Published on May 13, 2021 Updated 0 Hours ago

विपक्षी पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ ने यामीन की रिहाई में मदद के लिए श्रीलंका और पाकिस्तान के साथ भारत को कुछ करने के लिए कहा है.

मालदीव: यामीन ख़ेमा भारत की तवज्जो क्यों चाहता है?

जिस वक़्त राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की सरकार मालदीव में भारत से तोहफ़े में मिली कोविड-19 वैक्सीन लोगों को दे रही है, उसी वक़्त विपक्षी पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ ने भी भारत के दरवाज़े पर दस्तक दी है. इसका मक़सद पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की रिहाई सुनिश्चित करना है जो इस वक़्त मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जेल की सज़ा काट रहे हैं. क़ानून के मुताबिक़ जेल से रिहा होने पर ही यामीन 2023 में होने वाला अगला राष्ट्रपति चुनाव लड़ सकते हैं. मालदीव में वैक्सीनेशन और यामीन की रिहाई के लिए विपक्षी गठजोड़ के भारत से समर्थन मांगने की घटनाएं 10 अप्रैल के देशव्यापी स्थानीय परिषद चुनाव (एलसीई) से ठीक पहले हुईं. इस चुनाव को पिछले साल महामारी की वजह से एक साल के लिए टाला गया था. चुनावी घमासान, जो यहां के एक दशक पुराने लोकतंत्र की कसौटी है, की तात्कालिकता के अलावा वैक्सीन मालदीव की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार पर्यटन को आने वाले हफ़्तों और महीनों में नई ऊंचाई देगी. 

भारत ने मालदीव को भारत में निर्मित कोवैक्सीन को 1,00,000 डोज़ दी है. राष्ट्रपति सोलिह ने देश को अपने संबोधन में कहा कि वैक्सीन मालदीव के लिए नई उम्मीद लेकर आई है. उन्होंने मुफ़्त वैक्सीन भेजने के लिए भारत का शुक्रिया अदा किया. विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने तो हिंदी में भारत को वैक्सीन के लिए धन्यवाद दिया. वो इन दिनों अक्सर हिंदी में भारत का धन्यवाद करते हैं. वैक्सीन को लेकर दूसरे लोगों के अलावा संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी भारत की तारीफ़ की है. 

एक ज़िम्मेदार पड़ोसी होने के नाते पड़ोस के देशों को कोविड-19 वैक्सीन की सप्लाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पड़ोसी सर्वप्रथम’ नीति को आगे बढ़ाना है.

भारत से कोवैक्सीन के अलावा सोलिह सरकार ने दूसरी जगहों से 7,00,000 कोविशील्ड डोज़ का भी ऑर्डर दिया है. लेकिन एक ट्वीट में संसद के स्पीकर और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद, जो सत्ताधारी एमडीपी के प्रमुख भी हैं, ने कहा कि वो ‘चाहते हैं कि उन्हें भारत की कोवैक्सीन की जगह कोविशील्ड लगे.’ 

ज़िम्मेदार पड़ोसी

एक ज़िम्मेदार पड़ोसी होने के नाते पड़ोस के देशों को कोविड-19 वैक्सीन की सप्लाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पड़ोसी सर्वप्रथम’ नीति को आगे बढ़ाना है. ये पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की  उस प्रतिबद्धता के ‘मानव सुरक्षा’ वाले पहलू का हिस्सा भी है कि भारत इस क्षेत्र में/के लिए ‘सुरक्षा मुहैया कराने वाला’ बना रहेगा. ये ध्यान रखने की भी ज़रूरत है कि देश में ख़राब समय के बावजूद किसी एक भी भारतीय ने अपनी सरकार की सार्थक पहल का विरोध नहीं किया है. ये प्राचीन भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की धारणा के मुताबिक़ है जिसका अर्थ है ‘पूरा विश्व एक परिवार है’. ये धारणा एक-दूसरे पर निर्भरता और अपेक्षाकृत ज़्यादा समर्थ लोगों के दूसरों की मदद करने के सिद्धांत को स्वीकार करती है. हर भारतीय भाषा में इस तरह की धारणा है. उदाहरण के लिए, संगम तमिल साहित्य में  कहा गया है, ‘याधुम ऊरे, यावारुम केलिर.’

