Published on Apr 10, 2018 Updated 0 Hours ago

भारत में मौजूदा व संभावित नए शहरों में निवासियों को सुचारू परिवहन व्यवस्था उपलब्ध करवाना कितना चुनौतीपूर्ण है?

भविष्य के शहरों में सुगम परिवहन की चुनौतियाँ

इकॉनामिक टाइम्स (ET) के 22 मार्च 2018 के सर्वेक्षण के खुलासे के मुताबिक मतदान करने वालों में से 62 प्रतिशत लोगों का यह मानना है कि सरकार की इलेक्ट्रिक वाहन संबंधी योजनाएं सिर्फ कागज पर अच्छी नजर आती हैं। दुपहिए और तिपहिये वाहनों को ध्यान में रखते हुए लोगों के लिए कनेक्टेड, शेयर्ड और विद्युतिकृत परिवहन व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए व्यापक नीति पर कार्य़योजना को लेकर हाल की नीति आयोग के उपाध्यक्ष डा. राजीव कुमार की घोषणाओं के बावजूद ये नतीजे आये हैं। दुपहिए और तिपहिये पर ज्यादा ध्यान इसलिए क्योंकि निजी परिवहन और सार्वजनिक परिवहन का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं पर निर्भर है।

भारत में भावी मोबिलिटी को लेकर चर्चा कुल मिलाजुला कर इलेक्ट्रिक वाहन बनाम शेष वाहन के दो खेमों की रस्साकस्सी में तब्दील हो गयी है। हांलाकि ये सच है कि विश्व में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बीस लाख वाहनों को पार कर गयी है और 2020 तक इनकी तादाद 90 लाख से दो करोड़ और 2025 तक 4 करोड़ से सात करोड़ तक पहुंच जाने की उम्मीद है लेकिन ई मोबिलिटी की ओर अग्रसर होने के पहले नीति नियामक माहौल बनाने, बैटरी चार्जिंग या बैटरी अदलाबदली प्रणाली के लिए उपुयक्त व्यवस्था तैयार करने और अप्रत्याशित बिजली लोड को वहन करने लायक सुदृढ ग्रिड तैयार करने की अनेकानेक चुनौतियों के समाधान की जरूरत है। कम ईंधन खपत वाले इंजन विकसित होने के कारण इंटरनल कम्बशन इंजन (आईसीई) का प्रभुत्व बना हुआ है और इससे ई मोबिलिटी की ओर बढ़ने की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता दिख रहा है। भारत में मोबिलिटी के भविष्य को लेकर नीति संबंधी विचार विमर्श के दौरान निम्नलिखित मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिए।

एक — सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों की अलग अलग सार्वजनिक घोषणाओं की वजह से इलेक्ट्रिक वाहन बनाम शेष वाहन के खेमों के बीच तनातनी बढी है। इनके फोकस “देश की सभी कारों के बेड़ों को 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहन में तब्दील करने” से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अलग नीति नहीं लाने” तक अलग अलग हैं। इसी बीच 2040 तक डीजल की मांग तीन गुना बढ़ सकती है जैसे हेडलाईन्स ने भावी ईंधन हिस्सेदारी नीति ( फ्यूअल पॉलिसी मिक्स) को लेकर अनिश्चितता और बढ़ा दी है। यहां सभी पक्षों के साथ परामर्श करके सुसंगत, समेकित और सुसंगत राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की जरूरत है।

दो — भारत में मोबिलिटी के नीति निर्धारण के लिए प्रभावकारी पक्षों का विश्लेषण ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसके लिए शहरीकरण की संभावित प्रक्रिया को गहराई से समझना, शहरों के आर्थिक अवसरों को ध्यान में रखते हुए भावी जनसंख्यात्मक विवरण तैयार करना और स्थानीय वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। इसके अलावा इसका एक बड़ा लाभ ये भी होगा कि स्थानीय संसाधनों के उपयोग के जरिये वैकल्पिक गैरजीवाश्म ईंधन विकसित करके आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता घटाई जाये और विदेशी मुद्रा का व्यय रोका जाये।

