Author : Sunjoy Joshi

Published on Jan 14, 2019 Updated 0 Hours ago

रायसीना डायलॉग में ORF चेयरमैन संजय जोशी का प्रारम्भिक उदबोधन।

क्या हम वैश्वीकरण की एक नई रूपरेखा के लिए नवीन नीतिशास्त्र की रचना कर सकते हैं?

मैं नार्वे की प्रधानमंत्री महामहिम, सुश्री एर्ना सोलबर्ग; भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी; माननीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज, मंत्रीगणों, एडमिरल्स, जनरल्स और दुनिया भर से आए प्रतिष्ठित नेतागणों का हार्दिक अभिनंदन करता हूं।

मैं उन 1,800 प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों का भी हार्दिक स्वागत करता हूं, जो अगले तीन दिन तक हमारे साथ बने रहने वाले हैं। अपने आस-पास नजर दौड़ाने के बाद मैं आपको यकीन दिला सकता हूं कि रायसीना डायलॉग के इस चौथे संस्करण ने दुनिया भर के बेहतरीन विद्वानों को यहां इस परिसर में इकट्ठा किया है, ताकि वे हमारी दुनिया के भविष्य और उसकी रीऑर्डरिंग के बारे में गहन विचार-विमर्श कर सकें।

हम बेहद भ्रामक दौर में हैं। समय था जब नए युग का शंखनाद हर नव वर्ष दावोस की बर्फीली वादियों से गूंजता था। पूरी दुनिया धर्मांतरण के कगार पर खड़ी वैश्वीकरण का आलिंगन करने को तत्पर थी। पर जब इस नए युगकी जयजयकर को ललकारने वाली आवाज़ें उठीं तो तो दावोस के इन नए मसीहों के जमीन तले धरती ही खिसक गई।

उनको चुनौती न तो अल कायदा और ना ही इस्लामिक स्टेट जैसे नॉन-स्टेट या प्रोटो-स्टेट विरोधियों की ओर से आई। और न ही रूस या चीन जैसी तथाकथित संशोधनवादी शक्तियों ने उनके तख्ता पलट की साज़िश रची। चुनौती उठी उन्हीं के मानदंडों के अनुरूप चलने वाले, उन्ही की हिमायत करने वाले, दुनिया के सबसे उदार लोकतंत्रों के भीतर से।

हम बेहद भ्रामक दौर में हैं। समय था जब नए युग का शंखनाद हर नव वर्ष दावोस की बर्फीली वादियों से गूंजता था। पूरी दुनिया धर्मांतरण के कगार पर खड़ी वैश्वीकरण का आलिंगन करने को तत्पर थी। पर जब इस नए युगकी जयजयकर को ललकारने वाली आवाज़ें उठीं तो तो दावोस के इन नए मसीहों के जमीन तले धरती ही खिसक गई।

इसीलिए कहते हैं कि इतिहास में बहुत से फरेबी रास्ते है, उसके गलियारे भी तिलसमी हैं। ईतिहास भले ही खुद को बार बार दोहराता रहे है पर फिर भी हमें हर बारम्बार हैरान करने की क्षमता रखता है।

आज वैश्वीकरण का उन्माद स्पष्ट रूप से लड़खड़ाता दिख रहा है। जिन नियमों और मानदंडों पर यह खड़ा था वे लोकलुभावन जुमलों के एक नए सैलाब की बलि चढ़ गए हैँ।

सुरक्षा की दृष्टि से न सिर्फ पूर्व तथा पश्चिम एशिया, आज स्वयं यूरोप का केंद्र उत्तेजना का शिकार हो नित्य नए संकट-बिंदु की जननी के रूप में उभर रहा है। लग रहा है कि सभी पुरानी जांची-परखी और विश्वसनीय मानी जाने वाली संस्थाएं आधारहीन खड़ी हैं, किन्तु इनका स्थान लेने वाली नई धारणाएं का जन्म ही नहीं हुआ है।

इतिहास साक्षी है कि अर्थ-शक्ति, सामरिक ताकत और टेक्नोलोजी में परिवर्तन अनिवार्य रूप से राष्ट्रों के मध्य संघर्ष को जन्म देते हैं। प्रश्न यह है कि क्या 21 वीं सदी इस तथ्य को झुठलाने की क्षमता रखती है । यदि हाँ तो नवीन व्यवस्था का कैसे निर्माण किया जाए। यही सोच के चलते इस रायसीना डॉयलाग के लिए हमनें विषय चुना — अ वर्ल्ड रीऑर्डर: विश्व प्रतिस्थापन