‘विनाशकारी अशांति’

महत्वपूर्ण बात ये है कि वैक्सीन को लेकर भारत की मदद के बाद विपक्षी पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ ने यामीन की रिहाई में मदद के लिए श्रीलंका और पाकिस्तान के साथ भारत को कुछ करने के लिए कहा है. ये क़दम उस वक़्त उठाया गया जब हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश की तस्दीक की जिसके तहत यामीन के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के एक केस में दोषी पाया गया और उन पर 50 लाख अमेरिकी डॉलर के जुर्माने के साथ उन्हें पांच साल जेल की सज़ा भी सुनाई गई. 

यामीन की क़ानूनी टीम के प्रमुख डॉ. मोहम्मद जमील अहमद ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टैग करते हुए बेहद नाटकीय अंदाज़ में उनसे “विनाशकारी नागरिक अशांति को टालने में मदद” का अनुरोध किया. जमील के मुताबिक़ इस हालात के लिए “संदिग्ध और मनगढ़ंत आरोप” ज़िम्मेदार हैं जिसका एक ‘राजनीति से प्रेरित’ न्यायिक सेवा आयोग (जेएससी) ने समर्थन किया. जमील उन दो उप-राष्ट्रपतियों में पहले हैं जिन पर यामीन के राष्ट्रपति रहते हुए महाभियोग चलाया गया था. वो विपक्षी गठजोड़ के सलाहकार भी हैं. 

ये बताना कोई मुश्किल काम नहीं है कि यामीन का ख़ेमा तीनों देशों में गंभीरता से किस देश से अपील कर रहा था.

ये बताना कोई मुश्किल काम नहीं है कि यामीन का ख़ेमा तीनों देशों में गंभीरता से किस देश से अपील कर रहा था. वो देश भारत है. श्रीलंका में मालदीव के निर्वासित बड़ी संख्या में रहते हैं जो कोलंबो हवाई अड्डे को आने-जाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. सत्ताधारी एमडीपी श्रीलंका की ‘कर्ज़दार’ है. 2016 में श्रीलंका के तत्कालीन विदेश मंत्री मंगला समरवीरा और वित्त मंत्री रवि करुणानायके ने यामीन के सत्ता में रहने के दौरान भारत के विदेश सचिव एस. जयशंकर- जो अब भारत के विदेश मंत्री हैं- के रुख़ से अलग हटकर एमडीपी के नशीद के लिए ‘जेल अवकाश’ की मांग का समर्थन किया था ताकि वो यूनाइटेड किंगडम जाकर रीढ़ की हड्डी का इलाज कर सकें. 

पहला मौक़ा नहीं 

हालांकि जमील के ट्वीट पर पाकिस्तान का रुख़ हास्यास्पद है क्योंकि मौजूदा सोलिह सरकार ने बार-बार पाकिस्तान की उन कोशिशों का विरोध किया है जिसके तहत उसने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बैठक में अनुच्छेद 370 ख़त्म होने के बाद ‘कश्मीर के हालात’ को उठाने की कोशिश की. इससे भी अजीब बात ये है कि यामीन ख़ेमा चीन की तरफ़ देख भी नहीं रहा जबकि यामीन जिस वक़्त सत्ता में थे तो भारत की तुलना में चीन क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनका सबसे बड़ा समर्थक था. यामीन के शासन के दौरान भारत और मालदीव के बीच तनाव की सबसे बड़ी वजह ये थी कि यामीन भारत के साथ पारंपरिक संबंधों की क़ीमत पर ज़रूरत से ज़्यादा चीन का साथ देते थे. इसने दक्षिण एशिया की राजनीति में चीन के बड़ा भाई बनने की कोशिश का भी पर्दाफ़ाश कर दिया. इससे पहले श्रीलंका में भी चीन को ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था जब 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. 