भारत में 53 शहर ऐसे हैं जहां की आबादी दस लाख से ज्यादा है और तीन महानगर ऐसे हैं जहां की आबादी एक करोड़ से भी ऊपर है। इसके अलावा चार सौ शहर ऐसे हैं जहां की आबादी एक लाख से अधिक है। सभी शहरों की आबादी लगातार बढ़ने की संभावना है। आकलन ये है कि करीब 18.30 करोड़ और परिवार 2050 तक शहरी इलाकों में पहुंच जाएंगे। सड़कों के लिए भौतिक जगह सीमित है। खुलेआम पार्किंग के कारण सड़कों की जगह 15 से 60 फीसदी तक घट गयी है और पैदल यात्रियों से संबंधित दुर्घटनाएं आम आदमी के लिए गहरी चिंता का विषय बन रही हैं।

पिछले पांच वर्षों के नासा की रात्रिकालीन सैटेलाइट चित्रों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट देखा जा सकता है कि भारत में शहरीकरण उम्मीद से ज्यादा तेजी से हो रहा है। शहरों की आबादी वर्ष 2015 में 32 फीसदी (26.4 करोड़ परिवारों) से बढकर वर्ष 2050 में 51 फीसदी (44.7 करोड़ परिवार) होने की उम्मीद है जो मोबिलिटी (परिवहन व्यवस्था) के नियोजन के लिए एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है। सौभाग्य की बात ये है कि मुंबई जैसे महानगर और उपनगर के 70 फीसदी लोग या तो ट्रेन, बस से या पैदल काम पर जाते हैं। कार्यस्थल पर कार से जाने वालों की तादाद सबसे ज्यादा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में है। भारत के बड़े शहरों में दैनिक यात्री बड़ी तादाद में सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं। सार्वजनिक परिवहन के जरिये छह खरब यात्री किलोमीटर की यात्रा तय होती है जिसमें सड़क परिवहन का हिस्सा 85 फीसदी है।

तीन — भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की यात्रा की शुरूआत 2013 में भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान की घोषणा से हुई जिसमें उद्योग के योगदान सहित 14 हजार करोड़ रूपये का बजट रखा गया। वर्ष 2020 तक हाईब्रिड/इलेक्ट्रिक वाहन बिक्री का महत्वाकांक्षी लक्ष्य 60-70 लाख रखा गया है। मांग पक्ष प्रोत्साहन, प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास के संवर्द्धन, बदलते बुनियादी ढांचों के विस्तार, आपूर्ति पक्ष प्रोत्साहन और मौजूदा वाहनों के इंजन को हाईब्रिड किट्स से युक्त करने जैसे कई नीति विषयक उपायों का ऐलान किया गया है। दुर्भाग्यवश, कई तरह के उलटे पुलटे फैसलों, संयोजित कार्यवाही के अभाव और धन की कमी की वजह से ऐसा माहौल नहीं तैयार हो पाया है जिससे कि ऐसा ईकोसिस्टम बन सके जो ईलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर अवस्थांतर को बढ़ावा दे। सोसायटी फॉर इंडियन ऑटोमोबाइल मैनुफैक्चरर्स (एसआईएएम) ने हाल में एक श्वेतपत्र प्रसारित किया है जिसमें सर्वाधिक राष्ट्रहित वाली आमसहमति तैयार करने के लिए गंभीर चर्चा का उल्लेख है। वाहन हिस्सेदारी (व्हिकल मिक्स) में एक बड़ा बदलाव वाहन उद्योग में कार्यरत लाखों लोगों को प्रभावित करेगा और इसके लिए व्यापक तौर पर पुनर्प्रशिक्षण की जरूरत होगी। बदले में, इसका नतीजा ये भी हो सकता है कि नौकरियां और रोजगार के अवसर कम हो जायें। निश्चित तौर पर हमें देश में स्वचालित या ड्राइवरविहीन वाहनों को प्रोत्साहित करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में प्रशिक्षित ड्राइवर मौजूद हैं।

