Published on Jan 25, 2022 Updated 0 Hours ago

निकट भविष्य में अंतरिक्ष के प्रशासन की कमी एक समस्या साबित हो सकती है क्योंकि विभिन्न देशों के बीच की भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अब बाह्य अंतरिक्ष में भी दिखाई दे रही है.

अंतरिक्ष के बाहरी हिस्से में आधिपत्य के लिये तेज़ होती प्रतिद्वंदिता से बढ़ रही है चुनौतियां!

यह लेख प्रौद्योगिकी और शासन: प्रतिस्पर्धी रुचियां नामक हमारी श्रृंखला का हिस्सा है


पिछले एक दशक में बाह्य अंतरिक्ष क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं. इस क्षेत्र में नए लोगों की आमद में बढ़ोतरी और विविधता से लेकर अंतरिक्ष सुरक्षा प्रभुत्व और नई तकनीकों के आगमन तक कई बदलाव, अंतरिक्ष प्रशासन की चुनौतियों को और अधिक कठिन बना रहे हैं.

पिछले कुछ दशकों में जब केवल मुट्ठी भर देशों का अंतरिक्ष पर नियंत्रण था, तब से लेकर वर्तमान में विकासशील देशों और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं ने मानव विकास में अंतरिक्ष की महत्ता को स्वीकारा है और अंतरिक्ष पर नियंत्रण रखने वाली ताकतों का विस्तार हुआ है. 

अंतरिक्ष का निजीकरण

एक ऐसा क्षेत्र जो लगभग पूरी तरह राज्य द्वारा संचालित था, वहां अब बड़ी संख्या में निजी एवं अन्य गैर-राज्य अभिकरणों की उपस्थिति मौजूद है. इस क्षेत्र के भीतर सभी हलकों में तमाम नई व्यावसायिक शक्तियां आने लगी हैं, चाहे वो उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण हो या फिर प्रणोदन प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष-आधारित सेवाएं. अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्यम के आगमन से कई लाभ हुए हैं, जिनमें से सबसे बड़े लाभ हैं: अंतरिक्ष का लोकतंत्रीकरण, लागत में कमी और अंतरिक्ष को लोगों के लिए और भी अधिक सुलभ बनाना. उपग्रहों के निर्माण और उनके प्रक्षेपण की कीमतों में कमी आई है और अन्य क्षेत्रों में बढ़ते नए सुविधा प्रदाताओं के चलते इन लाभों में और भी तेज़ी आएगी. एक और बहुत बड़ा बदलाव ये है कि निजी क्षेत्रों की मौजूदगी केवल पश्चिमी क्षेत्रों तक सीमित नहीं रह गई है, एशिया सहित अन्य क्षेत्रों में इसकी पहुंच का विस्तार हुआ है. चंद्रमा और मंगल के उपनिवेशीकरण से लेकर क्षुद्रग्रहों में ख़नन संबंधी योजनाओं से लेकर अंतरिक्ष पर्यटन जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं निजी क्षेत्र द्वारा किए जा रहे निवेश का हिस्सा हैं. ब्लू ओरिजिन (Blue Origin) और वर्जिन गैलेक्टिक (Virgin Galactic) जैसी कंपनियों द्वारा एक निश्चित शुल्क पर लोगों को उप-कक्षीय विमानों तक ले जाने के साथ हमने 2021 में अंतरिक्ष पर्यटन के क्षेत्र में भी काफ़ी प्रगति देखी. स्पेसएक्स (SpaceX) कंपनी ने एक ऐसे अंतरिक्ष यान का निर्माण किया है, जिसे फिर से उपयोग में लाया जा सकेगा. यह यान यात्रियों और कार्गो दोनों को ही अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है.

वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का मूल्य 350 अरब अमेरिकी डॉलर है, और ऐसा अनुमान है कि इस क्षेत्र का बाज़ार 2040 तक 10 खरब अमेरिकी डॉलर की ऊंचाइयों को भी पार कर जाएगा. स्पेस टेक एनालिटिक्स (Space Tech Analytics) की “द स्पेस टेक 2021 रिपोर्ट” (The Space Tech 2021 report) में कहा गया है कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लगभग दस हज़ार निजी क्षेत्र की कंपनियां और पांच हज़ार प्रमुख निवेशक हैं. भले ही आज की हक़ीकत यही हो लेकिन इस क्षेत्र में वैश्विक नीतियों के निर्माण में निजी क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व का मुद्दा एक बड़ी चुनौती है. जबकि बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति यानी सीओपीयूओएस (UN COPUOS) जैसे कुछ मंचों को हम आशा की नज़र से देख सकते हैं, लेकिन जिनेवा में निरस्त्रीकरण सम्मेलन (Conference on Disarmament) जैसे अंतरिक्ष सुरक्षा और हथियार नियंत्रण मंचों पर यह एक बड़ी चुनौती है, जहां राज्य अभिकर्ताओं का दबदबा है.