वैसे तो यामीन की टीम भारत का बहिष्कार करती है. अक्सर आरोप लगाती है कि भारत मालदीव के ‘आंतरिक मामले में हस्तक्षेप’ करता है. लेकिन ये पहला मौक़ा नही है जब पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ ने भारत के हस्तक्षेप की मांग की है. इससे पहले जब भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने नवंबर के मध्य में मालदीव की यात्रा की थी तो विपक्षी दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने, जिसका नेतृत्व यामीन के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद वहीद हसन मानिक कर रहे थे और जो अब पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ के वरिष्ठ सलाहकार हैं, यामीन के मामले में भारत के हस्तक्षेप की मांग की थी. 

सोलिह के लिए अपनी एमडीपी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच भी एकजुटता सुनिश्चित करने की ज़रूरत है क्योंकि नशीद समर्थक गुट को कथित एंटी-इनकम्बेंसी का डर है.

राष्ट्रपति के तौर पर वहीद ने अपने पूर्ववर्ती नशीद, जो अब स्पीकर हैं, के ख़िलाफ़ आपराधिक केस की इजाज़त देने में देरी की थी. नशीद पर आरोप था कि उन्होंने आपराधिक अदालत के मुख्य जज अब्दुल्ला मोहम्मद की आधी रात में गिरफ़्तारी का आदेश दिया था और उन्हें एक वीरान द्वीप में अकेले क़ैद में रखा था. वहीद का फ़ैसला विवादों से घिरे 2013 के राष्ट्रपति चुनाव, जिसमें यामीन ने नशीद को मात दी थी, में भारत की तरफ़ से ‘सभी को समान अवसर देने’ की मांग के बाद आया था. 

विपक्ष मायूस

विपक्ष की मायूसी समझी जा सकती है. दो साल बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले परिषद चुनाव उसके लिए आख़िरी मौक़ा है. दोनों पक्ष इस चुनाव को सोलिह के नेतृत्व पर जनमत संग्रह में बदलने के इच्छुक हैं. 2018 के चुनाव में राष्ट्रपति रहते हुए चुनावी हार के बावजूद यामीन जैसे जाने-पहचाने चेहरे के बिना विपक्ष ये दावा नहीं कर सकता कि वो सत्ताधारी पार्टी का विकल्प है.

आंतरिक तौर पर भी वहीद और जमील के रूप में यामीन के महत्वाकांक्षी प्रतिद्वंदी हैं. ये दोनों यामीन की टीम और कुछ दूसरे लोगों के लिए ‘बाहरी’ हैं. किसी एक को तरजीह देने से दूसरे नेता पार्टी से अलग भले ही न हों लेकिन नाराज़ ज़रूर हो सकते हैं. इससे विपक्ष का वो आकलन भी गड़बड़ा सकता है जिसके तहत वो 2023 के राष्ट्रपति चुनाव में ख़ुद को गंभीर प्रतिद्वंदी के तौर पर पेश करेगा.

विपक्ष ने अब खुलकर हाई कोर्ट के 2-1 से उस फ़ैसले को चुनौती दी है जिसके तहत पुनर्गठित ट्रायल कोर्ट के 3-0 के आदेश की तस्दीक की गई है. इसकी शुरुआत जमील अहमद से हुई, जो बचाव पक्ष के मुख्य वक़ील हैं, जिन्होंने अपने बचाव में हाई कोर्ट बेंच के दो ‘बहुसंख्यक जज’ की निष्पक्षता पर सवाल उठाए और अलग राय रखने वाले तीसरे जज की टिप्पणियों का ज़िक्र किया.  