कच्चे तेल के आयात में विदेशी मुद्रा के व्यय को घटाने के क्रम में (इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर बढ़ने के लिए इसे एक बड़ा कारण बताया गया है), यहां ये स्वीकार करने की जरूरत है कि इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी की लागत में लिथियम बैटरी के सेल का हिस्सा 50 फीसदी है और बैटरी में इस्तेमाल होने वाले लिथियम की कीमत पिछले दो साल में 6000 डॉलर मीट्रिक टन से बढ़कर 12,000 डॉलर मीट्रिक टन हो गयी है। विश्व भर में लिथियम के भंडार का 95 फीसदी हिस्सा चार बड़े देशों चीली, चीन, अर्जेन्टीना और आस्ट्रेलिया में मौजूद है। इस तरह इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रचलन बढ़ने से तेल का आयात कम होने लगेगा और लिथियम का बढ़ने लगेगा। हांलाकि कच्चे तेल के मुकाबले लिथियम में एक फायदा है वो ये कि इसे कुछ समय के बाद पुनर्चक्रित (रीसाइकिल्ड) किया जा सकता है। एक बार जब आवश्यक बुनियादी ढांचा और प्रक्रियागत संरचना तैयार हो जायेगी तब विदेशी मुद्रा के व्यय को कम किया जा सकता है। लि-इयॉन का विकल्प तैयार करने के लिए तत्काल ‘अनुसंधान और विकास’ (आर एंड डी) की जरूरत है।

चार — प्रौद्योगिकी में बदलाव को ध्यान में रखते हुए आकलन के मुताबिक 2040 तक इलेक्ट्रिक वाहनों में दोपहिया वाहनों का हिस्सा 16 फीसदी, तिपहिया वाहनों में 35 फीसदी, बसों में 25 फीसदी और कारों में 25 फीसदी होगा। चूंकि सड़क पर दौड़ने वाले निजि वाहनों में 80 फीसदी हिस्सा दोपहिया और तिपहिया वाहनों का होता है तो आवश्यक नीतिगत सहयोग के जरिये इस श्रेणी के वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहन में तब्दील करने की ज्यादा जरूरत होगी।

पांच — बीपी इंडिया इनसाइट्स 2018 ने इलेक्ट्रिक वाहन का उपयोग बढ़ने से 2016 -2040 के दौरान तेल की मांग में होने वाले बदलाव का अनुमान लगाया है। इसका अनुमान है कि कार में यात्रा से होने वाली मांग में वृद्धि 22.6 मीलियन बैरल/प्रतिदिन होगी जिसकी भरपाई ईंधन दक्षता के कारण होने वाले लाभ (18.2 मीलियन बैरल/प्रतिदिन) से हो जायेगी। अनुमान लगाया गया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से तेल की खपत में 2.5 मीलियन बैरल/प्रतिदिन का अंतर आयेगा। इस प्रकार कार के लिए तेल की मांग लगभग वही रहने की उम्मीद है क्योंकि ईंधन की मांग में बढ़ोतरी का समायोजन कम ईंधन खपत वाले वाहनों के जरिये हो जायेगा। इसलिए यह जरूरी है कि अलग अलग क्षेत्रों को ध्यान में रखकर प्राथमिकताएं तय की जायें ताकि ऐसे नतीजे आयें जो उत्सर्जन प्रभाव और उपभोक्ता अनुभव में बेहतरी और आयात लागत में कमी के जरिये निवेश को न्यायसंगत साबित कर सकें।

छह — आईईए, ओपेक (ओपीईसी), ईआईए, नीति आयोग और बीपी 2018 द्वारा विश्व और भारत को ध्यान में रखते हुए किये गये पूर्वानुमानों में सर्वसम्मति से ये कहा गया है कि जीवाश्म आधारित ईंधन ही 2040 तक भारत में ईंधन का प्रमुख स्रोत रहेगा। हांलाकि तेल का हिस्सा 29 फीसदी से घटकर 25 फीसदी हो जायेगा लेकिन गैस का हिस्सा 6 फीसदी से बढ़कार 7 फीसदी और अक्षय उर्जा का 2 फीसदी से 13 फीसदी हो जायेगा। कोयला 2040 तक भारत का मुख्य ईंधन बना रहेगा और उम्मीद है कि इसका हिस्सा 50 फीसदी होगा।