कुइपर सिस्टम्स (Kuiper Systems) पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रह समूह स्थापित करने के लिए यूएस एफसीसी की स्वीकृति प्राप्त कर चुका है, जिसके ज़रिए वह अब तक इंटरनेट सेवा रहित क्षेत्रों में सस्ती इंटरनेट सेवाएं प्रदान कर सकता है. 

अंतरिक्ष क्षेत्र में कई शक्तियों की मौजूदगी में इस क्षेत्र की जनसंख्या को बढ़ाया है और अंतरिक्ष में मौजूद कचरे की मात्रा काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है. पिछले कुछ दशकों में जब केवल मुट्ठी भर देशों का अंतरिक्ष पर नियंत्रण था, तब से लेकर वर्तमान में विकासशील देशों और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं ने मानव विकास में अंतरिक्ष की महत्ता को स्वीकारा है और अंतरिक्ष पर नियंत्रण रखने वाली ताकतों का विस्तार हुआ है. ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों द्वारा अंतरिक्ष में निवेश करने से बाह्य अंतरिक्ष और भी ज़्यादा सघन हो सकता है लेकिन ऐसी किसी भी चिंता को सही ठहराना मुश्किल है जबकि बाह्य अंतरिक्ष का दोहन कम विकसित देशों के सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक विकास के लिए आवश्यक है. फिर भी अंतरिक्ष में भीड़-भाड़ की समस्या वास्तविक है.

केसलर सिंड्रोम (Kessler syndrome), जहां अंतरिक्ष में मौजूद दो पिंडों का टकराव एक व्यापक श्रृंखला अभिक्रिया को जन्म दे सकता है, को झुठलाया नहीं जा सकता. अगर हम अंतरिक्ष में मौजूद पिंडों की यात्रा करने की गति को देखें (लगभग 17 हज़ार मील प्रति घंटे), तो ऐसी दो वस्तुओं का टकराव कई विनाशकारी घटनाओं को जन्म दे सकता है, जिससे अंतरिक्ष मलबे की मात्रा अनियंत्रित रूप से बढ़ सकती है. लेकिन इन ख़तरों के बावजूद, अंतरिक्ष में उपस्थित आबादी अभी और ज़्यादा बढ़ेगी क्योंकि इस क्षेत्र में मौजूद कई ताकतें आने वाले सालों में पृथ्वी की निचली कक्षाओं में एक साथ कई उपग्रहों को स्थापित करने जैसी बड़ी महत्त्वाकांक्षाएं रखते हुए काम कर रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में, स्पेसएक्स ने अपने स्टारलिंक उपग्रहों में से लगभग 2 हज़ार को पहले ही प्रक्षेपित कर चुका है. अमेजन की सहायक कंपनी कुइपर सिस्टम्स भी स्पेसएक्स से प्रतिद्वंदिता करते हुए अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने की अपनी योजना पर काम कर रहा है. कुइपर सिस्टम्स (Kuiper Systems) पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रह समूह स्थापित करने के लिए यूएस एफसीसी की स्वीकृति प्राप्त कर चुका है, जिसके ज़रिए वह अब तक इंटरनेट सेवा रहित क्षेत्रों में सस्ती इंटरनेट सेवाएं प्रदान कर सकता है. कथित रूप से अमेजन आगामी कुछ सालों में (जिसके लिए कोई अवधि निश्चित नहीं की गई है) “दस अरब अमेरिकी डॉलर” से भी ज़्यादा बड़ी राशि प्रोजेक्ट कुइपर में निवेश करना चाहता है. ऐसी विकास योजना को देखते हुए ये नहीं कहा जा सकता कि आने वाले समय में अंतरिक्ष में बढ़ती भीड़-भाड़ की समस्याओं में कोई कमी आयेगी.

इन ख़तरनाक प्रौद्योगिकियों में हो रहे विकास ने इस क्षेत्र को और भी ज़्यादा अस्थिर किया है क्योंकि इसके कारण कई अन्य देश, जो अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा के सवाल पर हाशिए पर थे, सैन्य प्रतिरोध के लिए ऐसी मिलती जुलती क्षमताओं वाली अंतरिक्ष तकनीकों का विकास कर रहे हैं.