भारत पर निशाना

भारत का हस्तक्षेप चाहने की विपक्ष की पहल के बावजूद पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ में राय बंटी हुई लग रही है या फिर उच्च स्तर पर बोलचाल में भी दिक़्क़त है. विपक्ष की एक बैठक के दौरान, जिसमें ये संकल्प लिया गया कि हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ देशव्यापी प्रदर्शन किया जाएगा, यामीन की सरकार में आवास मंत्री रहे डॉ. मोहम्मद मुईज़ु ने बिना किसी उकसावे के घोषणा की कि मालदीव में ‘हज़ारों भारतीय सैनिक’ तैनात हैं. इस तरह उन्होंने ऐसी सोच दिखाई जिसमें कोई सच्चाई नहीं है. 

भारत के निहत्थे सैन्य पायलट और तकनीकी कर्मचारी मालदीव में एक हेलीकॉप्टर और दूसरे डॉर्नियर एयरक्राफ्ट के लिए तैनात हैं. डॉर्नियर एयरक्राफ्ट भारत ने ख़ास तौर पर मानवीय सहायता अभियान में इस्तेमाल करने के लिए मालदीव को तोहफ़े के रूप में दिया था. ये एयरक्राफ्ट हमेशा मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) के निर्देश पर सहायता अभियान में हिस्सा लेगा. 2011-12 की उस घटना के बाद, जिसमें नशीद विरोधी और यामीन समर्थक प्रदर्शनकारियों ने भारतीय उच्चायोग को निशाना बनाया था, भारतीय अर्धसैनिक बल के कुछ मुट्ठी भर जवानों को मिशन और वहां काम करने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तैनात किया गया था- वो भी मेजबान देश की मंज़ूरी के बाद. मालदीव में भारतीय सैन्य मौजूदगी बस इतनी ही है.

गठबंधन की एकजुटता

पिछले साल 4 अप्रैल को होने वाले स्थानीय परिषद चुनाव को कोविड-19 की वजह से अनिश्चितकाल के लिए टालने के फ़ैसले से पहले निर्दलीय समेत 4,172 उम्मीदवारों ने पूरे देश में नामांकन दायर किया था. लेकिन बाद में 71 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया. इस बीच संसद को संविधान के अनुच्छेद 231 में संशोधन करना पड़ा ताकि मौजूदा प्रतिनिधि बने रहें. उसके बाद संसद ने एक और संशोधन पारित किया है जिसके ज़रिए चुनाव आयोग (ईसी) को स्थानीय परिषद का चुनाव कराने का अधिकार सौंपा गया  जो महामारी के कारण देशव्यापी ‘स्वास्थ्य आपातकाल’ की वजह से लंबित था. 

चुनावी लड़ाई मुख्य रूप से चार पार्टियों वाले सत्ताधारी गठबंधन, जिसका नेतृत्व राष्ट्रपति सोलिह की पार्टी एमडीपी कर रही है, और यामीन केंद्रित पीएमसी-पीएनसी गठजोड़ के बीच है. सोलिह ने तब से गठबंधन के साझेदार नेताओं की सिर्फ़ दूसरी बैठक की है और ये सत्ताधारी गठबंधन के एकजुट चुनाव प्रचार के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है. पहली बैठक उनके राष्ट्रपति बनने के बाद हुई थी. 

सोलिह के लिए अपनी एमडीपी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच भी एकजुटता सुनिश्चित करने की ज़रूरत है क्योंकि नशीद समर्थक गुट को कथित एंटी-इनकम्बेंसी का डर है. इसकी वजह ये है कि सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और इसकी वजह से राष्ट्रपति सोलिह के दो मंत्रियों को इस्तीफ़ा देना पड़ा. और कुछ नहीं तो अब सोलिह संसदीय चुनाव की तरह वोट कम होने की इजाज़त नहीं दे सकते जिसकी वजह से सत्ताधारी गठबंधन का वोट प्रतिशत 58 से गिरकर 46 प्रतिशत पर आ गया क्योंकि बतौर पार्टी अध्यक्ष नशीद ने सीटों के बंटवारे में सहयोगियों को अहमियत नहीं दी, वो भी तब जब उन पार्टियों के मंत्री सरकार में बने हुए थे. 

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