बीपी ग्लोबल इनसाइट ने संकेत दिया है कि परिवहन में प्रति वर्ष 4.4 फीसदी की बढ़ोतरी होगी और तेल ईंधन का प्रमुख स्रोत होगा जिसका बाजार शेयर 2040 तक 96 फीसदी होगा। आज के हालात को देखते हुए 2040 में भारत में ईंधन हिस्सेदारी (एनर्जी मिक्स) की यही तस्वीर नजर आती है। हांलाकि प्रौद्योगिकी में बदलाव और नये आविष्कारों से इस अनुमान में बदलाव हो सकता है।

सात — इस समय पेट्रोलियम उत्पादों की हमारी वार्षिक मांग करीब 195 एमएमटीपीए है जबकि मौजूदा तेलशोधन क्षमता 237 एमएमटीपीए है। अधिशेष तेलशोधन क्षमता का इस्तेमाल निर्यातों के लिए होता है। अगर योजनानुरूप तेलशोधन क्षमता में 2030 तक 205 एमएमटीपीए की वृद्धि हो जाये, तो हमारी संभावित तेलशोधन क्षमता 2030 तक 442 एमएमटीपीए हो जायेगी। यह 2030 में हमारी औसत मांग से काफी ज्यादा होगा जिसका अनुमान आईए के मुताबिक 317 एमएमटीपीए, ओपेक के मुताबिक 393 एमएमटीपीए और ईआईए के मुताबिक 357 एमएमटीपीए किया गया है।

हांलाकि तेलशोधन की अधिशेष क्षमता का एक हिस्सा निर्यात के लिए कभी भी उपयोग किया जा सकता है लेकिन यहां अन्य निर्यात बाजारों में उत्पादों की मांग पर होने वाले प्रौद्योगिकी संबंधी प्रभावों और प्रोडक्ट क्रैक (कच्चे तेल एवं पेट्रोलियम पदार्थ के बीच की कीमत का अंतर) का सही आकलन भी उतना ही जरूरी होगा। निवेशकों द्वारा तेलशोधन क्षेत्र में नये निवेश की व्यवसायिक संभाव्यता के सख्त विश्लेषण की जरूरत होगी जो करीब एक शताब्दी बाद मोबिलिटी में आ रहे परिवर्तन को ध्यान में रखकर किया गया हो।

इसके लिए पड़ोसी और अन्य बाजारों में निर्यात की संभावनाओं के विवेकपूर्ण आकलन की जरूरत होगी। जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। निर्यात संभावनाओं के कुछ आंकड़े कागज पर बेहतर दिख सकते हैं और हो सकता है कि इसे पड़ोसी बाजारों में उत्पाद विशिष्टता, तेलशोधन संबंधी अर्थशास्त्र और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की प्रकृति से जुड़े बुनियादी जोखिम के सटीक आकलन के बगैर तैयार किया गया हो। निश्चित रूप से हम उस क्षेत्र में गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) को बढ़ावा देना नहीं चाहेंगे जिसका अब तक शानदार रिकॉर्ड रहा हो।

आखिरकार, 15 वर्षों के बाद सरकार ने पिछले दिनों पुराने वाहनों को कबाड़ में तब्दील करने संबंधी नीति को मंजूरी प्रदान कर दी। वाहन ईंधन नीति संबंधी डा. माशेलकर की रिपोर्ट में वाहनों के लिए सेवानिवृत्ति नीति को बगैर विलंब के लागू करने की सिफारिश 2003 में की गयी थी। वर्ष 2014 में वाहन ईंधन नीति एवं विजन 2025 (एएफपी&व्ही 2025) को लेकर सौमित्र चौधरी की रिपोर्ट में भी यही सिफारिश की गयी थी। पुराने वाहनों को कबाड़ में बदल कर और बीएस-4 श्रेणी के वाहनों में उपयुक्त उपकरण लगाने की नीति के जरिये उत्सर्जन कम करने में लंबा समय लगेगा क्योंकि नयी प्रोद्योगिकी के वाहनों की संख्या बढ़ाने में काफी एक दशक से ज्यादा के समय की जरूरत होगी।

