Published on Dec 29, 2020 Updated 0 Hours ago

अफ्रीकी देशों के साथ भारत के विकासात्मक सहयोग कार्यक्रमों में क्षमता निर्माण के अधिक से अधिक महत्व के बावजूद, भारत की क्षमता निर्माण से संबंधित पहलों का व्यापक मूल्यांकन अभी तक नहीं किया गया है.

अफ्रीका में क्षमता निर्माण: क्या है आंकड़ों के आगे की कहानी?

विकासात्मक सहयोग यानी विकास से संबंधित सहयोग की दिशा में भारत और अफ्रीकी देशों के बीच परस्पर समर्थन व सहयोग का एक लंबा इतिहास रहा है. स्वतंत्र भारत अपने शुरुआती दिनों भले ही सीमित संसाधनों के साथ बेहद ग़रीब था, लेकिन दक्षिण-दक्षिण सहयोग के बैनर तले उसने अन्य विकासशील देशों के साथ अपने संसाधनों को साझा करने की पहल की. साल 1949 में स्वतंत्रता के दो वर्षों के भीतर, भारत ने अन्य विकासशील देशों के छात्रों के लिए भारत में पढ़ाई करने के लिए 70 की संख्या में छात्रवृत्तियों की घोषणा की. इसके बाद, साल 1964 में, भारत ने औपचारिक रूप से अन्य विकासशील देशों को मानव संसाधन विकास के माध्यम से तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (Indian Technical and Economic Cooperation-ITEC) कार्यक्रम शुरू किया. अफ्रीकी देश, भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम के सबसे बड़े लाभार्थी रहे हैं, क्योंकि कई अफ्रीकी अधिकारियों ने इस कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण लिया है.

वर्ष 2000 के दशक में भारत और अफ्रीका के बीच विकासात्मक सहयोग में तेज़ी से विस्तार हुआ और भारत ने ऋण की रियायती दरों के रूप में विकास से संबंधित सहयोग के नए उपकरण पेश किए. इस अवधि के दौरान भारत के तकनीकी सहयोग और क्षमता निर्माण कार्यक्रम का दायरा भी विस्तृत हुआ. भारत-अफ्रीका फोरम से जुड़े तीनों शिखर सम्मेलनों में क्षमता निर्माण के महत्व पर बात की गई और इसे केंद्र में रखा गया. इस दौरान भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने भारत-अफ्रीका सहयोग व सौहार्द के दस मार्गदर्शक सिद्धांतों में क्षमता निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका का भी उल्लेख किया. इसके बाद साल 2009 में, भारत ने समूचे अफ्रीका में एक अफ्रीकी ई-नेटवर्क लॉन्च किया, जो वहां का सबसे बड़ा आईसीटी (Information and Communication Technology) नेटवर्क था. इस पहल ने 53 अफ्रीकी देशों को भारत के साथ जोड़ा.

भारत द्वारा अफ्रीका को तकनीकी सहयोग प्रदान करने से संबंधित दावे, जो उसके साझेदार देशों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं, और मांग-संचालित विकास संबंधित सहयोग प्रदान करते हैं वह आंकड़ों से समर्थित नहीं हैं.

इस पैन अफ्रीकी ई-नेटवर्क (Pan African e-Network) के माध्यम से, भारत ने सभी अफ्रीकी देशों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने और शिक्षा प्रदान करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी में भारत की विशेषज्ञता का उपयोग करने का प्रयास किया. इस कार्यक्रम का दूसरा चरण, ई-विद्याभारती (e-VidyaBharti) और ई-अरोग्यभारती (e-ArogyaBharti) साल 2018 में शुरू किया गया था. भारत का छात्रवृत्ति कार्यक्रम भी तेज़ी से बढ़ा और भारत-अफ्रीका फोरम के तीसरे शिखर सम्मेलन में, भारत ने अगले पांच सालों में अफ्रीकी छात्रों को 50,000 छात्रवृत्ति प्रदान करने और अफ्रीका में शिक्षण संस्थान स्थापित करने का संकल्प लिया. साल 2018 में, भारत के मानव संसाधन और विकास मंत्रालय ने देश को शिक्षा के हब के रूप में विकसित करने के लिए पड़ोसी देशों और अफ्रीका के छात्रों को आकर्षित करने के लिए ‘स्टडी इन इंडिया’  (Study in India) पहल की शुरूआत की.