अंतरिक्ष का सैन्यीकरण

अंतरिक्ष गतिविधियों से जुड़ी एक और विशेषता उस क्षेत्र में सुरक्षा संबंधी उपयोगिताओं का प्रभुत्व है. पारंपरिक सैन्य अभियानों में हथियार नियंत्रण, समझौता, और पूर्व चेतावनी जैसी पारंपरिक सैन्य रणनीतियों की बजाय अंतरिक्ष से जुड़ी तकनीकों का बढ़ता उपयोग चिंताजनक है. दुनिया भर की सेनाएं अंतरिक्ष के निष्क्रिय सैन्य उपयोग जैसे खुफिया, निगरानी और सैन्य परीक्षण से आगे बढ़कर पारंपरिक सैन्य अभियानों में अंतरिक्ष से जुड़ी तकनीकों का सक्रिय रूप से एकीकरण कर रही हैं, जिससे इस क्षेत्र से जुड़े जोख़िम बढ़ गए हैं. अंतरिक्ष पर बढ़ती सैन्य निर्भरता के कारण भी परेशानियों में इज़ाफ़ा हुआ है. काउंटर-स्पेस क्षमताओं का विकास त्वरित गति से हो रहा है, जिससे एंटी-सैटेलाइट यानी एएसएटी (anti-satellite, ASAT), साइबर, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स (Directed Energy Weapons) से हमलों की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं. इन ख़तरनाक प्रौद्योगिकियों में हो रहे विकास ने इस क्षेत्र को और भी ज़्यादा अस्थिर किया है क्योंकि इसके कारण कई अन्य देश, जो अपनी अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा के सवाल पर हाशिए पर थे, सैन्य प्रतिरोध के लिए ऐसी मिलती जुलती क्षमताओं वाली अंतरिक्ष तकनीकों का विकास कर रहे हैं.

सत्ता की गहराती राजनीति को देखते हुए, इस बात की संभावना बहुत कम है कि निकट भविष्य में इन नई तकनीकों के उपयोग से जुड़े आवश्यक नियम बनाए जाएंगे.

अंतरिक्ष क्षेत्र में बढ़ती सैन्य सुरक्षा का मतलब है कि रक्षात्मक उपयोग के लिए बनाई गई शांतिपूर्ण तकनीकों को भी बहुत संदेह के साथ देखा जा रहा है. उदाहरण के लिए, नई तकनीकों जैसे कि ऑन-ऑर्बिट सैटेलाइट सर्विसिंग यानी कक्षा में रहते हुए अंतरिक्ष उपग्रहों में ईंधन भरने या मरम्मत करने की कार्रवाई के बारे में काफी सावधानी बरती जाती है, जिसका उपयोग दूरस्थ किसी उपग्रह की मरम्मत और ईंधन भरने के लिए किया जाता है. मौजूदा समय में विभिन्न शक्तियों के बीच राजनीतिक टकराव की स्थिति और अंतरिक्ष में बढ़ती प्रतिद्वंदिता और प्रतियोगिता ने इन तकनीकों को लेकर पैदा हुई गलतफहमियों को बढ़ावा दिया है. सत्ता की गहराती राजनीति को देखते हुए, इस बात की संभावना बहुत कम है कि निकट भविष्य में इन नई तकनीकों के उपयोग से जुड़े आवश्यक नियम बनाए जाएंगे.

अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा, प्रतिद्वंदिता और बढ़ते सैन्यीकरण के मौजूदा हालातों से जुड़ा कारण हिंद-प्रशांत और अन्य क्षेत्रों में शक्ति संतुलन में आया बदलाव है. संयुक्त राज्य अमेरिका से बराबरी की होड़ में चीन द्वारा अत्याधुनिक एवं  जटिल अंतरिक्ष क्षमताओं के लिए किया जा रहा प्रयास इसका एक बड़ा उदाहरण है. लेकिन जैसा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में देशों, ख़ासकर चीन-जापान और भारत-चीन जैसी बड़ी शक्तियों के बीच आपसी संबंधों की स्थिति है,