भारत एक विशाल देश है और यहां ईंधन मुहैया कराने वाले करीब 62,000 रिटेल आउटलेट (पेट्रोल पंप) हैं। इलेक्ट्रिक वाहन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे बैटरी चार्जिंग या बैटरी बदलने संबंधी बुनियादी ढांचे की जरूरत होगी जहां पर्याप्त संख्या में वाहन आयें जिससे कि ये व्यवस्था आर्थिक तौर पर सक्षम हो सके। इस बीच हम ग्राहक अनुभव बेहतर बना सकते हैं और स्वतंत्र उद्यमियों को शामिल करके रोजगार बढ़ा सकते हैं। साथ ही हर्फिनेडल हिर्शमैन इंडेक्स का पालन करते हुए कॉमन कैरियर भी तैयार किया जा सकता है जिसकी सिफारिश कई नीतिगत रिपोर्टों में की गयी है।

आठ — एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत खुद पर गर्व कर सकता है और इस मामले में इसका प्रयास काफी अच्छा रहा है वो है ईंधन गुणवत्ता औऱ इंजन प्रौद्योगिकी का उन्नयन करके वायु गुणवत्ता में सुधार के मामले में। सल्फर की मात्रा 1996 में डीजल में 10,000 पीपीएम और 1999 में पेट्रोल में 2000 पीपीएम थी जो अब दिल्ली/एनसीटी में घटकर सिर्फ 10 पीपीएम रह गयी है। इस समय देश में बीएस 6 ईंधन की पर्याप्त उपलब्धता है और अगर एएफपी&व्ही 2025 की रिपोर्ट की सिफारिशों के मुताबिक निर्यात रिफायनरियों पर दोहरे कर की अनियमितता का समाधान कर लिया जाता है तो बड़े शहरों मे और पहले ये सुविधा पहुंचाई जा सकती है। ये बदलाव तेलशोधन क्षेत्र में 88,500 करोड़ के अनुमानित निवेश से संभव हुआ है। इस बदलाव के जरिये हम ईंधन में सल्फर का स्तर न्यूनतम करने की प्रौद्योगिकी हासिल कर लेंगे। इसी तरह आकलन के मुताबिक ओईएम और वाहन उपकरण निर्माताओं बीएस 6 प्रौद्योगिकी के उन्नयन के लिए 100,000 करोड़ रूपये का निवेश किया जाना है। अब हमें दूसरे ईंधन के विकल्पों पर ध्यान देने की जरूरत है।

भविष्य में जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिए वाहनों के ईंधन के विकल्प के तौर पर जैविक ईंधन ऑटो एलपीजी हाईड्रोजन बैटरी ईंधन आदि पर विचार हो रहा हैं। फ्यूल सेल और हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी में कुछ आवश्यक बदलावों की जरूरत है। घरेलू तौर पर उत्पादित होने वाले जैविक ईंधनों जैसे इथेनाल, मिथेनॉल और बायोडीजल पर इन दिनों ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। हांलाकि रत्नजोत (जैट्रोफा) को बढ़ावा देने के प्रयास का ज्यादा लाभ नहीं हो पाया है। पूर्ववर्ती योजना आयोग ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए 1.3 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर रत्नजोत लगाने का लक्ष्य रखा था। आयातित पाम ऑयल के अवशिष्ट से बने बायोडीजल के उपयोग से भारत के किसानों को मदद नहीं मिल पाती। मिथेनॉल को दूसरे ईंधन में मिलाकर उपयोग करने में भी प्रोद्योगिकी संबंधी चुनौतियां हैं। भविष्य में बड़ी योजनाओं की घोषणा करने के लिए अवधारणा के सबूत और ज्यादा परीक्षण की जरूरत होगी ताकि 1980 के दशक जैसी नाकामी को टाला जा सके जब रत्नजोत या डीजल में पोर प्वाइंट (कम तापमान में तेल के जम जाने संबंधी) को लेकर समस्याएं आईं थीं।

