे जिस ध्वज के हों, उन पर चाहे जो माल लदा हो, या वे चाहे जिस शक्ति से संचालित हों, वे देशीय समुद्र से हानिरहित आवाजाही का अधिकार रखते हैं. इसके लिए उन्हें न तो कोई पूर्व सूचना देने की जरूरत है और न ही किसी अनुमति की’. हानिरहित आवाजाही वह दस्तूर है, जिसके जरिये सभी राज्यों के जहाज़ों को ‘तटीय राज्यों के देशीय जलक्षेत्र से नौवहन की अनुमति है जब तक कि उनकी आवाजाही “हानिरहित” है और तटीय राज्य की शांति, सुव्यवस्था और सुरक्षा के लिए पूर्वाग्रहग्रस्त नहीं है.’

हानिरहित आवाजाही के अंतरराष्ट्रीय दस्तूर के ऊपर, MTSL विशिष्ट वर्गीकृत विदेशी जहाज़ों के प्रवेश और निकास पर पूर्व-सूचना की शर्त थोपता है. इन जहाज़ों में निम्नलिखित शामिल हैं :-

  1. पानी के भीतर चलने वाले (सबमर्सिबल) जहाज़
  2. नाभिकीय ऊर्जा से संचालित जहाज़
  3. रेडियोऐक्टिव सामग्री या अन्य विषाक्त एवं हानिकारक सामग्री लदे हुए जहाज़
  4. अन्य जहाज़ जो चीनी क़ानूनों या नियमनों, या स्टेट काउंसिल द्वारा तय चीन की समुद्री यातायात सुरक्षा को ख़तरे में डालते हों

यह प्रावधान समस्या भरा इसलिए है कि UNCLOS में उन गतिविधियों की एक लंबी फ़ेहरिस्त दी गयी है जिन्हें गैर-हानिरहित माना जाता है, और पूर्व सूचना नहीं देना उनमें शामिल नहीं है.

चीन की सोचीसमझी क़वायद

UNCLOS के मुताबिक़, तटीय राज्य प्रदूषण नियंत्रण, समुद्री यातायात के नियमन, समुद्री पर्यावरण के संरक्षण, और नौवहन की सुरक्षा के संदर्भ में हानिरहित आवाजाही से जुड़े नियम और नियमन अपना सकते हैं. लेकिन इसके साथ ही, तटीय राज्य विदेशी जहाज़ों के लिए अपनी ओर से ऐसा कुछ भी ज़रूरी नहीं बना सकते, जिसका व्यावहारिक प्रभाव हानिरहित आवाजाही के अधिकार को कमज़ोर करता हो या फिर उससे इनक़ार करता हो.

अंतरराष्ट्रीय समझौतों के मुताबिक़, राज्य चाहें तो नाभिकीय ऊर्जा से संचालित जहाज़ों या हानिकारक/ विषाक्त पदार्थों से लदे जहाज़ों के लिए निर्धारित समुद्री गलियारे का इस्तेमाल या फिर एहतियाती उपायों के पालन को ज़रूरी बना सकते हैं. हालांकि, राज्यों को इन जहाज़ों के लिए पूर्व सूचना देने की शर्त लगाने (जैसा कि MTSL में किया गया है) की अनुमति नहीं है.

आख़िरी बात, MTSL कहता है कि चीन के न्यायाधिकार वाले समुद्र में हानिरहित आवाजाही का इस्तेमाल कर रहे, गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल सरकारी जहाज़ (जिनमें युद्धपोत भी शामिल हैं) अगर चीनी क़ानून का उल्लंघन करते हैं, तो उन पर ‘संबंधित कानून और प्रशासनिक नियमन’ लागू किये जायेंगे. यहां भी अस्पष्ट और अनेकार्थी प्रावधानों का वही पैटर्न नजर आता है. यह स्पष्ट नहीं है कि ये कौन से क़ानून और प्रशासनिक नियमन हैं जो लगाये जायेंगे.

 ऐसा कोई जहाज़ या युद्धपोत अगर किसी ऐसी गतिविधि में शामिल हो जिसे चीन ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के न्यायाधिकार के तहत समुद्री इलाक़ों’ में ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के क़ानूनों या प्रशासनिक नियमनों का उल्लंघन’ करार दे सके, तो क्या कार्रवाई करनी है, इसके लिए उसने संशोधित MTSL के जरिये व्याख्या की काफ़ी गुंजाइश छोड़ रखी है. 

UNCLOS के तहत, गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए संचालित सरकारी जहाज़ों को तटीय न्यायाधिकार से संपूर्ण मुक्ति मिली हुई है और अगर ऐसा कोई जहाज़ किसी तटीय देश के देशीय समुद्र में निषिद्ध गतिविधियों में शामिल होता है, तो तटीय देश उस जहाज़ को केवल अपना देशीय समुद्र छोड़ने के लिए कह सकता है. लेकिन, ऐसा कोई जहाज़ या युद्धपोत अगर किसी ऐसी गतिविधि में शामिल हो जिसे चीन ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के न्यायाधिकार के तहत समुद्री इलाक़ों’ में ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के क़ानूनों या प्रशासनिक नियमनों का उल्लंघन’ करार दे सके, तो क्या कार्रवाई करनी है, इसके लिए उसने संशोधित MTSL के जरिये व्याख्या की काफ़ी गुंजाइश छोड़ रखी है. इस तरह की अनिश्चितता समुद्रों में चिंता का विषय बनी हुई है.

निष्कर्ष

यह पहली बार नहीं है जब चीन ने इस क्षेत्र में अपना दबदाबा ज़ाहिर करने के लिए ‘लॉफेयर’ का सहारा लिया है. जनवरी 2021 में, चाइनीज कोस्ट गार्ड (CCG) को ‘चीन के न्यायाधिकार वाले जलक्षेत्रों में’ अवैध विदेशी जहाज़ों पर गोली चलाने की शक्ति दी गयी. चीन की आक्रामकता और अमेरिका व उसके सहयोगियों की इस विवाद को समय रहते हल करने की अक्षमता ने बात अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को क्षीण बनाने तक पहुंचा दी है. बल्कि जैसा ऑस्टिन ने फ़रमाया है, लागू किये जा सकने के अभाव के कारण अंतरराष्ट्रीय क़ानून सही मायनों में क़ानून नहीं, बल्कि सकारात्मक नैतिकता भर है- यह बात आज से ज्यादा ज़ाहिर रूप में कभी नहीं रही. अब केवल यह देखना बाकी है कि क्या चीन ऊपर ज़िक्र किये गये प्रावधानों का इस्तेमाल कर सचमुच कोई कार्रवाई करता है. अगर ऐसा वाक़ई हुआ, तो पहले से ही काफ़ी अस्थिर यह क्षेत्र और बड़ी उथल-पुथल की ओर बढ़ सकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.