अंतरिक्ष में यह प्रतिद्वंदिता बढ़ती जा रही है. इस तरह की तीव्र प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता के माहौल में, एक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में चीन का उभार भारत और जापान जैसे देशों के साथ-साथ अन्य देशों के लिए भी विशेष चिंता का विषय रही है. मार्च 2019 में भारत द्वारा अपनी एंटी-सैटेलाइट मिसाइल क्षमता (एसैट) का प्रदर्शन इसी प्रतिद्वंदिता का संकेत था. जापान आने वाले वर्षों में एक इंटरसेप्टर क्षमता विकसित करने की भी योजना बना रहा है, जो हिंद-प्रशांत में बढ़ती प्रतियोगिता का एक और उदाहरण है. भले ही एशियाई अंतरिक्ष कार्यक्रम विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति करेंगे, लेकिन दुर्भाग्य से इसके भूराजनीतिक प्रभावों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, जो विनाशकारी प्रौद्योगिकियों के विकास में परिलक्षित होंगी. बढ़ती प्रतिस्पर्धा का एक और परिणाम समर्पित सैन्य अंतरिक्ष संस्थानों का उदय है, और आने वाले सालों में इस प्रवृत्ति के घटने की संभावना बेहद कम है. रूस की एयरोस्पेस डिफेंस फोर्सेज (Russia’s Aerospace Defence Forces), चीन की पीएलए स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स (PLA Strategic Support Force), अमेरिका की स्पेस फोर्स और भारत की डिफेंस स्पेस एजेंसी (Defence Space Agency) ऐसे नए अंतरिक्ष सुरक्षा संस्थानों के उदाहरण हैं, जो जन्म ले रहे हैं.

 अंतरिक्ष में मौजूद शक्तियों की बढ़ती संख्या और विविधता, भू-राजनीति संबंधों और निजी क्षेत्र की उपस्थिति आदि ऐसी कारण हैं, जिनके कारण वैश्विक प्रशासन काफ़ी दबाव में है. 

इन सभी घटनाओं ने अंतरिक्ष के वैश्विक प्रशासन की प्रगति (या उसकी अनुपस्थिति पर) पर बुरा प्रभाव डाला है. अंतरिक्ष में मौजूद शक्तियों की बढ़ती संख्या और विविधता, भू-राजनीति संबंधों और निजी क्षेत्र की उपस्थिति आदि ऐसी कारण हैं, जिनके कारण वैश्विक प्रशासन काफ़ी दबाव में है.

1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि एक ऐसा व्यापक उपकरण है, जिसके कारण अंतरिक्ष काफ़ी हद तक सुरक्षित है, लेकिन इस संधि की सबसे बड़ी कमी ये है कि यह अंतरिक्ष में केवल सामूहिक विनाश के हथियारों यानी (Weapons of Mass Destruction, WMD) की नियुक्ति को प्रतिबंधित करती है. इस संधि में काउंटर-स्पेस क्षमताओं और अन्य हथियारों को लेकर कोई प्रावधान नहीं है. यह इस क्षेत्र में नए नियमों की ज़रूरत को दर्शाता एक उदाहरण मात्र है.

बहुपक्षीय वार्ताओं की गतिहीनता को देखते हुए ये संभावना बहुत ज़्यादा है कि अधिकांश राज्य अंतरिक्ष में प्रतिरोध का रास्ता अपनाएंगे, जो अस्थिरता को बढ़ावा देगा. अंतरिक्ष प्रशासन को लेकर हाल ही में कई वैश्विक प्रस्ताव सामने रखे गए हैं, जिसमें रूस और चीन द्वारा प्रायोजित बाह्य अंतरिक्ष में हथियारों के नियुक्ति की रोकथाम पर संधि का मसौदा (जिसे मूल रूप से 2008 में और बाद 2014 में एक संशोधित पाठ के साथ प्रस्तावित किया गया था); बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए यूरोपीय संघ द्वारा शुरू की गई अंतरराष्ट्रीय आचार संहिता 2010  (International Code of Conduct for Outer Space Activities);  2013 के लिए और अधिक व्यावहारिक उपायों पर 2018-19 का सरकारी विशेषज्ञों का समूह. लेकिन इनमें कोई भी वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय को नए नियमों के निर्माण के लिए प्रेरित करने में सफ़ल नहीं रहा, जो अंतरिक्ष पर वैश्विक शासन की स्थापना के क्षेत्र से जुड़ी भारी कठिनाइयों को दर्शाता है. लेकिन नए नियमों को निर्मित एवं लागू किए जाने की तात्कालिक आवश्यकता बहुत ज़्यादा है, क्योंकि अंतरिक्ष पर नियंत्रण रखने वाली मौजूदा अंतरराष्ट्रीय शक्तियां काउंटर-स्पेस क्षमताओं के तीव्र विकास को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं.

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