नौ — भारत में मिश्रित प्रकार की परिवहन व्यवस्था है जहां हाथ गाड़ी, बैलगाड़ी, साइकिल, और ट्रैक्टर जैसे पारंपिरक वाहनों के साथ साथ आधुनिक बसें, ट्रेन, कार और मेट्रो का सहअस्तित्व है। हमारी आकांक्षा ‘अति तीव्रगति वाहन प्रणाली’ (हाइपर लूप्स), बुलेट ट्रेन और ओला और उबर जैसी शेयर्ड वाहन व्यवस्था वाली भावी प्रोद्यौगिकियों के साथ तालमेल बिठाने की भी है। आय स्तर में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति कार स्वामित्व क्षमता भी बढ़ेगी और पहले से ही व्यस्त सड़कों पर दबाव और बढ़ेगा। हम आर्थिक प्रगति के लिए प्रयासरत हैं और इस वजह से शहरीकरण, जनसंख्या संबंधी और जलवायु संबंधी बदलाव को ध्यान में रख कर ही मोबिलिटी संबंधी योजना का स्वरूप निर्धारित किया जाना चाहिए। हमें हर शहर विशेष को ध्यान में रखते हुए अलग स्थानीय समेकित मोबिलिटी नियोजन( एलसीएमपी) तैयार करने की ओर विचार करना पड़ सकता है क्योंकि एक राष्ट्रीय समाधान सभी शहरों के लिए उपयोगी नहीं भी हो सकता है।

दस — भारत में भावी मोबिलिटी को लेकर विचार विमर्श व्यापक होना चाहिए। इसमें विभिन्न उर्जा मॉडलों के भविष्यत आकलन में सामंजस्य, संतुलन और विभिन्न पक्षों के बीच आपसी परामर्श की जरूरत है। इस मामले में नीति आयोग विभिन्न पक्षों के बीच परामर्श को प्रोत्साहित करके एकीकृत व्यापक योजना के लिए विचार विमर्श को बढ़ावा देने और कुछ चयनित क्षेत्रों में लघु, मध्यम और दीर्घकालिक सकारात्मक तकनीकी बदलावों के लिए लक्ष्य निर्धारित करने को लेकर नेतृत्व प्रदान करने में सक्षम है। हमें इस सवाल का जवाब तलाशने की जरूरत है कि विभिन्न शहरों और संबद्ध उपनगरों के लिए कौन सा बिजनेस मॉडल सर्वाधिक उपयोगी रहेगा। नये शहरों का स्वरूप कैसा हो सकता है? शहरों से संबद्ध उपनगरों को कैसे नये तरीके से डिजाइन किया जा सकता है और इस स्वनिर्भर बनाया जा सकता है ताकि मोबिलिटी और आखिरी मील तक कनेक्टिविटी की जरूरत को नजरअंदाज किया जा सके। पिक एवं ड्रॉप मुहैया कराने और भुगतान करने में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की मदद से चीन में शेयर्ड बाइक उपयोग करने वालों की तादाद दो करोड़ं से ज्यादा हो गयी है जबकि एक साल पहले ये मात्र 25 लाख थी। क्या भारतीय शहरों में भी इस मॉडल को सफलतापूर्वक बढ़ावा दिया जा सकता है?

इस तरह परिवहन और मोबिलिटी के लिए उर्जा नीति में मांग क्षेत्र हस्तक्षेप के क्षेत्रों में विचार विमर्श के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है और तब कैफे (कॉरपोरेट एवरेज फ्यूअल इकॉनामी) मानकों, इलेक्ट्रिक वाहनों और हाइब्रिड वाहनों पर जोर दिया जाये। मेरी राय में एक समर्पित समूह को इस तरह की नीतिगत कार्ययोजना तैयार करने के लिए 12 से लेकर 15 महीनों की कड़ी मेहनत की जरूरत होगी।


लेखक ऑटो फ्यूअल पॉलिसी & विजन 2025 कमिटी के सदस्य थे। यह लेख 16 मार्च 2018 को आयोजित 15 वें पेट्रो इंडिया में पेश किये गये थीम टॉक पर आधारित है।

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