अगले तीन दिन तक, हम एक खुला मंच प्रस्तुत करेंगे, जिसमें हमारे वैश्विक समुदाय के विशेषज्ञ इस दौर के अहम सवालों पर विचार-विमर्श और चर्चा करेंगे।

क्या हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि पिछले सात दशक से शांति का जो बेमिसाल उपहार विश्व ने अपने पास संजो रखा है, वह निरंतर बना रहे?

क्या हम वैश्वीकरण की एक नई रूपरेखा के लिए नवीन नीतिशास्त्र की रचना कर सकते हैं? एक ऐसा नीतिशास्त्र जो विश्व की पीछे छूट रही 6 अरब आबादी के लिए खुशहाली और सामाजिक गतिशीलता का नया पैगाम ला सके।

हम इतिहास के ऐसे दौर में हैं, जहां टेक्नोलोजी में हो रहे महत्वपूर्ण बदलाव हमें एक बार फिर से वही मूल भूत प्रश्न उठाने को मजबूर कर रहे हैं — आखिर इंसान होने के क्या मायने हैं? फर्क सिर्फ यह कि इस प्रश्न का जवाब आज मात्र एक दार्शनिक खोज नहीं रह गया है।

हम इतिहास के ऐसे दौर में हैं, जहां टेक्नोलोजी में हो रहे महत्वपूर्ण बदलाव हमें एक बार फिर से वही मूल भूत प्रश्न उठाने को मजबूर कर रहे हैं — आखिर इंसान होने के क्या मायने हैं?

प्रश्न महज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर दौड़ने वाले अल्गोरितमों या ऑटोनमस मशीन्स को संचालित करने वाली नियम-व्यवस्था का नहीं है। प्रश्न है कि नए युग में मानवीय विविधताओं का संवाद कैसे कायम रहे? हम प्रगति के चेहरे को कैसे रूपांतरित करें ताकि संवेदनशील समाज मिल कर एक संवेदनशील विश्व का पोषण करे जिसमें सर्व-प्राणि शान्ति का वास हो।

इसलिए, आज मैं इस भव्य सभा का परिचय हमारे प्रथम वक्ता से कराते हुए वास्तव में गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ — स्वागत है नार्वे की प्रधानमंत्री महामहिम, सुश्री एर्ना सोलबर्ग का। एक ऐसे देश की कर्णधार जिसमें समतावादी आदर्श गहरी जड़े जमाए हों, जो संवेदनशील समाज में यकीन रखता हो और जिसके लिए उसका आम नागरिक ही उसकी पहली प्राथमिकता हो।

प्रधानमंत्री सोलबर्ग ने 2013 से नॉर्वे की कमान संभाल रखी है और वे 2004 से कंजर्वेटिव पार्टी की नेता हैं।

आज के कठिनाइयों भरे दौर में, आप अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों, सामूहिक सुरक्षा तथा साझा मूल्यों और आदर्शों पर आधारित यूरोपीय प्रणाली कायम रखने के लिए एक प्रखर स्वर बनकर उभरी हैं।

2016 से, प्रधानमंत्री सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के एडवोकेसी ग्रुप की सह-अध्यक्षता कर रही हैं और वह लगातार वैश्विक विकास के लक्ष्यों के केंद्र में जेंडर को शामिल कर रही हैं — वह संस्थागत डिजाइन और एजेंडे के निर्धारण में महिलाओ और पुरुषों में समानता का अथक रूप से अनुसरण कर रही हैं।

पापुलिज्म के दौर में, प्रधानमंत्री सही मायनों में वैश्विक नागरिक के रूप में सबसे अलग हैं, जो विकास, प्रगति और विवादों को निपटाने के लिए वैश्विक समाधानों की पक्षधर बनकर उभरी हैं।

रायसीना डायलॉग में आज उनका सम्बोधन हमारे लिए सचमुच सौभाग्य की बात है। प्रधानमंत्री जी अब मैं आपको आमंत्रित करता हूं कि आप अपने उद्गार व्यक्त करें।

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