अफ्रीकी देशों के साथ भारत के विकास सहयोग कार्यक्रम में क्षमता निर्माण के महत्व के बावजूद, भारत की क्षमता निर्माण पहलों का व्यापक मूल्यांकन अब तक नहीं हुआ है. भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा प्रकाशित अधिकांश दस्तावेज़ केवल अफ्रीका में भारतीय पहलों का एक सांख्यिकीय खाता (statistical account) प्रदान करते हैं, उदाहरण के लिए, भाग लेने वाले देशों, छात्रों, पाठ्यक्रमों और कार्यक्रमों के बजट आदि की संख्या. इन आंकड़ों से इतर अफ्रीका में की गई भारत की क्षमता निर्माण संबंधी कोशिशों के बारे में बहुत कम विश्लेषण उपलब्ध है. भारतीय क्षमता निर्माण कार्यक्रमों पर लिखे गए अकादमिक पेपर कुछ हद तक अफ्रीका के मानव संसाधनों के निर्माण में भारत के योगदान को उजागर करते हैं, लेकिन अफ्रीकी छात्रों के सर्वेक्षणों के आधार पर भारत के ट्रैक रिकॉर्ड का मूल्यांकन करने वाले गंभीर शैक्षणिक अध्ययन अब तक नहीं हुए हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो, भारत द्वारा अफ्रीका को तकनीकी सहयोग प्रदान करने से संबंधित दावे, जो उसके साझेदार देशों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं, और मांग-संचालित विकास संबंधित सहयोग प्रदान करते हैं वह आंकड़ों से समर्थित नहीं हैं.

भारत के क्षमता निर्माण कार्यक्रमों पर उपलब्ध साहित्य या तो जश्न व सराहना से भरा है या फिर चीन के साथ भारत के विकास संबंधित सहयोग की तुलना पर केंद्रित है. बैरी सौटमन और यान हैरॉन्ग ने चीन और अफ्रीका के बीच संबंधों को लेकर ‘अफ्रीकी दृष्टिकोण’ को समझने के लिए अफ्रीकी विश्वविद्यालय के छात्रों का एक सर्वेक्षण किया. चीन व अफ्रीका के बीच संबंधों पर अफ्रीकी विचारों को समझने से संबंधित इस सर्वे में यह बात सामने आई कि चीन व अफ्रीकी संबंधों को लेकर पश्चिमी मीडिया द्वारा प्रचारित दृष्टिकोण से इन छात्रों के विचार स्पष्ट व अलग थे. हालांकि, अफ्रीका को लेकर भारत के विकासात्मक सहयोग के संबंध में क्षमता निर्माण की कोशिशों में भारत की भूमिका को लेकर अफ्रीकी लोगों की कोई स्पष्ट धारणा नहीं थी, क्योंकि इस संबंध में अब तक कोई अनुभवजन्य अध्ययन (empirical study) नहीं किया गया है.

ऐसे समय में जब भारत की अपनी अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है तो भारत सरकार के लिए करदाताओं के समक्ष अफ्रीकी क्षमता निर्माण के लिए अधिक बजट आवंटन को उचित ठहराना भी मुश्किल होगा.

भारत द्वारा अफ्रीका में की जाने वाली क्षमता निर्माण से संबंधित कार्यक्रमों का एक मूल्यांकन कई कारणों से महत्वपूर्ण है. सबसे पहली बात यह है कि 1960 के दशक में साझा समृद्धि और एकजुटता के विचार महत्वपूर्ण थे, क्योंकि अफ्रीका के अधिकांश देशों ने तभी स्वतंत्रता प्राप्त की थी और इन देशों के पास कुशल श्रम व तकनीकी जानकारियों की भारी कमी थी, ऐसे में साझा समृद्धि और एकजुटता के विचारों ने उन्हें अपना खुद का एक तंत्र विकसित करने की दिशा में सहयोग दिया. ये विचार मौजूदा संदर्भ में पुराने हो गए हैं क्योंकि कई अफ्रीकी देशों ने पिछले दो दशकों में विकास की उच्च दर को प्राप्त किया है, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख अभिनेता बन कर उभरे हैं. दूसरी बात यह है कि कोविड-19 की महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने भारत की विकास की कहानी और अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्दा कोष ने भारत के जीडीपी में 10.3 प्रतिशत की गिरावट का आकलन किया है. इसके परिणामस्वरूप, आने वाले सालों में भारत द्वारा अफ्रीका के लिए अतिरिक्त धन आवंटित करने के लिए सीमित बजट होगा. ऐसे समय में जब भारत की अपनी अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है तो भारत सरकार के लिए करदाताओं के समक्ष अफ्रीकी क्षमता निर्माण के लिए अधिक बजट आवंटन को उचित ठहराना भी मुश्किल होगा. यह करदाता भले ही अब तक अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर सरकारी खर्च से बेख़बर रहे हैं लेकिन अर्थव्यवस्था की धीमी चाल उन्हें इन मुद्दों के प्रति सजग बनाएगी. ऐसे में एक लागत प्रभावी विकास सहयोग कार्यक्रम हमारे समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है. आखिर में, कई देश हैं जो अफ्रीका की मदद और उसकी क्षमता निर्माण की दिशा में काम कर रहे हैं. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन यानी ओईसीडी (OECD) देशों के अलावा, कई दक्षिणी देश जैसे- चीन, ब्राज़ील, जापान, सिंगापुर, मलेशिया और दक्षिण कोरिया, अफ्रीका के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंधों को बनाने में रुचि रखते हैं. इसलिए, भारतीय क्षमता निर्माण की पहल का एक सही मूल्यांकन भारत के लिए अफ्रीका में अपने महत्व को बनाए रखने की दृष्टि से महत्वपूर्ण और अनिवार्य है.

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